चोर पुलिस | Chor Police | Hindi Kahani | Moral Story | Chor Police Ki Kahani | Bedtime Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चोर पुलिस ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


किशनगंज गांव में इन दिनों बस एक ही चर्चा बनी हुई है कि किशनगंज के सभी अमीर लोगों के घरों और दुकानों पर चोरियां हो रही हैं।

किशनगंज का इंस्पेक्टर रघु इसी तफ्तीश में लगा हुआ है, लेकिन चोर एक नंबर का शातिर है, जो चोरी के बाद कोई सबूत नहीं छोड़ता और ना ही किसी के हाथ आता।

धनीराम, “इंस्पेक्टर, आज 3 दिन हो चुके हैं, मेरी दुकान को चोरी हुए। तुम लोग अभी तक चोर का पता नहीं लगा पाए। आखिरकार कर क्या रहे हो तुम लोग?”

रघु, “धनीराम जी, संयम रखिए। पुलिस अपना काम कर रही है, जल्दी ही अपराधी हमारी गिरफ्त में होंगे। अब आप जा सकते हैं।”

धनीराम गुस्से में थाने से निकल कर जाता है।

हवलदार, “क्या साहब जी, सब आपकी पुंगी बजा जाते। आप कुछ करिए उस मोनू चोर का। अब तो बात आपकी इज्जत पे।”

रघु, “मोनू, मोनू, मोनू… इस नाम ने मेरा जीना हराम कर रखा है। इसे छोड़ूंगा नहीं मैं। ये मोनू तो पकड़ में ही नहीं आता।

किसी दिन पकड़ में आ जाए तो बस उसकी सारी बोलती बंद करवा दूंगा। ऐसे डंडे पड़ेंगे कि हमेशा के लिए चोरी करना भूल जाएगा। वो जानता नहीं कि कानून के हाथ कितने लंबे होते हैं।श?”

हवलदार, “कितने लंबे साहब जी? मोनू छोड़ो, उसका बाल तक आपके हाथ नहीं लगा।

रहने दो रघु सर, इसका तोड़ा आपके पास क्या, किसी के पास नहीं है।”

रघु, “चुप करो! तुम क्या जानो कि एक ईमानदार पुलिस अफसर के लिए एक अपराधी को पकड़ना कितनी बड़ी फक्र की बात होती है?

और कसम मेरी वर्दी की, जब तक मोनू को सलाखों के पीछे नहीं देखूंगा, तब तक चैन की सांस नहीं लूंगा।”

हवलदार, “हां हां ठीक है साहब जी, अब जज्बातों में मत बहू जाना। रघु सर, मोनू का तो पता नहीं सलाखों के पीछे जाएगा कि नहीं, लेकिन वो आपको जरूर हवालात में बंद कर देगा।”

रघु, “अच्छा… क्या कहा तुमने? ऐसी जगह ट्रांसफर करूँगा कि याद रखोगे।”

हवलदार, “अरे! नहीं मैं क्या बोलूंगा? बस इतना समझ लीजिए साहब जी कि वो छोटा-मोटा चोर नहीं है, जो आपके हाथ में आ जाए।”

रघु, “हाँ हाँ जानता हूँ, मगर उसे तो मैं पकड़कर ही रहूंगा।”

मोनू चाहे छोटी चोरी करे या बड़ी चोरी करे, लेकिन चोरी इतनी सफाई से करता था कि चाहे कितना भी कोई जोर लगा ले, उसे पकड़ ही नहीं पाता था।”

मोनू का एक साथी था, जिसका नाम बटुक था। बटुक शुरू से मोनू का साथ देते आ रहा था।

कई जगहों पर दोनों साथ मिलकर चोरी करते और धन को आपस में बाँट लेते।

बटुक, “मोनू भाई, अपन को तो घरवालों ने ही नौ दो ग्यारह कर दिया था। यहीछ बोले कि तेरे जैसा औलाद से अच्छा हमें औलाद ही ना हो। लेकिन भाई, कभी-कभी बहुत याद आती है घर की।”

मोनू, “चल छोटे, दिल छोटा ना कर। अपन तो बचपन में ही घर से कल्टी मार लिया था।”

बटुक, “तो भाई, तुझे घर की याद नहीं आती?”

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मोनू, “अपने को अपनी माँ का चेहरा याद है, वो भी धुंधला सा। बाकी कोई नहीं है आप उनकी याददाश्त में। चल छोड़ ये सब, आज रात चोरी करने जाना है ना?”

बटुक, “हाँ, आज तो बहुत कीमती माल चुराना है यार, मगर एकदम सावधानी से जाना होगा।”

मोनू, “अरे भाई! जो भी हो, हम दोनों किसी से डरते हैं क्या? देखना, सब सही हो जाएगा।”

आधी रात में मोनू और बटुक दोनों ही मुँह पर काला कपड़ा बांधकर निकल पड़ते हैं।

बटुक, “अरे भाई! यहाँ तो पहले से कोई बैठा है।”

मोनू, “अरे! तू भी क्या मूर्खों जैसी बात कर रहा है? जब लाखों रुपए का सामान पड़ा होगा गोदाम में, तो रखवाली के लिए कोई तो रहेगा ही।

तू मेरी बात ध्यान से सुन, ये रुमाल ले और सुंघा दे। तब तक मैं गोदाम खोलने में लग जाता हूँ।”

बटुक वैसा ही करता है। गार्ड वहीं बेहोश हो जाता है। मोनू फटाफट गोदाम खोलता है और सोने से बना घोड़ा निकाल कर ले आता है।

मोनू, “ये देख भाई, एकदम चमचमाता हुआ घोड़ा। चल पकड़ इसे, अब कल्टी मार लेते हैं। इससे पहले कोई और आ जाए।”

मोनू और बटुक सोने का घोड़ा चुराकर भाग जाते हैं।

धनीराम, “साहब, मैं तो लूट गया। मैं तो बर्बाद हो गया साहब, इतना कीमती तोहफा चोरी हो गया साहब।”

रघु, “अरे! थोड़ा शांत होकर पूरी बात बताइए।”

धनीराम, “साहब, मैंने सोने का घोड़ा बनवाया था। वो घोड़ा मुझे एक कॉन्टेस्ट को तोहफे में देना था, क्योंकि एक बहुत बड़ी डील साइन हुई थी।

अब मैं क्या बोलूँगा? मैंने पहले ही बता दिया था उन्हें। पता नहीं चोर को कैसे पता लग गया इसके बारे में? इसके बारे में तो मेरे घरवालों तक को भी नहीं पता था।”

रघु, “हो न हो, ये काम उस मोनू चोर का ही है। उसे तो मैं छोड़ूंगा नहीं। अब वो मेरे हाथ से नहीं बच पाएगा।”

बटुक, “भाई, ये तो कमाल हो गया। हम तो मालामाल हो गए। और क्या चाहिए? लेकिन भाई, तुझे कैसे पता था कि उस आदमी के गोदाम में सोने का घोड़ा रखा हुआ था?”

मोनू, “अपुन के कुछ गुर्गे अपुन के लिए खबरी का काम भी करते हैं। बस टाइम से उनको उनका हिस्सा मिल जाता है।

ये तो बहुत छोटी सी चीज़ है। हम तो इससे भी बड़ी-बड़ी चोरियां करेंगे, लेकिन अभी के लिए हमें इस घोड़े को छिपाकर रखना होगा। मौका मिलते ही हम इसे ठिकाने लगा देंगे।”

रघु मोनू को ढूंढने की बहुत कोशिश करता है पर बहुत कोशिशों के बाद भी रघु को मोनू का ठिकाना नहीं मिलता।

एक दिन मोनू मुँह पर कपड़ा बांधकर बाजार में निकलता है।

मोनू, “बहुत दिन बीत गया, कुछ चोरी नहीं किया। चलो, आज कुछ चोरी करते हैं।”

मोनू देखता है कि एक सेठ गले में सोने की मोटी चेन पहनकर जा रहा है।

मोनू, “अच्छा, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। मोटे सेठ ने पब्लिक को बहुत लूटा है। क्यों ना आज इस पर हाथ साफ किया जाए?”

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उसे देखते ही मोनू तुरंत उसकी चैन खींचता है और भागने लगता है।

सेठ, “अरे! पकड़ो, कोई उस चोर को! मेरा सोना ले भाग गया। अरे! मैं तो बर्बाद हो गया। हाय, पकड़ो उसे।”

रघु वहीं से गुजर रहा होता है। वह मोनू के पीछे भागने लगता है।

रघु, “हाँ, ये तो मोनू चोर लगता है। आज नहीं बच पाएगा। रुक जा मोनू, भागने की कोशिश मत करना।”

मोनू, “आजा इंस्पेक्टर, आज लुका छुपी का खेल हो जाए? अपुन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हैं रे।”

रघु, “रुक जा मोनू। तू मेरे निशाने पर है, गोली मार दूंगा”

मोनू, “अबे चल हट, हवा आने दे।”

तभी अचानक मोनू देखता है कि एक बूढ़ा इंसान सड़क पर बेहोश पड़ा है। यह देखते ही मोनू रुक जाता है। वह उस बूढ़े आदमी के पास आता है।

मोनू, “अरे बाबा! क्या हुआ आपको, बाबा…?”

तभी रघु वहाँ पहुँच जाता है और मोनू को पकड़ लेता है।

रघु, “आज तो तू आ ही गया मेरे पकड़ में। अब तो तू सीधा थाने जाएगा।”

मोनू, “मुझसे पहले इन बूढ़े बाबा को हॉस्पिटल पहुँचाओ।”

रघु, “हवलदार, एम्बुलेंस को कॉल करो। इन बाबा को पास के हॉस्पिटल में पहुँचाओ।”

रघु, “और आप तो थाने में तशरीफ ले चलो अपनी।”

रघु मोनू को पकड़ लेता है और उसे थाने लेकर आता है।

मोनू, “तुझे लगता है इंस्पेक्टर तू ज्यादा देर तक मुझे यहाँ रख पाएगा? बस देखते जा, अपुन क्या करता है?”

थाने में रघु के सिवा कोई और नहीं था। रघु मोनू को जेल में बंद करने लगा। तभी मोनू रघु की गर्दन पकड़ लेता है और रघु को जेल में बंद करके भाग जाता है।

मोनू, “हां भई इंस्पेक्टर साहब, क्या था दिमाग में? अपुन को पकड़ कर प्रमोशन मिलेगा? चलो थोड़ा सा मजा हवालात का तुम भी चख लो।”

मोनू भागते हुए अपने ठिकाने पर आता है।

बटुक, “अरे मोनू! क्या हुआ भाई? इतना हाफते हाफते क्यों आ रहा है? कहीं पुलिस को ठिकाने का तो नहीं पता लग गया?”

मोनू, “अरे! नहीं रे, वो चम्पू इंस्पेक्टर ने पकड़ लिया था। बस उसी को पपलू बनाकर आया हूँ।”

बटुक, “उसने तुझे पकड़ लिया? मगर वो कैसे? क्या किया रे तू उसके साथ?”

मोनू, “अरे! बूढ़ा आदमी बेहोश पड़ा मिला था। बस उन्हें देखने के लिए ही रुक गया और उसने पकड़ लिया।”

बटुक, “अरे बॉस, यही तो तेरी कमजोरी है। अच्छा छोड़ सब बात, बता अब कहाँ हाथ मारना है?”

मोनू, “यहीं, इस गांव से थोड़ी दूर। बस ये समझ ले, वो चोरी कर पाना थोड़ा मुश्किल होगा।

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मगर हम कर लेंगे तो समझ, आगे का लाइफ एकदम हीरो के माफिक गुजरेगा। साला मैं तो शाहा बन गया।”

बटुक, “अरे भाई! तुम तो एकदम आमिर खान के माफ़िक गाता है। वैसे मुश्किल क्या है चोरी में?”

मोनू, “अरे छोटे! देश के बड़े से बड़े हीरा बनाने की कंपनी है वो। वहाँ पर अपने हीरो के हार दिखाएंगे। बस एक हाथ लग गया ना, तो सब सेटल है। समझा ना?”

कुछ दिनों बाद दोनों अपने-अपने चेहरे पर दाढ़ी लगाकर सूट पहनकर वहाँ पहुँच जाते हैं।

मोनू, “बटुक, हमें ऐसे दिखाना है जैसे हम भी बाकी लोगों की तरह यहाँ सब देखने ही आए हैं।”

तभी दोनों की नजर रघु पर पड़ती है।

मोनू, “अरे! देख बटुक, देख… ये इंस्पेक्टर तो यहाँ भी आया हुआ है। इसने ही मुझे पकड़ा था, मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हो पाएगा।”

बटुक, “हाँ भाई, यहाँ तो बहुत अच्छा इंतजाम किया है इन लोगों ने।”

दोनों बड़ी ही शांति से अंदर जाते हैं और मौका ढूंढने लगते हैं ताकि वे कुछ चोरी कर पाएं।

मोनू, “बटुक, ये तो बहुत बड़ा है। मैं उधर जाकर देखता हूँ, वहाँ क्या है?”

मोनू को एक कोने में हार दिखता है। अभी वहाँ कोई भी नहीं था।”

मोनू, “यही सही मौका है।”

मोनू तुरंत शीशा तोड़कर अंदर से हार निकाल कर छत के ऊपर से निकल जाता है। सभी मोनू को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने लगते हैं।

मोनू बिना रुके दौड़े जा रहा था। दौड़ते-दौड़ते वह बहुत दूर आ चुका था। तभी अचानक वह एक महिला से टकरा जाता है।

मोनू उस महिला को देखकर हैरान रह जाता।

मोनू, “इनका चेहरा तो ऐसा लग रहा है जैसा चेहरा मेरी माँ का था।”

महिला, “क्या बोला तुमने?”

मोनू, “माँ, आपको याद हूँ मैं? मैं आपका गोलू।”

महिला, “क्या… तू गोलू है?”

मोनू, “हाँ माँ, मैंने अपना नाम मोनू रख लिया है। लेकिन आपका तो गोलू ही हूँ।”

मोनू की माँ बहुत जोर-जोर से रोने लगती है।

माँ, “बेटा, तू कहाँ चला गया था? मैंने तुझे कितना याद किया? तू कितना बड़ा हो गया? मैं तो पहचान भी नहीं पाई।”

मोनू, “माँ, अभी मैं बहुत जल्दी में हूँ, मुझे जाना होगा।”

माँ, “रुक जा बेटा। तुझे याद है तेरा एक जुड़वा भाई कल्लू भी था, जो मामा के घर रहकर पढ़ता था? वह सिपाही बन गया है। चल, तू घर चल… मैं तुझे उससे मिलवाऊंगी।”

यह सुनकर मोनू हैरान रह जाता है।

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मोनू, “माँ, उसे सभी किस नाम से जानते हैं?”

माँ, “रघु नाम से।”

इतना सुनते ही मोनू के हाथों से वो हार छूट जाता है और इतनी ही देर में रघु वहाँ आ जाता है।

रघु, “आ ही गया तू पकड़ में है। अब बता कहाँ बच कर जाएगा?”

रघु, “अरे माँ! आप यहाँ क्या कर रही हो?”

माँ, “बेटा वो सब छोड़, ये इसे पकड़ क्यों रहा है?”

रघु, “अरे माँ! ये बहुत बड़ा चोर मोनू है। इससे तो मैं वर्षों से पकड़ना चाह रहा था।”

मोनू कुछ भी नहीं कहता। वह केवल अपने भाई की ओर देखता है।

माँ, “बेटा, ये तेरा जुड़वा भाई गोलू है।”

मोनू, “क्या सच में? एक चोर और मेरा भाई?”

माँ, “हाँ बेटा, ये गोलू ही है। तुम लोग तो बचपन में कभी साथ नहीं रहे, मगर ये गोलू ही है तेरा जुड़वा भाई।”

रघु, “भाई, तू चोर क्यों बन गया? तू घर छोड़ कर भागा क्यों था?”

मोनू बहुत जोर-जोर से रोने लगता है।

मोनू, “आप लोगों को याद है, पिताजी की तबियत कितनी खराब थी? माँ ने गांव के सभी बड़े लोगों से पैसे की मदद मांगी थी,

लेकिन किसी ने भी माँ की मदद नहीं की थी, जिसके बाद पिताजी की मृत्यु हो गई थी।

तभी से मैंने सोच लिया था अब उन्हीं बड़े-बड़े लोगों से पैसे लूटूँगा। मैंने काम तो उसी वक्त से शुरू कर दिया था, मगर माँ को यह सब पसंद नहीं था।

इसलिए मैंने घर छोड़ दिया और चोरी के काम में लग गया। आज भी मैं केवल वैसे लोगों का ही पैसा लूटता हूँ।”

रघु, “जो भी हो भाई, तुने बहुत गलत काम किया है। अब तुझे जेल में ही जाना होगा।”

तभी पीछे से बटुक आता है।
बटुक, “यही नहीं मोनू भाई, पूरी बात तो बताओ अपनी माँ और भाई को।”

मोनू, “नहीं छोटे, रहने दे कुछ मत बोल।”

बटुक , “बोलने दे भाई।”

बटुक, “पता है, आज तक इसने जितनी भी चोरियां की, उन सभी पैसों को यह सभी जरूरतमंद लोगों में बाँट देता है।

कितने गरीब बच्चे आज इसकी वजह से पढ़ाई कर पा रहे हैं? इसकी एक ही कमजोरी है, यह किसी को दुख में नहीं देख सकता।

तभी तो उस दिन जब इसने बूढ़े आदमी को बेहोश देखा, तो रुक गया। इस वजह से आप इसे पकड़ पाए।”

माँ और भाई की आँखों में आंसू थे, मगर वे चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे।

मोनू, “ले भाई, अब तो खुशी-खुशी तेरे साथ चलूँगा। ले, हथकड़ी लगा ले मेरे हाथ में। लेकिन बस एक बार गले लगा ले।”

इसके बाद रघु, मोनू और माँ सब गले मिलकर रोते हैं। उसके बाद रघु मोनू और बटुक दोनों को जेल में बंद कर देता है।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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