हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची छोले भटूरे वाला ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Lalchi Chhole Bhature Wala | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bedtime Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales
लालची छोले भटूरे वाला
एक गांव में बाबूलाल नाम का एक व्यक्ति रहता था। वो गांव में छोले भटूरे का ठेला लगाया करता था।
बाबूलाल बहुत दयालु व्यक्ति था और उसके छोले भटूरे काफी लोकप्रिय भी थे। बाबूलाल गरीबों को मुफ्त में ही छोले भटूरे खिलाता था।
बाबूलाल की पत्नी निर्मला हर बार की तरह आज भी शाम को बाबूलाल से झगड़ा कर रही थी।
निर्मला,” क्या जी..? मैं आपको समझा समझा कर तंग आ चुकी हूँ लेकिन आप हो कि मेरी बात एक भी नहीं सुनते। आधे से ज्यादा छोले भटूरे तो आप मुफ्त में बांट देते हो।
अगर ऐसा ही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं कि जब हमें कटोरा लेकर घर घर जाकर भीख मांगना पड़ेगा। “
बाबूलाल,” मैंने तुमसे कितनी बार कहा है अनीता, रोज़ रोज़ मुझसे झगड़ा मत किया ? “
तभी बाबूलाल के घर पर उसका दोस्त गज्जू अपनी पत्नी आशा के साथ आ गया।
गज्जू,” और बाबूलाल भाई, कैसे हो ? सुना है कल मोहनलाल तुमसे बड़ी अकड़ में बात कर रहा था। बोल रहा था कि तुमने उसे एक महीने से पैसे नहीं दिए।
अगर कुछ दिनों में तुमने उसके पैसे नहीं चुकाए तो वो तुम्हारा ठेला भी जब्त कर लेगा और मारेगा अलग से। “
निर्मला,” भाई साहब, आप तो इनके दोस्त है। आप ही क्यों नहीं समझाते इन्हें कुछ ? मैं तो समझा समझाकर तंग आ चुकी हूँ। “
गज्जू,” अरे भाभी ! मैं इसको कई बार समझा चुका हूँ लेकिन इसके सर पर लोगों की मदद करने का भूत चढ़ा हुआ है। कहीं किसी दिन ऐसा ना हो जाए कि इसे मदद की जरूरत पड़ जाए ? “
गज्जू की बात सुनकर उसकी पत्नी आशा हंसती हुई बोली।
आशा,” अरे ! वो सब छोड़ो, ये देखो निर्मला मेरा सोने का हार। कल ही इन्होंने सुनार से बनवाकर दिया है। “
निर्मला,” ये तो बहुत महंगा वाला हार लगता है। “
आशा,” अरे ! महंगा वाला क्यों नहीं होगा ? पूरे पांच तोले का है। “
निर्मला आशा के हार को हाथ लगाकर देखने लगी। तभी अचानक आशा पीछे हट गयी।
आशा,” बुरा मत मानना निर्मला, कल ही खरीदा है और तुम्हारे हाथ भी गंदे हैं। तुम्हारे हाथ लगाने से कहीं ये काला ना हो जाये। अच्छा… मैं तुम्हें यही हार दिखाने के लिए यहाँ पर आई थी। अब हम चलते हैं। “
आशा और गुज्जू वहाँ से चले गए और निर्मला गुस्से में सोने चली गयी। अगले दिन बाबूलाल अपने छोले भटूरे का ठेला लेकर बाजार में चला गया।
बाबूलाल के बगल में ही मुखिया का खास आदमी नरेश भी ठेला लगाता था। नरेश बाबूलाल को देखकर गुस्से से बोला।
नरेश,” क्या आज भी अपने छोले भटूरे मुफ्त में बांटेगा ? “
बाबूलाल,” नरेश भैया, मैं सिर्फ गरीबों से पैसे नहीं लेता। “
नरेश,” अबे बेवकूफ ! छोले भटूरे कौन से यहाँ पर कार वाले खाने आते हैं ? सब गरीब ही खाने आते हैं। तेरी ये गरीबों को मुफ्त में खिलाने की आदत मुझे बर्बाद कर दे रही है। “
बाबूलाल,” ये तो कोई बात नहीं हुई नरेश भैया। किसी गरीब को खाना खिलाना तो पुण्य का काम होता है। “
नरेश,” लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा। तेरी मुखिया से शिकायत करनी पड़ेगी। “
इतना कहकर नरेश अपना ठेला लेकर मुखिया के पास चला गया। नरेश को गुस्से में देखकर मुखिया बोला।
मुखिया,” क्या बात है नरेश ? आज इतने गुस्से में क्यों है ? “
नरेश,” मुखिया जी, वो बाबूलाल मेरे ही बगल में ठेला लगाकर लोगों को मुफ्त में खाना खिला देता है।
अब आप ही बताओ, जब लोगों को मुफ्त में छोले भटूरे खाने को मिलेंगे तो भला मुझसे वो क्यों खरीदेंगे ? मेरा बहुत नुकसान हो रहा है। “
नरेश की बात सुनकर मुखिया गहरी सोच में डूबकर बोला।
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मुखिया,” तू चिंता मत कर, इसका उपाय है मेरे पास। इस बाबूलाल को गरीबों को खिलाने की बहुत आदत है ना ?
आज के बाद उसके पास इतने गरीब लोग आयेंगे कि ये बाबूलाल उन्हें खिलाते खिलाते कंगाल हो जाएगा। “
नरेश,” मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा। “
मुखिया,” अगर तू समझता होता तो तू मेरी जगह होता ना ? बस तू निश्चिंत होकर यहाँ से चला जा। “
नरेश वहाँ से चला गया। अगले दिन मुखिया ने अपने लोगों को इकट्ठा करके उनसे कहा।
मुखिया,” सुनो, तुम सब को मैंने यहाँ पर एक खास काम के लिए बुलाया है। आज से तुम लोग सब गरीब बनकर बाबूलाल के ठेले पर जाओगे और उसके छोले भटूरे खाकर आओगे। देखता हूँ ये बाबूलाल कब तक मुफ्त में छोले भटूरे खिलायेगा ? “
अगले दिन मुखिया के सारे आदमी गरीब बनकर बाबूलाल के ठेले पर पहुँच गए और उस दिन उन सब ने किसी भी ग्राहक को आने का मौका नहीं दिया।
उस दिन के बाद वो सब रोज़ भेष बदलकर आते और बाबूलाल के मुफ्त में छोले भटूरे खाते। कुछ ही दिनों बाद बाबूलाल कर्जे में आ गया और अब कर्जदार उसे परेशान करने और घेरने लगे।
बाबूलाल परेशान होकर ठेला लगाकर खड़ा था कि तभी मुखिया अपने आदमी संजू और नरेश के साथ वहाँ पर आ गए।
मुखिया,” क्या बात है बाबूलाल, आज कैसे मुँह लटकाए हुए बैठा है ? “
बाबूलाल,” ऐसी कोई बात नहीं मुखिया जी। “
मुखिया,” आज तेरे चेहरे पर वो चमक नहीं दिखाई दे रही। “
संजू,” अरे ! चमक कहाँ से दिखाई देगी मुखिया जी ? बाबूलाल भैया को गरीबों को मुफ्त में छोले भटूरे खिलाने का बहुत शौक चढ़ा था लेकिन अब तो इनके खुद के भूखे मरने के दिन आ गये। “
बाबूलाल,” ऐसा कुछ नहीं है संजू भैया। “
नरेश,” अगर ऐसा नहीं है तो फिर तेरा मुँह क्यों लटका हुआ है ? “
नरेश,” संजू, सही कह रहा हूँ ? “
संजू,” हां जी। “
नरेश,” बाबूलाल मेरी एक बात समझ में नहीं आती, तू गरीबों को ही छोले भटूरे मुफ्त में क्यों खिलाता है भाई ? अमीरों में क्या कांटे लगे हैं क्या ? क्या अमीर इंसान नहीं होते है ? “
नरेश,” किसी भूखे को खिलाना तो बड़ा पुण्य का काम होता है। मुखिया जी। “
नरेश,” और किसी का कर्जा न चुकाना भी तो बड़ा पाप का काम होता है बाबूलाल। “
बाबूलाल,” मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा। “
मुखिया,” तू अच्छी तरह से समझ रहा है कि मैं क्या कहना चाहता हूँ ? आज ही मेरे पास सीताराम और मोहनलाल तेरी शिकायत लेकर आए थे और बोल रहे थे कि काफी दिनों से तूने उनके पैसे नहीं दिए। “
बाबूलाल,” मैं उनके पैसे जल्द लौटा दूंगा मुखिया जी। “
मुखिया,” अगर 3 दिन के अंदर अंदर तूने उन दोनों के पैसे नहीं चुकाए ना… तो गांव में पंचायत बैठाकर उन दोनों से 25-25 चप्पल हर्जाने के तौर तेरे सर पर पहनवाऊंगा। ढोंगी कहीं का..? “
इतना कहकर मुखिया वहाँ से चला गया और वहाँ मौजूद सभी लोग बाबूलाल को देखकर हंसने लगे।
नरेश” हाँ हाँ, अब तुझे पता चलेगा बाबूलाल कि तूने मुखिया का और मेरा बहुत नुकसान करवाया है। शायद तू जानता नहीं था कि जो मैं छोले भटूरे का ठेला लगाता था ना।
इसमें मुखिया का भी पैसा मिला हुआ था। मुखिया अपना नुकसान का एक एक पैसा तुझसे वसूल लेगा। तेरे सर पर चप्पल ना पडवादी तो फिर कहना। “
संजू ,” नरेश सही कह रहा है बाबूलाल। तू तो बड़ी मुसीबत में फंस गया भाई। अब 3 दिन में पैसे कहाँ से लाकर देगा ? “
बाबूलाल ने उन दोनों की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप खड़ा रहा। रात में बाबूलाल जैसे ही अपने घर में घुसा उसकी पत्नी ने उसे देखकर चिल्लाना शुरू कर दिया।
निर्मला,” आ गये सच्चाई के देवता, तुम्हारे पीछे गांव का मुखिया आया था। तुम्हें पता है कितना जलील करके गया है मुझे ? और तुम्हें कितनी गालियां दे कर गया है ? “
बाबूलाल,” पता है मुझे। गांव के मुखिया ने मुझे भी सारे बाजार में बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
मेरी तो ये सोच सोच के हालत खराब होती जा रही है कि 3 दिन के अंदर पैसों का इंतजाम कहाँ से करूँगा ? “
निर्मला,” अब यही दिन देखना बाकी रह गया था। ले देकर हमारे पास यही एक रहने का घर था पर अब तो मुझे ये भी बिकता हुआ नजर आ रहा है। जाओ, इस मकान को भी बेचकर गरीब और भूखमरो को मुफ्त में खिला देना। “
इतना कहकर निर्मला पैर पटकती हुई कमरे में चली गई और बाबूलाल पूरी रात नहीं सोया। अगले दिन बाबूलाल फिर से ठेला लेकर गांव की ओर चल दिया।
बाबूलाल आज बहुत उदास था। वो अपना ठेला एक बरगद के पेड़ के पास खड़ा करके रोने लगा।
बाबूलाल,” हे भगवान ! मैंने सुना था कि तुम हमेशा दयालु लोगों की मदद करते हो। मैंने तो गरीबों को मुफ्त में छोले भटूरे खिलाकर पुण्य का काम किया था और उसके बदले मुझे क्या मिला ?
गांव का मुखिया सरेआम मेरी बेइज्जती करके चला गया। अगर 3 दिन के अंदर मैंने सीताराम और मोहनलाल के पैसे नहीं दिए तो… तो बीच पंचायत में मुखिया मुझे चप्पल पडवाएगा।
मेरी क्या इज्जत रह जाएगी ? अब मैं किसी भी गरीब को मुफ्त में नहीं खिलाऊंगा। मुझे माफ़ कर देना भगवान। मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं। “
कुछ देर बाद बाबूलाल गांव में जाकर ठेला लेकर आ गया। मगर आज उसने किसी को मुफ्त में नहीं खिलाया। कुछ देर बाद एक बूढ़े पति पत्नी उसके पास आकर खड़े हो गए।
बूढ़ा,” हमने सुना है बेटा कि तुम गरीबों को मुफ्त में खिलाते हो। हम पति पत्नी 3 दिन से भूख हैं। भूख से हमारी हालत खराब है। क्या तुम हम दोनों को छोले भटूरे खिला सकते हो ? हमारे पास पैसे नहीं हैं। “
बाबूलाल,” माफ़ करो बाबा, आज मैं किसी को मुफ्त में नहीं खिला रहा। “
बाबूलाल की बात सुनकर वहाँ पर खड़े हुए लोग बाबूलाल को देखकर हंसने लगे।
बूढ़ा,” ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं तो किसी भी प्रकार से भूखा रह लेता हूँ लेकिन… लेकिन यह मेरी पत्नी कुछ दिनों से बीमार भी चल रही है। तुम ऐसे ही कुछ खिला दो। “
बाबूलाल,” मेरी मजबूरी समझो बाबा, मुझसे कोई भूखा नहीं देखा जाता लेकिन आज मैं बहुत मजबूर हूं। अगर आज भी मैंने मुफ्त में खिला दिया तो मेरी बहुत ज्यादा बदनामी और बेइज्जती हो जाएगी। “
बूढ़ा,” मेरे पास पैसे तो नहीं है बेटा, लेकिन हाँ… कुछ मिट्टी के कंकड़ पड़े हुए हैं। तुम उन मिट्टी के कंकड़ों के बदले मुझे और मेरी पत्नी को छोले भटूरे खिला सकते हो ? “
बाबूलाल,” बाबा, मैं भला मिट्टी के कंकड़ों का क्या करूँगा ? मुझे पैसों की जरूरत है। “
बूढ़ा,” गरीब की दी हुई कोई भी चीज़ बेकार नहीं होती बेटा। एक ना एक दिन वो काम जरूर आती है। उपहार समझकर रख लेना। “
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बाबूलाल को उस बुजुर्ग पर बहुत ज्यादा तरस आया।
बाबूलाल,” ठीक है बाबा, लाओ मिट्टी के कंकड़ों को मैं तुम्हारा आशीर्वाद समझकर रख लेता हूँ। तुम दोनों जितना खा सकते हो, उतना खा लो। “
उस बूढ़े ने एक पोटली बाबूलाल के हाथों में थमा दी। बाबूलाल ने देखा उसमें मिट्टी के कंकड़ रखे हुए थे।
बाबूलाल दोनों पति पत्नी के लिए गरमा गर्म छोले भटूरे बनाने लगा। तभी वहाँ पर ठेला लगाकर खड़ा हुआ नरेश बाबूलाल से बोला।
नरेश,” अरे ! ये मिट्टी का कंकड़ों से तू भला कैसे सीताराम और मोहनलाल का कर्जा चुकायेगा ? बेवकूफ आदमी, इतनी बेइज्जती होने के बाद भी तेरी कुछ समझ में नहीं आया। “
बाबूलाल,” नरेश, मेरी जिसे मर्जी चाहेगी, मैं उसे मुफ्त में खिलाऊंगा। तू कौन होता है मुझे रोकने वाला ? जा जाकर बोल देना अपने मुखिया को। मुखिया का चमचा कहीं का। “
नरेश,” 3 दिन बाद जब मुखिया उन दोनों से तेरे सर पर चप्पलें पडवाएगा ना, उस दिन मैं तुझसे बात करूँगा। “
बाबूलाल,” मुझे भगवान पर पूरा विश्वास है। वो दिन कभी नहीं आएगा। “
इतना कहकर बाबूलाल फिर से छोले भटूरे बनाने लगा। मगर देखते ही देखते बूढ़े पति पत्नी बाबूलाल के सारे छोले भटूरे खा गए।
बाबूलाल ज़रा सा चेहरा लिए उन्हें देखता रह गया। उसने देखा उसके ठेले पर अब कुछ भी नहीं बचा था। बाबूलाल चुपचाप अपने घर चला गया।
निर्मला,” क्या हुआ..? आज दोपहर में ही कैसे चले आए ? कहीं आज भी सारे छोले भटूरे कहीं बहा तो नहीं आये ? “
बाबूलाल,” निर्मला, मुझसे इस वक्त बात मत करो। “
निर्मला,” अरे ! तो फिर और किससे बात करूँ ? अपना सर दीवारों पर मारुं क्या ? “
बाबूलाल,” मेरी तो सोच सोचके हालत खराब होते जा रही है कि 2 दिन बाद क्या होगा ? “
निर्मला,” वैसे तुम कभी शाम से पहले घर नहीं आते। आज क्या हुआ ? “
बाबूलाल ने अपनी पत्नी को सारी घटना बता दी।
निर्मला,” हे भगवान ! इस आदमी का मैं क्या करूँ ? इसने तो बेवकूफ़ीपन की सारी हदें पार कर दी। अरे ! उन दोनों को सारे छोले भटूरे खिलाने की क्या जरूरत थी ? “
बाबूलाल,” मुझे क्या पता था ? मुझे लगा था कि वो दो या तीन से ज्यादा नहीं खायेंगे लेकिन उन्होंने तो देखते ही देखते सारा ठेला साफ कर दिया। “
निर्मला,” लाओ मुझे भी दिखाओ, आखिर उन दोनों ने कौन से मिट्टी के कंकड़ दिए हैं जिसके बदले तुम आज सारे छोले भटूरे उनमें लुटाकर आ गए ?
वहाँ पर खड़े लोग तुम्हारा मजाक गलत नहीं उड़ा रहे थे। भला कोई मिट्टी के कंकड़ के बदले छोले भटूरे खिलाता है क्या ? “
बाबूलाल,” मैंने उन मिट्टी के कंकड़ के बदले उन्हें छोले भटूरे नहीं खिलाया था। उन दोनों के चेहरे से साफ लग रहा था कि वो कई दिन से भूखे हैं। “
निर्मला,” लाओ दो मुझे, मैं भी तो देखूं उन गरीबों के उपहार में ऐसा क्या है ? “
बाबूलाल ने उदास मन से वह पोटली अपनी पत्नी को दे दी और पोटली में कंकड़ देखकर निर्मला गुस्से से चीखते हुए बोली।
निर्मला,” हाय राम ! अब इस कंकड़ का क्या करूँ ? लगता है तुम्हारी किस्मत में सीताराम और मोहन लाल के हाथों चप्पल खाना ही लिखा है। “
बाबूलाल,” अब जो होगा देखा जाएगा निर्मला। अगर भगवान ने मेरी किस्मत में गांव वालों के सामने मेरी बेइज्जती ही लिखी है तो उसे कोई नहीं बदल सकता। “
बाबूलाल वहाँ से चला गया। 2 दिन बाद बाबूलाल पंचायत में सिर झुकाएखड़ा था।
मुखिया,” बाबूलाल, पैसे लाया है ? “
बाबूलाल,” इंतजाम नहीं हो पाया मुखिया जी। कुछ दिन की मोहलत और दे देते। “
मुखिया,” वो तो हम तुझे जरूर देंगे। मगर सीताराम और मोहनलाल के हाथों चप्पल तो खा ले। “
बाबूलाल,” ऐसा मत कीजिए मुखिया जी, मेरी बेइज्जती हो जाएगी। मैं किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहूंगा। “
नरेश,” क्या हुआ..? उस दिन तो बड़ा मुँह चला रहे थे। मार खाने की नौबत आई तो अब इज्जत की दुहाई दे रहे हो। “
मुखिया सीताराम और मोहन लाल की ओर देखकर बोला।
मुखिया,” देखते क्या हो..? मारो इस दानवीर को चप्पलों से। बड़ा दानवीर बना फिरता है, मक्कार कहीं का। “
मुखिया की बात सुनकर मोहनलाल और सीताराम बाबूलाल को चप्पलों से मारने की वाले थे कि तभी वहाँ पर बाबूलाल की पत्नी निर्मला आ गयी।
निर्मला,” खबरदार जो मेरे पति को किसी ने हाथ भी लगाया। “
मुखिया,” क्यों नहीं..? बाबूलाल की पत्नी, तुझे पता नहीं तेरे पति ने दोनों से कर्जा लिया था ? तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुखिया के आदेश को चुनौती दे। “
मुखिया की बात सुनकर निर्मला ने मोहनलाल और सीताराम के पैसे मुखिया के मुँह पर मार दिए।
निर्मला,” ये लो पकड़ो इन दोनों के पैसे, आइन्दा मेरे पति के ऊपर आंख उठाकर भी नहीं देखना। “
मुखिया,” तू ये पैसा कहाँ से ले कर आयी ? “
निर्मला,” तुम्हें इससे मतलब ? तुम्हे इनके सारे पैसे चाहिए थे ना ? और इनके पैसे मैंने तुम्हारे मुँह पर मार दिए। “
बाबूलाल निर्मला के पास पैसे देखकर हैरान रह गया। बाबूलाल ने निर्मला से पूछा।
बाबूलाल,” बोला… तुम ये पैसे कहाँ से लेकर आई है ? “
निर्मला,” घर चलो, मैं तुम्हें सब बताती हूँ। “
बाबूलाल निर्मला के साथ घर पर आकर बोला।
बाबूलाल,” अब बताओ भी निर्मला, तुम यह पैसे कहाँ से ले कर आयी ? “
निर्मला,” आज जब तुम्हें मोहनलाल और सीताराम पकड़कर ले गए थे तो मैं फूट फूटकर रो रही थी। रोते हुए मुझे अचानक गुस्सा आ गया और मैंने गुस्से में वो पोटली बाहर फेंकने के लिए निकाली जिसमें कंकड़ थे।
मगर जैसे ही उसमें से कंकड़ फेंके तो उसमें से कंकड़ नहीं बल्कि बेशकीमती हीरे निकले। मैं तुरंत एक हीरा गिरवी रखकर पैसे ले आयी और मुखिया के मुँह पर मार दिए। “
निर्मला की बात सुनकर बाबूलाल हैरान होकर बोला।
बाबूलाल,” लेकिन उसमें तो कंकड़ पत्थर थे। “
निर्मिला,” मैं भी हैरान रह गई थी। बहुत सोचने के बाद मुझे एहसास हुआ कि शायद वो दोनों बूढ़े पति पत्नी कोई मायावी लोग थे जो तुम्हारी मदद करने आये थे। “
निर्मिला ने इतना कहा ही था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। निर्मला उन हीरों को देखने में खोई हुई थी। बाबूलाल ने जाकर दरवाजा खोल दिया।
दरवाजे के बाहर वही बूढ़े पति पत्नी थे जो बाबूलाल कि ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे।
बाबूलाल,” आप दोनों कौन हैं ? “
बूढ़े पति पत्नी,” हम दोनों देव हैं। 2 दिन पहले तुम जिस बरगद के पेड़ के नीचे खड़े होकर भगवान से बातें कर रहे थे। हम दोनों तुम्हारी बातें सुन रहे थे। हमें लगा कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए। “
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बाबूलाल,” मैं आप दोनों का कैसे शुक्रिया अदा करूँ ? “
बूढ़े पति पत्नी,” अगर तुम्हें हमारा शुक्रिया अदा करना है तो एक बात ध्यान रखना। इन हीरों को बेचने के बाद तुम बहुत ज्यादा अमीर हो जाओगे लेकिन कभी भी गरीबों को खाना खिलाना मत भूलना।
चाहे कितनी भी अड़चनें आयें, चाहे कितनी भी परेशानियां आयें। याद रखना… भगवान उस व्यक्ति को बहुत ज्यादा पसंद करता है जिसके दिल में दूसरों के लिए दर्द होता है। “
इतना कहकर वो दोनों बूढ़े पति पत्नी वहाँ से गायब हो गए। उस दिन के बाद बाबूलाल देखते ही देखते बेहद अमीर हो गया। लेकिन वो आज भी गरीबों को मुफ्त में छोले भटोरे खिलाता है।
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