हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया कुआं ” यह एक Bhutiya Story है। अगर आपको Darawani Stories, Horrible Stories या Bhutiya Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
चंदन नगर में विमला काकी, जो कि गांव की सबसे बुजुर्ग औरत है, चौपाल पर बैठकर हर रोज़ बच्चों को कहानियाँ सुनाती है। सभी बच्चों को विमला काकी की कहानियाँ बहुत पसंद आती हैं। वो रोज़ चौपाल पर बैठकर बच्चे उनकी कहानियों का आनंद लेते।
विमला काकी, “अच्छा बच्चों, तुम्हें पता है… हमारे गांव में बहुत पहले एक नरभक्षी दानव रहता था? उसके लम्बे-लम्बे नाखून थे, बड़े-बड़े बाल, बड़े-बड़े दांत और बिल्कुल एक भालू की तरह था वो।”
प्रताप, “विक्रम, देख ज़रा… सभी बच्चे विमला काकी की कहानियाँ सुनकर मस्त हो जाते हैं।”
विक्रम, “हाँ भाई, और रात में हमें सोने नहीं देते।”
फिर दोनों बच्चे हंसने लगते हैं।
बच्चा, “अच्छा, अब वो दानव कहाँ है?”
विमला काकी, “अब वो दानव हमारे गांव के कुएं में है।”
बच्चा, “क्या… कुएं में?”
विमला काकी, “हाँ, हमारे गांव के कुएं में। अब जो भी बच्चा पढ़ाई नहीं करेगा, जिद करेगा, वो दानव आकर उसे खा जाएगा।”
दूसरा बच्चा, “क्या… खा जाएगा?”
विमला काकी, “चलो अब जाओ यहाँ से और जाकर सो जाना।”
सभी बच्चे वहाँ से चले जाते हैं। सभी बच्चे खेलते-खेलते उस कुएं तक पहुँच जाते हैं।
लडका, “देख बंकू, अगर तूने मेरी गेंद नहीं दी, तो तुझे वो राक्षस खा जाएगा।”
लड़की, “हा हा हा… तुझे अभी भी वो राक्षस वाली बात याद है? अरे! वो एक कहानी थी, बस और कुछ नहीं। अगर सच में कोई राक्षस होता तो क्या हमारे घर वाले हमें यहाँ आने देते?”
बंकू, “और अगर राक्षस हुआ तो?”
लडका, “अरे! तू भी किन बातों में विश्वास करता है? चल, मैं तुझे उस कुएं में दिखाता हूँ, कोई राक्षस-वाक्षस नहीं है।”
फिर सारे बच्चे उस कुएं के पास चले जाते हैं और उसका ढक्कन खोल देते हैं। तभी उन्हें बहुत डरावनी आवाजें सुनाई देती हैं। सभी बच्चे डर के मारे वहाँ से भाग जाते हैं।
शाम को जुगनू अपने खेत में कुछ काम कर रहा था और घर जाते समय उस कुएं के पास से गुजरा कि अचानक कुएं के पास से वो गायब हो गया। गांव वाले उसे ढूंढ-ढूंढ कर परेशान हो गए, लेकिन वह नहीं मिला। तब से रात को जो कोई भी उस कुएं की तरफ जाता, वहाँ से फिर लौट कर नहीं आता।
गांव के सभी लोग चौपाल पर बात करते हैं।
विक्रम, “मुखिया जी, हमें कुछ करना होगा। कुछ दिनों से जो कोई भी उस कुएं की तरफ जाता है, लौटकर नहीं आता। गांव में इतने सारे हादसे हो गए हैं। अब ना जाने वो कुआं किस-किस को खा जाएगा। हमारा शहर जाना बहुत जरूरी हो गया है।”
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मुखिया, “हां, अब तो मुझे भी फिक्र होने लगी है। जब तक हम इस समस्या का समाधान ना ढूंढ लें, तब तक कोई भी रात में उस कुएं की तरफ नहीं जाएगा।”
तब से गांव के लोगों ने रात में उस रास्ते से आना-जाना बंद कर दिया। फिर एक दिन, प्रताप के बेटे बंकू को बहुत तेज़ बुखार आ जाता है और शहर जाने का बस वही एक रास्ता था।
बंकू की हालत बिगड़ने लगी, तो प्रताप बंकू को लेकर उस कुएं वाले रास्ते से ही शहर के लिए निकला।
उर्मिला, “सुनिए जी, जल्दी-जल्दी चलिए। शाम हो गई है। हमारा यहाँ ज्यादा देर रहना खतरे से खाली नहीं है।”
प्रताप, “अरे! हाँ-हाँ, चल तो रहा हूँ।”
बंकू, “पिताजी, क्या सच में इस कुएं में कोई राक्षस रहता है?”
प्रताप, “हाँ बेटा, लगता तो ऐसा ही है। पर अब जल्दी-जल्दी चलो।”
बंकू दौड़ कर उस कुएं के पास चला जाता है।
उर्मिला, “अरे! अब खड़े क्या हो, पकड़ो उसे। देखो वो उस कुएं की तरफ जा रहा है।”
प्रताप, “अरे! तो मैं क्या करूँ? सुबह से तो बुखार में था और अब देखो, कैसे इधर-उधर दौड़ रहा है? बंकू…बंकू, रुक जा।”
बंकू उस कुएं में झांक कर देखता है और प्रताप उसे पकड़ने के लिए झपट्टा मारता है। तभी बंकू का पैर एकदम से फिसल जाता है और वह कुएं में जाकर गिर जाता है।
उर्मिला, “बंकू… बंकू बेटा, अरे! अब क्या होगा? आप निकालिए मेरे बेटे को। मुझे नहीं पता, आप कैसे भी इसे कुएं से बाहर निकालिए, मुझे बस मेरा बेटा चाहिए।”
प्रताप, “अरे! हाँ भाग्यवान, मुझे भी मेरा बेटा उतना ही प्यारा है जितना कि तुझे। चल, हम गांव से मदद लेकर आते हैं।”
दोनों गांव की तरफ जाते हैं। गांव वाले उर्मिला को रोते देख इकट्ठा हो जाते हैं।
आदमी, “क्या हुआ भाभी? आप रो क्यों रही हो? और प्रताप भैया, आप भी बहुत घबराए हुए लग रहे हो।”
प्रताप, “अरे भाई! चलो जल्दी हमारी मदद करो। बंकू… वो बंकू उस कुएं में गिर गया है।”
सभी लोग बहुत ज्यादा हैरान हो जाते हैं।
आदमी, “क्या… बंकू कुएं में गिर गया? हे भगवान! अब क्या होगा?”
उर्मिला, “हाँ चलिए, आप सभी चलिए और मेरे बेटे बंकू को कुएं से बाहर निकालने में हमारी मदद कीजिए।”
मुखिया जी, “नहीं बेटी, इस वक्त तो कोई भी गांव वाला तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। तुम्हें पता है ना कि उस कुएं के पास रात को कोई नहीं जाता है?”
उर्मिला, “तो ठीक है, मैं खुद ही बंकू को बचाने जाऊंगी।”
विक्रम, “अरे प्रताप भैया! आप रोकिए ना उर्मिला भाभी को। आपको पता है ना कि उस कुएं की तरफ रात को जाना खतरे से खाली नहीं है। अगर वो कुआं इन्हें भी खा गया तो? और वैसे भी हमें थोड़ी समझदारी से काम लेना होगा। क्या आप यही चाहते हो कि आपकी उर्मिला भाभी को भी खा ले?”
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प्रताप, “मेरा उर्मिला के सिवा इस दुनिया में और कोई नहीं है। मैं उर्मिला को उस कुएं के चंगुल में फंसने के लिए नहीं भेजूंगा और अपने बेटे को बचाने के लिए मैं खुद ही उस कुएं में जाऊंगा।”
प्रताप उस कुएं की तरफ जाने लगता है।
विमला काकी, “रुक जा बेटा! जितना प्यारा बंकू तुम दोनों को है, उतना हमें भी। पर अगर तुम दोनों भी उस कुएं की तरफ गए और भगवान न करे तुम्हें कुछ हो गया तो…। फिक्र मत करो बेटा, भगवान कुछ रास्ता जरूर दिखाएंगे, बस तुम थोड़ा सा सब्र करो।”
फिर उर्मिला गांव के शिव गौरी मंदिर में जाने लगती है। सभी गांव वाले भी उसके पीछे-पीछे हो लेते हैं और बंकू की सलामती की प्रार्थना करते हैं।
दूसरी तरफ बंकू, जोकि उस कुएं में गिर गया था, लेकिन किस्मत से उस दिन पूर्णिमा थी और वो राक्षस गहरी नींद में सोया था।
बंकू, “अरे! कुएं में किसी के खर्राटों की आवाज आ रही है।”
वो आगे चलकर देखता है। उसे एक दानव सोया हुआ दिखता है।
बंकू, “अरे बाप रे! इतना भयानक दानव। कहीं ऐसा तो नहीं कि विमला काकी की कहानियों में जो नरभक्षी दानव था, यही हो? मतलब विमला काकी की कहानियां सच थीं। अगर ऐसा है तो ये दानव मुझे कच्चा चबा जाएगा। मुझे जल्दी यहाँ से बाहर निकलना होगा, पर निकलूं कैसे? यहाँ से बाहर जाने का रास्ता कहाँ होगा?”
बंकू उस राक्षस को देखकर बहुत घबरा गया था।
बंकू, “मुझे मां और पिताजी की बात मान लेनी थी। मां और पिताजी बाहर जाने किस हाल में होंगे? और ये कुआं इतना गहरा है कि चढ़कर निकलना नामुमकिन है। मुझे कोई रास्ता दिखाओ भगवान।”
वह आसपास बाहर जाने का रास्ता देखता है, तभी उसे एक अजीब सा निशान दिखता है। वह उस निशान को छूता है कि तभी अचानक एक पतली सी सुरंग का रास्ता खुल जाता है और उसे वहाँ पर और भी इंसान दिखाई देते हैं जो कि अधमरी हालत में थे।
दानव, “आज कितने दिनों बाद मुझे किसी इंसान की खुशबू आ रही है?”
तभी आहट सुनकर बंकू कहीं छुप जाता है।
बंकू, “अरे बाप रे! अब मैं यहाँ से बाहर कैसे निकलूंगा? अरे! वो पिशाच… वो यहाँ से कहाँ गया?”
तभी उसके पीछे से गुर्राने की आवाज आती है।
बंकू, “हे भगवान! मेरी रक्षा करना।”
बंकू पलट कर देखता है तो उसके सामने वह नरभक्षी दानव खड़ा होता है।
दानव, “आज तो मुझे एक और शिकार मिल गया। अब मैं जल्दी श्राप से मुक्त हो जाऊंगा।”
पर वो दानव जैसे ही बंकू को हाथ लगाता है, वैसे ही बंकू बचकर भाग जाता है।
दानव, “अरे! ये क्या हुआ? कहाँ गया वो?”
फिर दानव उसकी खुशबू सूंघ कर उसकी तरफ बढ़ने लगता है। बंकू पास पड़े हुए कीचड़ को अपने ऊपर लगा लेता है ताकि दानव को उसकी बू न आए और फिर सुरंग के एक कोने में जाकर छुप जाता है।
वह सुरंग में फंसे हुए लोगों से पूछता है।
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बंकू, “अरे काका! आप यहाँ सब कब से कैद हैं? और इस दानव ने आपको खाया नहीं?”
काका, “अरे बेटा! अगर ये दानव मुझे खा लेता तो मुझे तड़पना नहीं पड़ता। पर जब से इस दानव ने मुझे कैद किया है, तब से मैं रोज़ रोज़ मर रहा हूँ। ये दानव थोड़ी-थोड़ी करके हर रोज़ हमारी जान खींच लेता है।”
बंटू, “ये तो बिलकुल विमला काकी की कहानियों जैसा ही है।”
काका, “बेटा, तुम यहाँ से निकलने का जल्दी ही रास्ता ढूंढ लो, नहीं तो ये दानव तुम्हें भी तड़पा-तड़पाकर मार डालेगा।”
बंकू, “नहीं काका, मैं आप सबको ऐसे छोड़कर अकेला नहीं जाऊंगा।”
दूसरी तरफ, उर्मिला और गांव के सभी लोग मंदिर में बंकू की सलामती के लिए प्रार्थना करते हैं।
उर्मिला, “हे भगवान! मेरा विश्वास है आपके रहते वो राक्षस मेरे बेटे का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा।”
तभी वहाँ एक अघोरी साधु आ जाता है।
साधु, “तुम सब मारे जाओगे। तुम में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।”
सभी गांव वाले उस अघोरी की बात सुनकर दंग हो जाते हैं।
प्रताप, “आप कौन हैं बाबा? और आपको पहले इस गांव में हमने तो कभी नहीं देखा। और आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं?”
साधु, “इस गांव पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है और तुम में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा। कोई भी नहीं…।”
उर्मिला, “बाबा, आप बड़े पहुंचे हुए लगते हैं। कृपया आप मुझे बताएं, मेरा बेटा बंकू सही सलामत है ना?”
साधु, “ऊपर वाले की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता। तुम्हारा बेटा उसी राक्षस की कैद में है, वो राक्षस किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेगा।”
प्रताप, “क्या..? पर वो राक्षस हमारे गांव में कैसे आया? और हाँ, वो सबको क्यों मारना चाहता है?”
साधु, “वो राक्षस इसी गांव का एक आदमी था, जो कि किसी संत के श्राप के कारण उसी कुएं में दानव बनकर रह रहा है। उसने कई साल शिव जी की उपासना की और खुद को बहुत ही शक्तिशाली बना लिया। और अगर वो 11 इंसानों की बलि देगा, तो वो और भी ज्यादा शक्तिशाली बन जाएगा और फिर वो उस कुएं से बाहर भी निकल सकता है।”
विक्रम, “क्या..? पर बाबा, उसे मारने का कोई तो तरीका होगा ना?”
साधु, “तरीका तो है। विमला बहन, आप अभी उस राक्षस को मारने का तरीका इन गांव वालों को बताइए।”
विक्रम, “आप विमला काकी को जानते है?”
विमला काकी, “हाँ बेटा, ये बहुत ही जाने-माने अघोरी हैं। पर जबसे उन साधु ने उस आदमी को श्राप दिया था, तब से हमारे गांव में कोई भी संत और साधु नहीं आया।”
प्रताप, “पर कौन था वो आदमी और उसे ये श्राप क्यों मिला?”
विमला काकी, “वो आदमी इस अभागन का बेटा था। उसने एक साधु की गाय को मार के उसका मांस खाया था। तब से उस साधु ने उसे श्राप देकर उस कुएं में बंद कर दिया था।”
दूसरी तरफ, बंकू वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगता है। तभी अचानक उसके सामने वह दानव आ जाता है।
दानव, “तो तू यहाँ पर छुपा हुआ है, चूहे? तूने मुझे बहुत भड़काया है, अब मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगा।”
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दानव बंकू को पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है, पर बंकू बचकर फिर से निकल जाता है। दानव गुस्से से बंकू के पीछे-पीछे बढ़ता है और बंकू से बचकर आगे निकल जाता है।
दौड़ते-दौड़ते बंकू एक पत्थर से ठोकर खाकर गिर जाता है। बंकू उस पत्थर को ध्यान से देखता है तो पत्थर के पीछे नागमणि दिखाई देती है। तब वो उस पत्थर को खोदने लगता है।
बंकू, “अरे! शिवलिंग… और यह भी इस कुएं के अंदर। हे महादेव! आप मेरी और यहाँ पर कैद बाकी सभी लोगों की रक्षा करना।”
तभी दानव वहाँ पहुँच जाता है और वो अपने मुँह से आग के गोले बरसाने लगता है। बंकू बचते-बचाते उस चट्टान के पीछे जाकर छुप जाता है जहाँ पर वह दानव सोया हुआ था और दानव के आग के गोले की वजह से वो चट्टान टूट जाती है। उस चट्टान में से एक त्रिशूल निकलता है, उस त्रिशूल को देखकर दानव डर जाता है।
बंकू, “अरे! इस त्रिशूल को देख कर यह दानव क्यों डर रहा है?”
तभी दानव फिर से आग का गोला बंकू पर फेंकता है, पर बंकू खुद को बचाने के लिए उस त्रिशूल को आगे करके आंख बंद कर लेता है और वह आग का गोला उस त्रिशूल से टकराकर दानव पर ही उल्टा पड़ जाता है।
बंकू, “अरे! मतलब यह त्रिशूल मायावी है। इसका मतलब इस त्रिशूल से इस दानव को मार सकता।
फिर बंकू त्रिशूल से दानव के ऊपर वार करता है। दानव दर्द से कराहने लगता है, पर वो मरता नहीं।
बंकू, “अरे! ये दानव तो इस से भी नहीं मरा। अरे! हाँ याद आया, विमला काकी ने एक बार अपनी कहानी में बताया था कि अगर त्रिशूल से राक्षस की नाभि में वार किया जाए तो वो मर जाएगा।”
फिर बंकू त्रिशूल निकाल कर उस राक्षस की नाभि में वार करता है। राक्षस जोर-जोर से कराहने लगता है और देखते ही देखते, एक आदमी में बदल जाता है और कुएं में कैद सभी लोग ठीक हो जाते हैं।
बंकू, “अरे! तुम इंसान कैसे बन गए?”
वो दानव बंकू को सारी बात बताता है और फिर उसे और कुएं में कैद सभी लोगों को बाहर निकालता है। अगले दिन गांव के सभी लोग उस कुएं के पास इकट्ठा हो जाते हैं।
विक्रम, “अरे! भूत भूत भूत। “
आदमी, “अरे! कहाँ है भूत?”
विक्रम, “अरे! वो देखो, उस बरगद के पेड़ में कुछ हलचल हो रही है। ये वही भूत होगा, जो इंसानों को मारना चाहता है।”
तभी वहाँ से बंकू और कुएं में कैद लोग और विमला काकी का बेटा बरगद के पेड़ से बाहर निकलते हैं। गांव के सभी लोग बहुत हैरान हो जाते हैं।
फिर बंकू गांव वालों को सारी बातें बताता है। विमला काकी अपने बेटे को गले से लगा लेती है।
विमला काकी, “बंकू, आज तूने मेरे खोए हुए बेटे को फिर से लौटा दिया। मैं तेरा धन्यवाद कैसे करूँ?”
बंकू, “रोज़-रोज़ नई-नई कहानियों सुनाकर।”
और फिर सब जोर जोर से हंसने लगते हैं। फिर उर्मिला भी बंकू को गले से लगाती है।
बंकू गांव वालों को बताता है कि कुएं के अंदर एक बहुत ही सुंदर शिवलिंग है।
प्रताप, “अगर उस कुएं के नीचे सच में कोई शिवलिंग है, तो क्यों न हम उसे बाहर स्थापित कर दें?”
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मुखिया, “अरे! हाँ, बहुत ही अच्छा सुझाव है। हम आज ही शिवलिंग की स्थापना का काम शुरू कर देंगे और एक शिव मंदिर भी बनवाएंगे।”
वहीं उर्मिला अपने पति को सही-सलामत देख कर महादेव और देवी माँ का धन्यवाद करती है।
दोस्तो ये Bhutiya Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!