जादुई समुद्र | Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई समुद्र ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

जादुई समुद्र | Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

नदियापुर गांव में बसंत नाम का एक नौजवान नाविक रहता था। नदियां पुर गांव की सीमा में आने जाने के लिए लोगों को नाव का ही सहारा लेना पड़ता था। 
बसंत एक सीधा साधा नाविक था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक बूढ़ी माँ थी। बसंत बेहद गरीब था। 
बसंत के ऊपर नदियापुर गांव के लगभग सभी लोगों का कर्जा चढ़ा हुआ था। आज बसंत अपनी नाव के पास पहुंचा ही था कि तभी गांव का सेठ (धनीराम) कुछ लोगों के साथ उसके पास आ धमका। 
सेठ,” बस बहुत हो गया। अब मामला बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है, समझ गया ? पूरे छे महीने हो गए मुझे बेवकूफ बनाते हुए तुझे। आज मैं अपने पैसे ले जाकर ही रहूंगा, समझा ? “
बसंत,” मुझे कुछ दिनों की मोहलत और दे दो सेठजी। आप तो जानते ही हो कि इस वक्त धंधा कितना मंदा चल रहा है ? “
सेठ,” अबे तेरा धंधा कोई मंदा नहीं चल रहा। सच तो ये है कि तू मेरे पैसे देना ही नहीं चाहता। नदियां पुर गांव में आने के लिए और जाने के लिए नाव का ही सहारा लेना पड़ता है। 
ऊपर से ये इलाका टुरिस्ट इलाके में भी आता है। सैलानियों की कोई कमी नहीं है यहाँ पर। तेरा धंधा मंदा कैसे पड़ सकता है बे ? “
बसंत,” सेठ जी, सारे गांव वाले जानते है कि मेरी किस्मत कितनी फूटी हुई है ? मैं बड़ी मेहनत से पाई पाई इकट्ठा करता हूँ लेकिन वो पैसे किसी ना किसी वजह से मुझसे खर्च हो जाते है। “
बसंत पर सेठ धनीराम बसंत का मजाक उड़ाते हुए अपने लोगों को देखकर बोला।
सेठ,” अरे ! सुना तुम लोगों ने..? यह बड़ी मेहनत से पाई पाई जोड़कर रकम इकट्ठा करता है। और इसे खुद नहीं पता कि इसके पैसे कहाँ खर्च हो जाते हैं ? “
इतना कहकर धनीराम गुस्से से बसंत की ओर देखकर बोला। 
सेठ,” यह है क्यों नहीं कहता कि तू एक नंबर का अय्याश है। सारे पैसे अय्याशी में खर्च कर देता है? बेवकूफ आदमी, तुझे कोई और नहीं मिला बेवकूफ बनाने के लिए ? “
बंसत,” नहीं नहीं, ऐसा मत कहिए सेठजी। नदियापुर के सारे लोग जानते हैं कि मैं कितना शरीफ हूँ ? मेरे घर में मेरी पत्नी और मेरी बूढ़ी माँ रहती है। “
सेठ,” मैंने तुझसे ये नहीं पूछा कि तेरे घर में कौन कौन रहता है, समझ गया ? अरे ! तेरे घर में तेरी बूढ़ी मां रहे या तेरी पत्नी ,मुझे इससे क्या ? 
मुझे तो बस मेरे पैसों से मतलब है। और रहा सवाल तेरे शरीफ होने का… अरे ! तू ने तो सारे गांव से कर्जा ले रखा है और जहाँ तक मुझे जानकारी है तो उन्हें किसी के पैसे नहीं चुकाए। “
बंसत,” मुझे थोड़ी सी मोहलत और दे दीजिए, सेठजी। मैं वादा करता हूँ कि मैं आपकी एक एक पाई चुका दूंगा। “
सेठ,” ठीक है, ठीक है। लेकिन इस बार मैं तुझे 10 दिन से ज्यादा की मोहलत नहीं दे सकता। 10 दिन के अंदर अंदर अगर मुझे मेरे पैसे नहीं मिले ना तो मैं… मैं तेरा मकान तुमसे छीनकर तुझे धक्के देकर तेरे मकान से बाहर निकाल दूंगा। समझ में आ गयी..? “
इतना कहकर धनीराम वहाँ से चला गया और बसंत अपना मुँह लटकाते हुए अपने काम पर लग गया। शाम को थका हारा बसंत जैसे ही अपने घर पर पहुंचा, उसकी पत्नी बोली। 
बसंत की पत्नी,” आ गये सेठ जी घर पर ? आपके पीछे बहुत सारे मेहमान आपको पूछते हुए आए थे। उन्होंने आपका काफी देर तक इंतजार किया और बेचारे इंतज़ार कर के बहुत थक गए। अभी कुछ देर पहले ही गए हैं। “
बसंत,” झुमकी, मैं जानता हूँ कि तुम किनकी बात कर रही हो ? “
बसंत की पत्नी,” जब तुम सारी बातें जानते हो तो फिर उन सब के कर्जे क्यों नहीं चुका देते ? “
बसंत,” तुम अच्छी तरह से जानती हूँ झुमकी, पिछले कुछ सालों से मेरे साथ क्या हो रहा है ? मैं जब भी कुछ पैसे जमा करता हूँ वो किसी ना किसी तरह से खर्च हो जाते। 
पिछली बार माँ का पैर टूट गया था, उसके इलाज में कितने पैसे खर्च हो गए ? उसके बाद चोट लगने से तुम्हारी पसली फ्रैक्चर हो गयी थी। उसके इलाज पर कितने पैसे खर्च हो गए ? “
बसंत की पत्नी,” मैं तुम्हारी बातों को समझती हूँ लेकिन गांव वाले इस बात को नहीं समझते। उन्हें तो बस अपने पैसो से मतलब है और आखिरकार वो तुमसे कब तक पैसे नहीं मांगेंगे ? 
गांव का मुखिया धमकी देकर गया है। अगर तुमने गांव वालों के पैसे नहीं दिए तो वो तुम्हारी नाव छीन लेगा। “
बसंत,” और सेठ धनीराम मुझे धमकी देकर गया कि अगर 10 दिन के अंदर मैंने उसके पैसे नहीं दिए तो वो मुझसे मेरा मकान छीन लेगा। मेरी समझ में नहीं आता कि अब मैं क्या करूँ ? “
बसंत की पत्नी,” मेरी समझ में नहीं आता… गांव में जितने भी नाविक है, उन सबकी एश की चांदी कट रही है। उन सबके मकान देखे हैं तुमने ? 
ऐसा लगता है जैसे कि वो कोई नाव नहीं बल्कि कोई कंपनी चलाते हों ? तुम सारा दिन नदी के किनारे क्या करते रहते हो ? “
बसंत,” कितनी बार कह चुका हूँ झुमकी टुरिस्ट मेरी नाव में नहीं आते। “
बसंत की पत्नी,” ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हारी नाव में गांव के भूखे नंगे लोग ही आकर बैठते हैं ? उनसे तुम्हें कितनी आमदनी होती होगी ? 
तुम अपनी नाव में नदियाँ पर घूमने आए सैलानियों को क्यों नहीं बिठाते ? “

ये भी पढ़ें :-

Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

बसंत,” जितने भी नाविक है वो झूठ बोलकर टुरिस्ट को अपनी नाव में बैठाकर सिर्फ उन्हें चूना लगाते और मुझे झूठ बोलना नहीं आता। नहीं चाहिए मुझे हराम की कमाई। “
बसंत की पत्नी,” अरे ! सच्चाई के देवता, ये धंधा है। ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हें धंधा करना ही नहीं आता ? “
बसंत,” जिसे तुम धंधा कह रही हो, मैं उसे अच्छा नहीं समझता। “
बसंत की पत्नी,” मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है कि मुझे तुम्हारे जैसा बेवकूफ पति मिला। अगर ऐसा ही हाल रहा ना तो वो दिन दूर नहीं कि जिस दिन तुम्हारी नाव भी तुमसे छीन ली जाएगी। 
उसके बाद मुझे और मां जी को इस घर से धक्के देकर बाहर निकाल दिया जाएगा। उसके बाद आपने सच्चाई के प्रवचन बाहर बैठकर देते रहना। “
इतना कहकर झुमकी गुस्से से वहाँ से चली गयी। ऐसे ही 10 दिन गुजर गए। 10 वें दिन बसंत नदी के किनारे उदास बैठा हुआ गहरी सोच में डूबा हुआ था कि तभी वहाँ पर धनीराम फिर से आ पहुंचा। 
सेठ,” याद है ना बसंत, आज तेरा आखरी दिन है ? अब इससे ज़्यादा मैं तुझे और मोहलत नहीं दे सकता भाई। 
शाम को मैं तेरे घर पर आऊंगा वसूली करने के लिए। मेरे पैसे तैयार रखना, नहीं तो अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चुपचाप चले जाना। “
इतना कहकर धनीराम वहाँ से चला गया। बसंत अपने आपसे बोला। 
बसंत,” अब क्या होगा ? पूरे 10 दिन से मेरी नाव में मुश्किल से 20 मुसाफिर भी नहीं बैठे होंगे। मैं धनीराम के पैसे कहाँ से दूंगा ? 
अगर मैंने उसे पैसे नहीं दिए तो वो मेरे परिवार को बेइज्जत करके घर से निकाल देगा। मैं कहाँ जाऊं, क्या करूँ ? “
बसंत हसरत भरी निगाहों से और नाविकों को देखने लगा जिनकी नाव पर टुरिस्ट सवार थे तभी बसंत की कानों में एक बूढ़े व्यक्ति का स्वर टकराया। 
बूढ़ा,” क्या तुम मुझे दूसरी दुनिया के छोर तक छोड़ सकते हो ? “
बसंत उस बूढ़े की बात सुनकर हैरत में पड़ गया। 
बसंत (मन में),” लगता है आपका दिमाग खिसका हुआ है ? “
बसंत,” बाबा, ये कैसी बातें कर रहे हैं आप ? “
बूढ़ा,” मेरा कहने का मतलब ये है बेटा, अब तुम मुझे इस नदी के दूसरे किनारे पर छोड़ देना। “
बसंत,” तो सीधे सीधे ये कहिये ना बाबा कि आपको दूसरी सीमा पर उतरना है। ठीक है बाबा, दो सौ लगेंगे। 
बूढ़ा,” मैंने सुना है कि तुम। बूढ़े और गरीब यात्रियों से पैसे नहीं लेते। “
बसंत,” सही सुना है बाबा। लेकिन क्या करूँ ? लगता है मुझे अपने नियम और कायदे बदलने पड़ेंगे। “
बूढ़ा,” चाहे कितनी भी मुसीबत क्यों ना आ जाए, अपने उसूल इंसान को कभी नहीं बदलने चाहिए। वक्त बदलते हुए देर नहीं लगती। “
बसंत,” मैं इस वक्त बहुत परेशान हूँ बाबा। जाओ, जाकर कोई दूसरी नाव पर बैठ जाओ। “
बूढ़ा,” लेकिन मुझे तो सिर्फ तुम्हारी ही नाव पर बैठना है। पर मेरे पास पैसे नहीं हैं तुम्हें देने के लिए। अगर तुम मुझे वहाँ तक छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा। मेरी पत्नी वहाँ पर इंतज़ार कर रही है। “
बूढ़े की बात सुनकर बसंत को उसके ऊपर तरस आ गया था। 
बसंत,” ठीक है बाबा, मैं तुम्हारा दिल नहीं तोडूंगा। आइये बैठिये । जहाँ आपको जाना है, मैं आपको वहाँ छोड़ दूंगा। “
बसंत की बात सुनकर वह बूढ़ा रहस्यमयी अंदाज में मुस्कुराते हुए बसंत की नाव में बैठ गया। बसंत की नाव नदी के बीच में पहुंची ही थी कि तभी वो बूढ़ा बसंत से बोला। 
बूढ़ा,” बस मुझे यहीं तक छोड़ दो। “
बसंत,” बाबा, पागल हो गए हो क्या ? यहाँ पर तो सिवाय पानी के अलावा कुछ भी नहीं है। “
बूढ़ा,” जो मुझे नजर आ रहा है वो तुम्हे नजर नहीं आएगा बेटा। तुम नाव यहीं रोक दो, मैं यहीं उतर जाऊंगा। “
बसंत,” बाबा, तुम डूब जाओगे। पानी बहुत गहरा है। “
मगर बूढ़े ने बसंत की बात नहीं सुनी और नदी में कूद गया। यह देखकर बसंत बुरी तरीके से घबरा गया और बड़बड़ाता हुआ बोला। 
बसंत,” अरे ! कहाँ फंस गया मैं ? अगर ये बूढ़ा मर गया तो उसकी मौत का इल्ज़ाम भी मेरे ऊपर लगेगा। 
सभी लोगों ने इस बूढ़े को मेरी नाव में सवार होते हुए देखा है। अब क्या करूँ ? लगता है मुझे भी नदी में कूदना ही पड़ेगा। “
इतना कहकर बसंत ने नदी में छलांग लगा दी। मगर उसने जैसे ही नदी में छलांग लगाई, उसने अपने आपको एक बेहद सुंदर जंगल के बीच बहुत छोटे से तालाब में खड़ा हुआ पाया।
बसंत तुरंत उस तालाब से निकलकर उस जंगल की ओर देखने लगा। तभी उसके कानों में एक भारी आवाज़ टकराई। 
पेड़,” बेटा, मेरी साख थोड़ी सी झुक रही है। इसे थोड़ा सा सीधा कर दो। मुझे दर्द हो रहा है। “
बसंत ने देखा कि वो जिस पेड़ के नीचे खड़ा था, बसंत से वही पेड़ बोला था। बसंत डर गया। 
पेड़,” डरो मत। अगर तुम मेरा ये काम करोगे तो मैं तुम्हें आगे का रास्ता बता दूंगा। “
बसंत ने डरते डरते उस पेड़ की शाखा ऊंची कर दी। तभी अचानक वसंत के सामने एक बेहद सुंदर सोने की सड़क बन गई। 

ये भी पढ़ें :-

Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

पेड़,” घबराओ मत। तुमने मेरी मदद की है। इस वजह से ही तुम्हारे लिए ये सोने की सड़क मैंने बना दी है। तुम यहाँ से सीधे राजमहल तक पहुँच जाओगे। “
बसंत,” लेकिन ये कौन सी जगह है भाई ? “
पेड़,” कुछ देर बाद तुम्हें पता लग जाएगा। तुम जिस रास्ते से यहाँ पर आये हो, वो रास्ता सिर्फ शाही लोगों के लिए खुलता है। तुम जरूर कोई खास हो ? “
कुछ दूर चलकर बसंत की नजर एक पेड़ पर गई, जहाँ पर लाल लाल सेब लटक रहे थे। अचानक एक सेब बसंत की ओर देखकर बोला। 
सेब,” देख क्या रहे हो..? अगर तुम्हें भूख लगी है तो मुझे खा लो। “
बसंत (मन में),” अरे वाह ! ये मैं कहाँ आ गया। वो बूढ़ा जरूर कोई मायावी व्यक्ति था। “
बसंत,” नहीं… नहीं, मैं जहाँ पर रहता हूँ वहाँ पर बोलने वाले फल नहीं होते। अगर वो बोलते तो हम बिलकुल नहीं खाते। “
सेब,” तुम वाकई बहुत दयालु लगते हो। तुम्हारा इस जादुई नगरी में स्वागत है। इस सोने की सड़क पर सीधे चले जाओ। कुछ ही देर में तुम महल तक पहुँच जाओगे। “
कुछ ही देर में बसंत एक आलीशान महल के सामने पहुँच गया। तभी उसके कंधे पर पीछे से किसी ने हाथ रखा। बसंत ने देखा तो सामने वही बूढ़ा खड़ा, उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। 
बसंत,” कौन हो तुम और ये कौनसी जगह है ? “
अचानक वह बूढ़ा एक बेहद सुंदर राजकुमार में तब्दील हो गया। 
राजकुमार,” ये सारा का सारा राज्य मेरा है। तुम पृथ्वी पर नहीं बल्कि दूसरी एक जादुई दुनिया में हो। “
बसंत,” दूसरी दुनिया में… मैं कुछ समझा नहीं। “
राजकुमार,” दरअसल नदियापुर गांव की नदी के बीच एक दूसरी जादुई दुनिया का द्वार खुलता है। यह एक जादू की दुनिया है। “
बसंत,” तुम्हारा महल तो बिल्कुल सोने का मालूम होता है। यहाँ के दरवाजे… यहाँ तक कि सैनिक भी सोने के ही मालूम होते हैं। “
राजकुमार,” सोने के मालूम नहीं होते… ये सोने के ही है। मैं तुम्हें बहुत दिनों से नाव में बैठा हुआ उदास देख रहा था। 
मैं जानता हूँ कि तुम बहुत अच्छे स्वभाव के हो और तुम्हारी दुनिया में अच्छे व्यक्तियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होता। 
जबकि हमारी दुनिया में ऐसा बिल्कुल नहीं होता। इसलिए मुझे लगा तुम्हारी मदद करनी चाहिए। “
इतना कहकर वो राजकुमार बसंत को महल के अंदर की ओर ले गया। जहाँ पर सोने के सिक्कों के ढेर लगे हुए थे। 
ये सारे सोने के सिक्के तुम्हारे है। तुम्हारी जितनी मर्जी हो, यहाँ से ले जा सकते हो और तुम जब चाहो यहाँ पर आ सकते हो। 
मगर याद रखना… तुम्हें इस बात को हमेशा रहस्य ही रखना होगा। यहाँ तक कि तुम्हें अपनी पत्नी और माँ को भी इस बारे में कभी नहीं बताना। 
जिस दिन तुम इस राज़ को छुपाने में नाकामयाब हो जाओगे, तुम्हारे लिए इस दुनिया के द्वार बंद हो जाएंगे। क्योंकि ये यहाँ का नियम है। “
बसंत ने एक थैली में सैकड़ों सिक्के भर लिए। वो राजकुमार उसे उसी जादुई पेड़ के पास मौजूद उस छोटे से तालाब पर ले आया। 
राजकुमार,” तुम इस तालाब में कूद जाओ, तुम अपनी नाव में दोबारा वापस पहुँच जाओगे। “
बसंत जैसे ही उस तालाब के अंदर कूदा, उसने दोबारा खुद को नदी के बीच में पाया। बसंत उसी दिन वह सारा सोना शहर में बेच आया। 
उसने गांव में सबका कर्ज चुका दिए। देखते ही देखते बसंत नदियापुर का सबसे बड़ा सेठ बन गया। एक दिन बसंत की पत्नी ने बसंत से कहा। 
बसंत की पत्नी,” तुमने आज तक नहीं बताया जी कि आखिरकार तुम इतने ढेर सारे पैसे लेकर कहाँ से आये ? और तुम कुछ दिनों के लिए अचानक कहाँ लापता हो जाते हो ? “
बसंत,” मैंने तुमसे कितनी बार कहा है झुमकी कि मैं इस बारे में नहीं बता सकता ? इतना तो मैं जानती हूँ कि तुम कोई गलत काम नहीं कर सकते। 
अगर तुम नहीं बताना चाहते तो शायद इसमें ही हम सबकी भलाई होगी। “
बसंत की अमीरी देखकर धनीराम अंदर ही अंदर जलने लगा। एक दिन उसने अपने खास आदमी भीमा से कहा। 
धनीराम,” मेरी समझ में नहीं आता भीमा कि ये बसंत रातों रात अमीर कैसे बन गया ? मैं सोच रहा था कि इसके मकान और इसके नाव पर कब्जा कर लूँगा। लेकिन इसने तो मेरे सारे पैसे लौटा दिये। “
भीमा,” सिर्फ आपका ही नहीं बल्कि उसने सारे गांव वालों के पैसे लौटा दिए। आज गांव में सबसे आलीशान हवेली उसकी बनी हुई है। और तो और… नदियापुर में सारी नाव का मालिक बसंत ही है। “
सेठ,” हाँ, मुझे पता है। वो टुरिस्ट से बहुत कम पैसे लेता है और गांव के लोगों को तो वो मुफ्त में ही नाव में बैठाने का काम करता है। 
मेरा धंधा भी चौपट हो गया। दाल में जरूर कुछ ना कुछ काला‌ है। जाओ, जाकर पता करो कि आखिर माजरा क्या है ? “
भीमा,” मैंने पता कर लिया है। “
सेठ,” क्या मतलब ? “
भीमा,” कुछ दिनों पहले मैं उसका चुपके से पीछा कर रहा था। अचानक मैंने देखा कि वो बीच नदी में कूद गया और कुछ ही घंटों के बाद वो वापस आ गया। उसके हाथ में एक थैला था जो सोने से चमक रहा था। “
सेठ,” बेवकूफ आदमी, ये बात तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ? इसका मतलब कि नदी के बीचों बीच जरूर कोई सोने की सुरंग है जो उसके हाथ लग गई है। “
सेठ,” मुझे अभी ले चलो वहाँ पर। “
कुछ ही देर में सिर्फ धनीराम और भीमा नदी के बीच पहुँच गए। 
सेठ,” क्या तुम्हें यकीन है भीमा कि बसंत यहीं कूदा था। “
भीमा,” जी, मैंने उसे ठीक इसी जगह छलांग लगाते हुए देखा था। “

ये भी पढ़ें :-

Jadui Samundra | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

सेठ,” तो फिर देर किस बात की है ? भीमा, चलो अब हम दोनों साथ साथ कूदकर उस सोने की सुरंग में पहुँच जाते हैं और सारा का सारा सोना आज ही निकाल लेते हैं। “
भीमा,” आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। “
इतना कहकर दोनों नदी में कूद गए। अचानक बहुत तेज एक पानी की लहर आई। भीमा और धनीराम डूबकर मर गए। 
बसंत ने आज तक उस रहस्यमय कहानी के बारे में किसी को नहीं बताया था।
इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।

Leave a Comment