घमंडी राजा को सजा | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” घमंडी राजा को सजा ” यह एक Bed Time Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Best Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
घमंडी राजा को सजा | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

Ghamandi Raja Ko Saja | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

 घमंडी राजा को सजा 

राजा शक्तिदेव बहुत ही घमंडी और निर्दई राजा था। ताकत में हो या संपत्ति में, सभी में वह संपन्न था। तलवार चलाना, भाला फेंकना और युद्ध विद्या में वह पूरी तरह कुशल था। 
कोई भी राजा उसके सामने टिक नहीं पाता था। राजा सत्यदेव को अपनी कुशलता पर बहुत घमंड था। वह हमेशा दूसरों को अपने सामने तुच्छ समझता था।
एक दिन मंत्री सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ राजा सत्यदेव के सामने हाजिर हुआ।
मंत्री ने कहा,” महाराज ! यह है हमारी कुशल सेना। इसके सामने कोई भी दुश्मन नहीं टिक पाएगा। “
राजा,” टिक तो मेरे सामने भी नहीं पाएगा। आखिर राजा ऐसा ही होना चाहिए। उसे अपने आप पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए और किसी भी मुसीबत के समय घबराना नहीं चाहिए। “
मंत्री,” सही कहा महाराज… मैंने आपकी कुशलता को देखा है। कोई भी आपको युद्ध में हरा नहीं सकता। आपका पराक्रम और वीरता को देखकर किसी भी राजा का पसीना छूट सकता है। “
राजा,” हां ! सही कहा। “
तभी एक दरबारी राजा के सामने उपस्थित होता है।
दरबारी,” महाराज ! राज्य में एक दूसरे राज्य से खबरी आया हुआ है। “
कुछ समय बाद राजा महल में उपस्थित होते हैं और मंत्री उनकी दांयी तरफ खड़ा होता है। खबरी संदेश के साथ सभा में उपस्थित होता है।
मंत्री सवाल करता हुआ कहता है,” अपना परिचय देते हुए बताओ, संदेश क्या है ? “
खबरी,” महाराज ! मैं आपकी राज्य की सीमा से लगे सातवें राज्य, गोवर्धन से आया हूं। हमारे राज्य में 70% जंगल है जिसमें अलग-अलग तरह की आदिवासी प्रजाति रहती हैं। हमारा मुख्य व्यवसाय जड़ी बूटियां बेचना है। 
हमारे यहां से कई राज्यों में यह जड़ी बूटियां भेजी जाती हैं। मैं आपसे यह अनुमति लेने आया हूं कि क्या हम अपनी जड़ी बूटियों का व्यापार आपके राज्य में कर सकते हैं या नहीं ? “
राजा,” गोवर्धन राज्य कितना बड़ा है ? “
खबरी,” राज्य तो छोटा सा है। “
राजा,” ठीक है। हमारे राज्य के राजकोष में 30 टका कर देकर तुम इस राज्य में अपना व्यापार कर सकते हो। और अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो इस राज्य में व्यापार करने के बारे में सोचना भी मत।

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खबरी,” जी महाराज ! “
यह कहकर खबरी अपने राज्य वापस लौट जाता है। अगले दिन राजा और मंत्री आपस में बात कर रहे होते हैं।
मंत्री कहता है,” महाराज किसानों पर कर बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है। अनियमित समय पर बारिश होने के कारण उनकी फसलों की पैदावार में भी कमी आई है। “
राजा,” अच्छा… तो यह बताओ कि राजकोष में सबसे ज्यादा कर कहां से आ रहा है ? “
मंत्री,” सबसे ज्यादा कर तो गोवर्धन राज्य से आ रहा है जहां के लोग जड़ी – बूटियों का व्यापार हमारे राज्य में करते हैं। “
राजा,” क्या ? गोवर्धन राज्य… लेकिन गोवर्धन राज्य तो बहुत छोटा सा राज्य है। तो फिर इतना बड़ा कर कैसे चुका सकता है ? “
राजा मन ही मन सोचता है कि इतना छोटा राज्य होकर भी इतना बड़ा कर चुकाना कोई आसान काम नहीं है। जरूर जड़ी बूटियों के व्यापार में काफी मुनाफा हो रहा है। इसका मतलब राज्य में काफी समृद्धि है।
कुछ समय बाद राजा और मंत्री सभा में बैठते हैं। तभी सेनापति राजा के पास आता है।
सेनापति,” महाराज ! आदेश दीजिए। “
राजा,” हमारी राज्य की सीमा के सातवें राज्य गोवर्धन में आज ही आक्रमण करना है।
सेनापति,” जी महाराज ! “
राजा,” ध्यान रखना किसी भी हालत में मुझे गोवर्धन राज्य को जीतना है। अगर तुम इसमें सफल नहीं हुए तो मैं तुम्हें जान से मार दूंगा।
सेनापति,” जी महाराज ! “
यह कहकर सेनापति गोवर्धन राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी शुरू कर देता है।
पास ही खड़े मंत्री राजा की इस बात से आश्चर्य में पड़ जाता है और कहता है,” महाराज ! गोवर्धन राज्य से हमारे राजकोष में सबसे बड़ा कर का हिस्सा जमा होता है फिर आक्रमण क्यों ? “
राजा,” सोचो जब इतना छोटा राज्य है और इतना बड़ा कर हमारे राज्य कोष में जमा करता है तो ऐसे राज्य में कितनी समृद्धि होगी ? “
मंत्री कुछ नहीं बोलता और आश्चर्य की निगाहों से राजा की बात को सुनता रहता है।
राजा,” तुम नहीं समझोगे मंत्री… इसीलिए तो मैं राजा हूं और तुम मंत्री। “
कुछ देर बाद सेनापति हांफते हुए राजा के सामने उपस्थित होता है।

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राजा,” क्या हुआ सेनापति ? इस तरह घबराए हुए क्यों हो ? “
सेनापति,” महाराज ! गोवर्धन राज्य कोई छोटा राज्य नहीं है। हमारी सेना उनके सामने बिल्कुल भी नहीं टिक पाई और वहां से भाग खड़ी हुई। “
राजा,” शक्तिदेव की सेना और भाग गई… तुम्हें जरा सी भी शर्म नहीं आई यह बताने में। और सैनिकों को लेकर जाओ और इस बार कोई गुस्ताखी नहीं होनी चाहिए। “
अगले दिन सभा में मंत्री कुछ देर बाद उपस्थित होता है।
राजा,” मंत्री… इस तरह मुंह लटकाए क्यों हो ? “
मंत्री,” महाराज ! एक बुरी खबर है। “
राजा,” क्या है बुरी खबर ? “
मंत्री,” सेनापति और जो सैनिक हमने गोवर्धन राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजे थे, वह भाग गए हैं और उनका कोई पता भी नहीं है। “
राजा,” कायर होंगे सब के सब, अब मुझे ही कुछ करना होगा। “
राजा,” मंत्री ! तुम जल्दी से जल्दी सेना इकट्ठी करो और युद्ध की तैयारी करो। इस बार सेना का नेतृत्व मैं करूंगा। “
मंत्री,” महाराज आप ? “
राजा,” जो कहा वह करो। “
मंत्री,” जी महाराज ! “
राजा अपनी तलवार लेकर, भाला उठाकर, हाथी और घोड़ों के साथ गोवर्धन राज्य पर आक्रमण के लिए निकल जाता है।
आदिवासी लोग राजा की सेना पर भारी पड़ते नजर आ रहे थे। राजा के कई सैनिक तो घायल भी हो चुके थे और कई धराशाई। 
यह देखकर राजा अपने घोड़े से नीचे उतरता है और अपनी तलवार और भाले को लेकर तेजी से आदिवासी लोगों की तरफ बढ़ता है।
राजा एक साथ 5 – 5 आदिवासियों को खदेड़ देता है। राजा के सामने एक भी आदिवासी टिक नहीं पा रहा था। यह देखकर 2 आदिवासी जंगल से गोवर्धन राज्य की तरफ भाग जाते हैं। तब तक बाकी आदिवासी राजा को रोककर रखने के लिए उसके साथ युद्ध करते रहते हैं।
राजा उन्हें धमकाते हुए कहता है,” सभी के सभी लौट जाओ वरना तुम भी बेमौत मारे जाओगे। ” 
तभी वो दो आदिवासी वापस युद्ध के मैदान पर लौटते हैं और चिल्लाते हुए कहते हैं,” बाबा आ रहे हैं… बाबा आ रहे हैं। “
इतने में एक बूढ़ा लेकिन हष्ट – पुष्ट शरीर वाला लंबा चौड़ा व्यक्ति जिसके माथे पर लाल तिलक लगा है और हाथ में त्रिशूल लिए है, राजा के सामने आ खड़ा होता है।
राजा हंसते हुए कहता है,” क्या गोवर्धन राज्य में जवान युवकों के अंदर बल नहीं रहा जो अब बूढ़ों से लड़ना पड़ेगा ? “
तभी वह वृद्ध व्यक्ति अपने त्रिशूल को जमीन के अंदर गाड़ देता है और कहता है,” चलो… युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। “
राजा कहता है,” देखो बूढ़े बाबा… युद्ध तो बराबर वालों के बीच होता है। इसे हम युद्ध नहीं बल्कि खेल कहेंगे। “
वृद्ध व्यक्ति,” चलो तो फिर खेल ही खेल लेते हैं। मैं भी देखूं तुम कितने बड़े खिलाड़ी हो ? “
वृद्ध व्यक्ति निहत्थे राजा की ओर बढ़ता है तो राजा कहता है,” देखो बाबा वैसे भी तुम बूढ़े हो चुके हो और निहत्थे अगर लडोगे तो अवश्य ही मारे जाओगे। “
तभी दो आदिवासी लोग कहते हैं,” बाबा ! यह राजा बहुत घमंडी और विद्या में निपुण है। कृपया अपना त्रिशूल हाथ में ले लीजिए। “

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वृद्ध व्यक्ति,” तुम मेरी चिंता मत करो। और हां कोई भी बीच में मत आना। “
राजा और वृद्ध व्यक्ति के बीच युद्ध शुरू होता है। पहले राजा अपने भाले से प्रहार करता है। वह अपने हाथों से तेजी से भाला वृद्ध व्यक्ति को मारने के लिए फेंकता है। 
लेकिन वृद्ध व्यक्ति भाले को शरीर में चुभने से पहले ही पकड़ लेता है। और दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी जांघों पर मारता है जिससे भाला टूट जाता है।
यह देखकर राजा दंग रह जाता है और सोचता है आखिर इस बूढ़े शरीर में ऐसा क्या है जो मेरे भाले को भी तोड़ दिया ?
अगली बार राजा तलवार से प्रहार करता है लेकिन तभी बूढ़ा व्यक्ति तलवार को हाथों में ही पकड़ लेता है और दूर फेंक देता है।
फिर बूढ़ा व्यक्ति प्रहार करता है। वह तेजी से राजा को धक्का मारता है जिससे राजा पीछे खिसक जाता है और उसका संतुलन बिगड़ जाता है।
इस बार राजा तेजी से भाग कर आता है और बूढ़े व्यक्ति को तेजी से धक्का मारता है। बूढ़ा व्यक्ति भी पीछे खिसक जाता है और धरती पर पड़े हुए बांस से टकरा जाता है।
बूढ़ा व्यक्ति उस बांस को उठाकर उसके एक सिरे को पकड़कर तेजी से भागता है और भागते – भागते बांस के दूसरे सिरे को धरती से झुका कर एक पेड़ पर जा बैठता है। और फिर कहता है,” आजा बच्चे खेल खेलते हैं। “
राजा को बांस पकड़कर पेड़ पर चढ़ने की कला नहीं आती थी। वह पेड़ के पास जाता है और पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगता है लेकिन तभी बूढ़ा व्यक्ति पेड़ से नीचे कूद जाता है और कहता है,” लो बेटा… मैंने तुम्हारा काम और भी आसान कर दिया। “
राजा तुरंत पास पड़ी तलवार को उठाता है और बूढ़े व्यक्ति पर प्रहार करता है। लेकिन बूढ़ा व्यक्ति एक हाथ से तलवार पकड़ लेता है और दूसरे हाथ से राजा की गर्दन।
बूढ़ा व्यक्ति कहता है,” बच्चे… आया मजा खेल में ? “
यह देखकर पास खड़े आदिवासी लोग हंसने लगते हैं और कहते हैं,” यह हैं हमारे बाबा… इनके सामने तो कोई आज तक टिक ही नहीं पाया। “
राजा की गर्दन पकड़े होने के कारण राजा की आंखें बंद होने लगती हैं और उसे केवल धूल उड़ती हुई दिखाई देती है। कुछ समय बाद सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।
और राजा घुटनों के बल बैठकर कहता है,” ऐसी विद्या तो मेरे गुरु राजा प्रताप को ही आती है। बचपन में मैंने उनसे काफी प्रयास किया था इस विद्या सीखने के लिए लेकिन उन्होंने सिखाने से मना कर दिया था। मुझे माफ कर दीजिए गुरुदेव ! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। “
तभी राजा प्रताप कहते हैं,” मुझे भी उस समय अपनी ताकत और अपनी सीखी हुई विद्या पर काफी घमंड हो गया था। इसीलिए मैंने संन्यास लेने का फैसला लिया और राज्य छोड़कर यहां जंगलों के बीच रहने लगा। 
मैंने यह विद्या तुम्हें इसलिए नहीं सिखाई थी क्योंकि मुझे पता था कि तुम कभी ना कभी इसका दुरुपयोग कर ही सकते हो। “

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राजा,” मुझे माफ कर दीजिए गुरुदेव… मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। “
थोड़ी ही देर में राजा के सैनिक और आदिवासी लोग एकजुट हो जाते हैं और सामने बनी महादेव की मूर्ति के सामने ‘जय महादेव‘ का नारा लगाने लगते हैं। उसके बाद पूरा वातावरण उनकी तेज आवाज से गूंज उठता है।
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