आलसी पति | Aalsi Pati | Husband Wife Story | Pati Patni Ki Kahani | Hindi Kahani | Family Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” आलसी पति ” यह एक Husband Wife Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Family Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में पुट्ठा नाम का बेहद आलसी और कामचोर व्यक्ति रहा करता था। उसके आलसीपन के कारण गांव के सभी लोग उससे बेहद परेशान थे।

वह सारा दिन पड़े-पड़े बस ऊंचे-ऊंचे सपने देखा करता था। आज भी वो एक खेत में एक पेड़ के नीचे आंखें बंद करके लेटा हुआ था कि तभी खेत के मालिक चौधरी की आवाज उसके कानों में टकराई।

चौधरी, “यहां क्या कर रहा है पुट्ठा? तुझे मैंने यहां काम पर रखा है या आराम करने के लिए?”

पुट्ठा, “कौन है भाई, जिसने मुझे सपनों से जगा दिया?”

चौधरी, “अरे! अपनी सोई हुई आंखें फाड़कर तो देख, मैं हूँ इस खेत का मालिक!”

पुट्ठा, “अरे! आप हैं चौधरी जी? ये क्या… अभी-अभी तो आकर लेटा हूं चौधरी जी। क्या आपके खेत में काम करके कुछ देर आराम भी नहीं कर सकते?”

चौधरी, “पिछले तीन घंटों से तुझे इसी पेड़ के नीचे लेटा देख रहा हूँ। बाकी सब लोग मेहनत से फसल काटने में जुटे हुए हैं, और तू यहाँ पर ऐसे आराम कर रहा है जैसे कि तू इस खेत का मालिक हो।”

पुट्ठा, “चिंता मत कीजिए, चौधरी साहब। एक दिन वो भी आएगा जब मैं तुम्हारे जैसे ना जाने कितने खेतों का मालिक बनूँगा।

दरअसल, बात ये है कि ये छोटे-मोटे काम मेरे लिए नहीं बने हैं। मैं कुछ बहुत बड़ा करने के लिए बना हूँ।”

चौधरी, “पुट्ठा, मैं तो तुझे धक्के देकर उसी दिन निकाल देता जिस दिन मैंने तुझे काम पर रखा था, मगर क्या करूँ?

तेरी पत्नी के आंसू देख कर मैं पिघल गया। लेकिन अब मैं और ज्यादा तुझे बर्दाश्त नहीं कर सकता।

मैं यहाँ पर मजदूरों को काम करने की तनख्वाह देता हूँ, आराम करने की तनख्वाह नहीं देता।”

पुट्ठा, “ठीक है। अगर आप मुझे काम पर नहीं रखना चाहते, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन दस दिन जो मैंने जी-तोड़ मेहनत की है, उसके पैसे तो मुझे दे दो।”

चौधरी, “तेरा दिमाग तो ठीक है पुट्ठा? पिछले दस दिनों में तूने 12 घंटों में 12 मिनट भी काम नहीं किया। किस बात के पैसे?”

पुट्ठा, “देखो चौधरी, किसी गरीब को दबाना अच्छी बात नहीं होती। अरे! आपने फिल्मों में नहीं देखा क्या?

जब भी कोई अमीर आदमी किसी गरीब को उसकी तनख्वाह नहीं देता था, तो वो गरीब डाकू बन जाता है।”

चौधरी, (हंसते हुए) “डाकू बनने के लिए भी बहुत मेहनत लगती है पुट्ठा, पता है तुझे? बंदूक उठानी पड़ती है, घुड़सवारी करनी पड़ती है।

तुझसे तो वो भी नहीं होगा। इससे पहले कि मैं तुझे धक्के देकर यहाँ से निकाल दूं, सीधी तरह से यहाँ से मेरी आँखों के सामने से दूर हो जा।”

चौधरी का गुस्सा देखकर पुट्ठा डर गया और चुपचाप अपने घर चला गया। दोपहर के वक्त पुट्ठा को घर पर देखकर उसकी पत्नी शर्मिली को गुस्सा आ गया।

शर्मिली, “अरे! इतनी जल्दी काम से कैसे आ गए? तुम्हारा काम तो शाम को खत्म होता है ना?”

पुट्ठा, “चौधरी ने मुझे काम से निकाल दिया।”

शर्मिली, “काम से निकाल दिया? लेकिन क्यों?”

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पुट्ठा, “अरे! मैं उसके खेतों में दस मजदूरों के बराबर जी-तोड़ मेहनत करके काम कर रहा था। कुछ मिनट पेड़ के नीचे आराम करने के लिए क्या बैठ गया, वो बुरी तरह से भड़क गया।”

शर्मिली, “हे भगवान! बड़ी मुश्किल से तो चौधरी के सामने आंसू बहाकर तुम्हें काम दिलवाया था, लेकिन तुम्हें वहाँ से भी निकाल दिया गया।

आखिर तुम्हारा ये आलसपन कब जाएगा? कब तुम कामचोर से एक मेहनती इंसान बनोगे? गांव की सारी औरतें मेरा मजाक उड़ाती हैं।”

पुट्ठा, “अरे! तुम उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान मत दिया करो। कितनी बार कहा है कि औरतों की तो आदत ही है एक दूसरे का मजाक बनाना?”

शर्मिली, “तुम्हें अपनी पत्नी का मजाक उड़वाना तो मंजूर है, लेकिन काम करना मंजूर नहीं है।”

पुट्ठा, “अरे! और पत्नियों को तो शिकायत रहती है कि उनके पति उनके साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते। तुम्हें तो खुश होना चाहिए, शर्मीली कि तुम्हारा पति तुम्हारे हमेशा आसपास रहता है।”

शर्मीली, “इस तरह से तुम्हारे आसपास होने से मुझे क्या फायदा? इससे तो अच्छा तुम गायब हो जाओ।

रसोईघर में कल रात ही आटा खत्म हो गया और राशन भी बिल्कुल नहीं है। मुझे कोई मतलब नहीं है, कहीं से भी लाओ पर राशन लेकर आओ।”

पुट्ठा, “मैं राशन कहाँ से लेकर आऊंगा, शर्मिली? चौधरी ने मुझे एक पैसा भी नहीं दिया।”

शर्मिली, “पैसे काम करने के लिए दिए जाते हैं, आराम करने के लिए नहीं। जो भी हो, मैं तुम्हें काम पर लगवाते-लगवाते तंग आ चुकी हूँ।

जाओ, किसी से उधार मांग कर लाओ या डाका डालकर लाओ, लेकिन आज तुम्हें महीने भर का राशन लेकर आना है।

उसके बाद तुम महीने भर चाहे तो आराम से सोते रहना, मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगी। और सुनो, राशन बगैर घर में घुस मत जाना!”

इतना कहकर शर्मिली ने वहाँ रखा चाकू गुस्से से उठा लिया।

पुट्ठा, “ये क्या कह रही हो, शर्मिली? मैं तुम्हारा पति हूँ। क्या तुम मुझे मारकर विधवा बनोगी?”

शर्मिली, “इससे तो अच्छा मैं विधवा ही सही रहूँगी। कम से कम मुझे सुकून तो होगा कि मैं विधवा हूँ, मेरा पति मर चुका है।”

शर्मिली का गुस्सा देखकर पुट्ठा तुरंत बाहर आ गया और बड़बड़ाते हुए बोला।

पुट्ठा, “हे भगवान! बच गया आज। ये शर्मिली को आज क्या हो गया? आज तो मेरी खैर नहीं।

आज तो शर्मिली ने साक्षात काली का रूप ले लिया। लेकिन मैं राशन कहाँ से लेकर आऊंगा?

गांव के हर व्यक्ति से तो मैं उधार मांग चुका हूँ। कोई तरकीब तो निकालनी पड़ेगी, नहीं तो आज शर्मिली मुझे नहीं छोड़ेगी।”

शर्मिली, (अंदर से चीखकर) “बाहर खड़े मत रहो, महीने भर का राशन लेकर आओ!”

पुट्ठा, “जाता हूँ, जाता हूँ।”

पुट्ठा तेजी से बाजार की ओर चल दिया, मगर कुछ ही दूर जाकर वह थक गया।

पुट्ठा, “कितनी गर्मी है! मुझे तो थकान सी महसूस हो रही है। एक काम करता हूँ, किसी पेड़ की छाया में बैठ कर थोड़ा आराम कर लेता हूँ।

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और वहीं बैठकर सोचता हूँ कि ये राशन पानी का जुगाड़ कहाँ से किया जाए?”

पुट्ठा एक पेड़ के नीचे जाकर आँख बंद करके लेट गया, तभी उसके कानों में किसी साधू की कड़कदार आवाज टकराई।

साधू, “उठ जा कामचोर! यहाँ क्यों लेटा है?”

पुट्ठा ने देखा कि एक साधू उसे गुस्से से घूर रहा था।

पुट्ठा, “अब तुम्हें मेरे यहाँ आराम करने से क्या दिक्कत होने लगी, साधु जी? मुझे परेशान मत करो। अच्छा-खासा मैं सपनों की दुनिया में खोया हुआ था।”

साधू, “जिस पेड़ के नीचे तू सपने देख रहा है, वो पेड़ मेरा है।”

पुट्ठा, “क्यों? इस पेड़ पर तुम्हारा नाम लिखा है क्या?”

साधू, “इस समय मैं इस पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या करता हूँ।”

पुट्ठा, “तपस्या करनी है तो हिमालय की चोटी पर जाकर तपस्या करो, भगवान प्रसन्न होंगे।”

साधू, “मैं तेरे बारे में सब जानता हूँ।”

पुट्ठा, “तो इसमें नई बात क्या है? मैं इसी गांव का रहने वाला हूँ, यह तो सभी जानते हैं।”

साधू, “मैं जानता हूँ कि तू इस वक्त क्या सोच रहा है।”

पुट्ठा, (उठकर खड़ा होते हुए) “क्या सोच रहा हूँ, बताओ?”

साधू, “तू सोच रहा है कि तू महीने भर का राशन कहाँ से लेकर आएगा और कैसे लेकर आएगा?”

पुट्ठा, “अरे! आप तो वाकई बहुत पहुंचे हुए साधू हैं। लेकिन इससे मुझे क्या घंटा फर्क पड़ता है?

अरे! मन की बात है तो बहुत से साधू बता देते हैं पर मदद कोई नहीं करता। पुट्ठा की बात सुनकर साधू मुस्कुराते हुए बोला।

साधू, “अगर मैं तेरी मदद करूँगा, तो क्या तू मेहनती बनेगा?”

पुट्ठा, “जब तुम मेरी मदद करके मुझे धन दौलत दे दोगे तो मुझे मेहनती बनने की क्या जरूरत है? लेकिन वो सब बातें बाद की हैं, तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो?”

पुट्ठा की बात सुनकर साधू ने अपना हाथ हवा में घुमाया कि अचानक एक मुर्गी साधू के हाथ में आ गई।

पुट्ठा, “अरे साधू जी! आप तो जादूगर भी मालूम होते हो?”

साधू, “ये जादू नहीं मूर्ख, सिद्धि है। तुझ जैसा आम इंसान नहीं समझेगा। अब मेरी बात को ध्यान से सुन, इस मुर्गी को अपने घर ले जा।”

पुट्ठा, “क्या साधु जी..? इस मुर्गी का भला मैं अचार डालूंगा? अरे! मैं और मेरी पत्नी तो शाकाहारी हैं।”

साधू, “मूर्ख व्यक्ति, पहले मेरी बात तो पूरी सुन। ये मुर्गी रोज़ एक अंडा देगी।”

पुट्ठा, “समझ गया साधू महाराज, आगे बोलने की जरूरत नहीं हैं और मैं उस संडे को बाजार में बेच दूं।”

साधू, “मूर्ख, ये तुझे रोज़ सोने का अंडा देगी। तू सोने के अंडे को रोज़ बाजार में बेच आना। धीरे धीरे करके तू अमीर हो जायेगा और तेरे सारे सपने पूरे हो जाएंगे।”

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पुट्ठा, “इसमें तो बहुत वक्त लग जाएगा, साधू जी। मैं रोज़ रोज़ करके इसका अंडा देने का इंतजार नहीं कर सकता।

मुझे आप ऐसी मुर्गी दे दीजिए जो एक बार में ही ढेर सारे सोने के अंडे दे दे और फिर ये मुर्गी तो कल से अंडा देगी।

मुझे तो अभी महीने भर का राशन लाना है। साधू ने क्रोधित होकर अपना हाथ दोबारा हवा में लहराया और मुर्गी गायब हो गई।

साधू, “तू सिर्फ कामचोर ही नहीं, बल्कि मूर्ख भी है।”

पुट्ठा, “अब जो भी हो साधू जी, मुझे तो तुरंत अमीर बनना है।”

साधू ने अपना हाथ फिर से लहराया कि तभी उसके हाथों में एक कुल्हाड़ी आ गई।

साधू, “ये ले, इस कुल्हाड़ी को अपने साथ लेकर जा। इस कुल्हाड़ी की खासियत ये है कि तू जिस पेड़ पर भी चलाएगा, ये कुल्हाड़ी उस पेड़ को अपने आप काट देगी और तू उन लकड़ियों को बाजार में बेच आना।”

पुट्ठा, “ये कैसी बातें कर रहे हैं, साधू जी? अगर कुल्हाड़ी ही देनी थी तो सोने की देते। अब आप ही बताइए, लकड़ियां बेचने तो मुझे बाजार जाना पड़ेगा ना? उसमें मेहनत लगेगी, वो मैं नहीं कर सकता।”

पुट्ठा की बात सुनकर साधू बुरी तरीके से झुंझला गया।

साधू, “तो फिर तुझे क्या चाहिए?”

पुट्ठा बहुत ही गहरी सोच में डूबते हुए बोला, “फिलहाल तो मुझे आपके पास जितने भी पैसे हो, वो मुझे दे दीजिए ताकि मैं महीने भर का राशन भरवा लूँ।”

पुट्ठा की बात सुनकर साधू ने एक नोट निकाल कर पुट्ठा को थमा दिया।

साधू, “ये ले।”

पुट्ठा, “ये तो सिर्फ ₹50 हैं। इसे महीने भर का राशन तो क्या, आज का भी राशन नहीं आ पाएगा?

आपको पता भी है, महंगाई कितनी हो गई है? कहाँ तो आप सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मुझे दे रहे थे और आपकी अपनी जेब से निकला क्या… सिर्फ ₹50?”

मूर्ख व्यक्ति, “मैं अपने पास सिर्फ उतने ही पैसे रखता हूँ जितना मैं अपने पेट में अन्न ग्रहण कर सकूँ।

बाकी सिद्धि और मोहमाया की बातें तेरे जैसा बेवकूफ क्या जाने? तेरा कुछ नहीं हो सकता।”

इतना कहकर साधू वहाँ से चला गया।

पुट्ठा, “चलो, कम से कम ₹50 तो मिले।”

₹50 लेकर पुट्ठा बाजार घूमने लगा। तभी उसकी नजर गांव में बनी एक नई छोटी सी दुकान पर पड़ी जहाँ पर गर्म गर्म समोसे बन रहे थे।

पुट्ठा, “लगता है ये दुकान नहीं है और समोसे बनाने वाला भी। इस गांव में नया लगता है।

ये समोसे की खुशबू बहुत अच्छी आ रही है। चलो एक काम करता हूँ, कुछ समोसे इसी ₹50 के खरीद लेता हूँ।

अगर राशन का जुगाड़ नहीं हुआ तो शर्मीली समोसे खाकर पेट भर लेगी। कम से कम समोसे खाकर उसका गुस्सा तो शांत हो जाएगा।”

पुट्ठा सीधा समोसे की दुकान पर चला गया।

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पुट्ठा दुकानदार से बोला, “लगता है इस गांव में नये हो?”

दुकानदार, “जी बाबू साहब, कुछ दिन पहले ही मैंने दुकान खोली है। सुना है इस गांव में काफी खुशहाली है।”

पुट्ठा, “हाँ हाँ, वो तो है। वैसे एक समोसा कितने का दे रहे हो?”

दुकानदार, “₹5 का एक समोसा है?”

पुट्ठा, “इस महंगाई ने भी कमर तोड़ दी है भैया। हमारे बचपन में ₹1 के पांच समोसे आया करते थे।”

दुकानदार, “वो जमाने लद गए, साहब। शहर में तो ये समोसा ₹10 का मिलता है।”

पुट्ठा, “सही है। ये लो ₹50… 10 समोसे का पैकेट बना देना, मैं कुछ देर बाद आपसे आकर ले लूँगा। ठीक है?”

दुकानदार, “ठीक है।”

पुट्ठा समोसे वाले को पैसे देकर बाजार में इधर उधर नजरें दौड़ाने लगा। तभी उसकी नजर एक राशन की दुकान पर पड़ी।

पुट्ठा उस दुकान में घुस गया,

पुट्ठा, “येलो झोला और महीने भर का राशन भर दो और पैसे हिसाब में लिख लेना, मैं अगले महीने दे दूंगा। ठीक है?”

दुकानदार, “अरे! तेरा दिमाग तो ठीक है, पुट्ठा? अबे, तूने तो पिछली उधारी ही नहीं चुकाई।

पिछले छह महीने से तू मुझसे यही कह रहा है कि कल दे दूंगा, कल दे दूंगा। मेरे पैसे देना तो दूर, तू उल्टा उधार मांगने वाला चला आया। भाग यहां से।”

दुकानदार, “अरे! अगर राशन नहीं देना तो अकड़ क्यों रहे हो, भैया? आपको किसी गरीब की बेइज्जती करते हुए शर्म नहीं आती?”

दुकानदार, “अबे, तू पिछला उधार दिया नहीं और नया उधार मांगने आ गया। तेरी आरती उतारूं क्या?

देख पुट्ठा, मैं तुझे ₹1 का भी उधार नहीं देने वाला। सबसे पहले पिछली उधारी चुका और उसके बाद जो भी सामान खरीदना है, नगद खरीद।”

तभी दुकानदार के पास उसका नौकर भोला आ गया।

दुकानदार, “अरे भोला! वो जो समोसे वाला है, उससे तो मेरी पत्नी का हार छुड़वा आया क्या?”

भोला, “हाँ साहब, मैंने उसे पूरे पैसे दे दिए।”

यह सुनकर पुट्ठा सोच में पड़ गया। उसने आँखों के इशारे से भोला को अपनी ओर बुलाया।

पुट्ठा, “इतनी बड़ी राशन की दुकान का मालिक होकर इसने उस समोसे वाले को अपनी पत्नी का हार क्यों दे दिया?”

भोला, “अरे वो समोसे वाला जो है ना, समोसे के साथ साथ ब्याज का भी काम करता है।

मालिक को पैसों की जरूरत थी, तो उन्होंने अपनी पत्नी का हार समोसे वाले के यहाँ गिरवी रख दिया। आज पैसे देकर वो हार छुड़वा लिया।”

तभी पुट्ठा के दिमाग में एक विचार आया।

पुट्ठा, “बड़ा कर रहा था ना, अभी तुझे बताता हूँ।”

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कुछ समय बाद…

पुट्ठा, “पिछली उधारी कितनी थी मेरे ऊपर?”

दुकानदार, “सब मिलाकर पूरे ₹5000 रुपए।”

पुट्ठा, “मैं जानता था तुम मुझे उधार नहीं दोगे, इसीलिए मैं अपनी पत्नी की अंगूठी चुपके से ले आया था और मैंने उसे ₹10,000 में समोसे वाले के पास गिरवी रख दिया था।

तुम एक काम करो, पूरे ₹5000 का राशन मुझे दे दो और अपने नौकर भोला को मेरे साथ समोसे वाले के यहाँ भेज दो। मैं समोसे वाले से पैसे दिलवा दूंगा।”

दुकानदार, “तेरी बीवी के पास सोने की अंगूठी कहाँ से आई बे?”

पुट्ठा, “अरे! मैं काम चोर हूँ, लेकिन मेरी बीवी अच्छे परिवार की है। उस बेचारी को तो पता भी नहीं है कि मैंने उसकी अंगूठी गिरवी रख दी है।”

दुकानदार ने पुट्ठा की बात पर यकीन कर लिया और पूरे ₹5000 का राशन उसे दे दिया और भोला को पुट्ठा के साथ भेज दिया।

पुट्ठा उस समोसे वाले से दूर जाकर खड़ा हो कर बोला, “अरे, समोसे वाले भैया!”

समोसे वाला, “जी भैया।”

पुट्ठा, “वो 10 का पैकेट तुम भोला को दे देना।”

समोसे वाला, “ठीक है भैया।”

भोला ने समझा कि पुट्ठा ₹10,000 की बात कर रहा है।

पुट्ठा, “10 का पैकेट ले, अपने मालिक के मुँह पर मार देना।”

इसके बाद पुट्ठा घर चला आया। राशन देखकर शर्मीली हैरत में पड़ गई।

शर्मीली, “ये महीने भर का राशन कहाँ से ले आए तुम?”

पुट्ठा, “अरे! तुमने ही तो कहा था चोरी करके लाओ या डाका डाल कर लाओ, कहीं से भी लाओ तो मैं ले आया भई।”

शर्मिली, “हे भगवान! उस वक्त में गुस्से में थी। तुमने कहीं वास्तव में चोरी तो नहीं की?”

पुट्ठा, “अरे! नहीं नहीं शर्मीली, इस बार मैंने अपना तेज दिमाग का इस्तेमाल किया है। अब देखना, कुछ ही दिनों में मैं तुम्हे रानी बना दूंगा।”

पुट्ठा ने इतना कहा ही था कि तभी राशन वाला पुलिस लेकर वहाँ पहुँच गया और पुट्ठा की सारी करतूत पुट्ठा की पत्नी को बता दी।

पुलिस वाला, “लोगों को बेवकूफ बनाता है बे? चल थाणे ले जाके तेरी वो पिटाई करूँगा कि तू लोगों को बेवकूफ बनाना भूल जाएगा।”

पुट्ठा, “मुझे माफ कर दो, थानेदार साहब। मैं आइंदा ऐसी हरकत नहीं करूँगा।”

थानेदार, “रे, तू माफी के लायक नहीं है। तू एक शातिर ठग है। फिल्मी स्टाइल में लोगों से ठगी करता है? जरूर तूने राजू चाचा मूवी देखी होगी।

पुट्ठा, “मैंने ऐसी कोई फ़िल्म नहीं देखी, थानेदार साहब।”

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थानेदार, “अबे, अगर ऐसी कोई मूवी नहीं देखी तो फिर उसी स्टाइल में ठगी करने का विचार तेरे दिमाग में कैसे आ गया?”

शर्मीली, “इन्हें माफ़ कर दीजिए, थानेदार साहब। इनकी तरफ से मैं माफी मांगती हूँ।

ये जो राशन दुकानदार साहब को बेवकूफ बना कर लाये हैं, वो पूरा राशन वापस करने को तैयार हूँ।”

इतना कहकर शर्मीली ने सारा राशन उस दुकानदार को पकड़ा दिया। पुलिस वाले को तो शर्मीली के ऊपर तरस आ गया और उसने पुट्ठा को छोड़ दिया।

शर्मीली, “देखो तुमने, अब तो पुलिस भी हमारे दरवाजे पर आ गई।”

पुट्ठा, “मुझे माफ़ कर दो शर्मीली, मैं कल से अपने काम चोरी की आदत छोड़ दूंगा और मेहनती बन जाऊंगा।

इससे अच्छा तो मैं उस साधू की बात मान लेता तो मैं ज्यादा फायदे में रहता।”

शर्मीली, “कौन सा साधू और कौन सी बात?”

पुट्ठा ने अपनी पत्नी को सारी घटना बता दी।

शर्मीली, “साधू ने बिल्कुल सही कहा था, तुम वाकई एक बेवकूफ आदमी हो। अपने नाम के मुताबिक पुठा के पुट्ठा ही रहोगे।”

उस रात शर्मीली और पुट्ठा भूखे ही सो गए।

और अगली सुबह शर्मीली जब आंख खोलती है तो शर्मिली ने देखा उसके बगल में कुछ पैसे रखे हुए थे। शर्मिले ने तुरंत अपने पति पुट्ठा को उठाया।

शर्मीली, “ये पैसे कहाँ से आए?”

पैसों को देखकर पुठा सोच में पड़ गया। तभी सामने वही साधू प्रकट होकर बोला।

साधू, “ये पैसे मैंने रखे हैं, बेवकूफ। क्योंकि तूने मुझसे पैसे ही मांगे थे। चाहता तो मैं तुझे सोना, चांदी भी दे सकता था। लेकिन उससे तू और कामचोर हो जाता।

इन पैसों से अपने घर का महीने भर का राशन ले आना और इनमे से जो कुछ पैसे बचेंगे तो उन बचे हुए पैसों से कोई छोटा मोटा कारोबार कर लेना और मेहनत से पीछे मत हटना।”

पुट्ठा, “मुझे माफ़ कर दीजिये, साधू महाराज। मैं मेहनत से अब पीछे नहीं हटूंगा।”

साधू मुस्कुराता हुआ वहाँ से गायब हो गया और पुट्ठा देखते ही देखते मेहनती और एक सफल कारोबारी बन गया।

कुछ ही सालों में वह गांव का सबसे अमीर आदमी बन गया। आज पुट्ठा की गिनती सफल व्यापारियों में होती है।

अब जो तुने किमती चीज़ का दुरुपयोग किया है उसका किमती जुर्म होगा।”

पुट्ठा घबरा गया, “ठाणे में नहीं जाऊँगा। मेरी पत्नी का हार वापिस कर दो।”

पुलिस वाला, “तो तुम उसकी चोरी कर रहे थे?”

पुट्ठा, “नहीं, वह हार तो मैंने गिरवी रखा था।”

थानेदार, “तू जितना बोलता है, उससे ज्यादा बेवकूफ है। तेरे हाथ में अब एक ही रास्ता है। अब तू यही पर रहना।”

पुट्ठा थाने में ही रह गया। अब वह समझ गया कि अब उसे अपने नाम का सही उपयोग कर पैसा कमाना होगा।


दोस्तो ये Husband Wife आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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