हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” समोसे चोर ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
सीमा, “अरे! आज आप समोसे बेचने नहीं जा रहे क्या?”
भोलाराम, “नहीं, रोज़ रोज़ आलू के समोसे खाकर लोगों का मन भर गया।
इसलिए कोई खाने नहीं आता है और उससे कुछ ज्यादा कमाई भी नहीं हो रही है।”
सीमा, “अरे! तो ये बात आपको मुझे पहले बतानी चाहिए थी, मैं कुछ जुगाड़ करती ना।”
भोलाराम, “इसमें तुम क्या जुगाड़ लगाओगी? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है।”
सीमा, “अरे! आप चिंता मत करो, मैं सब देख लूंगी।”
भोलाराम अपने नाम की तरह बहुत सीधा साधा इंसान था। उसकी बीवी अपनी चतुराई से काम करती थी।
भोलाराम, “सीमा, समोसे में से तो खुशबू बहुत अच्छी आ रही है। तुमने आखिर इसमें किया क्या है?”
सीमा, “आप जाइए तो… और हाँ, आज से आप कुछ दिनों तक ये समोसे पास के गांव में बेचना।”
भोलाराम, “ठीक है। तुम जैसा कहती हो, मैं आज वैसा ही करूँगा।”
भोलाराम समोसों से भरा टोकरा साइकिल पर रख कर उन्हें पास के गांव में बेचने चला जाता है।
भोलाराम, “समोसे ले लो… गरमा गर्म समोसे। ताजा ताजा समोसे ले लो।”
भोलाराम जैसे ही उस गांव में पहुंचता है तो वहाँ पर खड़े लोगों को समोसे की बहुत अच्छी खुशबू आने लगती है।
आदमी, “अरे वाह वाह वाह! क्या खुशबू आ रही है और खुशबू से लगता है कि समोसे भी अच्छे ही होंगे। चलो चलते हैं आज इसके यहाँ के समोसे खाते हैं।”
भोलाराम, “आइए आइए गरमा गर्म समोसे खाइए। ताजा ताजा समोसे हैं।”
वो तीनो आदमी वहाँ भूलाराम से समोसे लेते हैं और मज़े से खाते हैं।
आदमी, “अरे वाह! क्या स्वाद हैं समोसे में? मैंने आज तक ऐसे पनीर वाले समोसे कभी नहीं खाये।”
भोलाराम, “अच्छा सीमा ने ये जुगाड़ किया है।”
आदमी, “अरे! क्या हुआ भाई? किस सोच में पड़ गए? और समोसे दो हमें।”
भोलाराम, “हाँ जी हाँ, देता हूँ बस।”
देखते ही देखते भोलाराम की साइकिल के पास ग्राहकों की भीड़ लग जाती है। उसके सारे समोसे बिक जाते हैं।
लेकिन थोड़ी दूर से झाड़ियों में से दो लड़के छुपकर ये सब देख रहे होते हैं।
चिंटू, “मिंटू, ये समोसे देखने में तो बहुत अच्छे लग रहे हैं। क्यों रे मिंटू, ये समोसे हम कब खाएंगे रे?”
मिंटू, “अरे! जरूर खाएंगे तू परेशान क्यों होता है? लेकिन चिंटू यार हमारे पास तो पैसे नहीं है, तो हम ये समोसे कैसे खाएंगे?”
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चिंटू, “खाएंगे, वो भी बिना पैसों के। क्यों समझा ना मेरी बात?”
मिंटू, “अच्छा… इसका मतलब हमारा वो पुराना तरीका, सही कहा ना मैंने, चिंटू?”
चिंटू, “अरे! बिलकुल सही पकड़े। कल देखियो हम पेट भरकर समोसे खाएंगे।”
सीमा, “अरे! आप तो आज जल्दी आ गए और ये टोकरी भी पूरी खाली है।”
भोलाराम, “हाँ, तुम्हारे जादू और जुगाड़ दोनों की वजह से आज सारे समोसे और तो
और तुम्हें पता है आज तो लोगों ने समोसे मांग मांग कर खाये है।”
सीमा, “तो ठीक है, मैं कल ढेर सारे और स्वादिष्ट समोसे बनाऊंगी।”
भोलाराम, “हाँ हाँ, यही करेंगे। क्योंकि जितना तुम समोसे बनाओगी, उतने ही मैं बेचूंगा और उतना ही हमे फायदा होगा।”
अगले दिन भोलाराम फिर से साइकिल पर समोसों की टोकरी लेकर बेचने चल देता है।
भोलाराम, “आज थोड़ा जल्दी जल्दी जाता है, बहुत सारे समोसे हैं। सब के सब बेचने हैं।”
वो जैसे ही समोसे लेकर जाता है तो चिंटू मिंटू उसका पीछा करने लग जाते हैं।
मिंटू, “वो देख चिंटू इतने सारे समोसे जा रहे हैं।”
चिंटू, “अबे मिंटू, वो सिर्फ जा ही नहीं रहा है बल्कि हमें भी अपने पास बुला रहे हैं।”
मिंटू, “तो फिर चल यार, जल्दी से पूरी टोकरी साफ कर देते हैं।
वो देख मिंटू, वो बेचने वाला अपने ही ख्यालों में खोया हुआ है, बीच रास्ते में पूरी टोकरी साफ कर देते हैं।”
भोलाराम बड़े मज़े से साइकिल चलाता हुआ समोसे बेचने जा रहा होता है
लेकिन उसे ये नहीं पता होता कि पीछे उसके समोसे के साथ क्या हो रहा है?
भोलाराम परेशान होकर घर में बैठा होता है कि तभी सामने से उसकी बीवी आती है।
सीमा, “क्या हुआ जी? आज कितने का सामान बिका और आप परेशान क्यों लग रहे हो, क्या हुआ?”
भोलाराम, “समोसे तो सारे बिक गए, लेकिन..।”
सीमा, “लेकिन क्या जी?”
भोलाराम, “आज जब मैं समोसे लेकर बाजार गया तो मुझे समोसे बहुत कम लगे।”
सीमा, “ऐसे कैसे हो सकता है? बल्कि आज तो मैंने रोज़ से दो गुना ज्यादा समोसे बनाए थे।”
भोलाराम, “मैं भी यही सोच रहा हूँ सीमा कि समोसे रास्ते में कम कैसे हो गए?”
सीमा, “कहीं ऐसा तो नहीं की रास्ते में कहीं गिर गए हों?”
भोलाराम, “हाँ, हो सकता है। ये तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया।”
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सीमा, “आप अबकी बार आराम से समोसे लेकर जाना।”
भोलाराम, “ठीक है ठीक है, अबकी बार अच्छे से टोकरी को बांधकर लेकर जाऊंगा।”
अगले दिन भोलाराम समोसों को ध्यान से साइकिल पर बांध देता है।
भोलाराम, “आज तो मैंने अच्छे से बांध लिए है, अगर समोसे कुछ कम हुए तो मुझे पता लग जाएगा।”
चिंटू और मिंटू फिर से समोसे चुराने के लिए भोलाराम के पीछे लग जाते हैं।
चिंटू, “ले भाई, चल शुरू करते हैं। समोसे की खुशबू से मैं तो अपने आपको नहीं रोक पा रहा हूँ।”
मिंटू, “फिर हम देर क्यों कर रहे हैं? चलो, जल्दी चलो।”
चिंटू, “हाँ चलो चलो, तुम टोकरी भरना और मैं खाली करूँगा।”
चिंटू और मिंटू भागते भागते भोलाराम की टोकरी में से एक समोसा निकालते हैं
और एक पत्थर रख देते हैं, जिससे भोला राम को पता नहीं चलता कि टोकरी में से समोसे गायब हुए हैं।
चिंटू, “चलो बाजार तो पहुँच गया हूँ, अब जल्दी से सारे समोसे बेच देता हूँ।”
वो जैसे ही साइकिल खड़ी करके देखता है तो हैरान हो जाता है।
भोलाराम, “अरे रे! ये क्या हो गया? टोकरी कैसे खुल गयी और इसमें समोसे की जगह पत्थर ये कैसे हो गया?
अब मैं क्या करू? ये कैसी मुसीबत में फंस गया मैं?”
उधर चिंटू और मिंटू एक पेड़ के नीचे बैठकर बड़े मज़े से समोसे खा रहे होते हैं।
चिंटू, “उस मूर्ख को आज भी पता नहीं लगा कि हमने उसके समोसे चुराए हैं।”
मिंटू, “हाँ और जितने दिन वो यहाँ समोसे बेचने आएगा, उतने दिन हमारे मज़े ही मज़े।”
सीमा, “आज आप क्या समोसे गिनकर लेकर जाओगे?”
भोलाराम, “अगर मुझे गिनना आता तो वैसे ही ले जाता, लेकिन मुझे गिनना कहाँ आता है?”
सीमा, “आपको समोसे गिनने की जरूरत नहीं है, आप बस पत्तों से अच्छे से ढककर बांध दीजिएगा।”
भोलाराम, “सच में सीमा, तुम कितनी समझदार हो?”
सीमा सारे समोसों को अच्छे से ढककर बांध देती है।
भोलाराम, “समोसे ले लो समोसे, गरमा गर्म समोसे, ताजा ताजा समोसे।”
मिंटू, “अरे चिंटू! वो देख गरमा गर्म समोसे आ गए। चल जल्दी चल।”
चिंटू, “अरे! रुक रुक, सुन आज ना एक नया जुगाड़ लगाएंगे। तू पीछे रहियो मैं आगे।”
उधर भोलारामा साइकिल चलते चलते लेकर जाता है।
भोलाराम, “आज मैं चलते चलते आऊंगा और पीछे मुड़ मुड़कर समोसे को देखता रहूंगा, लेकिन समोसे को बिलकुल भी कम नहीं होने दूंगा।”
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चिंटू, “अरे अरे भैया! रुक जाइए, इतनी जल्दी जल्दी कहाँ भागे जा रहे है आप?”
भोलाराम, “अरे भाई! मैं तो बस ये समोसे बेचने जा रहा हूँ।”
चिंटू, “अरे भैया! इतनी जल्दी जल्दी चलोगे तो ठोकर लगकर गिर जाओगे। फिर यहाँ आपको कौन संभालेगा?”
भोलाराम, “क्या… मैं गिर जाऊंगा? हाँ, गिर तो सकता ही हूँ। हाँ, तुमने सही कहा।”
चिंटू, “हाँ, इसलिए भैया थोड़ा आराम से चाहिए और लोगों को ये स्वादिष्ट समोसे खिलाइए
और आपके समोसे तो वैसे भी बहुत लाजवाब है।”
भोलाराम, “अच्छा ऐसा है? क्या लोगों को पसंद आ रहे हैं?”
चिंटू, “अरे! बस पसंद ही नहीं बल्कि लोग तो आपके इन स्वादिष्ट समोसे के दीवाने हो रखे हैं
और बोल रहे हैं कि अगर आपके ये स्वादिष्ट समोसे नहीं खाये तो जीवन व्यर्थ हैं।”
ऐसा कहकर चिंटू और मिंटू वहाँ से चले जाते हैं।
भोलाराम, “अरे वाह! ये बात तो आज सीमा को बतानी पड़ेगी।”
भोलाराम जैसे ही बाजार पहुंचता है तो समोसों की तरफ देखकर हैरान हो जाता है।
भोलाराम, “अरे रे! ये क्या हो गया? आज फिर से ये समोसे की टोकरी खाली हो गई। ये क्या हो रहा है?
मैं ये सब बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहा हूँ। आज सीमा मुझे फिर से बहुत सुनाएगी। क्या करूँ?
अगर किस्मत में मुझे सिर्फ बीवी से डांट खाना लिखा है, तो इससे कौन बचा सकता है मुझे?”
भोलाराम जैसे ही घर जाता है, उसकी बीवी बाहर ही उसका इंतज़ार कर रही होती है।
सीमा, “क्या हुआ जी..? लगता है आपसे आज फिर कोई गड़बड़ हुई है?”
भोलाराम, “आज फिर से वही हुआ। आज फिर से सारे समोसे गायब हो गए।”
सीमा, “ये क्या बोल रहे है आप? आज तो आप अच्छे से बांध कर लेकर गए थे? ये सब कैसे हुआ?”
भोलाराम, “अरे! ठीक से लेकर गया था पता नहीं फिर से कैसे गायब हो गए?”
सीमा, “नहीं नहीं नहीं, ये तो अजीब बात है कि कोई आकर समोसे निकाल कर ले गया, आपको पता भी नहीं चला।”
भोलाराम, “आज तो होशियार भी बहुत था और खुश भी बहुत था। “
सीमा, “क्या खुश… पर वो क्यों?”
भोलाराम, “क्योंकि आज बीच रास्ते में एक आदमी ने खुद आकर मुझसे कहा
कि हमारे समोसे की तारीफ बहुत दूर दूर तक हो रही है। समझी क्या? इसलिए मैं आज बहुत खुश था।”
सीमा, “हम्म… समझ गई, सब अच्छे से समझ गई। इसका मतलब आपसे बाते करने के बहाने से कोई आकर समोसे निकाल कर ले गया।”
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भोलाराम, “अब ये सारी बाते मैं कैसे समझूंगा, तुम बताओ?”
सीमा, “हाँ, आप ये बात नहीं समझे। पर मैं ये बात अच्छे से समझ गई हूँ।”
भोलाराम, “अब तुम क्या समझ गई हो?”
सीमा, “जो हमारे समोसों की चोरी कर रहे हैं वो किसी न किसी बहाने रोज़ आपको बेवकूफ जरूर बनाएंगे।”
भोलाराम, “बेवकूफ तो मैं हूँ, लेकिन चालाक कैसे बनूं?”
सीमा, “आपको चालाक बनने की जरूरत नहीं है। अब मैं ही कुछ करती हूँ।”
भोलाराम, “तुम्हें पता है, समोसे खाकर लोग इतने दीवाने हो गए हैं कि दूर से मुझे देखकर भागते हुए मेरे पास समोसे खाने आते हैं?”
सीमा, “तो क्या वो मेरे हाथ से बने समोसे पहचान लेंगे?”
भोलाराम, “हाँ हाँ, क्यों नहीं? तुम्हारे हाथों से बने समोसों को वो बहुत अच्छी तरह पहचानते हैं।”
सीमा, “अरे वाह! आपने तो बहुत अच्छा सुझाव दिया। आपकी बात सुनकर मुझे एक उपाय सूझा है। ज़रा इधर आइए, मैं आपको सब बताती हूँ।”
सीमा भोलाराम के कान में सारी बात बता देती है। अगले दिन सीमा जल्दी जल्दी उठकर समोसे बनाती है और भोला राम को दे देती है।
सीमा, “अजी, आज समोसे आराम से ले जाइएगा।”
भोलाराम, “हां सीमा, तुम परेशान मत हो। मैं आज ध्यान से समोसे लेकर जाऊंगा।”
भोलाराम समोसे लेकर बाजार की ओर जा रहा होता है कि तभी चिंटू और मिंटू इसका पीछा करना शुरू कर देते हैं।
मिंटू, “चिंटू, आज तो फिर से हमें समोसे खाने को मिल रहे है। यार इन समोसे को देखकर तो मुझसे रुका ही नहीं जा रहा है।”
चिंटू, “हाँ यार मिंटू, रुका तो मुझसे भी नहीं जा रहा है और देख, आज तो हमें आराम से समोसे खाने को मिल जाएंगे,
क्योंकि आज इस मूर्ख समोसे वाले ने तो समोसे बांध भी नहीं रखे हैं।”
मिंटू, “हाँ चिंटू, तू सही कह रहा है। चल आज समोसे मैं निकालूँगा।”
चिंटू और मिंटू दोनों चुपके से भोलाराम के टोकरी से समोसे निकाल लेते हैं
और दोनों चुपके से जाकर पेड़ के नीचे बैठकर समोसे खाने लगते हैं।
मिंटू, “चिंटू यार, आज समोसे देखने में बहुत अच्छे लग रहे हैं।”
चिंटू, “हाँ यार, तू सही कह रहा है। आज के समोसे देखने में तो बहुत स्वादिष्ट लग रहे हैं।”
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दोनों जैसे ही समोसे खाते हैं…
चिंटू, “आह! ये ये समोसे में क्या मिला है? अरे मर गया रे! कोई तो बचा लो, कोई तो पानी लाकर दो।”
भोलाराम, “क्यों बच्चू, अब मज़ा आया ना?”
मिंटू, “हम आज के बाद कभी समोसे नहीं खाएंगे।”
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