हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भैंसों की दौड़ ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Kahani in Hindi या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में मोतीलाल नाम का आदमी रहता था। मोतीलाल के पास एक भैंसा था, जिसे वह बहुत प्यार करता था।
मोतीलाल, “हा हा हा… इस पूरे गांव में मेरे भैसे जितना मजबूत और बलवान किसी का भैंसा नहीं।”
फूलवती, “अजी, आप सुबह से शाम तक सिर्फ भैंसा-भैंसा ही करते हो।
एक काम करती हूँ, मैं वापस अपने मायके चली जाती हूँ। आप रहना अपने भैंसे के साथ।”
मोतीलाल, “अरे अरे फूलवती! इतना क्यों गुस्सा होती हो? माना कि जितना मैं अपने भैंसे से प्यार करता हूँ, उतना तुमसे नहीं।
मगर इसका मतलब ये थोड़ी है कि तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी।”
फूलवती, “फिर से भैंसे की बात? सुनिए जी, मैं चली बाजार, आप बैठे रहिए अपने भैंसे के साथ।”
फूलवती गुस्सा होकर वहाँ से चली जाती है।
मोतीलाल, “अरे अरे! लगता है गुस्सा होकर चली गई। छोड़ो, मैं अपने भैंसे को चारा खिला देता हूँ।”
हर रोज़ मोतीलाल अपने साथ अपने भैंसे को भी साबुन लगा लगाकर नहलवाया करता
और किसी कीड़े-मकोड़े को उसके आसपास भी भटकने नहीं देता। एक रात बरसात शुरू हो जाती है।
मोतीलाल, “अरे! ये बरसात कहाँ से आ गई? मैं अपने भैंसे को अकेले कैसे छोड़ सकता हूँ? कहीं पानी अंदर न आ जाए।”
मोतीलाल वहीं पास में अपनी खटिया लगा लेता है।
फूलवती, “अजी, चलिए ना। अब क्या पूरी रात यहाँ अपने भैंसे के साथ बिताने की सोची है आपने?”
मोतीलाल, “हाँ फूलवती, तुम सही कहती हो। तुम जाओ और आराम से सो जाओ। आज मैं यहीं रहकर इसकी रखवाली करूँगा।”
फूलवती, “लगता है ये भैंसा मुझे इस घर में नहीं रहने देगा। अब बस करो जी, आपका भैंसा इतना मोटा-तगड़ा है, खुद को संभाल सकता है।”
मोतीलाल, “फूलवती, मेरे भैंसे के बारे में एक गलत लब्ज़ नहीं सुनूँगा मैं। तुम जाओ यहाँ से, मैं इसके साथ ही रहूँगा।”
फूलवती, “ठीक है जी, जाओ जो करना है करो।”
अगली सुबह वापस मोतीलाल अपने भैंसे की साफ-सफाई में लग जाता है। गांव में सभी लोग मोतीलाल का बहुत मजाक उड़ाते थे।
बूढ़ा आदमी, “बेचारा मोतीलाल सुबह से शाम तक अपने भैंसे के पीछे दौड़ता रहता है। ऐसा लगता है, पिछले जन्म का प्यार हो।”
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दूसरा आदमी, “एकदम सही भाई, भैंसे के साथ रहते-रहते मोतीलाल भी एक दिन भैंसा न बन जाए?”
तीसरा आदमी, “वो सब छोड़ो। सोचो, बेचारी पत्नी का क्या होता होगा? उसे तो ऐसा लगता होगा, जैसे उसकी सौतन आ गई घर में।”
चौथा आदमी, “अरे भाई! यह तो भैंसा है। भैंसिया रहती तब लगता सौतन आ गई। थोड़ा सा बच गया मोतीलाल।”
सभी बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं और मोतीलाल का मजाक उड़ाते हैं।
मोतीलाल, “आज इसे गांव में घुमा देता हूँ। बहुत दिनों से बाहर घूम नहीं पाया।”
मोतीलाल अपने भैंसे को साथ लेकर गांव में घूमने निकलता है।
आदमी, “अरे मोतीलाल! फिर से आ गये अपने भैंसें के साथ?”
मोतीलाल, “क्यों भाई, तुझे किस बात पर इतनी हँसी आ रही है? हाँ, मैं अपने भैंसे के साथ हूँ। बोल, तुझे क्या दिक्कत है?”
आदमी, “अरे भाई! तो रहो ना। मुझे क्या ? मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था।”
मोतीलाल, “हां तो जाओ, अपना काम करो।”
आदमी, “शायद वही कर रहा हूं। अच्छा गुस्सा मत हो, मैं जा रहा हूँ जा रहा हूँ ओके।”
मोतीलाल, “गांव में किसी के पास कोई काम नहीं बच गया है। जिसे देखो, बगुले की तरह नजर गड़ाए बैठा है मेरे भैंसे पर।”
मोतीलाल घर वापस आता है।
फूलवती, “अजी सुनिए, छोड़िए अपने भैंसे को और मेरी बात सुनिए।”
मोतीलाल, “हाँ बोलो, क्या बात है?”
फूलवती, “जानते हो चंद्रमुखी चाची के बारे में?”
मोतीलाल, “नहीं, क्या हुआ उन्हें?”
फूलवती, “बिस्तर पकड़ लिया है उन्होंने। लगता है अंतिम दिनों में हैं। आप जाइए और जाकर मिलकर आइए, वरना सभी क्या बोलेंगे?”
मोतीलाल, “क्या..? मगर मैं चला जाऊंगा तो मेरे भैंसे का ख्याल कौन रखेगा, बताओ तो ज़रा?”
फूलवती, “हे ईश्वर! जरा सद्बुद्धि दो इन्हें। चाची बीमार पड़ी हैं, एक बार मिलकर आने की जगह इस भैंसे के बारे में सोच रहे हैं।”
मोतीलाल, “फूलवती, कई बार कह दिया है मैंने, मेरे भैंसे पर अपनी खुन्नस ना निकाला करो। मैं उसे भी अपने साथ लेकर जाऊंगा।”
फूलवती, “वाह जी वाह! हाथी जितना मोटा तगड़ा भैसा लेकर चाची जी से मिलने जाएंगे।
अरे! इसे छोड़ दीजिए यहीं कुछ दिन, मैं देखभाल कर लूंगी। आपसे शादी की है तो इसे भी झेलना पड़ेगा।”
मोतीलाल, “नहीं नहीं फूलवती, तुम पर भरोसा नहीं है। मैं इसे अपने साथ लेकर ही जाऊंगा।”
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फूलवती, “अरे! आप बात क्यों नहीं समझते? मैं हूँ ना, मैं रख लूँगी इसका ख्याल। आप बस चिंतामुक्त होकर जाइए।”
दिल पर पत्थर रखकर मोतीलाल यह बात मान जाता है और अगले ही दिन चाची से मिलने निकल पड़ता है।
फूलवती चारा डालकर चली जाती है, लेकिन भैंसा चारा नहीं खाता।
फूलवती, “अरे, अभी तक इसने चारा नहीं खाया? खा ले, चुपचाप। मुझे परेशान मत कर।”
कई घंटे बीत जाते हैं, मगर भैंसा चारा नहीं खाता।
फूलवती, “अच्छा, याद आया। इसे तो हाथ से खिलाना पड़ता है। चलो, यह भी कर देती हूँ।”
फूलवती हाथ से भैंसे को खाना खिलाती है। भैंसे का ख्याल रख-रखकर फूलवती परेशान हो जाती है।
फूलवती, “इतना ध्यान तो मैं खुद का भी नहीं रखती, जितना इस भैंसे का रखना पड़ रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मैंने इसी भैंसे से शादी की है।”
फूलवती भैंसे को चारा खिलाकर अपने काम में लग जाती है। तभी एक आदमी आता है।
मूलचंद, “नमस्ते, भाभी जी। मेरा नाम मूलचंद है। मैं पड़ोस के गांव से आया हूँ।”
फूलवती, “हाँ जी, बोलिए। क्या बात है?”
मूलचंद, “मैं इस भैंसे को खरीदना चाहता हूँ। इसके लिए आपको लाखों रुपए दूंगा।”
फूलवती, “क्या, सच में?”
मूलचंद, “हाँ, अगर आप चाहें तो बताइए।”
फूलवती सोचती है, “इस भैंसे की कीमत लाखों में है? बाप रे, मैं तो इसे कोई काम का नहीं समझती थी।”
मूलचंद, “क्या हुआ, भाभी जी? बोलिए।”
फूलवती सोचती है, “वैसे भी इस भैंसे से तो मैं परेशान हो ही चुकी हूँ। बेच ही देती हूँ।
लाखों रुपए देखकर ये भी खुश हो जाएंगे और मुझे कुछ नहीं बोलेंगे।”
फूलवती भैंसे को अपने साथ लेकर आती है।
फूलवती, “जी भैया, ले जाइए इसे और मुझे पैसे दे दीजिए।”
मूलचंद फूलवती को पैसे दे देता है और भैंसे को अपने साथ लेकर चला जाता है।
फूलवती बार-बार पैसों को गिनती है और खुश होती है।
फूलवती, “वाह, इस भैंसे ने तो मुझे अमीर बना दिया। अब तो एक औरत इससे बनवा ही लूँगी।”
कुछ दिनों बाद मोतीलाल घर वापस आता है और तुरंत अपने भैंसे को देखने जाता है।
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मोतीलाल, “फूलवती… फूलवती, कहाँ हो? अरे मेरा भैंसा कहाँ है, जरा बताना ?”
फूलवती, “अरे! छोड़िए ना, ये देखिए लाखों रुपए मिले हैं।”
मोतीलाल, “मेरा भैसा कहाँ है, पहले ये बताओ?”
फूलवती, “कहाँ रहेगा? मूलचंद जी के पास होगा। बेच दिया है मैंने उसे। उसी के बदले ये लाखों रुपए मिले हैं।”
मोतीलाल, ” मेरे भैंसें को बेच दिया तुमने? ये क्या किया तुमने? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की?
तुम्हें पता भी है वो मेरे लिए कितना खास है? अभी के अभी बताओ, मेरा भैसा कहाँ है?”
फूलवती, “हे भगवान! अभी भी आपको उस भैंसे की पड़ी है। उसे पैसे के बदले आपको लाखों रुपए मिल रहे हैं,
फिर भी आप उसके पीछे ही पड़े हैं। जाइए, पड़ोस के गांव में मूलचंद जी के पास है आपका भैसा।”
मोतीलाल, “उन्होंने जो पैसे दिए हैं, वो मुझे दो। अभी मैं उन्हें वापस देकर आता हूं और अपना भैंसा लेकर आता हूँ।”
फूलवती सारे पैसे मोतीलाल को वापस देती हैं। मोतीलाल पड़ोस के गांव में आता है और मूलचंद को ढूंढता है।
मोतीलाल, “आप अपने पैसे वापस ले लीजिए और मुझे मेरा भैसा वापस कर दीजिए। मेरी पत्नी से गलती हो गई।”
मूलचंद, “अजीब लोग हैं, पहले तो मान गए फिर वापस मांग रहे हैं। ऐसा नहीं होता।”
मोतीलाल, “नहीं… कृपया मुझे मेरा भैंसा वापस कर दीजिए। ये लीजिए आपके पैसे।”
मूलचंद, “लाओ भाई दो पैसे और ले जाओ अपना भैंसा। जब देना ना हो, तो सौदा करने की कोई जरूरत नहीं।”
मोतीलाल अपने भैंसे को देखकर कहता है।
मोतीलाल, ” कैसा है तू, सब ठीक तो है ना? मुझे माफ कर दे, मुझसे गलती हो गई। मैं तुझे अकेला छोड़कर चला गया था।”
फूलवती, “आ गया ये फिर से हमारे घर।”
मोतीलाल, “फूलवती, ऐसी गलती कभी वापस मत करना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”
फूलवती, “जाओ जी, रहो इसके साथ ही मुझे कोई मतलब नहीं आपके भैंसे से।”
मोतीलाल, “चल, आज मैं तुझे बाहर घुमाकर लाता हूँ।”
फूलवती सामान लाने बाजार चली जाती है।
मोतीलाल, “यहाँ तो बहुत हरी-हरी घास है। यहीं इसे बाँध देता हूँ, थोड़ी देर खा लेगा।”
एक मैदान में मोतीलाल भैंसे को खूंटे से बांध देता है और बैठ जाता है। अचानक उसकी आँख लग जाती है।
इधर फूलवती बाजार से सामान खरीदकर आ रही थी। तभी कुछ चोर उसका सामान लेकर भागने लगते हैं।
फूलवती, “चोर… चोर, कोई पकड़ो इन्हें।”
भैंसा ये देख लेता है और खूंटा तोड़कर उन चोरों के पीछे भागने लगता है। भैंसे के डर से चोर सारा सामान फेंककर भाग जाते हैं।
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फूलवती, “वाह! आज तो तूने कमाल कर दिया। मेरा सारा सामान चोरी होने से बचा लिया। मैं बेकार ही तुम्हें निकम्मा समझती थी।”
अब फूलवती को भी भैंसे से प्यार होने लगा और उसने उसके साथ बुरा बर्ताव करना बंद कर दिया।
फूलवती, “माफ कीजिएगा। मैं तो बहुत मूर्ख थी, जो इसे बुरा-भला कहती थी।”
फूलवती की बात सुन मोतीलाल बहुत खुश हो जाता है। गांव में घोषणा होती है कि कुछ ही दिनों में दौड़ प्रतियोगिता होने वाली हैं।
जिसे भाग लेना हैं, वह अपना नाम लिखवा सकता है। दौड़ प्रतियोगिता वाले दिन सभी गांव वाले दौड़ देखने आते हैं।
सरपंच, “सुनो-सुनो! कुछ ही दिनों में दौड़ प्रतियोगिता होने वाली है। जो भी भाग लेना चाहता है, अपना नाम लिखवा सकता है।”
मोतीलाल-फूलवती अपने भैंसे के साथ दौड़ देखने आते हैं।
मोतीलाल, “वाह! आज तो दौड़ प्रतियोगिता देखकर मज़ा आ जाएगा।”
मोतीलाल वहीं पास खड़ा होकर दौड़ प्रतियोगिता देख रहा था, तभी उसे एक बात सूझती है।
मोतीलाल, “इंसानों की दौड़ हो सकती है फिर जानवरों की दौड़ क्यों नहीं? मेरा भैसा तो बहुत तेज दौड़ता है।
गांव के सभी भैंसों को हरा देगा। क्यों न भैंसों की दौड़ करवाई जाए?”
मोतीलाल ये बात गांव के सरपंच को बताता है। गांव के सरपंच को योजना अच्छी लगती है।
मोतीलाल, “सरपंच जी, हम सभी को टिकट भी दे सकते हैं और उनसे पैसे भी ले सकते हैं। इससे अच्छी कमाई होगी।
सरपंच अगले ही दिन गांव में घोषणा करवा देता है भैंसों की दौड़ प्रतियोगिता होने वाली है।
सभी भैंसों की दौड़ प्रतियोगिता सुन बहुत आश्चर्य में पड़ जाते हैं और पैसे देकर टिकट खरीदते हैं।
मोतीलाल अपने भैंसे को मैदान में उतारता है। कुछ ही क्षणों में मोतीलाल का भैसा दौड़ प्रतियोगिता जीत जाता है।
सभी बहुत मज़े से प्रतियोगिता देखते हैं। कुछ नया था इसलिए दूर-दूर से भी सभी लोग भैंसों की दौड़ प्रतियोगिता देखने आने लगते हैं।
आदमी, “वाह वाह क्या बात है! ये मोतीलाल का भैंसा तो सभी को हरा देता भाई। इसे हरा पाना तो बहुत मुश्किल है भाई।”
दूसरा आदमी, “हाँ हाँ भाई, बात तो सही कही तुमने। इसे हरा पाना भाई किसी के बस की बात नहीं भाई।”
इस तरह बहुत अच्छी कमाई शुरू हो जाती है और सभी अपनी अपनी भैंसों को दौड़ प्रतियोगिता में लेकर आने लगते हैं।
मोतीलाल का भैसा बहुत प्रसिद्ध हो जाता है। भैंसों की दौड़ प्रतियोगिता देख आसपास के गांव वाले भी ऐसी ही प्रतियोगिता करवाना शुरू कर देते हैं।
सरपंच, “वाह मोतीलाल! कमाल की सोच थी तुम्हारी। आज देखो, इन भैसों की दौड़ देखने के लिए लोग कितने उत्साहित रहते हैं?”
मोतीलाल, “धन्यवाद सरपंच जी।”
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