घमंडी लड़की | Ghamandi Ladki | Moral Story | Hindi Kahani | Rajkumari Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” घमंडी लड़की” यह एक Rajkumari Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Raja Rani Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक बार की बात है। रायगढ़ नामक रियासत में राजा भैरव सिंह रहा करते थे। उनकी एक बेटी भी थी, जिसका नाम अलका था।

राजकुमारी अलका बहुत ही चालाक और घमंडी स्वभाव की थी। उनके राजमोची की बेटी, सीमा बहुत ही दयावान और नेक थी।

एक दिन जब वह घर का काम कर रही थी, तभी उसे एक सांप ने काट लिया। तब उसके पिताजी ने वैद्य को बुलाया।

वैद्य, “सांप का ज़हर खून में चला गया है। बस किसी चमत्कार से ही ये ठीक हो सकती है।”

सब उसे ठीक करने की आशा छोड़ देते हैं। महल की राजकुमारी अलका सीमा की हम उम्र की ही थी।

लेकिन वह सीमा का बहुत मजाक उड़ाती और उसे लंगड़ी कहकर बुलाती थी। राजा की बेटी होने के कारण कोई उसे कुछ भी नहीं बोलता था।

एक दिन जब वे सब खेल रही थीं।

अलका, “चलो, हम दौड़ का मुकाबला करते हैं। जो प्रथम आएगा, उसे मैं अपनी नई सोने की जूतियां दूंगी।”

यह सुनकर सभी सहेलियां बहुत खुश हो जाती हैं। सीमा अपने पैरों की खराबी के कारण कभी ऐसे खेलों में भाग नहीं ले पाती थी।

अलका, “क्यों लंगड़ी… तू नहीं खेलेगी? देख ले, तुझे सोने की जूतियां नहीं चाहिए?”

राजकुमारी की जूतियां पाने के लालच में सीमा भी दौड़ के लिए तैयार हो गई।

सीमा (मन ही मन), “राजकुमारी की जूतियां तो सोने से बनी हैं, ऐसी जूतियां तो मैं सपने में भी नहीं पा सकती।

मैं जी-जान से मुकाबला जीतने की कोशिश करूंगी और इन जूतियों को जीत लूंगी।”

सीमा तेज़ी से भागने लगी। तभी अलका ने उसके पैरों पर अपनी टांग अड़ा दी, जिससे वह गिर गई।

अलका, “बड़ी आई जीतने वाली… लंगड़ी कहीं की! ये जूतियां मेरी ही रहेंगी। मोची की लंगड़ी बेटी होने के बाद भी तू सोने-चांदी की जूतियां पहनने का सपना देखती है। मानना पड़ेगा भाई, क्यों सहेलियों?”

दूसरी सहेलियां सीमा को उठाने में मदद करने लगीं। उदास सीमा अपने घर वापस चली गई और अपने बापू के काम में मदद करने लगी।

सीमा के पिताजी, “सीमा बेटी, वो सोने की चादर तो उठाना। राजा के यहाँ से राजकुमारी के लिए सोने की जूतियां बनाने का आदेश आया है।”

सीमा, “बापू, राजकुमारी सबको अपनी सखी कहती हैं, पर मुझे लंगड़ी! क्या मैं उनकी सखी कभी नहीं बनूंगी?”

पिताजी, “ऐसा नहीं है, बेटी। तू तो दिल से राजकुमारी ही है, तुझे देखने के लिए सच्ची आँखों की जरूरत है।”

सीमा, “मेरे लिए भी सोने की जूतियां बनाओ ना, पिताजी। क्या मैं कभी सोने की जूतियां नहीं पहनूंगी?”

पिताजी, “बेटी, तेरा पिता गरीब है। पर तू चिंता ना कर, भगवान ने अगर तेरी किस्मत में लिखा होगा तो तुझे सोने की जूतियां जरूर मिलेंगी, और वो भी मैं ही बनाऊंगा।”

धीरे-धीरे इस बात को काफी दिन बीत गए। समय के साथ सीमा बड़ी होती जा रही थी।

एक बार रायगढ़ रियासत के महाराज राजा विक्रम और उनका पुत्र राजकुमार प्रताप सिंह, महाराज भैरव सिंह से मिलने आते हैं।

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भैरव सिंह, “आइए आइए, आपका स्वागत है।”

राजा विक्रम, “राजा भैरव, कैसे हो मित्र?”

भैरव सिंह, “मैं तो ठीक हूँ मित्र, और हमारे राजकुमार तो काफी बड़े हो गए हैं। काफी किस्से सुने हैं तुम्हारी वीरता के।

हमें बहुत खुशी है, इसी तरह अपने पिताजी का नाम रोशन करो।”

राजकुमार, “जी महाराज।”

महाराज विक्रम, “अब सारी बातें यही करोगे या अंदर भी बुलाओगे?”

भैरव सिंह, “माफ़ करना मित्र, आओ ना अंदर आओ।”

इसके बाद सब अंदर चले जाते हैं। तभी राजकुमार को कहीं से लड़कियों की हँसने की आवाज़ आती है। वह उस आवाज़ के पीछे जाने लगते हैं।

तभी उन्हें सब खेलते हुए दिखाई देती हैं, लेकिन सीमा चुपचाप बैठकर एक घायल कबूतर को दाना खिला रही होती है।

राजकुमार, “अरे! तुम उन लड़कियों के साथ खेलते क्यों नहीं? इस घायल कबूतर के साथ क्यों समय बिता रही हो?”

सीमा, “ये परिंदा अपना दर्द किसी से नहीं कह सकता। मुझे इसका दर्द दूर किए बिना चैन नहीं मिलेगा।”

यह सुनकर राजकुमार सीमा को देखकर मुस्कुराने लगते हैं। लेकिन तभी राजकुमारी अलका राजकुमार प्रताप के पास आकर उनसे उनका परिचय मांगती है।

अलका, “आप कौन हैं?”

राजकुमार, “मैं रायगढ़ रियासत का राजकुमार प्रताप सिंह हूँ।”

अलका, “मैं इस राज्य की राजकुमारी हूँ। आपसे मिलकर ख़ुशी हुई। राज्य घूमना चाहेंगे हमारे साथ?”

राजकुमार, “अगर आप चाहती हो तो क्यों नहीं?”

अलका, “ठीक है, हम कल आपको राज्य भ्रमण पर ले चलेंगे।”

राजकुमार, “ठीक है, कल पिताजी को भी सूचित कर दूंगा। उन्हें भी आपका राज्य देखने की बहुत इच्छा थी।

यहाँ आने से पूर्व वो यही बात कह रहे थे कि समय मिला तो वो जरूर नगर भ्रमण पर निकलेंगे। हमने सुना है आपके राज्य में अद्भुत नदियां और झरने हैं।”

इसके बाद वे वहाँ से चले जाते हैं। सीमा कबूतर को हाथ में लिए आगे बढ़ जाती है।

अगले दिन महाराज विक्रम सिंह और राजकुमार, अलका के साथ राज्य में घूमने निकलते हैं। तभी गांव के बच्चे अलका को देख उत्साहित होकर उसके पास आ जाते हैं।

अलका, “इतनी हिम्मत कि हमारी कीमती पोशाक को तुमने छुआ… बदतमीज़! “

अलका, “सैनिको, 10 कोड़े लगवाओ इसे और बाकी तुम याद रखो सभी जब तक हमारी सवारी निकल ना जाए, घुटनों के बल बैठ जाओ। क्या तुम्हें पता नहीं हम कौन हैं?”

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राजकुमारी के आगे जाते ही सीमा, लंगड़ाते हुए वापस आती है।

सीमा, “कैसे हो भाई? लो, ये पानी पियो। लाओ, तुम्हें हल्दी का लेप लगा देती हूँ, जल्दी ही ठीक हो जाओगे।”

राजकुमार, “तुम्हारा क्या नाम है? क्या तुम मेरी जीवन संगिनी बनोगी? मैं एक राजकुमार हूँ।”

सीमा, “देखिए, मेरी शादी का फैसला सिर्फ मेरे पिताजी ही लेंगे। ये मेरा विषय नहीं। वैसे भी आप जानते हैं, मैं बचपन से विकलांग हूँ।”

राजकुमार (मन ही मन), “ये कितनी सच्ची और दयालु है! मेरी पत्नी को ऐसा ही होना चाहिए।”

राजकुमार, “पिताजी, मैं इससे शादी करना चाहता हूँ।”

महाराज विक्रम, “बेटा, मैं अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं करता। अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि ये लड़की तुम्हारी जीवन संगिनी बन सकती है, तो मैं कल ही इसके यहाँ रिश्ता भिजवा दूंगा।”

दूसरी तरफ अलका ने महाराज विक्रम सिंह की बातें सुन लीं। यह बात सुनकर राजकुमारी अलका को बहुत बुरा लगा। महल वापस आने पर वह बोली,

अलका, “राजकुमार, शायद आपको पता नहीं, सीमा लंगड़ी है। उसका एक पैर बड़ा और एक पैर छोटा है, जो साधारण रूप से चल भी नहीं सकती। जिंदगी की दौड़ में आपका साथ कैसे दे पाएगी?”

राजकुमार, “शारीरिक कमी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, राजकुमारी। आत्मा की सुंदरता ही सबसे बड़ी खूबसूरती होती है।

मुझे ये लड़की बहुत पसंद है। मैं इसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलूँगा।”

अलका, “राजकुमार, क्या मैं आपके योग्य नहीं? क्या वो साधारण लड़की मुझसे ज्यादा रूपवान है?”

राजकुमार, “देखो राजकुमारी, अपनी जीवन संगिनी के अंदर कई तरह की विशेषताएं देखना चाहता हूँ। मेरे लिए शारीरिक सुंदरता का कोई मूल्य नहीं।”

अलका, “अगर ऐसा है तो आपको उसकी परीक्षा लेनी चाहिए। कोई ऐसा मुकाबला कराना चाहिए जिससे उसकी असली विशेषता का पता चले।”

राजकुमार, “हाँ, तुम्हारी बात तो ठीक है, तुम ही बताओ, हमें किस चीज़ का मुकाबला करवाना चाहिए कि हम जान सकें उस लड़की में कितनी हिम्मत है और वो सुख-दुख का बोझ किस हद तक उठा सकती है?”

अलका, “ठीक है राजकुमार, हम लंगड़ी टांग प्रतियोगिता करवाएंगे। सीमा का एक पैर खराब है, इसके बावजूद अगर वह प्रतियोगिता में भाग लेने को तैयार हो जाती है

और जीत भी जाती है, इसका मतलब कि वह रानी बनने के योग्य है। लेकिन बदले में अगर वह ना जीती तो आपको मुझसे विवाह करना होगा।”

राजकुमार, “मैं तैयार हूँ, लेकिन मुझसे विवाह करने के लिए तुम्हें भी इस प्रतियोगिता में भाग लेना होगा। अगर तुम जीत गई तो मैं तुमसे विवाह कर लूँगा।”

अलका मन ही मन सोचती है,

अलका, “लंगड़ी टांग प्रतियोगिता का मुकाबला कराना ठीक है। सीमा की एक टांग तो खराब है।

वह इस मुकाबले में कभी भी जीत नहीं पाएगी। मेरा विवाह तो राजकुमार से ही होगा।”

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सुबह होते ही अलका महाराज को इस बात की सूचना देती है।

अलका, “पिताजी, राजकुमार प्रताप सिंह विवाह के लिए लंगड़ी टांग प्रतियोगिता करवाना चाहते है।

यदि सीमा इसमें जीत गई तो वो उससे विवाह कर लेंगे, वरना मेरी जीत तो पक्की है। मैं ही बनूँगी उनकी अर्धांगिनी।”

महाराज उसकी बात सुनकर मन जाते हैं और पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवा देते हैं।

सैनिक, “सुनिए सुनिए सुनिए… कल शाम शाही मैदान में लंगड़ी टांग प्रतियोगिता की प्रतियोगिता होगी। प्रतियोगिता में गांव की हर लड़की को भाग लेना जरूरी है।

जो लड़की इस प्रतियोगिता में जीतेगी, उसे सोने की बनाई हुई जूतियां इनाम में दी जाएंगी और राजकुमार उसके साथ विवाह कर लेंगे।”

सीमा सोचती है कि इस प्रतियोगिता में जाना बेकार है। इस प्रतियोगिता में वह नहीं जीत पाएगी।

सीमा के पिता, “बेटी, तैयारी कर लो। तुझे ये प्रतियोगिता जितनी ही है। तू कहती थी ना, तुझे मेरे बनाए हुए सोने के जूते पहनने हैं? मेरा मन कहता है, अब ये जूते तुझे ही मिलेंगे।”

सीमा, “नहीं, पिताजी, मैं नहीं जीत पाऊंगी। सभी लोग मेरा मजाक बनाएंगे। मैं झूठे सपने नहीं देखती, मैं इसमें भाग नहीं लूंगी।”

पिता के बार-बार समझाने पर सीमा प्रतियोगिता में भाग लेने जाती है। अलका भी प्रतियोगिता के लिए तैयार होने लगती है।

वह जैसे ही पैर उसमें डालती है,
अलका, “उफ!:इसे पहनकर दौड़ना तो नामुमकिन है।”

तभी सीमा वहाँ पर आती है। उसे देख अलका के मन में एक षड्यंत्र आता है।

वह कहती है, “सीमा, अरे पगली, तुम तो नंगे पैर आई हो। बड़े-बड़े घरों की लड़कियां तुम्हारा मजाक बनाएंगी, लेकिन चिंता मत करो।

तुम मेरी ये पुरानी जूती पहनकर इस प्रतियोगिता में भाग लेना। आखिर तुम मेरी सहेली हो, इतना तो मैं कर ही सकती हूँ।”

अलका सीमा को अपनी टूटी हुई जूती दे देती है, जिसके अंदर कीलें निकली हुई थीं। भोली-भाली सीमा अलका की जूती पहनकर प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार हो जाती है।

सीमा (मन में), “राजकुमारी कितनी अच्छी है, कितना ख्याल रखती है? दौड़ के समय मेरे पैर में दर्द ना हो, इसलिए उन्होंने मुझे अपनी जूती दे दी।”

महाराज ने सभी लड़कियों को दौड़ शुरू करने का इशारा दिया।

महाराज, “आप सभी को अपने एक टांग से इस दौड़ को पूरा करना है, अब आप दौड़ शुरू करें।”

सभी लड़कियां दौड़ना शुरू कर देती हैं। दौड़ते हुए सीमा के पैरों में जूती में निकली कीलें चुभने लगती हैं।

सीमा, “ऊई मां, असहनीय दर्द हो रहा है। पैर खराब होने के कारण मेरे जीवन में तो कोई ख़ुशी नहीं है, लेकिन मैं जीतकर अपने पिताजी को खुश जरूर करूंगी।”

वह अपने पिताजी की इच्छा पूरी करने के लिए दौड़ती रहती है। उसकी आँखों में आंसू और पैर से खून निकलने लगता है, लेकिन वह अपनी गति कम नहीं करती।

अलका, “ये सीमा सबसे आगे दौड़ रही है, लेकिन बस कुछ ही देर में सबसे पीछे नजर आएगी। अभी जूती अपना कमाल दिखाना शुरू करेगी।”

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अलका की नजर सीमा के पैर पर पड़ी और वह हैरान हो गई कि जूते के बाहर काला-काला खून बह रहा होता है, लेकिन सीमा की गति पहले से भी तेज हो गई होती है।

अलका, “ये क्या हो रहा है? क्या सीमा ही प्रतियोगिता जीत जाएगी? क्या इसका विवाह प्रताप सिंह से हो जाएगा?

मेरे पैरों में दर्द हो रहा है। बाकी लड़कियां भी रुक गई हैं। आखिर ये सीमा क्यों नहीं रुक रही?”

आखिरकार सीमा प्रतियोगिता जीत जाती है। और जब उसे पूछा जाता है कि वह यह प्रतियोगिता कैसे जीती और विकलांग होने के बाद भी उसकी दौड़ की गति इतनी तेज़ कैसे थी? तो वह कहती है,

सीमा, “मैं सभी को बताना चाहती हूँ कि मेरी जीत का कारण है राजकुमारी अलका। यदि उन्होंने अपनी कीलों वाली जूती मुझे नहीं दी होती तो मुझे दर्द नहीं होता।

इस दर्द के कारण मैं जल्दी से जल्दी इस प्रतियोगिता को पूरा कर लेना चाहती थी।”

अलका शर्मिंदा होकर अपना सिर झुका लेती है।

राजकुमार प्रताप सिंह, “इस लंगड़ी टंग प्रतियोगिता के जीत के इनाम सोने की जूतियों के साथ मैं ये ऐलान करना चाहता हूँ कि मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें कोई ऐतराज है?”

सीमा, “राजकुमार, मैं एक साधारण लड़की होने के साथ साथ विकलांग भी हूँ। आपके लिए उपयुक्त तो राजकुमारी अलका ही है।”

सीमा के पिता, “अरे बेटी! तुम तो बिलकुल सामान्य तरीके से खड़ी हो। ये तो चमत्कार है, मेरी सीमा ठीक हो गई है।”

सीमा आपने टांग देखने के लिए जूती उतारती है तो वो हैरान रह जाती है क्योंकि उसकी टांग बिलकुल सामान्य हो गयी थी।

कीलों के लगातार चुभते रहने से सांप का पुराना ज़हर उसके खून के साथ बाहर निकल गया था।

सीमा, “राजकुमारी, तुमने तो मेरी जिंदगी बदल दी। अगर तुम नहीं होती तो मेरी टांग ठीक नहीं होती।”

सीमा के पिता, “देखा बेटी, मैंने कहा था ना मेरा दिल कह रहा था ये सोने की जूतियां अब तू ही पहनेगी? जा बेटी, राज़ कर अब। तू जीवन की हर दौड़ में हमेशा जीतती रहेंगी।”

अलका ही मन ही मन शर्मिंदा होती गई।

अलका, “सीमा, राजकुमार का सही जोड़ तुम ही हो। तुम्हारे आगे आज खुद को मैं बहुत छोटा महसूस कर रही हूँ।

मैंने जानबूझकर तुम्हे टूटी जूतियां दी थी ताकि तुम हार जाओ। मुझे माफ़ कर दो सखी।”

राजकुमारी ने सीमा को गले से लगा लिया। और सीमा की शादी राजकुमार के साथ हो जाती है जिससे राजकुमार उसे अपने हाथों से सोने की जूतियां पहनाते हैं और सब खुशी खुशी रहने लगते हैं।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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