हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चालबाज गधा ” यह एक Animal Story है। अगर आपको Short Animal Stories, Jungle Ki Kahaniyan या Janwaro Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
मध्य प्रदेश के चंदनपुर गांव में भोला नाम का एक व्यापारी अपनी पत्नी सुलेखा के साथ रहता था।
भोला के पिता के पास उनका सबसे भरोसेमंद साथी एक गधा था, जिस पर वह सामान लादकर बाजार में बेचते थे।
पिताजी के गुजर जाने के बाद भोला ने भी अपने पिता का व्यापार संभाल लिया।
वह रोज़ अपने गधे पर गेहूं, चावल और अन्य सामान लादकर बाजार जाता और बेचकर वापस आता था।
भोला, “अरे सुलेखा! मैं बाजार जा रहा हूँ। मुझे आने में देर होगी, तुम खाना खाकर सो जाना।”
सुलेखा, “ठीक है जी। लेकिन थोड़ा जल्दी आइएगा, वरना मेरी चिंता बढ़ जाती है।”
भोला, “चल बे गधे, आज ज़रा तेज चलना। सुना नहीं, जल्दी घर आना है।”
गधा, “जी हुजूर। मैंने कब देरी की है, जो आज करेंगे?”
फिर भोला और उसका गधा बाजार की ओर चल दिए। भोला का गधा पूरे बाजार के गधों में सबसे ज्यादा सामान उठाने के लिए मशहूर था। बाजार पहुंचने पर भोला का दोस्त घनश्याम उसे देखता है।
घनश्याम, “अरे भोला! क्या बात है? तुम्हारा गधा तो पूरे बाजार में सबसे ज्यादा बोरी उठाता है। एक काम करो, ये गधा तुम मुझसे बेच दो।”
भोला, “अरे! नहीं घनश्याम, ये गधा मेरे पिताजी की आखिरी निशानी है। इसे मैं किसी भी कीमत पर नहीं बेच सकता।
लेकिन घनश्याम, तुम्हारा गधा तो कद काठी में मेरे गधे से भी बड़ा दिखता है, फिर ये काम क्यों नहीं करता?”
घनश्याम, “अरे भोला! कद काठी में बड़ा होने से कुछ नहीं होता। दिखने में तो मजबूत है,
Weपर ये बहुत आलसी और कामचोर है। दिनभर खाता है और काम के नाम पर ढेला भी नहीं हिलाता।”
भोला, “क्यों बे गधा, क्या ये सच कह रहा है? तू आलसी है? देखो, काम से भागने वाला कोई भी गधा नहीं चलेगा।”
थोड़ी देर बाद भोला और घनश्याम घर लौटने लगे। जब वे घर पहुंचे, तो सुलेखा घर के दरवाजे पर इंतजार कर रही थी।
भोला, “अरे सुलेखा! ये क्या..? तुम अभी तक यहीं बैठी हो, सोई नहीं?”
सुलेखा, “कैसे सो जाती? आपकी फिक्र हो रही थी। आपने इतना देर जो कर दिया।”
फिर भोला सुलेखा को घनश्याम के बारे में बताता है।
भोला, “सुलेखा, ये मेरा दोस्त घनश्याम है। पास के ही गांव से आता है और मेरे साथ बाजार में व्यापारी का काम करता है।”
घनश्याम, “भाभी जी, आप अभी तक भोला के इंतजार में बैठी हुई हैं और एक मेरी पत्नी है।
वो अब तक सोते हुए सपने देख रही होगी। मेरी बीवी तो एकदम बेफिक्र रहती है।”
सुलेखा, “अरे! उसकी अक्ल भैंस चरने गई है क्या?”
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घनश्याम, “भाभी जी, वो भी एकदम आलसी है, बिलकुल मेरे गधे जैसा। दोनों में कुछ विशेष फर्क नहीं है।”
घनश्याम, “अच्छा भोला, अब मैं चलता हूँ।”
थोड़ी देर बातचीत के बाद घनश्याम अपने गधे को लेकर घर लौट जाता है। अगली सुबह वह फिर से अपने गधे पर बोरियां लादने लगता है।
गधा, “बाप रे! ये बोरियां तो पहाड़ जितनी भारी हैं। मेरी तो कमर ही टूट गई। बचाओ, अरे! कोई मुझे इस जल्लाद से बचाओ।”
घनश्याम, “अबे चुप! तेरा यही रोज़ का नाटक है। खाना तो दबाकर खाता है, उस वक्त सब ठीक होता है और काम करते वक्त तेरी हड्डियां टूटने लगती हैं।”
तभी भोला अपने गधे के साथ वहाँ से गुजरता है।
गधा, “अरे! कोई इस जल्लाद से मेरी रक्षा करो।”
भोला, “घनश्याम, लगता है आज तेरा गधा बीमार है। चल, अपनी बोरियां मेरे गधे पर रख दे। आज इसे आराम करने दे।”
गधा, “मुझे मूर्ख समझा है बच्चू? शरीर से गधा हूँ, दिमाग से नहीं।”
भोला ने घनश्याम की बोरियां अपने गधे पर लाद लीं और दोनों बाजार की ओर चल दिए। शाम को लौटते वक्त दोनों गधों की बातें करते हुए लौट रहे थे।
घनश्याम, “तू नहीं जानता भोला, मेरा गधा बीमार-विमार कुछ नहीं है। इसका रोज़ का यही नाटक है।
वह बहुत ही आलसी है। इसी वजह से हमें सामान सस्ते दामों पर नजदीक के बाजारों में ही बेचना पड़ता है।”
भोला, “अरे! वो तो ऐसी बात है। फिर देखो कल इस कामचोर गधे को हम कैसे सबक सिखाते हैं?”
फिर दोनों अपने-अपने घर चले जाते हैं। अगले दिन घनश्याम ने फिर से अपने गधे पर बोरियां लादनी शुरू कीं और गधा फिर से चिल्लाने लगा।
गधा, “अरे मर गया रे! कोई बचाओ मुझे, मेरी हड्डियां टूट गईं।”
तभी भोला फिर वहाँ से गुजर रहा होता है और हंसते हुए कहता है।
भोला, “अरे! रहने दे, घनश्याम। आज भी इसे बाजार नहीं ले जाएंगे।
इसे आज भी यहीं आराम करने दे और इसकी पीठ पर लदी बोरियों को भी नहीं उतारना। आज इसे ऐसे ही छोड़ दे।”
घनश्याम, “सुन रहा है ना? आज तुझे इन्हीं बोरियों के साथ आराम मिलेगा।”
गधा, “अरे! नहीं नहीं, ऐसा मत करो। मैं मर जाऊंगा! अब से जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करूँगा!”
घनश्याम, “आज तो तुझे आराम ही करना होगा।”
घनश्याम ने भोला की बात मानी और गधे को बोरियों समेत वहीं खड़ा छोड़ दिया। गधे ने थोड़ी देर इधर-उधर देखा,
लेकिन जब किसी ने बोरियां हटाने की कोशिश नहीं की, तो उसे समझ में आ गया कि अब कोई उसकी मदद नहीं करेगा। धीरे-धीरे वह बोरियों को लेकर चलने लगा।
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घनश्याम, “भोला, तेरी सलाह ने तो कमाल कर दिया। मेरा गधा बिना नाटक किये काम करने लगा। वो देख, कैसे चुपचाप बोरे लिए इधर आ रहा है?”
भोला, “देखा… कभी-कभी आलसियों को झूठी सहानुभूति नहीं, बल्कि सख्त सबक चाहिए। अब से यह रोज़ की तरह नाटक नहीं करेगा।”
दोस्तो ये Animal Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!