हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बुढ़िया का ढाबा ” यह एक Hindi Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Budhiya Ka Dhaba | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales
बुढ़िया का ढाबा
सुंदरगढ़ के हाइवे पर एक बसंती नाम की औरत ने ‘ बुढ़िया का ढाबा ‘ नाम का एक ढाबा खोल रखा था। बसंती की जुबान थोड़ी तीखी थी, लेकिन उसका खाना उतना ही लज़ीज़ होता था।
यही कारण था कि उसके ढाबे में हमेशा भीड़ रहती थी। ढाबे में मंगलू नाम का एक लड़का भी काम करता था जोकि ऊंचा सुनता था, जिसकी वजह से सर्विस हमेशा इधर की उधर हो जाती।
बसंती के ढाबे के बगल ही एक बदमाश गबरू ने भी ढाबा खोल रखा था।
बसंती,” मंगलू, सात नंबर टेबल पे जाके कस्टमर का ऑर्डर ले लो।
मंगलू (मन में),” 60 नंबर टेबल तो अपने ढाबे पर है ही नहीं, तो फिर ये ऑर्डर किससे लूं ? बढ़िया सटिया गई लगता है। “
मंगलू जाता है और वापस टेबल पर घूमते हुए आ खड़ा हो जाता है।
बसंती,” तुझे कब बोल दिया था मैंने कि सात नंबर टेबल पर बैठे कस्टमर का ऑर्डर ले ले। लेकिन तू सिर्फ इधर से उधर घूम रहा है तब से।
मंगलू,” मालकिन में तब से 60 नंबर टेबल ही खोज रहा हूँ, लेकिन अपने यहाँ तो लास्ट बारह नंबर की टेबल है। “
बसंती,” हे भगवान ! इसका ऊंचा सुनने की आदत 1 दिन मेरा बी पी बढ़ा देगी। चल उधर जा तू और ऑर्डर डेलिवर कर और हाँ… इस टेबल पर चार रोटी लाकर दे। “
मंगलू,” भाई… ये लो, किसने मांगी थी अचार और रोटी ? “
बसंती,” आचार रोटी नहीं पगले, चार रोटी देने को बोली थीं। “
मंगलू,” हाँ हाँ, तो ज़ोर से बोलना चाहिए था ना। “
बसंती,” अब कितना ज़ोर से बोलूं ? तेरे लिए एक माइक लगवा दूं क्या ? “
तभी वहां गबरू आ जाता है।
गबरू,” मंगलू… अरे ओ मंगलू, अरे ! इधर जल्दी से आ एक बात पूछनी है। “
मंगलू,” आया भैया,1 मिनट। हाँ भैया, ये लो आपकी हल्दी। “
गबरू,” अबे ! मैं बोला… जल्दी आओ ना कि हल्दी लाओ। “
मंगलू,” हे भगवान ! कैसे कैसे नमूने बनाकर रख छोड़े है जहाँ मैं तूने ? “
गबरू,” भईया मंगलू, तुम कौन सा मसाला इस्तेमाल करते हो ? “
मंगलू,” मेरा मसाला का नाम चम्पू कुमार है लेकिन उसकी तो शादी हो गई है। अपनी बबली के लिए कोई और देख लो। “
गबरू,” कमीने, चल भाग यहाँ से। “
एक दिन…
ट्रक ड्राइवर (गाना गाते हुए),” ओ मैं निकला… गड्डी लेके और सड़क पे वो एक मोड़ आया… मैं उथे गड्डी छोड़ आया। “
वह गबरू के ढाबे पर आकर अपना ट्रक रोकता है।
ट्रक ड्राइवर,” छोटू ओय ! इधर आ वे। अपने मालिक को बुलाओ, कुछ खाने के लिए गल करनी है। “
गबरू,” सरदार जी मेरी हाइट पर मत जाओ, बोर्ड पर देखो, गबरू का ढाबा है ये… और मैं हूँ गबरू। “
ट्रक ड्राइवर,” ओहो कमाल हो गया जी। ओ छोटे पैक में बड़ा धमाका। और यार कोई ना गबरू जी, तुसी सानू रोटी खवाओ अगर रोटी पसंद आ गयी तो मेरी पूरी यूनियन के ट्रक यहीं खाना खाया करेंगे। “
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गबरू,” ओ जी बैठो, आप बैठो। देखो मस्त खाना खिलाता हूँ आपको। “
ट्रक ड्राइवर,” धत तेरे दी… ओह यार ! सारा मूड खराब कर देता। ओह ! आ की खाना बनाये तुस्सी और 4 दिन का बसी खाना खिला देता यार। “
गबरू,” माफी सरदार जी, लेकिन खाना आज ही बनाया है। हो सकता है थोड़ा बहुत नमक ऊपर नीचे हो। “
ट्रक ड्राइवर,” अबे, तेरे कद की तरह तेरे दिमाग भी काम नहीं करता क्या ? एक निवाले ने सारा सिस्टम ऊपर नीचे कर दिया और तू बोल रहा है थोड़ा नमक ऊपर नीचे हो गया। “
सरदार जी गुस्से से ट्रक में बैठ जाते हैं। तभी उसकी नजर बुढ़िया के ढाबे पर पड़ी।
ट्रक ड्राइवर,” महफिल तो यहीं लगी हुई है और मैं भी बेवकूफ जो यहाँ खाने रुक गया। चलो बुढ़िया के ढाबे पे चलते हैं। “
बसंती,” आओ आओ सरदार जी। के खाओगे तुस्सी ? “
ट्रक ड्राइवर,” ओह ! आ गया माई जी। ओह जी, आपके पड़ोसी ढाबे वाले ने तो आज गजबता खाना खिला दिया। “
बसंती,” अरे ! आप कहाँ उस ठग के यहाँ रुक गए। वो तो एक नंबर का हरामी है। “
ट्रक ड्राइवर,” सही कहा माई। अगर गलती नाल खाना खा लें तो गड्डी आज अमृतसर नहीं, लाहौर में रुकनी सी। “
ये सब होता देख गबरू अंदर ही अंदर बुढ़िया के ढाबे से खिलसा बैठा था। एक दिन गबरू का दोस्त चिंटू चटोरा गबरू के ढाबे पर पहुंचता है।
गबरू,” देख भाई चटोरा, अगर पैसे देकर खाना खाने आए हो तो रुको नहीं तो उधार मैं नहीं दे सकता। एक तो सारा कस्टमर बगल में चला जाता है।
वैसे तू भी तो पूरा दिन कैमरा लिए इधर उधर झक मारता है। मेरा कोई काम ही कर दे। किसी तरह बुढ़िया के ढाबे की रेसिपी पता चल जाए। “
चिंटू,” हो सकता है… सब हो सकता है। अपकमिंग फेमस फूड ब्लॉगर है ये चिंटू चटोरा। “
गबरू,” मेरे दोस्त, तुझे भी फायदा दूंगा तू बस मेरा ये काम कर।
दे। “
चिंटू,” अगर तू अपने ढाबे में 20% का प्रॉफिट देता है तो मैं यूट्यूबर बनकर बसंती से उसके टेस्टी खाने का राज़ उगलवा लूँगा। “
गबरू,” ठीक है। “
चिंटू,” तो फिर किसी तरह से तू मुझे उसके ढाबे पर एंट्री करवा दे। “
अगले दिन…
गबरू,” नमस्कार काकी ! “
बसंती,” अरे ! कैसे हो, गबरू ? मैं ठीक हूँ काकी, आप बताओ ? “
गबरू,” बस किसी तरह चल रहा हैं। आप जैसा नहीं है। “
बसंती,” इधर भी सब ठीक चल रहा है। “
गबरू,” और काम कैसा चल रहा है ? “
बसंती,” अरे हाँ ! काफी दिनों से वो बस वही पुराने लोकल कस्टमर आ रहे हैं। मज़ा तो तब आएगा जब बाहर के भी कस्टमर आएँगे। “
गबरू,” मेरा एक दोस्त फेमस फूड ब्लॉगर है। अगर आप बोलें तो उसे बुलवा दूं, रातों रात आपकी दुकान पूरे देश में फेमस हो जाएगी।
लेकिन इसके लिए मुझे उसको 10 हजार रुपए देने होंगे। क्या है ना आज की दुनिया में कोई भी किसी के लिए फ्री में काम नहीं करता। “
बसंती,” ये तो ठीक कहा तुमने। उसकी चिंता मत करो वो तो मैं दे दूंगी। तुम बस काम बनवा दो मेरा। “
इसके बाद चिंटू वहां से निकल जाता है। एक रात मौका पाकर गबरू बसंती के ढाबे पर जाता है और उसके मसालों का बोरा उठाकर अपने ढाबे पर ले जाता है।
गबरू,” अब आएगा मज़ा।
मंगलू,” कौन… कौन है वहाँ ? कोई ना कोई तो है, कौन है ? “
वह ढाबे पर नज़र मारता है।
मंगलू,” कोई बिल्ली रही होगी। “
अगली सुबह…
चिंटू ( फोन से),” नमस्कार दोस्तो ! मैं चिंटू चटोरा आप लोगों के लिए भारत के सभी खजानों को साइड में रख के लेके आया हूँ स्वाद का खजाना।
तो आज मैं आपको लेकर जा रहा हूँ फेमस बुढ़िया के ढाबे पर। आइए ढाबे की मालकिन बसंती काकी से पूछते हैं उनके इस बेहतरीन ढाबे के बारे में। “
चिंटू,” काकी, आपके मन में ढाबा खोलने का विचार कहाँ से आया ? “
बसंती,” मैं जब शादी के बाद ससुराल आई तो मेरे पति, सास, ननद और खास कर ससुर ने मेरे हाथ के बने भोजन खाने के बाद मुझे ढाबा खोलने का सुझाव दिया था। “
चिंटू,” आप अपने खाने में ऐसा क्या मिलाती हैं जिससे आपका खाना इतना लज़ीज़ बन जाता है। “
बसंती,” जो मसाले सभी डालते हैं वही डालती हूँ। “
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चिंटू,” काकी, आप घुमा फिराकर जवाब दे रही हैं। अगर वही मसाले डालती है तो आपके पड़ोस का गबरू ढाबा का स्टाफ बैठकर मक्खी क्यों मार रहा है ? “
बसंती,” वैसा कुछ नहीं है। मैं मसाले अपने कूटकर तैयार करती हूँ और खाने में इस्तेमाल करती हूँ। “
चिंटू,” ब्रेकिंग न्यूस… बुढ़िया का ढाबा के लज़ीज़ खानों का सीक्रेट आज आप सभी के सामने है। वो एक खास तरह से कूटे हुए मसाले का मिश्रण खाने में यूज़ करती हैं। “
बसंती के ढाबे पर…
इंस्पेक्टर,” कैसा बदतमीज़ आदमी है ? ऑर्डर लेने की जगह पीठ घुमाकर ढीठ जैसा खड़ा है। “
मंगलू,” क्या कोतवाल जी, बाहर भीड़ खड़ी है और एक घंटे से पैर पसार कर बैठे हो ? ऑर्डर भी नहीं दिया अभी तक। “
इंस्पेक्टर,” अजीब आदमी पाल रखा है। ढाबे के मालिक को बुलाओ। “
चिंटू,” ये लो चाचा जी अपना माचिस और हाँ… बीड़ी बाहर पीकर आओ। यहाँ बीड़ी, तम्बाकू, गुटका, पान, दारु का सेवन करना मना है। “
इंस्पेक्टर (आवाज लगाते हुए),” भाई, कोई है इस ढाबे में जो मेरी बातो को समझ सके ? “
बसंती,” अरे कोतवाल जी ! क्या हुआ ? क्यों सर पर आसमान उठाये हुए हो ? “
इंस्पेक्टर,” मैं तुम्हारे ढाबे में खाना खाने आया था लेकिन ये लड़का तब से मसखरी किये जा रहा है। “
चिंटू,” मालकिन, अभी कोतवाल जी कह रहे थे कि माचिस लाओ तो मैं माचिस ले आया। “
बसंती,” माचिस लाओ नहीं मालिक को बुलाओ, ये बोला है कोतवाल जी ने। “
बसंती,” कोतवाल जी, माफ़ कर दीजिये। ये थोड़ा ऊंचा सुनता है। आप ये सब छोड़िये और ये बताइए कि आप क्या खाना पसंद करेंगे ? “
इंस्पेक्टर,” यहाँ सबसे अच्छा क्या है ? “
बसंती,” वैसे तो यहाँ सभी अच्छा है लेकिन आज मैं आपको अपने यहाँ की स्पेशल थाली खिलाती हूँ। अब तो खुश है ना आप कोतवाल जी ? “
बुढ़िया का मसाला यूज़ करने से गबरू का ढाबा भी चलने लगता है। उसके ढाबे पर भीड़ देखकर बसंती गबरू का राज़ पता करने लग जाती है।
जल्द ही उसे पता चल जाता है कि गबरू उसकी दुकान से मसाला चोरी करके अपने ढाबे में यूज़ करता है। बसंती अपने मसाले में जमाल गोटा मिला देती है।
गबरू के ढाबे पर…
गबरू,” आइए सर… आइए मैडम, आपके लिए एक्स्ट्रा कुर्सी और टेबल लगवा दिया है। “
गबरू,” हरिया जल्दी से सर – मैडम को बैठाओ। “
हरिया,” आइए सर, आइए मैडम। बैठिए… कहिए क्या सेवा करूँ ? “
थोड़ी ही देर में गबरू देखता है कि उसके ढाबे पर बैठे लोग अचानक लोटा लेकर खेत की ओर भागने लगते हैं।
गबरू,” अरे ! अब ये क्या हो रहा है हरिया ? “
हरिया ,” पता नहीं मालिक, सब पूछने पर यही बता रहे हैं कि आकर बताता हूँ, अभी सामने से हट जाओ। “
गबरू,” अरे ! सभी ने पैसे दिए हैं या नहीं ? “
हरिया,” नहीं मालिक, कोई रुकेगा तो देगा ना। देखो देखो वो पंडित जी चुपके से कमंडल ले निकल रहे हैं। “
हरिया (रोकते हुए),” अरे पंडित जी ! थोड़ा देर रुक जाओ, आपका बिल रेडी है। “
पंडित जी,” दूर भा जा अधर्मी। “
हरिया,” जाने से कौन रोक रहा है पर पैसा देकर जाओ। “
पंडित जी,” मारूंगा अभी। “
और पंडित जी अपना कमंडल उसे फेंककर मारते हैं।
गबरू,” क्या हुआ..? वापस क्यों आया ? उनपे नजर रखने को कहा था ना ? “
हरिया,” कमंडल फेंककर मारा है उन्होंने। ये देखो, सर फोड़ दिया मेरा। “
गबरू,” अरे ! तो मुझे बुलाना चाहिए था ना ? दो चार लठ में ही मार देता, सभी के होश ठिकाने लगा देता। “
हरिया,” ओह साहब ! सब पे नजर रखने के कारण मेरे सर पर ये कमंडल पड़ा है। मुझे तो लगता है पक्का कुछ गड़बड़ है।
इससे पहले कि वो यहाँ पहुंचे, पतली गली से निकल जाते हैं। मैं तो चला अपने गांव। “
पंडित जी,” लगता है भाइयो, इन्होंने पक्का खाने में कुछ गलत चीज़ मिलायी है। “
गबरू,” ये सब मेरा नहीं, उस बसंती का किया धरा है। उसी का मसाला मैंने आज के खाने में मिलाया था।
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पक्का उसी ने कुछ किया है। उसे पकड़ो आप सब और बंद करा दो उसका ढाबा। “
बसंती,” मेरा मसाला तेरे पास कहाँ से आया ? बता सबको कि कैसे करके तूने मेरा मसाला चोरी किया है ? “
गबरू,” मुझको माफ़ कर दो बसंती काकी। लालच में आके मैंने आपका वो मसाला चुरा लिया था।
पंडित जी,” वाह भाई ! देखो तो सही… उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। सुनो भाइयो, ऐसे चोर की हमारे यहाँ कोई जगह नहीं। तोड़ो इसका ढाबा। “
इसके बाद बसंती काकी के ढाबे पर खोई हुई रौनक वापस आ जाती है और साथ ही उन्हें ज्यादा लालच के कारण ब्लॉगर के सामने अपना राज़ उगल देने का सबक मिल गया।
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