हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ चतुर दादी ” यह एक Dadi Maa Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Chatur Dadi | Hindi Kahani| Moral Stories in Hindi | Kahaniya |Bed Time Story | Hindi Stories
एक सेठ था। वो बहुत कपटी और लालची था। रामपुर गांव में उसकी इकलौती रिश्तेदार एक काकी रहती थी।
काका का निधन हो गया था। काकी की अपनी कोई संतान नहीं थी। वो बहुत बूढ़ी थी। बिना लाठी के चल नहीं पाती थी।
सेठ की नजर उस पुश्तैनी हवेली पर थी जिसमें काकी रहती थी। वह हवेली हड़पने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता रहता।
सेठ की पत्नी,” लीजिये, चाय पी लीजिये। इतनी चिंता में क्यों लग रहे हो ? क्या बात है ? “
सेठ,” अरे भाग्यवान ! चिंता ना करूं तो क्या करूँ ? सारी हवेली पर हक जमाकर बैठी है काकी। उस बुढ़िया से किसी ना किसी तरह वो हवेली तो चाहिए बस। “
सेठानी,” उसके कुछ ही दिन बचे हैं। अब आप खामखां उसकी फिक्र करते हो। उस पर तो आपका ही हक है। इकलौते वारिस हो आप हवेली के। “
सेठ,” इस बार तो मैं काकी को फुसलाकर हवेली के कागज लेकर रहूंगा। “
अगले दिन सेठ हवेली पर जाता है। हवेली का नौकर दरवाजा खोलता है।
नौकर,” आप कौन ? अरे सुनिए… आप अंदर कहाँ जा रहे हो ? “
काकी,” अरे ! कौन है रे ? कौन आया ? “
सेठ,” मैं हूँ काकी, तुम्हारा बबुआ। “
काकी,” अरे ! तू क्यों आया है ? “
सेठ,” क्या कहा काकी..? तुम भी ना, अपनी काकी से मिलने नहीं आ सकता क्या ? “
काकी,” अरे ! तू रहने दे। एक नंबर का लालची स्वार्थी कहीं का ? तू कभी मरते हुए को पूछने नहीं आया। चल निकल यहाँ से। “
सेठ,” जैसा भी हूँ काकी, इस हवेली का इकलौता वारिश हूं। “
काकी,” हाय हाय ! आज वारिशपना याद आ रहा है। जब जब इस हवेली पे और मुझ पर मुसीबत आयी, तू झांकने भी नहीं आया। “
सेठ,” ये सब मैं नहीं जानता, मुझे बस अपना हक चाहिए।
बाहर निकल यहां से। यह हवेली तो क्या, सुई बराबर जगह नहीं मिलेगी। “
सेठ,” ये घर मेरा भी है। इस पर मेरा भी उतना ही हक है जितना तुम्हारा। तुम मुझे नहीं निकाल सकती। “
काकी,” अरे ! जा यहाँ से नहीं तो धक्के खाकर जायेगा, समझा..? “
तभी नौकर आगे बढ़ा।
सेठ,” ऐ ! हाथ मत लगाना। “
सेठ,” काकी, तुम क्या सोच रही हो, मैं अपना हक छोड़ दूंगा ? ये हवेली मेरी है। तुम्हारे जीतेजी इसे लेकर रहूंगा। देखता हूँ तुम क्या कर लोगी ? “
काकी,” बढ़ा आया… आज तक कभी देखने तक नहीं आया। खेत जमीन सब खा गया, अब ये घर भी चाहिए।
अगले दिन…
सेठ,” लगता है घी सीधी ऊँगली से नहीं निकलेगा। अब ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी। “
सेठ ने एक बदमाश को बुलाया।
बदमाश,” बोलो सेठ, तुमने हमें क्यों बुलाया है ? “
सेठ,” एक काम है तुमसे। बोलो, करोगे ? “
बदमाश,” एक क्या… सौ काम बोलो। हां मगर मुफ्त में कोई काम नहीं करूँगा, समझे..? अपने यहाँ मुफ्तखोरी नहीं चलती। “
सेठ ,” पर ये बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। “
बदमाश,” अरे ! बोलो, काम क्या है भाई ?
सेठ,” ये पता पास वाले रामपुर गांव का है। इस घर में बस एक बुढ़िया अकेले रहती है। मुझे इस घर के कागज चाहिए। “
बदमाश,” चाहिए का क्या मतलब ? वो घर के कागज मुझे क्यों देगी ? “
सेठ,” यही तो काम है। मुझे तो बस घर के कागज चाहिए। तुम कैसे भी लाकर दो। ठगी करो, चोरी करो… वो तुम जानो। “
बदमाश,” क्या बात है सेठ… कागज़ कैसे भी चाहिए तुमको, हैं ? “
सेठ,” ये बुढ़िया मेरी काकी है। इसका दुनिया में मेरे सिवाय कोई नहीं है। ये जिस घर में रहती है, वो हमारा पुश्तैनी घर है।
कायदे से उस पर मेरा हक है पर ये काकी बहुत सयानी है। कहती है तुझे सुई जितनी जगह नहीं दूंगी। इसके बदले में मैं तुम्हें बहुत से रुपए दूंगा। “
बदमाश,” बहुत सारे का मतलब..? रकम बताओ। “
सेठ,” ₹3000। “
बदमाश,” जोखिम भरा काम है। अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम तो पलट जाओगे। ₹5000 से एक रूपया कम नहीं लूँगा। “
सेठ,” चलो ठीक है। मुझे कागज किसी भी हाल में चाहिए। “
बदमाश,” रुपया तैयार कर लो सेठ, मैं इस हाथ कागज दूंगा उस हाथ रुपए लूँगा। “
बदमाश बुढ़िया के घर के सामने खड़ा हो हो जाता है तभी हवेली का नौकर जल्दी-जल्दी में हवेली से बाहर निकलता है।
बदमाश,” अरे ये तो बहुत बड़ी हवेली है। नौकर तो एक ही लग रहा है। बुढ़िया की कमर भी झुकी हुई है। चोरी आसानी से हो जाएगी। “
नौकर थैला लिए घर से बाहर निकला।
बदमाश,” इससे कुछ और पता करता हूँ। “
बदमाश,” ओ भाई ! ज़रा सुनो तो, इतनी जल्दी मैं कहाँ जा रहे हो ? “
नौकर,” तुम कौन..? पहचाना नहीं। “
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बदमाश,” अरे ! मैं दूसरे गांव में रहता हूँ। आज ही यहाँ काम पर आया हूँ। यहाँ खाने पीने की दुकान कहां है ? “
नौकर,” सामने सीधे निकल जाओ, थोड़ी दूरी पर है। “
बदमाश,” अरे ! वो तो बंद पड़ी है। कोई और बता दो। “
नौकर,” देखो भैया, अभी मैं बहुत जल्दी में हूँ वरना आखरी बस निकल जाएगी। मेरी भतीजी की शादी है। वहाँ जाना जरूरी है। “
बदमाश,” आज वही रहोगे ? “
नौकर,” हाँ, कल शाम से पहले तो नहीं आ पाऊंगा। चलो, अब चलता हूँ। “
नौकर के जाने के बाद…
बदमाश,” नौकर भी नहीं है। सही मौका है, आज रात ही सेठ का काम निपटाता हूँ। “
अंधेरा होने पर बदमाश खिड़की से घर में घुस गया।
बदमाश,” बाप रे ! बुढ़िया ने इतना अंधेरा कर रखा है कि अपना हाथ भी ना दिखे। “
चलते चलते ही वो रसोई में पहुंचा।
बदमाश,” लगता है नौकर बेचारा कल तक का खाना बना के गया। सब मैं खा गया। “
उसने जी भरकर खाना खाया।
बदमाश,” अब रास्ता एकदम साफ है। वो मरियल बुढ़िया तो बिना लाठी के चल भी नहीं पाती, मेरा क्या बिगाड़ लेगी ? अब आराम से कागज ढूंढूंगा। “
वो एक कमरे में गया। वहाँ तिजोरी थी। उसने पिन से तिजोरी खोलने की कोशिश की।
बदमाश,” अरे ! पूरी पिन टेढ़ी हो गई पर ताला टस से मस नहीं हो रहा। ये अपनी चाबी के बिना नहीं खुलेगा। चाबी… चाबी… चाबी। “
उसने यहाँ वहाँ देखा तो हाथ से एक मूर्ति टकराकर ज़ोर से गिरी।
काकी,” अरे रमैया ! ये आधी रात को क्या लगा रखा है ? सोने भी नहीं देता। “
बदमाश,” इस बुढ़िया की याददाश्त बहुत कमज़ोर है। भूल गयी आज तो नौकर घर पर है ही नहीं। क्या करे बेचारी… बुढ़ापा जो है ? “
थोड़ी ही देर बाद…
काकी,” अरे ! मैं तो भूल ही गयी, ये रमैया तो भतीजी की शादी में गया है। रमैया तो क्या, आज तो कोई भी नहीं है ? फिर ये आवाज…शायद मेरा भरम है। “
बदमाश चाबी ढूंढ़ते हुए अलमारी से टकरा गया। उस पर रखा सामान उसके सिर पर गिर गया।
बदमाश,” हाय !मेरा सिर… मैं तो मर गया। “
काकी,” आज तो पक्का चोर घुस गया। अब क्या करूँ ? “
बदमाश,” यहाँ चाबी नहीं है। जरूर बुढ़िया के कमरे में होगी। वहाँ जाना होगा। “
बुढ़िया (कुछ सोचने के बाद),” रमैया… अरे ओ रमैया ! कहां मर गया ? सुनाई नहीं देता क्या ? “
बदमाश,” ये बुढ़िया पगला गयी है। आधी रात को चिल्ला रही है। “
बुढ़िया,” रमैया… ओ रमैया ! थोड़ा पानी ले आ। प्राण निकल रहे हैं रे। मरती बुढ़िया को दो बूंद पानी पीला दे, तुझे पुण्य मिलेगा। “
बदमाश,” अरे ! ये ऐसे ही जागती रही। तो मैं इसके कमरे से चाबी कैसे लूँगा ? आइडिया…। “
रसोई में जाकर उसने एक गिलास पानी में एक गोली डाली।
बदमाश,” ये पानी पीकर बुढ़िया सुबह तक आराम से सोती रहेगी और मैं अपना काम आराम से कर लूँगा। “
बुढ़िया,” रमैया, थोड़ा पानी ले आ। प्राण निकल रहे है रे। मरती बुढ़िया को दो बूंद पानी पीला दे, तुझे पुण्य मिलेगा। “
बुढ़िया (नौकर की आवाज में),” आया काकी। “
बुढ़िया,” रमैया की आवाज़ में बोल रहा है दुष्ट। आ तो तुझे बताती हूँ। “
बुढ़िया ने पास पड़ी लालटेन का तेल दरवाजे की दहलीज पर फैलाकर गिरा दिया और लाठी लेकर दरवाजे के पीछे खड़ी हो गयी।
जैसे ही बदमाश ने दहलीज पर कदम रखा, फिसलकर गिर पड़ा और बुढ़िया उसे लाठी से मारने लगी।
बुढ़िया,” चोर चोर चोर… काकी के घर में चोर घुस गया। “
गांव वालों ने आकर बदमाश को पकड़ लिया। सुबह पंचायत में सेठ को भी बुलाया गया।
सेठ,” ये चोर भी ना… एक काम ढंग से नहीं कर सका। अब कहीं ये सब कुछ सच सच ना उगल दे ? “
मुखिया,” कल रात काकी के घर में ये चोर घुस गया। वो तो शुक्र है कि इसने थोड़ी सूझबूझ दिखाई। अगर कोई ऊँच नीच हो जाती तो ? “
सेठ,” आप कहना क्या चाहते हो मुखिया जी ? “
मुखिया,” यही कि काकी का यूं अकेले रहना ठीक नहीं। तुम इसे अपने साथ रखो। “
सेठ (मन में),” काकी मेरे साथ आ जाये तो मैं इस हवेली को ऊंची कीमत पर बेचकर शहर जाकर आराम की ज़िंदगी जिऊंगा। “
सेठ,” हाँ हाँ, क्यों नहीं..? ये चलें मेरे साथ, मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगा। “
बुढ़िया,” मुखिया जी, मुझे नहीं रहना है इसके साथ। “
मुखिया,” इसके सिवा तुम्हारा कोई है भी तो नहीं। “
बुढ़िया,” पिछले साल जब मैं बीमार हुई थी तब भी आपने यही कह के मुझे इसके यहाँ भेजा। देखभाल करना तो दूर, रोटी कपड़े तक को मोहताज कर दिया था मुझे।
ये और इसकी पत्नी मेरे साथ नौकरों से भी बुरा व्यवहार करते थे। अपमान सहने से तो अकेले रहना अच्छा है। वैसे भी इसे बस हवेली चाहिए। “
मुखिया,” ठीक है। “
मुखिया,” तुम काकी के घर में क्या चोरी करने गए थे ? “
बदमाश (धीमे से),” हाँ… हाँ। “
मुखिया,” सुना नहीं..? तुम काकी के घर में क्या चोरी करने गए थे ? “
बदमाश,” बताता हूँ… बताता हूँ पर मुझे मारना नहीं… मारना नहीं। गांव वालों ने मार मारके कमर तोड़ दी है। “
मुखिया,” कोई नहीं मारेगा। “
तभी सेठ ने बदमाश को आंख मारकर गर्दन ना में हिलाकर इशारा किया। बुढ़िया ने ये देख लिया।
बुढ़िया,” अच्छा…तो ये सारा किया धरा तेरा है। “
बदमाश,” मैंने सोचा घर के कागज़ के साथ साथ इतने बड़े घर में बढ़ा माल मिलेगा। ये सोचकर घुसा था। “
मुखिया ,” पर तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। “
बुढ़िया,” मुखिया जी, सजा रहने दो। वैसे भी मुझे तो ये बेचारा शरीफ लग रहा है, मजबूरी में चोरी करता होगा। “
मुखिया,” काकी, जो कहना है खुलकर कहो। “
बुढिया,” मैंने आपकी और मेरी समस्या का हल निकाल लिया है। आज से ये चोर मेरा बेटा है। “
मुखिया ,” क्या…चोर को बेटा बनाओगी ? “
बुढ़िया,” हाँ… जाते ही जाते किसी की जिंदगी संवर जाए, कलयुग में इससे बड़ा पुण्य क्या होगा ? और अब से ये मेरे साथ रहेगा।
मुखिया जी, आप बस कागज बनवा दो कि मेरे बाद यह हवेली इसकी होगी ताकि इसे आगे कभी कोई परेशानी ना हो। “
मुखिया,” ठीक है काकी, जैसी तुम्हारी मर्जी। “
बुढ़िया घर पहुंच कर…
बदमाश,” काकी, मैं तो चोरी करने आया था। तुमने मुझे सजा से तो बचाया ही, बेटा भी बना लिया। “
बुढ़िया,” बेटा कोई बात नहीं, तू अपने आगे की सोच। वैसे भी जो चीज़ तू चुराने आया था वो तुझे मिल गयी। “
बदमाश,” मैं कुछ समझा नहीं। “
बुढ़िया,” मैं जानती हूँ कि तू हवेली के कागज चुराने आया था। “
बदमाश,” आपको कैसे पता ? “
बुढ़िया,” इस घर में और धरा क्या है चोरी करने के लिए ? चल अब ये सब चोरी चकारी छोड़कर कोई ढंग का काम शुरू कर दे। “
दूसरी तरफ…
सेठ,” बाजी उलट गयी। अब हवेली हाथ से चली जाएगी। और इस बदमाश ने कहीं मेरा सच बता दिया तो गांव से हुक्का पानी बंद हो जाएगा। पुलिस में रपट कर दी तो… ना ना कुछ करना पड़ेगा। “
सेठ ने बदमाश को एक सुनसान जगह पर मिलने के लिए बुलाया।
सेठ,” तुमने किसी को कुछ बताया तो नहीं ? ये लो पैसे, हवेली के कागज मुझे दे दो और चुपचाप कहीं और चले जाओ। “
बदमाश,” कौन से कागज..? वो हवेली मेरी माँ की है, उनकी ही रहेगी। “
सेठ,” ओ माँ…. बेटा बोल दिया तो तेरी माँ हो गयी। “
बदमाश,” हाँ, और मैं उनके साथ ही रहूंगा। तुम उन्हें तंग करने की सोचना भी मत। “
सेठ ,” तुझे क्या लगता है, मैं तुझे वो हवेली इतनी आसानी से लेने दूंगा ? वो बस और बस मेरी है, समझा ? “
बदमाश,” मुझे हवेली नहीं चाहिए पर जब तक माँ नहीं चाहेंगी, मैं तुम्हें भी नहीं लेने दूंगा। “
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सेठ,” देख, ज़्यादा बन मत। अपनी औकात मत भूल, समझा ? तुझे मैंने वहाँ हवेली के कागज चुराने के लिए भेजा था। वो कागज़ मुझे लाकर दे और यहाँ से दूर चला जा। “
तभी पेड़ों के पीछे छिपी बुढ़िया ताली बजाते हुए सामने आयी। उसके साथ मुखिया और गांव वाले भी थे।
सेठ,” तूने मुझसे चलाकी की। “
बुढ़िया,” ये पराया होकर भी अपना बन गया पर तुम अपने होकर भी कभी अपने नहीं बन पाए। “
मुखिया,” अरे ! तुम तो बहुत गिरे हुए इंसान हो भई। तुम्हारी सजा पंचायत बतायेगी। अरे ! ले चलो इसे, इसकी हेकड़ी निकालनी पड़ेगी।
सब कुछ होते हुए भी एक बेसहारा बुढ़िया को तंग करता है। ऐसी नालायक औलाद किसी की ना हो। “
इसके बाद पंचायत ने सेठ का हुक्का पानी बंद कर दिया और दूसरी तरफ बदमाश काकी का बेटा बनकर काकी के साथ खुशी खुशी हवेली में रहने लगा।
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