हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” हजरतगंज ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। ये भगवान राम की विरासत थी, जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।
अतः इसे लक्ष्मणवती, लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदलकर लखनऊ हो गया।
पर असल में लखनऊ एक चीज़ के लिए और फेमस है, जो है इस शहर से जुड़ी भूतिया कहानियां।
जब लखनऊ विश्वविद्यालय के लाल बहादुर शास्त्री हॉस्टल में पढ़ने वाले तीन दोस्तों के बीच शर्त लगी कि किसमें इतनी हिम्मत है, जो बेरी औरत के अंदर एक रात बिता सके?
क्योंकि यहाँ वो कब्रिस्तान है, जिसमें 1857 की जंग में मारे गए अंग्रेजों को दफनाया गया था।
खैर, उन दोस्तों में से एक ने हिम्मत दिखाई और शर्त कुबूल कर ली।
अगले दिन तीनों दोस्त विश्वविद्यालय से निकले और नदवा कॉलेज और पक्का पुल के रास्ते से होते हुए रेजीडेंसी पहुंचे।
रात के करीब 1 बजे चुके थे। सन्नाटा छाया हुआ था और पक्की सड़क पर महज़ एक-दो तांगे वाले नजर आ रहे थे।
तीनों दोस्त बेलीगारत के अंदर पहुंचे। उन दिनों बेलीगारत के चारों ओर बाउंड्री वॉल टूटी हुई थी।
कोई भी आसानी से अंदर जा सकता था। अब रात के करीब 1:00 बज चुके थे।
प्रेम, “ठीक है, प्रशांत, कल मिलते हैं अगर तुम जिंदा रहते हो तो।”
प्रशांत, “अरे! जिंदा क्यों नहीं रहूँगा? मुझे भूतों से डर थोड़े ही लगता है और जब डर ही नहीं लगता तो वो डर किस बात का?”
प्रेम और प्रशांत आपस में बातें कर रहे थे, पर श्री आस-पास की कब्रों को बड़े गौर से देख रहा था
और उन कब्रों पर लिखे नामों को बारी-बारी से पढ़ता हुआ बुदबुदा रहा था।
प्रशांत, “अब तू कब्रों को इस तरह क्यों देख रहा है? यहाँ सारे मर्दों की लाशें हैं, किसी लड़की की नहीं। ठरकी इंसान…।”
प्रेम, “प्रशांत, इसका बस चले तो ये लड़कियों को कब्र से निकाल के बोले, आप बहुत सुंदर लग रही हैं। क्या आप मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी?”
प्रेम की बात सुन प्रशांत भी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा था, जिनकी हँसी पूरे कब्रिस्तान में गूंज रही थी।
श्री, “अरे! नहीं प्रेम, मैं तो इन कब्रों पर लिखे नाम को पढ़ रहा था क्योंकि पिछले हफ्ते जब मैं टीना के साथ यहाँ मज़े करने आया था
तो इस थॉमस हैंग की कब्र इस कब्रिस्तान की सबसे आखिरी में थी।
अब ये बात मुझे इसलिए याद है क्योंकि मैंने इसी कब्र के पास के फूलों को उखाड़कर टीना को दिया था।”
श्री की बात सुन प्रेम और प्रशांत भी एक पल के लिए सोच में पड़ गए।
सबके मन में यही सवाल गूंज रहा था कि आखिर कब्र एक जगह से दूसरी जगह कैसे चल सकती है?
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और इस बात की पुष्टि इस बात से भी हो रही थी कि श्री के तोड़े हुए फूलों की डाली अभी भी मुरझाई हुई कब्र के पास ही थी।
प्रशांत, “अच्छा ठीक है। अब मुझे और उल्लू मत बनाओ। मुझे डराने की तुम्हारी कोशिश किसी काम की नहीं। समझ गए?
मैं इस कब्रिस्तान से अब कल सुबह ही आऊंगा वो भी जिंदा। चलो, अब तुम दोनों मुझे अकेला छोड़ दो।”
प्रशांत की बात सुन श्री और प्रेम कुछ नहीं बोले और आपस में बात करते हुए कब्रिस्तान से बाहर आ गए।
प्रशांत भी अपने दोस्तों को कब्रिस्तान से बाहर जाता देख साफ़ देख रहा था।
उनके जाने के बाद प्रशांत उसी थॉमस हैंग की कब्र के ऊपर बैठ जमीन पर उगी घास को नोचने लगा।
उसकी नजरें पूरे कब्रिस्तान को ताड़ ही रही थीं कि अचानक ही जमीन से एक हाथ निकला और प्रशांत का हाथ पकड़ उसे कब्र से नीचे गिरा दिया।
उसने जब आसपास देखा तो उसे कोई नहीं दिखा। पर जब उसकी नजर अपने ही हाथ पर गई, तो उसका हाथ किसी के नाखूनों से नोंचा हुआ था, जिससे खून निकल रहा था।
उसने खुद को संभाला और एक बार फिर कब्रिस्तान को देखा तो उसे धुएं का बड़ा सा अम्बार दिखा, जो उसी को घेरने उसी की ओर बढ़ रहा था।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, धुएं ने उसे घेर लिया गया। उसकी वजह से उसका दम घुटने लगा और फिर अगले ही पल उसे गोली और तलवारों की आवाजें आने लगीं।
ठीक उसकी आँखों के सामने स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों को घेर उन्हीं की बंदूकों से उन्हीं का सीना छलनी कर रहे थे।
तलवारों से उनका जिस्म और उनकी हिम्मत दोनों को काट रहे थे। और ये सब प्रशांत के सामने हो रहा था।
इतना सारा खून और मौत की गूंजती चीखें सुन प्रशांत की साँसों की गर्माहट बढ़ गई थी।
पर इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, इस सदमे से निकल पाता, अचानक किसी ने पीछे से धक्का दिया और उसे ज़मीन पर गिरा दिया।
जब उसने पीछे मुड़कर देखा, तो कोई और नहीं बल्कि प्रेम और श्री ही थे और धुएं का अम्बार एक पल में गायब हो गया।
प्रेम, “अरे! देख कितना फट्टू है? जब इतना डर लगता है, तो यहाँ अकेले आने के लिए हां ही क्यों की?
ज़रा अपने चेहरे का रंग तो देख, डर के मारे किस तरह उतरा हुआ है?”
दोनों दोस्त प्रशांत से कहते हुए उस पर हंसे जा रहे थे, क्योंकि अचानक से धक्का लगने की वजह से वो डर गया था।
प्रशांत, “बंद करो तुम लोग अपनी नौटंकी और चलो यहां से। मुझे यहाँ और नहीं रहना इस कब्रिस्तान में। तुम्हें अंदाजा भी हैं, मैं अभी क्या देख रहा था?”
प्रशांत जानता था कि जो कुछ भी उसने देखा है, वो कभी उसे अपने दोस्तों को समझा नहीं पाएगा।
इसीलिए झुंझलाता हुआ दोनों से कह बाहर जाने को हुआ ही था कि तभी प्रेम ने उसका हाथ पकड़ उसे रोक लिया।
प्रेम, “अबे! तू अकेला कहां चल दिया? चिंता मत कर, तेरे साथ साथ अब हम भी इसी कब्रिस्तान में रुकेंगे। फिर तो ठीक है ना?”
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प्रशांत, “पर रुकना ही क्यों है? छोड़ ये सब। साला जब से मैं आया हूँ, अजीब सी ठंड लग रही है।
तुम दोनों के हाथ भी तो बर्फ़ की तरह ठंडे पड़ चूके है। मैं कहता हूँ चलो।”
प्रशांत प्रेम से कहता हुआ उससे हाथ छुड़ा कब्रिस्तान के बाहर की ओर चल ही रहा था कि अचानक ही श्री ने उसके गले में रस्सी डाल और उसे वापस से कब्रिस्तान के अंदर घसीटने लगा।
प्रशांत, “श्री, तुम ये क्या कर रहे हो? मैं प्रशांत, तुम्हारा दोस्त। तुम मेरे साथ ये सब क्या कर रहे हो?”
प्रशांत चीख-चीख कर श्री से कहे जा रहा था, पर श्री ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे घसीटता हुआ एक पेड़ के पास ले आया।
फिर रस्सी को पेड़ की डाल पर फेंक उसे दूसरी तरफ से खींचता हुआ प्रशांत को फांसी चढ़ाने लगा।
प्रशांत, “श्री, ये तू क्या कर रहा है? प्रेम, तू श्री को रोकता क्यों नहीं? तुम दोनों मेरे साथ ये क्या कर रहे हो?”
प्रशांत के इतना कहने पर भी किसी ने उसकी एक नहीं सुनी और देखते ही देखते प्रशांत फांसी के फंदे पर ही छटपटाने लगा।
श्री, “आज जब तू मार रहा है, तो साफ सुनता जा, हम वो हैं ही नहीं, जो तू हमें समझ रहा है।
मैं सेनापति थॉमस है और ये मेरा सिपाही था। तुम भारतीय हमेशा से अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे और रहोगे।”
इतना कहकर श्री और प्रेम का शरीर धीरे-धीरे अंग्रेजी हुकूमत की पोशाक से ढक गया, जिनकी आंखों के सामने प्रशांत फांसी पर लटका तड़प रहा था।
प्रशांत के तड़पने पर भी अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों को चैन नहीं आया,
तो उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी बंदूक और तलवार से प्रशांत के जिस्म को छलनी और काटना शुरू कर दिया, जिससे प्रशांत की मौके पर ही मौत हो गई।
अगली सुबह प्रशांत के दोस्त जब उसे लेने बेलीकारत के कब्रिस्तान आए, तो उन्होंने देखा कि कब्रिस्तान के बाहर पुलिस और प्रेस का जमावड़ा लगा हुआ था, जिन्हें देख दोनों की सांसें तेज हो गईं।
प्रेम ने जब भीड़ के बीच में जाकर देखा, तो उन्हें कब्रिस्तान के कोने में फंदे से झूलती प्रशांत की लाश दिखी। जिसे देख दोनों चीखने लगे थे।
इंस्पेक्टर भी चीख सुनकर समझ गया था कि ये दोनों लाश के जानने वाले है।
इसी कारण ही दोनों को लाश की शिनाख्त करने के लिए अंदर बुलाया गया।
श्री और प्रेम ने जब प्रशांत की लाश को गौर से देखा, तो उनकी भी रूह काँप गयी।
गला ज़ोर से दबने की वजह से प्रशांत की आँखों की पुतलियां फटकर बाहर आ गई थी।
आँखों की जगह दो काले गड्ढे दिखाई दे रहे थे और नीचे ज़मीन पर खून ही खून बिखरा हुआ था।
साथ ही गोलियों के खाली कारतूस भी बिखरे पड़े थे। पर प्रशांत के जिस्म पर कट का एक भी निशान नहीं था।
दोनों ने लाश को पहचान तो लिया था, पर अब ये केस पुलिस को भी समझ नहीं आ रहा था
क्योंकि पोस्टमोर्टम में ये बात साफ हो चुकी थी कि भले ही प्रशांत के जिस्म पर बाहर से कोई कट या किसी खरोंच का निशान न मिला हो,
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लेकिन अंदर से उसका शरीर गोलियों से छल्ली पड़ा था और अंदर से मांस, नसें और यहाँ तक की हड्डियां भी कटी हुई थीं।
बहुत जांच पड़ताल के बाद भी केस कभी सॉल्व नहीं हुआ और ठीक 20 साल बाद श्री और प्रेम की लाश भी उसी रहस्यमयी तरीके से फांसी पर लटकी मिली।
वो भी उसी जगह, जहां प्रशांत लटका हुआ था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी वही लिखा था, जो प्रशांत के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में लिखा गया था।
बॉडी पर एक भी कट के निशान नहीं, पर अंदर से जिस्म गोलियों से छल्ली हुआ पड़ा था और तलवार से मांस के साथ हड्डियां तक कटी हुई थी
और आज भी इस केस की फाइल हजरतगंज के थाने में धूल खा रही है। हालांकि अब वक्त बदल चुका था।
सरकार ने बेलीगारत को संरक्षित करते हुए चारों तरफ बाउंड्री बॉल बनवा दी है और लाइट की व्यवस्था कर दी है।
अब ये रोड रात भर चलती है। पर आज भी तमाम रौशनी और लाइट के बावजूद लोग बेलीगारत के अंदर जाने से डरते हैं।
दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!