दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – कैदी नं० 369। यह एक Darawni Kahani है। तो अगर आपको भी Darawani Kahaniya, Bhutiya Kahani या Real Horror Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
मेरा नाम रागिनी है। पेशे से मैं एक वकील हूं। मैं पूरे दो सालों से कैदी नंबर 369 को बाइज़्ज़त बरी कराने की कोशिश में लगी हुई थी।
असल में, कैदी नंबर 369 दुनिया के लिए वो दरिंदा है, जिसे जीने का कोई हक नहीं। और अगर अभी पब्लिक में छोड़ दिया जाए, तो लोग उसे मौत के घाट उतार देंगे।
मैंने पहली बार दुष्यंत के बारे में एक अख़बार में पढ़ा था कि कैसे एक आदमी, जिस पर पहले ही अपने परिवार के दो लोगों की मौत का इलज़ाम है और जो पहले से ही जेल में सजा काट रहा है।
उसने जेल में दो और कैदियों को मौत के घाट उतार दिया, वो भी सिर्फ अपने नाखूनों से। इस वजह से उसकी सजा को 20 साल के लिए बढ़ा दिया गया।
बस, इस खबर ने मुझे कैदी नंबर 369, जिसका नाम दुष्यंत है, को जानने के लिए मजबूर कर दिया। और उसके केस की आखिरी सुनवाई आज है।
इसके बाद फैसला हो जाएगा कि क्या सच में कैदी नंबर 369 एक दरिंदा है या नहीं? मैं कोर्ट में बैठी दुष्यंत के आने का इंतजार कर रही थी, तभी दुष्यंत को चार पुलिस वाले जंजीरों में जकड़े हुए कोर्ट में लाए।
जब-जब मैं दुष्यंत को देखती हूँ, मुझे हर बार उसमें कुछ नया सा लगता है। गर्दन तक बिखरे बाल, बड़ी-बड़ी दाढ़ी, गोल गहरी आँखें जो एक पल को भी ठहरती नहीं हैं।
बस एक चेहरे से दूसरे चेहरे पर फिरती रहती हैं। उसके बर्ताव का भी किसी को भरोसा नहीं था कि वो कब पागल हो जाएगा या फिर कब हंसने लगे, खुद को नोचने लगे कोई आइडिया नहीं?
जज के आते ही सुनवाई एक पल में शुरू हो गई, और दुष्यंत को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया गया।
मेरे सामने प्रॉसिक्यूटर मिस्टर भट्ट, जो एक सरकारी वकील हैं, खड़े थे जिनका बोलबाला दिल्ली कोर्ट तक सुनाई देता है।
मिस्टर भट्ट, “जज साहब, ये शख्स जो इस वक्त कटघरे में खड़ा है और मुझे ही देख रहा है, ये किसी हैवान, किसी दरिंदे से कम नहीं है।
मुझे बस ये बात समझ नहीं आती कि मिस देविका अभी तक इस भ्रम में क्यों जी रही हैं कि कोई चार-चार हत्याएं करने के बाद भी बेकसूर हो सकता है।
जबकि इस केस के मुल्जिम ने खुद अपना जुर्म कबूला है कि उसने ही अपने परिवार के दो लोग, अपनी माँ और अपनी आठ महीने की छोटी बहन को बड़ी बेरहमी से कतल कर दिया।
वो भी तब जब वो मात्र 6 साल का था। और इसके बाद भी इसकी हैवानियत खत्म नहीं हुई।
जेल में होने के बाद भी इसने अपने दो कैदी साथियों को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतारा है। फिर कोर्ट का समय बर्बाद करने का क्या मतलब?”
मिस्टर भट्ट की दलील सुन दुष्यंत एकटक मुस्कुराते हुए उन्हें ही देखे जा रहा था। मिस्टर भट्ट की दलील सुन कोर्ट में बैठे लोग भी दुष्यंत की बातें कर रहे थे।
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तभी जज साहब ने ‘ऑर्डर ऑर्डर ‘ कहकर सबको शांत कर दिया।
जज साहब, “मिस्टर भट्ट, आपकी बात सुन ली, अब ज़रा मिस देविका की भी दलील सुन लें। मुझे यकीन है कि उनके पास भी बताने लायक काफी कुछ होगा।
और हिप्नोसिस टेस्ट के लिए मैंने जो कहा था, उसकी रिपोर्ट आई है क्या?”
मैं, “जज साहब, मेरे रिक्वेस्ट पर आपने इस हिप्नोसिस टेस्ट के लिए परमिशन दी थी। उसके रिजल्ट्स चौंकाने वाले हैं।
जिसे कानून ने चार लोगों के खून के इलज़ाम में सारी उम्र जेल में सड़ाया है, दरअसल उसे इस वक्त एक आम नागरिक की तरह ही अपनी जिंदगी बितानी चाहिए थी।”
मैं अभी बोल ही रही थी कि तभी जज साहब ने चौंकते हुए कहा, “क्या दुष्यंत को मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर है?”
मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का नाम सुनते ही एक बार फिर कोर्ट में शोर मच गया।
मिस्टर भट्ट, “क्या मजाक चल रहा है जज साहब इस कोर्ट में? आज से पहले इस कैदी के लिए तो कोई गवाही तक देने नहीं आया।
और जब कोई सबूत मिला ही नहीं तो अब ये मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का नाटक चालू कर दिया। खुद ही की कहानी छोटी गिजती… कमाल है।”
मिस्टर भट्ट की दलील अभी पूरी ही नहीं हुई थी कि जज साहब ने मुझसे फिर पूछा, “मिस देविका, इस रिपोर्ट को प्रूफ करने के लिए क्या आपके पास कोई और सबूत हैं?”
मैं, “जी, मेरे पास इस पूरे हिप्नोसिस टेस्ट की वीडियो फुटेज है, जिसे देख शायद सबका नजरिया हमेशा के लिए बदल सकता है।”
मैंने ये कहते ही वीडियो को सबके सामने प्ले कर दिया। वीडियो में दुष्यंत एक स्लाइडिंग चेयर पर लेटा हुआ साइकेट्रिस्ट बंसल के सवालों के जवाब दे रहा था।
साइकेट्रिस्ट बंसल, “दुष्यंत, क्या तुम्हें अपनी जिंदगी का वह पल याद है जब तुम सबसे ज्यादा खुश हुए थे?”
दुष्यंत को हिप्नोटाइज़ कर उसे गहरी नींद में सुला दिया गया था और धीरे-धीरे साइकेट्रिस्ट के सवालों से दुष्यंत अपनी कहानी खुद बताने लगा।
दुष्यंत, “हां, जब मैं 6 साल का था और पहली बार लक्ष्मी मेरे घर आई थी।”
साइकेट्रिस्ट बंसल, “लक्ष्मी कौन?”
दुष्यंत, “लक्ष्मी…मेरी बहन। माँ को वो किसी कचरे के डिब्बे में रोती हुई मिली थी।
माँ कहती थी कि उसकी और मेरी आँखें दोनों एक ही जैसी हैं, गोल और गहरी। इसलिए हम दोनों भाई-बहन हैं।”
साइकेट्रिस्ट बंसल, “और दुष्यंत तुम्हारी माँ…उनके बारे में कुछ बताओ?”
दुष्यंत, “वो बहुत प्यारी थी। वो हम दोनों को बहुत प्यार करती थी, हम दोनों ही उसकी दुनिया थे।
चाहे वो कितनी भी थकी हुई हो या उसे कितनी भी चोट लगी हो, पर हमें देखकर मुस्कुराती थी।”
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साइकेट्रिस्ट बंसल, “चोट लगे..? ऐसा क्या काम करती थी तुम्हारी माँ?”
साइकेट्रिस्ट के पूछने पर दुष्यंत चुप हो गया। उसकी सांसें तेज हो गई थीं और तभी उसकी आवाज अचानक से भारी हो गई।
वो घुर्राने लगा और नींद में छटपटा रहा था। उसके शरीर की हड्डियाँ अब अकड़ने लगी थीं।
दुष्यंत, “हेमा… मेरी जान, क्या खूबसूरत बाला थी वो। कसम से जब मैंने उसे पहली बार देखा था, तब ही मेरा ईमान डोल गया था। आज भी उसे देखकर मेरा रोम-रोम जल उठता है।”
साइकेट्रिस्ट बंसल, “आप कौन हैं?”
दुष्यंत, “मैं अघोरी…अघोरी नंदा, दुष्यंत का बाप। मैं और दुष्यंत की माँ, हेमा एक दूसरे से प्यार करते थे। वो मेरे पास काला जादू सीखने आती थी।
कहती थी कि मुझे लोगों को वश में करना सीखना है। मैंने उसे काला जादू तो सिखा दिया, पर हेमा तो मुझ पर ही काला जादू करने लगी थी।
मैं खुद उसका गुलाम बन चुका था। वो मुझसे अपने सारे शौक पूरे करने लगी थी। मेरे पैसे, मेरे शरीर, सब पर उसका ही हक होता।
फिर हम दोनों की जिंदगी में दुष्यंत आया। मैं दुष्यंत से बहुत प्यार करता था, वो मेरी जान था। पर उसकी माँ उसका ज़रा भी ख्याल नहीं रखती थी।
दुष्यंत दिन भर भूख के मारे रोता रहता, जिसका ध्यान रखने के लिए मैंने अघोरी विद्या का भी त्याग कर दिया था। हेमा को पैसे का बहुत लालच था।
जब मेरे सारे पैसे खत्म हो गए, तो वो हफ्तों हफ्तों तक घर नहीं आती थी। गैर मर्दों के साथ उसके ताल्लुक बढ़ने लगे थे।
इस पर भी जब हेमा का पेट नहीं भरा, तो उसने नशा भी चालू कर दिया। पता नहीं कहाँ से, पर उसने दूसरों का खून कर खुद को जवान रखने की कला सीख ली थी।
अब वो मासूम और नौजवान मर्दों को अपने रूप के जाल में फंसा कर लाती और उन पर काला जादू कर उन्हें अपने वश में कर लेती।
सच कहूं तो मुझे अब हेमा से डर लगने लगा था, पर मुझे अपने बेटे को ये ज़िन्दगी नहीं देनी थी। इसीलिए मैं दुष्यंत को साथ लेकर हेमा से बात करने श्मशान घाट गया।
जब पहुँचा, तो देखा कि हेमा एक अंजान मर्द के साथ संभोग में लीन थी।”
अघोरी नंदा, “हेमा, ये तुम क्या कर रही हो? तुम्हें शर्म नहीं आती, हमारा एक बच्चा है?”
मेरी आवाज़ सुनते ही हेमा उस अंजान शख्स को अपने आलिंगन से दूर कर देती है। फिर गुस्से में मुझे घूरते हुए बोली,
हेमा, “हमारा बच्चा? मेरा बच्चा अघोरी, दुष्यंत सिर्फ मेरा बच्चा है और तुम किस हक़ से मुझ पर हक जताने आए हो?
भूल गए… भूल गए क्या, हमारी शादी नहीं हुई है? दुष्यंत को यहाँ छोड़ दो और चले जाओ।”
पर मेरा मन नहीं माना। मैं हेमा को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दुष्यंत को अपने साथ लेकर ही जा रहा था। हेमा ने मुझे अपनी शक्तियों से हवा में ऊपर उठा लिया।
मैं, “तो अब तुम मेरा सिखाया हुआ काला जादू मुझ पर ही चलाओगी?”
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हेमा से कहता हुआ मैं भी अपने मंत्रों को याद कर हेमा को चुनौती दे रहा था। पर मैं भूल गया था कि हेमा मेरी हद और मेरी शक्तियों से बहुत आगे निकल चुकी है।
हेमा, “अघोरी, शायद जितना तूने मुझे सिखाया था वो सिर्फ एक बूँद भर था और अब तो मैं काले जादू का समंदर बन चुकी हूँ। देखना चाहता है मेरी शक्तियों को? ले देख..!”
इतना कहकर हेमा अपनी आँखे बंद कर कुछ मंत्र बुदबुदाने लगी। जिस शक्स के साथ हेमा संभोग में लीन थी, वो देखते ही देखते एक विशालकाय जिन्न बन गया।
एक पल को मैं जान गया था कि हेमा की काली शक्तियों के आगे मेरे मंत्र एक पल भी नहीं टिकने वाले। हेमा के एक इशारे पर वो जिन्न हवा में मेरे सामने उड़ रहा था।
उसने पहले मेरे दोनों हाथों को मेरे जिस्म से अलग कर दिया और मुझे ज़मीन पर हेमा के पैरों में ला पटका। बुरी तरह से मुझे पीटने लगा।
6 साल का दुष्यंत मेरे सामने जमीन पर बैठा मुझे ही देख रहा था। मेरा शरीर अब मेरे खून से पूरी तरह से भीग चुका था।
मैं तड़प रहा था, चीख रहा था, पर हेमा ने मेरी एक नहीं सुनी। मेरे जिस्म में अभी भी कुछ सांसें बाकी थीं जिसे खत्म करने के लिए उसने मुझे जिंदा ही पहले से जल रही चिता पर ला पटका।
मेरी चीखें आज भी दुष्यंत के कानों में गूंजती हैं क्योंकि वो वहीं था जिसे मेरी हालत देख मेरे मरने पर दुख हो रहा था।
साइकेट्रिस्ट बंसल, “इतनी दर्दनाक मृत्यु के बाद आप दुष्यंत के शरीर में कैसे..? कुछ समझ में नहीं आया।
साइकेट्रिस्ट के सवाल पर दुष्यंत के शरीर में रह रही दूसरी पर्सनालिटी, यानी दुष्यंत के पिता अघोरी नंदा ने कहा,
अघोरी नंदा, “जो हादसा दुष्यंत ने 6 साल की उम्र में देखा था, शायद उसका जहन कभी उसे भुला नहीं पाया। मेरे जाने के बाद हेमा ने दुष्यंत पर बहुत अत्याचार किए।
उसे अब दुष्यंत एक बोझ लगने लगा था, जिससे वो जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी। फिर एक दिन किसी ने हेमा को भ्रम डायनी की सिद्धि का बताया, जिसमें दो बच्चों की बलि देनी होती है।
एक अपनी और एक किसी और की। तभी हेमा लक्ष्मी को किसी से चुरालाई थी, पर हेमा बीमार रहने लगी थी। उसके लिए घंटों बैठकर तपस्या करना नामुमकिन होता जा रहा था।
फिर एक दिन जब दुष्यंत और लक्ष्मी में हेमा को अपनी कमजोरी दिखाई देने लगी, तो हेमा ने फिर से अपने पास कैद किए हुए जिन्न को बुलाया और लक्ष्मी और दुष्यंत को मारने का कह दिया।
एक आठ महीने की बच्ची और एक 6 साल के लड़के को मारने का सुन सबकी रूह कांप गई थी।
तभी अघोरी नंदा ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा,
अघोरी नंदा, “दुष्यंत फिर से उसी जिन्न को बड़ी बेरहमी से लक्ष्मी की ओर बढ़ता देख रहा था। दुष्यंत को फिर से मेरी मौत की झलकियां दिखाई दे रही थीं।
जिस तरह उसने मुझे मरते हुए देखा था, वो लक्ष्मी को मारता हुआ नहीं देख सकता था। दुष्यंत के जहन में बस मेरी ही मौत की झलकियां बिखरी हुई थीं।
उसे मेरा तड़पना ही याद आ रहा था कि तभी कुदरत का करिश्मा कहो या फिर ऊपर वाले का करम, मैं अपने बेटे के शरीर में आ चुका था।
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अपने बेटे के शरीर में आते ही मैंने सबसे पहले पास ही चाकू उठाया और हेमा का गला काट दिया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
हेमा के कैद किया हुआ जिन्न लक्ष्मी के दो टुकड़े कर चुका था। हेमा के मरते ही जिन्न भी मुक्त हो गया, लेकिन दुष्यंत जिंदगी भर के लिए गुनेहगार बन गया।
इसीलिए दुष्यंत ने कोई खून नहीं किया है। उसकी माँ को मैंने मारा था और उन दो कैदियों को भी जो दुष्यंत के साथ ज़बरदस्ती करने आए थे।”
साइकेट्रिस्ट बंसल, “तो क्या ये बात दुष्यंत जानता है कि आप उसके शरीर में रहते हो एक दूसरी पर्सनालिटी बनकर?”
अघोरी नंदा, “नहीं, और ये पता भी नहीं लगना चाहिए क्योंकि इसकी माँ का बोया हुआ जहर का बीज आज एक पेड़ बन चुका है। वो अपनी माँ से जितना प्यार करता है, उतनी मुझसे नफरत।
इसीलिए अगर दुष्यंत को ये पता चल गया कि उसका बाप आज उसके ही मन के किसी कोने में रहता है, तब वो खुद को बाहर निकालेगा। इसीलिए ये राज़ बस आप लोगों तक ही रहे तो अच्छा है।”
इतना कहकर दुष्यंत के पिता अघोरी नंदा वापस दुष्यंत के जहन में समा गए।
जज के सामने भी ये केस पूरी तरह से साफ हो चुका था। मिस्टर भट्ट कुछ नहीं कर सके और जज ने इस केस का फैसला दुष्यंत के हक़ में सुनाया और उसे बाइज्जत बरी कर दिया।
आज दुष्यंत एक आज़ाद नागरिक है, अपनी जिंदगी जी रहा है। लेकिन आज भी जब मुझे दुष्यंत का ख्याल आता है, तो मैं बेचैन हो उठती हूँ।
एक बेटा, जो अपने बाप से बहुत नफरत करता है, पर वही बाप आज भी अपने बेटे के जहन में कैद है, उसकी रक्षा करता है।
शायद सही कहा है किसी ने… हम लोग माँ के प्यार को याद रखते हैं, लेकिन एक पिता के बलिदान, पश्चाताप, और त्याग को भुला देते हैं
दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!