गदहिया भूत | Gadahiya Bhoot | Funny Story | Majedar Kahaniyan | Comedy Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गदहिया भूत ” यह एक Comedy Funny Story है। अगर आपको Hindi Stories, Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


धामेरी नाम के गांव में झतूरा तांत्रिक रहा करता था। वो एक काफी पाखंडी तांत्रिक था।

एक दिन वो सेठ धनी की दुकान पर जाता है और कहता है, “क्या सेठ जी, बहुत माल कमा लिया लगता है? ज़रा हम पर भी कुछ दान-दक्षिणा कर दो।”

सेठ धनी, “अरे वाह! और वो क्यों भला? तुझ जैसे फटीचर भिखारी को मैं किस बात का दान करूँ? हां, भीख मांग रहे हैं तो बात अलग है।”

झतूरा, “अरे अरे! पागल हो गया है क्या सेठ? मैं भीख क्यों मांगने लगा? ये तो मेरा अधिकार है।

मैं अपनी तंत्र विद्या से गांव में सबका ख्याल रखता हूँ। तुझे खुशी-खुशी मुझे दान करना चाहिए।”

सेठ धनी, “पाखंडी, भाग जा यहाँ से वरना तेरी खैर नहीं। पिछली बार गट्टू पान वाले ने तुझे पकड़ के कूटा था, क्योंकि तू उससे भी पैसे मांगने पहुंचा था। चल, भाग यहाँ से।”

झतूरा, “तू बहुत पछताएगा, सेठ।”

सेठ धनी, “हाँ हाँ, चल भाग यहाँ से।”

घर जाकर झतूरा रात में अपना काला जादू शुरू कर देता है।

झतूरा, “मुझे भगाया ना तूने, सेठ? अब देख।”

अगले दिन सवेरे-सवेरे पूरे गांव में हल्ला मचता है। सेठ धनी के घर चोरी हो गई थी।

सेठ धनी, “हाय! सब लूट के ले गया, मैं तो बर्बाद हो गया।”

झतूरा धीरे से मुस्कुराता है और वहाँ से आगे बढ़ जाता है। सारे गांव वाले समझ जाते हैं कि ये झतूरा के काले जादू का काम था।

उसकी इन्हीं हरकतों के चलते एक दिन सभी गांव वाले मिलकर उसे लात मार-मार कर गांव से निकाल देते हैं।

आदमी, “अच्छा हुआ, इस निकम्मे को यहाँ से भगा दिया। अब गांव में शांति बनी रहेगी, भैया।”

दूसरा आदमी, “हां भई, सही कह रहे हो। इसने तो नाक में दम कर रखा था।”

झतूरा खिसिया के रह जाता है और बुदबुदाते हुए गांव से चला जाता है।

झतूरा, “तुम लोगों की ये मजाल, मुझ जैसे हैंडसम और प्रतिभाशाली तांत्रिक को तुम लोग गांव से निकाल रहे हो? देखना, एक दिन तुम बहुत पछताओगे।”

झतूरा अपनी इतनी भारी बेइज्जती के बाद गांव वालों से बदला लेने की सोच रहा था। वो अपने खास दोस्त टीनू तांत्रिक के पास उसकी गुफा में जाता है।

झतूरा, “मेरे प्यारे दोस्त टीनू!”

टीनू झतूरा से डर के छुपा हुआ था और उसके सामने नहीं आना चाह रहा था। पर तभी टीनू का पैर फिसल जाता है और वो धड़ाम से नीचे गिरता है। झतूरा उसे गिरते हुए देख लेता है।

झतूरा, “अरे टीनू! तू वहाँ नीचे क्या कर रहा है? उठ जा, देख मैं तुझसे मिलने आया हूँ। मुझे सच में तेरी बहुत याद आ रही थी।”

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टीनू, “देख झतूरा… सीधे-सीधे बता, तुझे क्या चाहिए? क्योंकि मुझे से मिलने या मेरी याद में तो तू यहाँ आया नहीं है। तो चल सच-सच बता अब।”

झतूरा, “हा हा हा… टीनू, तू सच में मुझे काफी अच्छे से जानता है। दरअसल, गांव वालों ने मुझे लात-घूंसे मार कर गांव से बाहर निकाल दिया है। अब मुझे तेरी हेल्थ चाहिए।”

टीनू, “वाह..! मेरा मतलब, अरे ! ये क्या भला? जरूर गांव वालों की कुछ गलती रही होगी।

वो तेरी ईमानदारी और अच्छेपन को समझ नहीं पाए। और वैसे हेल्थ नहीं होता है, हेल्प होता है।”

झतूरा, “बिल्कुल, मेरे फ्रेंड टीनू। अब मुझे तुझसे एक मदद चाहिए उन निर्दयी गांव वालों से बदला लेने के लिए।

उन्होंने मेरे जैसे महान तांत्रिक की बेइज्जती की है ना, तो अब उनके ऊपर एक खतरनाक भूत का साया आने वाला है।”

टीनू, “ओह! समझ गया भाई, तो तुझे मुझसे एक भूत चाहिए है।”

झतूरा, “कोई आम भूत नहीं, बल्कि तेरे पास जितने भी भूत कैद हैं, उनमें सबसे खतरनाक भूत चाहिए मुझे… अंडरवियर।”

टीनू, “हां हां समझ गया, बेवकूफ कहीं का।”

ये सुनकर टीनू मन ही मन मुस्कुराता है, क्योंकि वो झतूरा का बस नाम का दोस्त था।

उसे झतूरा को परेशान करने का एक बहुत अच्छा मौका मिल गया था। वो झतूरा को अपना सबसे बेकार भूत दे देता है।

झतूरा, “आं, ये है तेरा सबसे खतरनाक भूत? इसे देख कर तो लग रहा है कि अभी-अभी मंदिर से चप्पल चुरा के भागा है और जनता ने इसे जमकर पीटा है। इससे भला कौन डरेगा?”

टीनू, “अरे! इसकी शक्ल पर मत जा। ये अंदर से बहुत डरावना है। तू इसे एक मौका दे कर तो देख। वैसे इसका नाम गदहिया भूत है।”

झतूरा, “चल भाई गदहिया भूत, आजा मेरे साथ और चल के अपना कमाल दिखा।”

थोड़ी देर बाद वो ढीला-ढाला सा भूत झतूरा के पीछे-पीछे चल पड़ता है। वो अचानक जोर से चिल्लाता है और जाकर पेड़ पर चढ़ जाता है।

झतूरा, “अरे-अरे! कहाँ चढ़ के जा रहा है तू? तुझे बकरियों से डर लग रहा है?”

गदहिया भूत, “हाँ मालिक, एक बार बहुत दूर तक दौड़ाई थी उन्होंने, हम नहीं आऊंगा। आप भगाइए पहले इनको।”

झतूरा, “हे भगवान! ये कैसा भूत है?”

झतूरा मन ही मन खुद से कहता है।

झतूरा, “हो सकता है कि ये बस बकरियों से ही डरता हो, बाकी इंसानों को खूब डरा ले। गांव वालों की तो अब खैर नहीं।”

झतूरा, “गदहिया, अच्छा हुआ अभी से अंधेरा हो गया। अब सीधे चलकर गांव वालों को डराते हैं।”

झतूरा गदहिया को लेकर जा रहा था और गांव में उसे सबसे पहले एक घर दिखता है।

झतूरा, “जा गदहिया, शुरू हो जा। तुझे जाकर आदमी को डराना है।”

गदहिया भूत, “डराना है मालिक, पर भला वो कैसे?”

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झतूरा, “अरे! तू बस उसके पास जा और उसकी चारपाई के ठीक ऊपर जाकर उड़ने लग और उसे डरावने चेहरे बनाकर दिखा।

उससे वो जरूर डर जाएगा और घर से दूर भाग जाएगा। तब मैं जाऊंगा और उसके सारे पैसे चुरा लूँगा।”

गदहिया भूत, “मालिक, हमारा जाना जरूरी है क्या? आप नहीं जा सकते?”

झतूरा, “अरे! भूत मैं हूँ या तू? चल, निकलता है यहाँ से कि मैं लात मार के भगाऊँ?”

गदहिया भूत, “जा रहा हूँ, जा रहा हूँ।”

गदहिया उस आदमी के पास जाकर उसकी चारपाई के बगल में उड़ने लगता है, पर वो ज्यादा ऊँचा नहीं उड़ पाता। फिर उसे कुछ समझ नहीं आता तो वो झतूरा की तरफ देखता है।

झतूरा, “डरावनी आवाज निकाल, डरावनी आवाज!”

आदमी की नींद खुलती है और वो थोड़ी सी आंखें खोल कर गदहिया की तरफ देखता है, फिर चिल्लाता है,

आदमी, “अरे बहू! देखो बाहर एक कुत्ता रोते हुए मेरे चारपाई के पास घूम रहा है। इसे दो रोटी दे दो, बेचारा कई दिनों से भूखा मालूम होता है।”

गधैया भूत रोटी उठाकर खुश होकर वापस झतूरा के पास चला आता है।

झतूरा, “अबे बेवकूफ! गधा है तू गधा। रोटी लेकर आ गया। उन्हें ऐसे डराएगा?”

गदहिया भूत, “मालिक, अपनी भी कोई रिस्पेक्ट है हाँ। पूरा नाम लो, गधैया। गधा क्या होता है ये?”

झतूरा, “ऐसे तो इन गांव वालों से बदला लेना मुश्किल हो जाएगा। अब मैं इन्हें लूटूंगा। इन सबको कंगाल करके मैं बन जाऊंगा सबसे ज्यादा अमीर।”

गदहिया भूत, “ठीक है मालिक, अब मैं सबको ऐसे डराऊंगा कि सबको अपनी नानी याद आ जाएगी। लेकिन मालिक एक बात पूछनी थी, वैसे मैं उन सबको डराऊंगा कैसे?”

झतूरा, “हे भगवान! क्या दिन देखना पड़ रहा है? अब मुझे सिखाना पड़ेगा कि एक भूत को कैसे डराना चाहिए?

हे भगवान! या तो मुझे उठा ले या इसे उठा ले। वाह! तेरे साथ रहकर तो मैं भी पागल हो गया हूँ।

तुझे तो भगवान ने कब का उठा लिया है? पक्का तेरी हरकतें ही कुछ ऐसी रही होंगी, इसीलिए जल्दी निपट गया तू।

देख, जब रात को लोग चल रहे होंगे तो तू उनके पीछे जाना और उनसे कहना, ‘जो है दे दो, वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा। समझ गया?”

गदहिया भूत, “ठीक है मालिक, अब आप मेरा कमाल देखना।”

रात को झतूरा और गदहिया दोनों एक सुनसान रास्ते पर पेड़ों के पीछे छुप जाते हैं।

गदहिया, “हम कब डराएंगे लोगों को?”

झतूरा, “अरे! पहले आने तो दे। जब आएँगे, तब डराएंगे। पहले ही डरा दें? हद है, क्या मुसीबत हाथ लगी है?

रुक रुक, देख कोई आ रहा है। अब सुन, तैयार हो जा और जैसे ही वो डर जाए, उनका सामान चुराके गायब हो जाईयो।

मैं चाहता हूँ कि गांव में हर तरफ सबको सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा खौफ हो। अब जा और दिखा दे अपना कमाल, मेरे शेर।”

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गदहिया भूत, “मैं भूत हूँ, मुझे तुम्हारा सामान चाहिए। मुझे दे दो वरना मैं तुम्हे खा जाऊंगा। हा हा हा हा…।”

आदमी, “अच्छा, भूत है तू? कौन सा भूत है तू? चुप चाप निकल जा, वरना ऐसा पड़ेगा कि दुबारा भूत बनने से भी डर लगेगा तुझे। सोच ले, जा रहा है कि नहीं जा रहा है? निकल यहाँ से।”

इसके बाद गदहिया वहाँ से तुरंत भाग जाता है।

आदमी, “ये आजकल के चोर भी ना कितने मूर्खों जैसी हरकतें करने लग गए हैं? क्या हो गया इन चोरों को?”

झतूरा, “ये ऐसा भूत है? इससे तो डराना भी नहीं आता। क्या करूँ मैं इसका? लगता है भगवान इससे अब कुछ भी नहीं होने वाला।

मेरे पास एक आइडिया है। मैं ही भूत की पोशाक पहनकर भूत बन जाता हूँ और सुन गदहिया के बच्चे, तुझे मेरा साथ देना होगा।

जैसे ही मैं उन लोगों को डराऊं, तू जाना और उनके पैसे चुरा के भाग जाना।”

गदहिया, “हाँ हाँ मालिक, एकदम समझ गया हूँ। आप चिंता मत करो। ये सब हम पर छोड़ दो।”

झतूरा झाड़ियों के पीछे जाता है और फटाक से भूत की पोशाक पहनकर बाहर आ जाता है।

गदहिया, “अरे! बचाओ बचाओ! ये भूत कहाँ से आ गया? झाड़ियों के पीछे तो हमारे मालिक गए थे।”

झतूरा, “गदहिया के बच्चे, ये मैं ही हूँ और तू खुद भूत होकर एक नकली भूत से डर गया? लानत है तुझ पे।”

गदहिया, “माफ़ करना मालिक, पर अब ये तो बताओ पहले किसके घर जाना है हमें?”

झतूरा, “अब हम जाएंगे गांव के सरपंच के घर। उसी के कहने पर गांव वालों ने मुझे गांव से लात-घूसे मार के निकाला था। अब मज़ा चखाएंगे हम उसे, चलो।”

फिर वे सरपंच के घर की तरफ चल देते हैं।

झतूरा, “गदहिया, अब मेरी बात ध्यान से सुन। मेरा प्लान ये है कि आज रात को इस सरपंच को इतना डरा देना है कि उसकी आत्मा कांप जाए

और कल सुबह होते ही ये भागता हुआ मेरे पास आए और आँखों में आँसू भरकर मुझसे माफी मांगे और मुझे वापस गांव आने की विनती करे।”

गदहिया, “जी मालिक, हम सब समझ गए हैं।”

झतूरा, “हाँ तो मेरे प्यारे होस्ट, चल लग जा काम पे।”

गदहिया, “मालिक, वैसे घोस्ट होता है। पर चलो ठीक है, जो है।”
गदहिया
फिर झतूरा वहाँ से चला जाता है और गधैया सरपंच को डराने चला जाता है। सरपंच चादर तानकर सो रहा था।

गदहिया, “आखिर में ऐसा क्या करूँ कि इतना डर जाए कि इसकी आत्मा कांप जाए?

एक काम करता हूँ, इसके घर की सारी बत्तियां बंद कर देता हूँ और फिर ‘हू हू’ करके डराऊंगा।”

फिर गधैया सारी बत्तियां बंद कर देता है और सरपंच की खटिया के पास जाकर अजीब-अजीब सी आवाज़ें करने लगता है।

सरपंच, “अरे! कौन है? अरे! चोर… चोर है तू?”

सरपंच को अंधेरे में कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था।

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सरपंच, “तेरी इतनी मजाल कि तू गांव के सरपंच के घर आके चोरी करेगा? रुक, तेरी खैर नहीं।”

इतना कहकर सरपंच अपने नौकरों के साथ मिलकर गदहिया की धुलाई कर देता है।

गदहिया, “हमको नहीं मारो, हम चोर नहीं हैं। हमको तो मालिक ने भेजा है।”

सरपंच रुककर गदहिया की बात सुनने लगता है। गदहिया अपना और झतूरा का सारा राज़ सरपंच के आगे उगल देता है ताकि वो उनकी मार से बच सके।

अगली सुबह झतूरा की आँख शोर से खुलती है। कोई उसके दरवाजे को जोर-जोर से पीट रहा था।

झतूरा, “काफी शोर है, लगता है वो सरपंच और बाकी के गांव वाले मुझसे माफी मांगने आ गए हैं। चलो, जल्दी से सबको माफ कर देता हूँ और अपने घर चलता हूँ।”

जैसे ही झतूरा गेट खोलता है, एक गांव वाला उसे पैरों से घसीटता है और सारे गांव वाले उस पर फिर से लातों और घूसों की बरसात करने लगते हैं।

झतूरा, “अरे रे! बचाओ बचाओ, क्यों मार रहे हो मुझे?”

सरपंच, “झतूरा के बच्चे! जब तुझे हमने गाँव से बाहर भगा दिया, तो तू अपना ये किराये का भूत लेकर हमसे बदला लेने आया था? रुक, इस बार तुझे मार-मार के सीधा अस्पताल पहुंचाते हैं।”

झतूरा, “इस गदहिया को तो मैं नहीं छोडूंगा।”

गधैया, “अरे रे! मालिक की तो कुछ ज्यादा ही सेवा हो गई।”


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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