हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बुद्धिमान पत्नी ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
महाराज चतुरसेन के वाहन सफेद घोड़े आश्वसेन की मृत्यु हो गई थी। राज्य में सभी लोग बड़े उदास थे।
महाराज ने पिछले एक हफ्ते से खाना पीना छोड़ दिया था। उनका कहना था कि…
महाराज, “मुझे एक ऐसे वाहन की तलाश है जो कि सबसे अलग और विशेष हो, जिसके गुणों को देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाएं
और जिसकी शक्ति को देखकर दुश्मन की सेना घबराकर कांपने लगे।”
राज्य में सभी लोग अपने द्वारा प्रशिक्षित जानवरों को लेकर महाराज के पास आ रहे थे। लेकिन महाराज को कोई भी जानवर पसंद नहीं आ रहा था।
जब उसकी सूचना परीलोक तक पहुंची तो परियों की रानी ने अपने मित्र गरुड़ से इस बात की चर्चा करते हुए कहा।
रानीपरी, “प्रिय मित्र गरुड़, महाराज चतुरसिंह एक बड़े ही योग्य, बुद्धिमान और बहादुर राजा हैं जो की मुसीबत की घड़ी में सबकी मदद करते हैं।
पिछले दिनों उनके वाहन सफ़ेद घोड़े की मृत्यु के पश्चात वाहन की तलाश में उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया है
और वो बहुत कमजोर हो गए हैं। उन्होंने कई बार मुश्किल घड़ी में परीलोक की सहायता की है।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?”
गरुड़, “परी महरानी करो… राज्य में हमारे जादूगर करुण शंकरा दैवीय शक्तियों के मालिक हैं
और अपनी जादूगरी से इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। मुझे तो ऐसा लगता है कि हमें इस बात के बारे में उनसे बात करनी चाहिए।”
गरुड़राज़ की बात सुनते ही परियों की महारानी उनके साथ गरुड़ शंकरा के पास गईं और उसे सारी बात बताते हुए बोलीं,
रानीपरी, “मित्र, आपको हमारी मदद करनी ही होगी। आप महाराज के लिए एक ऐसा अद्भुत वाहन तैयार करिये, जिसके बारे में ना पहले कभी किसी ने सुना हो, ना देखा हो।”
गरुड़ शंकरा ने अपनी दैवीय शक्तियों से एक अद्भुत हाथी की रचना की और एक अंडे में बदलकर उसे जंगल में रख दिया।
गरुड़ शंकरा, “जल्द ही इस दिव्य अंडे द्वारा एक महान जानवर का जन्म होगा, जो कि महाराज की इच्छा के अनुसार सभी प्रकार की शक्तियां से भरा हुआ होगा और महाराज का वाहन बनेगा।”
कुछ दिनों के बाद अंधा फूट गया और उसमें से एक सफेद रंग का विशालकाय खूबसूरत हाथी बाहर आया।
उसके शरीर से अद्भुत रौशनी निकल रही थी और वह मनुष्य की बोली भी बोल सकता था।
हाथी के चांदी से चमकते शरीर पर सोने के दांत थे और परियों के पंखों के समान कान। बाहर आते ही वो उड़ते हुए महाराज चतुरसेन के राज्य की तरफ चला गया।
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चतुर वाहन, “महाराज, मेरा नाम चतुर वाहन है। मेरा जन्म आपका वाहन बनने के लिए ही हुआ है।
मैं आपका वाहन बनने के योग्य हूँ या नहीं? कृपया आप इसकी परीक्षा ले लें।”
उसके खूबसूरत, बलिष्ठ और विशाल शरीर से निकलती रंग बिरंगी चमकीली रौशनी और उसके सुनहरे दांत देखकर पूरा दरबार हैरान था।
आखिरकार चतुरसिंह ने हाथी की परीक्षा लेने का फैसला किया।
महाराज, “सैनिकों, हाथी को परीक्षा मैदान में ले आया जाए और राज्य के सबसे ताकतवर हाथी के साथ युद्ध के लिए ललकार लगाई जाए।”
चतुर वाहन का शरीर चट्टान की तरह कठोर था। राज्य के हाथी ने चतुरसेन के शरीर पर ज़ोर की ठोकर मारी और खुद ही बेहोश होकर नीचे गिर गया।
चतुर वाहन ने अपनी सूंड उठाकर महाराज का अभिवादन किया और अपने पंखो जैसे बड़े कानों को हिलाता हुआ उड़ने लगा।
महाराज, “मैं ऐसे नहीं मानूंगा। मेरा वाहन बनने के लिए और परीक्षा देनी होगी।”
महाराज, “सेनापति, चतुर वाहन का मुकाबला करने मैदान में खतरनाक शेरों को भेज दिया जाए।”
चतुर वाहन शेरों को देखते ही नीचे उतरा और उसने जादुई शक्तियां से अपने सून को लंबा कर लिया।
उसने क्रोध से सूंड को हिलाया तो पूरी सूंड कांटों से भर गई। उसने अपनी खतरनाक सूंड में लपेटकर अपने नुकीले दांतों से दोनों शेरों को एक क्षण में ही मार दिया।
चारों तरफ उसकी जय जयकार होने लगी। महाराज चतुरसेन भी बड़े प्रसन्न हुए और बोले,
महाराज, “चतुर वाहन, मुझे तुम पसंद हो और मैं तुम्हे अपना वाहन बनाता हूँ। पूरी प्रजा महाराज की जय जयकार करने लगी।
अब महाराज चतुरसेन बड़े ही प्रसन्न रहते थे। एक बार जब चतुरसेन की पुत्री विजयलक्ष्मी राज्य सरोवर में स्नान कर रही थी
तो उसने देखा की खूबसूरत, बलिष्ठ और स्वस्थ शरीर का पुरुष सरोवर के पास खड़ा हुआ वहाँ लगे सुन्दर फूलों से उठने वाली सुगंध का आनंद उठा रहा है।
विजयलक्ष्मी, “ये तो बड़ा ही दिव्य पुरुष है। बलिष्ठ भुजाएं और लम्बा कद मेरे मन को मोह रहे हैं।”
उसे वह पुरुष बहुत पसंद आया और उसेसे विवाह करने की इच्छा जागृत हुई।
विजयलक्ष्मी, “हे दिव्य राजकुमार की तरह दिखने वाले बलिष्ठ पुरुष, तुम कौन हो और राज्य सरोवर के पास क्या कर रहे हो?”
राजकुमारी की बात सुनते ही वो पुरुष घबरा गया और तुरंत वहाँ से चला गया।
राजकुमारी भी उसके पीछे पीछे गई। पेड़ के पीछे जाकर तुरंत चतुर वाहन हाथी के रूप में बदल गया।
विजयलक्ष्मी, “ये क्या…? वह पुरुष जीस समय विवाह करना चाहती हूँ, वो कोई और नहीं बल्कि राजा का वाहन चतुर वाहन हाथी है?
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दूसरी तरफ उससे विवाह के लिए दूर दूर से राजकुमारों के रिश्ते आने लगे।
लेकिन राजकुमारी चतुर वाहन के रूप पर मोहित हो चुकी थी। उसे कोई भी राजकुमार पसंद ही नहीं आता था।
महाराज, “आखिर क्या बात है बेटी, तुम इतनी उदास रहती हो? पड़ोस के राज्य में वहाँ के राजकुमार का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था।
दूर दूर से कलाकार आ रहे हैं, तुम भी आनंद लो। तुम्हारा मन हल्का होगा।
महाराज ने राजकुमारी को चतुर वाहन के साथ उस जन्मदिन में भाग लेने के लिए भेजा।
कुछ दूर जाने के बाद जब वो राज्य से बाहर आ गए, तो राजकुमारी ने चतुर वाहन को रुकने के लिए कहा।
विजयलक्ष्मी, “प्रिय चतुर वाहन, मैं तुम्हारे पुरुष रूप को देख चुकी हूँ। तुम्हें देखने के बाद मेरे मन में तुमसे विवाह करने की इच्छा जागृत हो गई है।
मुझे समझ नहीं आता कि मेरा विवाह तुमसे किस प्रकार हो सकता है?”
चतुर वाहन, “राजकुमारी, आपको यह इच्छा छोड़ देनी चाहिए। मैं महाराज का वाहन हूँ।
ऐसा होना नामुमकिन है। राजकुमारी, मैं एक स्वर्ग लोक का यक्ष हूँ।
लेकिन देवलोक की कन्या के ऊपर बुरी निगाह डालने के कारण मुझे अपना यह जन्म महाराज के वाहन के रूप में बिताने के लिए गरुड़ राज्य के जादूगर द्वारा चुना गया है।
सजा के अनुसार मैं पूरे दिन में एक बार अपने असली रूप में आता हूँ। किन्तु मुझे विवाह करने का अधिकार नहीं है।”
विजयलक्ष्मी, “ऐसा न कहो प्रियवर्ण, मैं आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लूंगी।”
इसी बीच दुश्मन राज्य के सैनिकों ने हाथी के साथ राजकुमारी को अकेला पाकर उसका अपहरण करने के लिए हमला बोल दिया।
चतुर वाहन ने अपनी बहादुरी से दुश्मन सेना के सभी सैनिकों को मार दिया
और अपने पंखों को हिलाता हुआ राजकुमारी को लेकर उड़ता हुआ वहाँ से चला गया।
विजयलक्ष्मी, “चतुर वाहन, तुम्हारी बहादुरी देखकर मैं प्रण करती हूँ कि अगर मैं विवाह करूँगी, तो चतुर वाहन से ही करूँगी।”
वापस आते समय चतुर वाहन एक बार फिर अपने असली रूप में आया।
उसी समय राजकुमारी ने उसे मूर्ख बनाकर अपने साथ लाए गए मंगल सूत्र का धागा उसे अपने गले में बांधने को कहा।
विजयलक्ष्मी, “चतुर वाहन, मेरी रक्षा करना तुम्हारा फर्ज है। ये रक्षा कवच है जो मेरे पिता ने मुझे दिया है,
जिसे मैं गले में बांधना भूल गई थी। यदि तुम इसको मेरे गले में बांध दोगे तो, मैं हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाऊंगी।”
चतुर वाहन ने ऐसा ही किया। ऐसा करते ही जादूगर चतुर वाहन के सामने प्रकट हो गया और बोला।
जादूगर, “चतुर वाहन, तुमने श्राप होने के बावजूद भी राजकुमारी से विवाह करने की गलती करी है।
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अब तुम्हें इस रूप में अपना संपूर्ण जीवन काटना होगा। तुम्हारा राजकुमारी से मिलन कभी नहीं हो पाएगा।”
विजयलक्ष्मी, “आप ऐसा मत करिए। चतुर वाहन को मुझे पति के रूप में वरण करने दीजिए। इसके बदले में आप जो चाहेंगे, मैं वो करूँगी।”
जादूगर , “अगर ऐसी बात है राजकुमारी, तो आपको अपने सच्चे पार्क की परीक्षा देनी होगी।
धूमकेतु पर्वत पर हस्तसिला के नीचे हाथी दांत का बना हुआ एक मुकुट रखा है, जिसकी रक्षा पांच फनों वाला नाग करता है।
अगर वह मुकुट लाकर आप मुझे दे देती हैं, तो मैं चतुर वाहन को इस हिसाब से मुक्त कर दूंगा।”
चतुर वाहन, “लेकिन ये कैसे संभव है? वो पंचमुखी नाग तो जादुई शक्ति वाला है और मायावी भी है। वह किसी को भी पल भर में जलाकर भस्म कर सकता है।”
विजयलक्ष्मी, “आप चिंता ना करें। मैं आपको इस हिसाब से मुक्त करवाकर ही रहूंगी।”
राजकुमारी चतुर वाहन की पीठ पर बैठकर धूमकेतू पर्वत की तरफ चल पड़ी।
चतुर वाहन, “राजकुमारी, हम पर्वत पर तो पहुँच चुके हैं। इसके आगे मैं नहीं जा सकता।
आगे की यात्रा आपको अकेले ही तय करनी होगी। अभी भी वक्त है, आप अपने प्राणों को मुश्किल में डालने से बचा सकते हैं।”
विजयलक्ष्मी, “चतुर वाहन, तुम महाराज की सेवा में जाओ, मैं जल्द ही तुमसे मिलूँगी।”
राजकुमारी पर्वत पर अपनी चढ़ाई शुरू करती है। उसके पैरों में पत्थर और काटे लगने के कारण खून निकलने लगता है कि तभी वहाँ एक बूढ़ी औरत आती है।
बूढ़ी औरत, “तुम कौन हो? किसी राजकुमारी की तरह दिखाई पड़ती हो।
क्या तुम्हें पता नहीं कि ये पर्वत बड़ा ही खतरनाक है? हर कदम पर खतरा है।”
विजयलक्ष्मी, “लेकिन आप कौन है और इस खतरनाक पर्वत पर क्या कर रही है?”
बूढ़ी औरत, “तुम्हें क्या बताऊँ, राजकुमारी? मैं नीलम परी हूँ। लेकिन पंचमुखी नाग के मुँह से निकलने वाले विष के कारण इस रूप में आ गई हूँ।
परिलोक में अब मुझे कोई नहीं पहचानता। मुझे अपना जीवन इस खतरनाक पर्वत पर ही गुजारना होगा। लेकिन तुम अपने जीवन को बचा सकती हो।”
विजयलक्ष्मी, “आप परेशान ना हों। आप मेरे साथ महल चलिए, वहां आपके खाने पीने की पूरी व्यवस्था की जाएगी।”
बूढ़ी औरत, “तुम सच में बहुत अच्छी हो। मैं पंचमुखी नाग के महल में दासी का काम करती हूँ।
मुझे उसकी मृत्यु का राज़ पता है। उसे मारने में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। लेकिन उसके लिए तुम्हें मुझसे वादा करना होगा।”
विजयलक्ष्मी, “बताइए माँ, आप क्या चाहती हैं? मैं अपने पति को वापस उसके रूप में पाने के लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ।”
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बूढ़ी औरत, “राजकुमारी, अगर तुम नाग को मारना चाहती हो, तो तुम्हें चतुर वाहन के मनुष्य रूप में आने के बाद उसे मेरे हवाले करना होगा।”
विजयलक्ष्मी, “मैं उनकी पत्नी हूँ। यदि उनका त्याग करने से उनका जीवन बन सकता है,
तो मुझे ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं है। आप मुझे पंचमुखी नाग की मृत्यु का रहस्य बताएं।”
बूढ़ी औरत, “मैं तुम्हें एक गुप्त रास्ता दिखाउंगी। तुम सीधे साँपों के राजा के महल में पहुँच जाओगी।
वो एक ऐसे पलंग पर सोता है, जो पूरी तरह से घंटियों से बना है। उसी पलंग के ऊपर एक तलवार टंगी है।
केवल उस तलवार से ही उस मायावी का खात्मा हो सकता है। पर हाँ… जब उस पर वार हो, उसके पाँचों फन खुले होने चाहिए।”
विजयलक्ष्मी, “लेकिन मैं उस तलवार तक कैसे पहुंचूंगी? पलंग तो घंटियों से बना है। अगर मैंने उस पर पैर रखा, तो नाग को पता चल जाएगा।”
बूढ़ी औरत, “वो दुष्ट जागने के बाद जब नहाने के लिए झील में जाएगा, तुम पलंग की घंटियों को रुई से भर देना,
फिर पलंग पर चढ़कर वो तलवार निकाल लेना और छुप जाना। जब वो वापस सोए तो धीरे से उसकी पूंछ पर मार देना, वो तुरंत जग जाएगा
और अपने सारे फन फैला लेगा। यही समय है इससे पहले की वो तुम्हें देखे, तुम उसके सारे फनों को काट देना।”
राजकुमारी ने बुढ़िया की बात मानकर एक रूई की बोरी उठाई और बुढिया के बताए रास्ते पर चल दी।
वहाँ उसने वही किया, जो बुढिया ने उसे बताया था। पलंग के ऊपर टंगी तलवार उठाई और छुप गई।
उसने सांप की पूंछ पर वार किया। फिर सांप के जागते ही एक ही झटके में उसके पांचों सर काट दिए। सांप के मरते ही पहाड़ सांप की दहशत से मुक्त हो गया।
विजयलक्ष्मी, “अब मुझे बिना देर किए जादूगर को हठी दांत का मुकुट दे देना चाहिए।”
राजकुमारी जल्दी से जादूगर के पास पहुंची और वो मुकुट उसके हवाले कर दिया।
मुकुट के मिलते ही जादूगर ने मुकुट चतुर वाहन के सर पर रख दिया और देखते ही देखते चतुर वाहन एक राजा के रूप में बदल गया।
चतुर वाहन, “राजकुमारी, तुमने मुझे मनुष्य रूप में तो बदल दिया, लेकिन मैं तुम्हारे पिता के साथ अन्याय नहीं कर सकता।
वह मुझ पर बहुत विश्वास करते हैं। मैं सदैव उनका वाहन बनकर रहना चाहता हूँ।”
विजयलक्ष्मी, “लेकिन अब आप पर मेरा अधिकार नहीं है, फिर आपको मैं क्या दे सकती हूँ?
आपकी जान के बदले मैंने आपको पर्वत पर रहने वाली परी को दे दिया।”
राजकुमारी की बात सुनते ही वहाँ पर परी प्रकट हुई और बोली,
परी, “राजकुमारी, मैं तुम्हारे प्रेम की परीक्षा ले रही थी। तुम और चतुर वाहन दोनों ही अद्भुत हो।
चतुर वाहन का महाराज के प्रति प्रेम देखकर मैं तुम दोनों को चतुर वाहन के प्रति रूप में एक दूसरा हाथी देती हूँ,
जो चतुर वाहन की तरह ही पूरी भक्ति से महाराज की सेवा करेगा।”
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राजकुमारी महाराज को सारी बात बताती है। राजकुमारी के प्रेम और चतुर वाहन की ईमानदारी से महाराज बहुत खुश होते हैं
और धूम धाम से राजकुमारी का विवाह चतुर वाहन के साथ हो जाता है और उसे राज्य का सेनापति बनाया जाता है।
वो राजकुमारी के साथ उसके पति के रूप में खुशी खुशी जीवन बिताने लगता है।
दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!