देवदासी | Devdasi | Horror Story | Darawani Kahani | True Horror Stories in Hindi | Sacchi Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” देवदासी ” यह एक True Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Sachhi Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


कृष्ण के मंदिर के बाहर गांव के सरपंच बेहोशी की हालत में पड़े हुए, कपड़े अस्त-व्यस्त और शरीर पर चोट के निशान।

ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके शरीर का पूरा खून चूस लिया हो। शरीर पूरा सफेद पड़ा था और आंखें फटी हुई थीं। मगर धीरे-धीरे सांस अभी भी चल रही थी।

सुबह मंदिर में पूजन के लिए आए हुए पुजारी ने जैसे ही गांव के सरपंच को इतनी बुरी हालत में देखा, उन्होंने तुरंत गांव में खबर कर दी। सभी लोग तुरंत वहाँ इकट्ठा हो गए।

पहला आदमी, “पुजारी जी, सरपंच की हालत कैसी हो गई? ये तो लगभग मरने ही वाला है।”

पुजारी, “मुझे क्या पता..? मैं तो रात को 10 बजे मंदिर बंद करके चला गया था। सुबह 5 बजे जब आया तो मंदिर के बाहर इन्हें इस अवस्था में देखा।”

पहला आदमी, “सब लोग देख क्या रहे हो? अभी ये जिन्दा हैं, इन्हें अस्पताल ले चलो।”

पुजारी, “अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं है। ये कुछ ही पल के मेहमान हैं।

मैं मंदिर से गंगाजल लेकर आता हूँ। सब लोग इनकी मुक्ति की प्रार्थना करो।

पुजारी जी ने मंदिर से गंगाजल लाकर जैसे ही सरपंच के मुँह पर डाला, उसे कुछ पल के लिए होश आया।

उसने अपनी आंखें खोली और पुजारी जी के हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, “वो लौट आई है, कोई नहीं बचेगा। मुझे भी जाना होगा।”

पुजारी, “सरपंच, तुम्हें कुछ भी होश नहीं है। किसकी बात कर रहे हो?”

सरपंच, “मृदुला, वो आ गई है।”

सरपंच ने जैसे ही मृदुला का नाम लिया, पुजारी और ठाकुर दोनों के चेहरे पर भय साफ नजर आया।

दोनों एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे। तभी सरपंच ने अंतिम सांस ले ली।

सरपंच जी के अंतिम संस्कार के बाद पंडित जी मंदिर में पूजन-पाठ में व्यस्त थे। उस दिन उन्हें कुछ देर हो गई थी। रात के करीब साढ़े दस बज गए।

पुजारी, “आज कुछ ज्यादा ही लेट हो गया है। मुझे तुरंत यहाँ से निकलना होगा।”

खुद से बात करते हुए पंडित जी ने जैसे ही मंदिर का ताला लगाया, मंदिर के भीतर घुंघरू की आवाज आने लगी।

ऐसा लग रहा था मानो कोई नृत्य कर रहा हो। पंडित जी को लगा कि उनके मन का वहम होगा, मगर फिर जब घुंघरू की आवाज आई

तो उन्होंने मंदिर का दरवाजा खोला और मंदिर के भीतर दाखिल हो गए। मंदिर की लाइट चालू नहीं हो रही थी।

गुप्त अंधेरे में अभी भी घुंघरू की आवाज आ रही थी, मगर कोई नजर नहीं आ रहा था।

पंडित जी, “कौन है यहाँ पर, सामने आओ? घुंघरू की आवाज से मुझे डराने की कोशिश मत करो। कौन है?”

आवाज, “यशोदा का नन्द लाला, बृज का उजला है। मेरे लाल से तो सारा जग झलमिलाए जु झू जुझू… जु झू जुझू”

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आवाज, “पंडित जी, देखिए ना… कान्हा तो सो ही नहीं रहे हैं और मैं कब से इन्हें सुलाने की कोशिश कर रही हूँ।

आप ही इन्हें समझाइए ना? आजकल बहुत परेशान करने लगे हैं।”

कहते हुए कोई जोर से हंसने लगा।

पंडित, “मृदुला, तुम हो..? सामने आओ। तुम मृदुला नहीं हो सकती, वो तो मर चुकी है। तो फिर कौन है?

मुझे डराने की कोशिश मत करो। मेरे ऊपर ठाकुर जी का आशीर्वाद है और तुम क्या हो? तुम तो उनकी दासी हो, एक देवदासी।”

मृदुला, “हां, मैं हूँ देवदासी… ठाकुर जी की दासी। मगर तुम लोगों ने मेरा उपभोग किया है। बदला लेने के लिए आई हूँ।”

पंडित जी ने जैसे ही सुना, वो तुरंत वहाँ से भागे। उन्होंने मंदिर का दरवाजा भी बंद नहीं किया।

अगली सुबह भय के कारण उन्हें बहुत तेज़ बुखार था। गांव के वैद्य और ठाकुर उनके पास पहुंचे। वो नींद में भी बड़बड़ा रहे थे।

पंडित, “कोई नहीं बचेगा, वो लौट आई है। कोई नहीं बचेगा।”

ठाकुर, “ये क्या बोल रहे हो, पंडित जी? खामोश रहो।” आपकी तबियत तो ठीक है ना?”

वैद्य, “बुखार बहुत ज्यादा है, जो शायद सर पर चढ़ गया है। मगर कल तक तो बिलकुल ठीक थे, आज अचानक ये सब कैसे हो गया?”

ठाकुर, “वैद्य जी, इन्हें कोई भी दवा दीजिए। यदि शहर से डॉक्टर बुलाना है तो बताइए, मगर पंडित जी का होश में आना जरूरी है। आखिर मुझे सच भी तो जानना है।”

कहते हुए ठाकुर साहब वहाँ से उठ गए और अपने घर पहुँच गए और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया।

उनकी आँखों के सामने 20 साल पुराना किस्सा चलचित्र की तरह साफ था। गांव के सरपंच, ठाकुर और पंडित तीनों मिलकर शराब की महफ़िल सजाए हुए थे।

ठाकुर, “इस गांव में तो मनोरंजन का कोई साधन ही नहीं है। शहर में देखो, सिनेमा और साथ में बहुत कुछ मिल जाता है।”

सरपंच, “यहाँ तो शरीर की प्यास बुझाने के लिए भी कुछ नहीं है।”

ठाकुर, “पंडित जी, कोई तो बंदोबस्त करो।”

पंडित, “मैं क्या कर सकता हूँ? मेरे हाथ भी तो कुछ नहीं है। आप लोगों के पास तो ढेर सारा पैसा है, आप ही कुछ कीजिए।”

सरपंच, “यहाँ के लोगों को अपनी इज्जत पैसे से ज्यादा प्यारी है। पैसों की बलबूते पर कोई नहीं मानेगा। हाँ, मगर यदि…।”

ठाकुर, “क्या करना होगा, ये बताओ?”

सरपंच, “मैंने सुना है कि पहले के लोग देवदासी की प्रथा के जरिए शारीरिक सुख पाते थे। जो दासियाँ देवताओं के नाम पर आती थीं, उनसे देवदास सुख पाते थे।”

पंडित, “ऐसा होता तो था, मगर अब ये सब कोई नहीं मानता।”

ठाकुर, “यदि कोई नहीं मानता तो हम लोग मानने पर मजबूर कर देंगे। कल सुबह ही मिलते हैं।”

अगली सुबह ठाकुर और सरपंच ने पूरे गांव के लोगों को चौपाल पर बुलाया।

ठाकुर, “आप सभी लोग जानते हैं कि पुजारी जी युवा अवस्था में ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मंदिर में ठाकुर जी की सेवा पूजा कर रहे हैं।

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उनकी इसी भक्ति से प्रसन्न होकर कल रात कान्हा जी ने पुजारी जी को स्वप्न दिया कि कोई भी पुरुष अपने घर की कुंवारी कन्या को देवदासी बनाकर मंदिर में छोड़ सकता है

तो उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी। कितना मनोरम मौका है? आप लोग भी ठाकुर जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।”

आदमी, “देवदासी..? मगर ये तो गलत है। ये प्रथा तो बंद हो चुकी है। यदि सरकार को पता चला तो? ये सब गलत है।”

सरपंच, “वैसे तो दहेज प्रथा और बाल विवाह भी बंद हो चुके हैं, मगर अभी भी गांव में ये सब कुछ शुरू है।

जब अपने मतलब के लिए हम सरकार के नियम-कानून नहीं मानते तो ठाकुर जी की सेवा के लिए क्यों नियम मानेंगे?

आगे आप लोगों की इच्छा है। हम तो चाहते हैं कि गांव वालों की हर इच्छा पूरी हो। हरिओम..!”

बोलते हुए सरपंच ने सभी लोगों ने अपने घर जाने को कह दिया। सब लोग अपने घर पहुंच गए। मगर सबके मन में एक शंका जरूर थी।

आदमी, “झुमरी की अम्मा, क्या कहती हो? वैसे भी हमारे घर में तीन बेटियाँ हैं। मैं गरीब इनकी शादियों का बोझ नहीं उठा पाऊंगा।

तुम चौथी बार माँ बनने वाली हो। क्यों ना हम लोग हमारी झुमरी को कान्हा जी की सेवा में समर्पित कर दें?

क्या पता इस बार कान्हा जी हमारी सुन लें और झुमरी का कोई भाई आ जाए?”

दोनों पति-पत्नी ने काफी विचार-विमर्श के बाद झुमरी को देवदासी बनाने का निर्णय ले लिया। संयोग से इस बार झुमरी की माँ को बेटा हुआ।

उसके पिता बहुत खुश हुए और उन्होंने सब लोगों को बताया कि कान्हा जी ने अपनी बेटी को देवदासी बनाने के बदले उन्हें बेटा दिया है।

अब गांव वालों को यकीन हो गया था कि सरपंच साहब झूठ नहीं बोल रहे थे। मगर बेचारी झुमरी दिन भर मंदिर में सेवा करती और रात को सरपंच, ठाकुर और पुजारी जी की सेवा करती।

उन लोगों ने उसे डरा दिया था कि यदि उसने किसी को भी कुछ बताया, तो उसके पूरे परिवार को खत्म कर देंगे।

झुमरी चुपचाप सहन कर रही थी, क्योंकि बदले में उसे भरपेट खाना मिल रहा था, जो उसे कभी अपने घर पर नसीब नहीं हुआ था।

झुमरी के परिवार की कहानी सुनकर दूसरे गांव में रहने वाला मनमोहन अपनी बीमार पत्नी के कारण बहुत परेशान था।

वो ठीक से अपने परिवार की देखभाल भी नहीं कर पा रहा था।

मनमोहन, “क्या सच में कान्हा जी सबकी मनोकामना पूरी कर देते हैं? क्या वो मेरी भी कोई कामना पूरी करेंगे, मेरी पत्नी को ठीक कर देंगे?

मगर कैसे मैं अपनी 16 साल की बेटी को वहाँ मंदिर में अकेला छोड़ सकता हूँ, कैसे? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।”

काफी सोचने के बाद उसने अपनी बेटी को देवदासी बनाने का निर्णय लिया।

मनमोहन, “मैं अपनी बेटी को देवदासी बना देता हूँ, यही ठीक रहेगा क्योंकि यदि मेरी पत्नी ठीक नहीं हो पाई तो वैसे भी उसकी देखभाल अच्छी तरह से नहीं हो पाएगी।

मैं तो कई बार घर से बाहर रहता हूँ। ऐसे में कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो वहाँ पर कान्हा जी की सेवा में रहेंगी तो कम से कम सुरक्षित तो रहेंगी।”

सोचते हुए उसने अपनी बेटी मृदुला को देवदासी बना दिया। मृदुला ने पहले तो इसका विरोध किया, फिर अपना नसीब मानकर इस चीज़ को स्वीकार कर लिया।

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मृदुला बड़े मन से कान्हा जी की सेवा करती, उनके सामने नृत्य करती और जब वो भजन गाने लगती तो सभी मंत्र-मुग्ध हो जाते।

मृदुला, “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरे ना कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई। मेरे तो गिरधर गोपाल…।”

कुछ दिनों बाद जब एक रात तीनों उसे अपने साथ रात बिताने के लिए मना रहे थे, मगर मृदुला नहीं मानी, तो उन तीनों ने मिलकर उस लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की।

मगर सरपंच जी के हाथ का धक्का उसे लगा और वो पास रखे मूसल पर जाकर गिर गई।

सर से बहुत खून बह रहा था। वो लगभग मरने की अवस्था में पहुँच गई।”

ठाकुर, “इसे वैद्य जी के पास लेकर चलते हैं।”

सरपंच, “नहीं नहीं, ये सबको सच बता देगी। इसे मंदिर के पीछे दफना देते हैं।”

तीनों मिलकर उसे मंदिर के पीछे ही दफना दिया। सब लोग अब मृदुला को भूल चुके थे।

ठाकुर साहब पुरानी बातें याद कर ही रहे थे कि अचानक उनके कमरे की खिड़की पर दस्तक होने लगी।

उन्होंने उस तरफ देखा तो वहाँ मृदुला खड़ी थी। उसके सर से बहता हुआ खून उसके चेहरे को और भी भयानक बना रहा था, जिसे देख ठाकुर साहब के हाथ-पैर फूल गए।

मृदुला , “यहाँ आ, मेरे पास आ। मुझसे दूर मत जाओ। यही कह रहे थे ना आप उस दिन? अब आप क्यों मुझसे दूर जा रहे हैं? मेरे पास आओ।”

कहते हुए वो ठाकुर साहब के करीब आने लगी। डर के कारण उनकी हालत खराब हो गई।

वो डर कर पीछे हटने लगे। वो जैसे-जैसे उनके करीब आ रही थी, वो पीछे-पीछे हटने लगा।

वो पीछे-पीछे हटते हुए रेलिंग के करीब पहुँच गया। मृदुला धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ रही थी। वह रेलिंग से नीचे गिर गया और सर फटने की वजह से उसकी मौत हो गई।

दूसरी तरफ पंडित जी का बुखार भी इतना तेज था कि वो नींद में बड़बड़ाने लगे और उन्हें हर तरफ मृदुला ही नजर आने लगी। फिर वो घर से भाग गए और घर से भाग कर वो एक नदी में गिर गए।

जैसे मृदुला का मंदिर से गायब होना एक रहस्य बनकर रह गया था, वैसे ही ठाकुर, सरपंच और पुजारी जी की मौत का रहस्य भी किसी की समझ में नहीं आया।

उस मंदिर में आज भी रात के वक्त भजन की आवाज सुनाई देती है।

मृदुला, “श्याम तेरी मुरली पुकारे राधा ना, श्याम तेरी मुरली पुकारे राधा नाम… लोग करे मेरा को यूं ही बदनाम, लोग करें मीरा को यूं ही बदनाम।”


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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