हादसा | Hadsa | Horror Kahani | Darawani Kahaniyan | Haunted Story | Horror Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” हादसा ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Scary Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


मूसलाधार बारिश के बीच में सुनसान सड़क पर सुहानी किसी की मदद का इंतजार कर रही थी। उसकी कार खराब हो गई थी।

सुहानी, “क्या मुसीबत है? यहाँ पर परेशान हो रही हूँ और रवि घर पे आराम से सो रहा है। इसका फ़ोन भी तो नहीं लग रहा है।”

सड़क के दोनों तरफ झाड़ियों से झिंगरों की आवाज आ रही थी। तभी परेशान सुहानी को किसी ने आवाज दी।

आवाज, “सुहानी… सुहानी।”

सुहानी, “कौन है यहाँ? रवि, तुम हो क्या? मुझे परेशान मत करो, सामने आओ।”

सुहानी के बार-बार बोलने पर भी कोई सामने नहीं आया। अब वो आवाज भी नहीं आ रही थी। वो डर कर इधर-उधर देखने लगी।

डर की वजह से उसके माथे पर पसीना आ गया और उसने वो कार वहीं छोड़ दी।

और वो भागते हुए सुनसान सड़क पर किसी की मदद की तलाश करने लगी। तभी अंधेरे में एक साया नजर आया।

‘डूबते हुए के लिए तिनके का सहारा’ सोच वो उसकी तरफ बढ़ने लगी। मगर जैसे ही पास पहुँची, डर के कारण उसकी चीख निकल गई।

वो उस साये से दूर भागने लगी और भागते-भागते एक ट्रक से टकरा गई। उस साये के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

जैसे ही ये हादसा हुआ, घर पर सो रहा रवि अचानक से उठ गया।

उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया। उसने पूरे घर में देखा, सुहानी अभी तक नहीं आई थी।

रवि, “रात के 2 बज गए, और सुहानी अभी तक क्यों नहीं आई? कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं?

शिट… मेरा फ़ोन भी स्विच ऑफ है। वो यदि फ़ोन भी लगा रही होगी तो कैसे पता चलेगा?”

रवि ने तुरंत फ़ोन चार्जिंग पर लगाया और जैसे ही फ़ोन चालू हुआ, उसने तुरंत सुहानी को कॉल किया।

रवि, “हैलो… सुहानी, क्या हुआ? तुम अभी तक घर क्यों नहीं आई?”

सुहानी, “तुम्हें बहुत जल्द मेरी याद आ गई। मैं यहाँ पर अकेली खड़ी हूँ। मेरी कार खराब हो गई है। मैं लोकेशन शेयर कर रही हूँ, जल्दी से लेने आओ।”

कहते हुए सुहानी ने फ़ोन रख दिया।

रवि, “थैंक गॉड, सुहानी ठीक है। वरना मैं तो इतना बुरा सपना देख के डर चुका था।”

रवि और सुहानी दोनों बेस्ट फ्रेंड थे और मुंबई में फ्लैट भी शेयर करते थे।

अगले दिन…
रवि, “सुहानी, तुम ये लेट-नाइट जॉब छोड़ क्यों नहीं देती? मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता होती है यार।

आखिर तुम्हें किस चीज़ की कमी है? तुम तो सुहागपुर की राजकुमारी हो।”

जैसे ही रवि ने ये कहा, सुहानी गुस्से में उसकी ओर देखकर बोली, “कितनी बार कहा है तुमसे, हम कोई राजकुमारी नहीं हैं?

बरसों पहले हमारे पिता ने हमें घर से निकाल हॉस्टल में डाल दिया था। तब से लेकर आज तक उन्हें हमारी कोई फ़िक्र ही नहीं हुई।

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हर महीने पैसे भेजकर अपनी कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। मगर अब और नहीं, हम अपने पैरों पर खड़े हैं। अब हमें उनके पैसों की भी जरूरत नहीं।”

दोनों बात कर ही रहे थे कि सुहानी के फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया।

आदमी, “राजकुमारी साहिबा, हम रघु बोल रहे हैं… रघु काका। कैसी हैं आप?”

सुहानी, “काका, इतने साल अपने घर परिवार से दूर रहकर कैसे होंगे?”

रघु काका, “मैं आपकी तकलीफ समझ सकता हूँ, मगर ऐसा नहीं है कि तकलीफ आपने अकेले सही है।

महाराज भी उतने ही परेशान थे। आपसे विनती है कि जितनी जल्दी हो सके, आप सुहागपुर आइए। महाराज की हालत ठीक नहीं है। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है।”

सुहानी, “जीवन भर तो हम लोग साथ नहीं रहे। अंतिम समय में साथ रहकर क्या बदल जाएगा? सॉरी, मैं नहीं आऊंगी।”

कहते हुए सुहानी ने फ़ोन रख दिया।

पास खड़ा रवि, जो सारी बातें सुन रहा था, गुस्से में बोला, “ये क्या बचपना है, सुहानी? तुम्हारे पिता की तबियत खराब है और तुम जाना नहीं चाहतीं?

इस दुनिया में तुम्हारे सिवा उनका है ही कौन? यदि वो तुमसे मिलना चाहते हैं, तो तुम्हें जाना चाहिए।”

रवि के बार-बार समझाने पर सुहानी मान गई और वो दोनों सुहागपुर के लिए निकल गए। गुस्से में सुहानी ने रास्ते भर रवि से कोई बात नहीं की।

जैसे ही वो सुहागपुर पहुंचे, रवि ने खुद सुहानी से बोला, “राजकुमारी साहिबा, आपकी मंजिल आ गई है।”

रवि के कहने पर सुहानी बाहर की ओर देखने लगी। यहाँ कुछ भी तो नहीं बदला था। जैसा वह छोड़कर गई थी, सब कुछ वैसा ही था।

ऐसा लग रहा था कि मानो समय वहीं रुक सा गया हो। गांव में तरक्की की कोई निशानी नहीं थी।

दोनों बातें कर ही रहे थे कि अचानक कुछ तेजी से आकार कार से टकरा गया।

रवि, “अरे यार! मैं तो सड़क पर देख कर ही चला रहा था, अचानक से पता नहीं क्या चीज़ सामने आ गई?”

सुहानी, “वो तो देख कर ही पता चलेगा।”

दोनों कार से उतरकर देखने लगे, तो सामने एक काली बिल्ली पड़ी हुई थी, जिसकी आंखें हरे रंग की थीं। गाड़ी से टकराने के कारण उसके सिर से खून निकल रहा था।

रवि, “मुझे समझ नहीं आया कि बिल्ली अचानक कैसे गाड़ी के सामने आ गई? अब क्या करें? लगता है ये मर गई है।”

रवि सुहानी से बात ही कर रहा था कि अचानक वो बिल्ली उठी और दोनों की तरफ घुर्राने लगी।

जिस तरह वो अचानक सामने आई थी, उसी तरह अचानक गायब भी हो गई।

दोनों हैरानी से एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। रवि ने तुरंत कार चालू की और सीधे महल पहुँच गए।

सुहानी का सुहागपुर का महल महल तो नहीं, बल्कि एक बड़ी सी हवेली था, जो बाहर से दिखने में काफी खूबसूरत था।

मगर रखरखाव के अभाव में कहीं-कहीं से क्षतिग्रस्त भी हो गया था। अपने घर को देखते ही सुहानी को अपना बचपन याद आने लगा। तभी अचानक रघु काका वहाँ आ गए।

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रघु काका, “मुझे यकीन था सुहानी बिटिया, तुम जरूर आओगी।”

फिर उसने रवि की तरफ देखा। उसकी आँखों में कई सारे सवाल थे, मगर राजकुमारी से सवाल पूछने की हिम्मत उसकी नहीं हुई।

सुहानी, “रघु काका, ये हमारे दोस्त रवि हैं।”

काका, “आइए, आप दोनों अंदर आइए।”

रघु उन दोनों को लेकर अंदर जाने लगा, तभी उसकी नजर छत के ऊपर गई। वहाँ पर एक साया खड़ा हुआ था जिसे देख रघु के माथे पर पसीने की बूंद छलक आई।

सुहानी पहले अपने पिता से मिलने गई। बीमारी की वजह से वो बहुत ही कमजोर और असहाय नजर आ रहे थे।

सुहानी को देख एक पल के लिए उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

फिर अचानक वह उदास हो गए। उन्होंने इशारे से रघु को अपने पास बुलाया।

उसके कानों में कुछ कहा तो रघु का चेहरा भी गंभीर हो गया।

काका, “राजकुमारी, अभी आप आराम कीजिए। सफर से थककर आई हैं। महाराज आपसे कल बात करेंगे।”

रघु की बात सुनकर सुहानी को बहुत गुस्सा आया। वो इतने सालों के बाद अपने पिता के पास आई थी, मगर पिता ने एक शब्द भी उससे कुछ नहीं कहा।

वो गुस्से में अपने कमरे में चली गई। वहाँ जाकर उसने देखा कि उसके कमरे में भी कुछ नहीं बदला था।

उसके खिलौने उतने ही जतन से अभी शो केस में सजे हुए थे। अलमारी में उसके पुराने कपड़े इसी तरह रखे हुए थे, मानो कोई उन्हें रोज़ सहेजता हो।

वो ये सब देख ही रही थी कि रघु उसके लिए खाना लेकर आ गया।

काका, “क्या देख रही हैं, राजकुमारी साहिबा? आपका कमरा अभी भी वैसा का वैसा ही है।

महाराज यहाँ आकर आपकी चीज़ों को छूकर ऐसा महसूस करते थे मानो वे आपको छू रहे हों, सहला रहे हों।”

रघु की बातें सुनकर सुहानी की आँखों में आंसू आ गए, मगर उसने तुरंत अपने आंसू छुपा लिए।

सुहानी को खाना देकर रघु पूरे कमरे को गौर से देखने लगा और फिर सुहानी को रात में कमरे से बाहर ना निकलने की हिदायत देकर वहाँ से चला गया।

फिर महाराज के कमरे में पहुँच, अलमारी के पीछे से एक गुप्त रास्ते में मशाल लेकर दाखिल हो गया।

उस पूरे रास्ते में अंधेरा था। जगह-जगह बने हुए जाले और कुछ चमगादड़, सभी को हटाते हुए उस रास्ते के खत्म होने पर एक गुफा में दाखिल हुआ और वहाँ से एक संदूक लेकर बाहर आ गया।

महाराज ने जैसे ही उस संदूक को देखा, उनकी आँखों में भय साफ नजर आ रहा था।

उन्होंने रघु को उसे खोलने के लिए कहा। जैसे ही रघु ने उसे खोला, तो पीछे हट गया। संदूक में एक कंकाल था।

दूसरी तरफ सुहानी को नींद ही नहीं आ रही थी। उसने रवि को महल की छत पर चलने के लिए कहा।

सुहानी, “देखा, तुमने इतने वर्षों के बाद भी मेरे पिता ने मुझे एक शब्द भी कुछ नहीं कहा। इसीलिए यहाँ आने का ज़रा भी मन नहीं था।”

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रवि, “देखो, उन्होंने तुमसे कुछ नहीं कहा, ये तो मैंने भी देखा। और तुम्हें देखकर उनकी आँखों में जो आंसू थे, वो तुम्हें नजर नहीं आए? कुछ तो राज़ है जो वो अपने मन में छुपाए हुए हैं। मगर क्या..?”

दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी उन्हें वही काली बिल्ली नज़र आई, जो उन्हें सड़क पर मिली थी।

उसने जैसे ही सुहानी पर झपट्टा मारा, एक काले कपड़े पहनी हुई महिला ने उस बिल्ली को धर दबोचा और उसे खाने लगी।

उस महिला के सिर पर चोट लगी थी, जिससे खून बह रहा था। आँखों की जगह सफेद पुतलियाँ, वो हवा में उस पर लहरा रही थीं।

बिल्ली के शरीर से ज़मीन पर टपके हुए खून को उसने अपनी लंबी जुबान से साफ किया और अचानक वहाँ से गायब हो गई।

रवि और सुहानी दोनों हैरान थे कि उन्होंने जो कुछ भी देखा, वो सच था या सपना?

क्या कारण है कि महाराज ने सुहानी को इतने दिनों तक खुद से दूर रखा?

रघु को किसका कंकाल संदूक में मिला? आपके सभी सवालों के जवाब मिलेंगे… हादसा-2 में।


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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