हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब जलेबीवाली ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Hindi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
नगर खजुरा गांव में लाला सेठ नाम का बहुत बड़ा व्यापारी रहता था। वो केसरी प्रसाद नाम के एक छोटे से जलेबी वाले से बहुत जलता था,
क्योंकि वो बहुत अच्छी जलेबियाँ बनाता था और पूरे गांव में घूम-घूम कर जलेबियाँ बेचता था। इस वजह से लाला सेठ की बिक्री में कमी आ जाती है।
सेठ, “ये केसरी प्रसाद पूरे गांव में घूम-घूम कर जलेबियाँ बेचता फिरता है और यहाँ मेरी दुकान पर ग्राहक कम हो जाते हैं। इसे तो मज़ा चखाना ही पड़ेगा।”
सेठ, “प्रसाद सुनो, अगर तुमने यहाँ जलेबियों का धंधा बंद नहीं किया, तो तुम सोच भी नहीं पाओगे कि मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूँ?
केसरी प्रसाद, तुम अपना ये जलेबियों का धंधा छोड़ कर कुछ और काम शुरू कर दो।”
केसरी प्रसाद, “देखो सेठ, मैं अपना धंधा नहीं छोड़ सकता। मैं जलेबियाँ बेच कर ही अपनी बेटी की फीस भरता हूँ और अपना घर चलाता हूँ।
मैं अगर यही धंधा छोड़ दूँगा, तो मैं क्या करूँगा फिर? अगर तुम्हें मेरे धंधे से कोई दिक्कत है, तो तुम ही अपनी मिठाई का धंधा बंद करके कोई और काम शुरू कर लो।”
इस बात पर लाला सेठ और भी ज्यादा चिढ़ जाता है और वहाँ से चला जाता है।
सेठ, “इस केसरी प्रसाद को मज़ा चखाना ही पड़ेगा।”
कुछ दिनों बाद…
झुमरी, “पिताजी, हमारे स्कूल में कल ऐन्युअल फंक्शन है और सबका खाना भी वहीं पर होगा।”
केसरी प्रसाद, “अच्छा ठीक है, मेरी राजकुमारी।”
झुमरी, “हाँ, तो आप कल 4:00 बजे स्कूल में आ जाना।”
लाला सेठ का बेटा गुड्डू भी झुमरी के ही स्कूल में पढ़ता था, तो वहाँ पर लाला सेठ भी पहुँच जाता है।
उसके आदमियों से कहलवाकर वो झुमरी के खाने में कुछ मिला देता है, जिस वजह से झुमरी बीमार हो जाती है।
रात को…
झुमरी, “पिताजी, मेरे पेट में बहुत जोर का दर्द हो रहा है,”
और फिर वो उल्टी कर देती है।
केसरी प्रसाद, “अरे बेटा! क्या हुआ? चल, तुझे अभी डॉक्टर साहब के पास लेकर चलता हूँ।”
फिर केसरी प्रसाद झुमरी को अस्पताल लेकर जाता है।
केसरी प्रसाद, “डॉक्टर साहब, इसे पेट में बहुत दर्द हो रहा है और इसे उल्टी भी हो रही है।”
डॉक्टर, “इसके खाने में कुछ ऐसा आ गया है, जिस वजह से इसके पेट में दर्द हो रहा है।”
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डॉक्टर कुछ दवाई देता है। फिर भी झुमरी चार दिन तक ठीक नहीं होती और बिस्तर से उठ नहीं पाती।
केसरी प्रसाद, “ना जाने मेरी बेटी को क्या हुआ है? चार दिन से बिस्तर से उठ नहीं पा रही है।”
तभी उसके पास से एक पागल धक्का मारकर निकलता है।
केसरी प्रसाद, “अरे भाई! ज़रा देख कर चलो।”
पागल , “ही ही ही… ही ही ही।”
केसरी प्रसाद, “तुम्हें खाना है तो खा लो।”
पागल, “पर इसमें दवाई मिली है ना?”
केसरी प्रसाद, “क्या..? अरे! नहीं नहीं भाई, इसमें कोई दवाई नहीं मिली है, खा लो। ये मैंने खुद अपने हाथों से बनाई है।”
पागल, “अरे! नहीं, वह जो है ना मोटा सेठ, उसने इसमें दवाई मिलाई थी।”
तभी वहाँ झुमरी आ जाती है।
पागल, “या… या, इसी ने तो मिलाई थी ना उस दिन।”
केसरी प्रसाद, “क्या? किसने मिलाई थी दवाई?”
पागल, “उस मोटे सेठ ने, उस दिन मिठाई में कुछ मिला दिया था।”
लाला सेठ के घर पहुंच कर…
केसरी प्रसाद, “लाला सेठ… लाला सेठ, अपने घर से बाहर निकल।”
लाला सेठ, “अरे! क्या हुआ केसरी प्रसाद? कोई दूसरा धंधा करने के लिए पैसे मांगने आए हो क्या? चलो देर से ही सही, पर तुम्हें अक्कल तो आई।”
और फिर केसरी प्रसाद लाला सेठ को एक थप्पड़ मारता है। दोनों में कड़ी हाथापाई होती है।
फिर हाथापाई में लाला सेठ केसरी प्रसाद के पेट में छुरा घोंप देता है और केसरी प्रसाद की जान चली जाती है।
गांव के सभी लोग यह होता हुआ देखते हैं, पर कोई भी लाला सेठ के खिलाफ़ गवाही नहीं देता। झुमरी अनाथ हो जाती है।
झुमरी, “उठो बाबा, मुझे कंधे पर बैठाओ ना। बाबा उठो, अब मैं क्या करूँगी आपके बिना?”
वो बहुत रोती है, पर उसके पास कोई नहीं होता। वह बैठी हुई उसके बाबा की कही हुई बातों के बारे में सोच रही थी कि कैसे उसके बाबा उसे प्यार से अपने कंधे पर बैठाकर मेला घुमाने ले जाते थे और जलेबियाँ खिलाते थे?
यह सब बैठकर वो सोचती रहती है। फिर झुमरी बड़ी हो जाती है।
एक दिन झुमरी कुएं से पानी भरने जा रही होती है, तभी लाला सेठ की नजर उस पर पड़ती है। वह उसे गलत नज़रों से देखता है
और झुमरी के पास उसे हाथ लगाने के लिए बढ़ता है। तभी झुमरी उसके सिर पर पानी का घड़ा फोड़ देती है।
वहाँ खड़ी सभी औरतें यह देखकर हँसने लगती हैं।
औरत, “अरे वाह री झुमरी! अच्छा हुआ, इसे तो ऐसे ही मारना चाहिए।”
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फिर सभी औरतें मिलकर लाला सेठ को मारने लगती हैं।
पागल, “हा हा हा… इसे तो ऐसे ही मार पड़नी चाहिए। अरे वाह! मोटे सेठ को मार पड़ी। बड़ा मज़ा आया।”
लाला सेठ, “झुमरी, तुझे तो मैं छोड़ूंगा नहीं।”
झुमरी, “अरे! जा जा, नहीं तो और मार पड़ेगी।”
लाला सेठ कुछ बड़बड़ाते हुए वहाँ से निकल जाता है।
अगले दिन गांव में फिर से वही पुरानी जलेबियों की खुशबू आने लगती है।
लड़का, “वही पुरानी प्रसाद काका की जलेबियों की खुशबू।”
फिर वह बाहर निकलकर देखता है तो झुमरी जलेबियों के ठेले पर जलेबियाँ लेकर बेचने निकलती है।
देखते ही देखते झुमरी की बहुत सारी जलेबियाँ बिक जाती हैं।
बूढ़ा, “अरे वाह बेटा! तुम्हारी जलेबियाँ तो प्रसाद की जलेबियों से भी बहुत स्वादिष्ट हैं।”
पागल , “अरे वाह! जलेबी… मैं तो आज जलेबी खाऊंगा। जलेबी ईईई…।”
वह जलेबी खाने लगता है। खाते खाते उसे लाला सेठ दिख जाता है, तो वो लाला सेठ के ऊपर जलेबी फेंक देता है।
बिल्कुल इस तरह फेंकता है, जैसे किसी कुत्ते को रोटी डाल रहा हो और कुत्तों की तरह हाथ करके कहता है, ‘तुझे भी जलेबी खानी है?'”
लाला सेठ गुस्से से वहाँ से निकल जाता है।
झुमरी के ठेले पर बहुत भीड़ आने लगती है और ये सब मिठाई वाले लाला सेठ को रास नहीं आता। वो कुछ गुंडे झुमरी को उठाने के लिए भेज देता है।
लाला सेठ, “आज तो वो झुमरी मुझसे नहीं बचेगी। जैसे ही वो आएगी, मैं उसे भी उसके बाप के पास पहुंचा दूंगा। बहुत हवा में उड़ रही है ना?”
तभी वो दोनों गुंडे पिटी हुए हालत में लाला सेठ के पास पहुंचते हैं।
सेठ, “अरे! तुम्हारी ये हालत किसने की?”
गुंडा, “और किसने लाला सेठ? उस लड़की ने, जिसे आपने उठाने के लिए भेजा था, वह तो बड़ी ही टेढ़ी खीर निकली।”
सेठ, “मैंने तुम दोनों को एक लड़की उठाने के लिए कहा था। तुम दोनों से वह भी ठीक से नहीं हुआ। अब जाओ यहाँ से और मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।”
लाला सेठ, “पर ये झुमरी इन दोनों हट्ठे-कट्ठे पहलवानों को कैसे पीट सकती है?”
फिर उसे याद आता है कि उसने उसकी भी हालत खराब कर दी थी। वो सोचता है कि झुमरी को मज़ा चखाना ही पड़ेगा।
एक दिन झुमरी जलेबी का ठेला लेकर गांव में बेचने जा रही थी, तभी लाला सेठ उसकी गाड़ी को झुमरी के ठेले के आगे रोक देता है।
झुमरी उसकी गाड़ी को सड़क की दूसरी तरफ ले जाने लगती है। फिर लाला सेठ उसकी गाड़ी को और आगे बढ़ा लेता है और झुमरी को नहीं निकलने देता।
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फिर लाला सेठ गाड़ी से बाहर निकलता है।
लाला सेठ, “ऐ झुमरी! देख, तेरी मेरे सामने कोई औकात नहीं है। तू चुप-चाप अपनी जलेबियों की दुकान… अरे नहीं नहीं अपनी जलेबियों का ठेला लेकर यहाँ से दफा हो जा
और अपने ठेले को बंद कर दे। नहीं तो मैं इस ठेले को और तुझे कहीं का नहीं छोड़ूंगा।”
झुमरी आगे आती है और लाला सेठ की गाड़ी का कांच फोड़ देती है।
झुमरी, “अब देख, तेरी गाड़ी की औकात तो मेरे ठेले से भी पतली हो गई।”
और उसके मुँह पर पैसे फेंक कर कहती है, “ये ले और जाकर अपनी गाड़ी ठीक करवा ले। और अगर चाहिए तो मुझे बोल देना। टिप भी ले ले काम आएंगे।'”
पागल, “मोटे सेठ की गाड़ी टूट गई… मोटे सेठ की गाड़ी टूट गई!”
लाला सेठ आग बबूला होकर वहाँ से निकल जाता है। रात को एक नकाबपोश झुमरी के ठेले और उसके घर को आग लगाने के लिए पेट्रोल छिड़कने लगता है।
लाला सेठ, “आज तो झुमरी नहीं बच पाएगी!”
और माचिस जलाकर घर पर फेंकने वाला होता है, तभी पीछे से वो पागल उसका हाथ पकड़ लेता है।
नकाबपोश उस पागल को धक्का देकर नीचे गिरा देता है, तभी झुमरी वहाँ आ जाती है।
पागल, “देखो, ये तुम्हारे घर पर आग लगाने वाला था। मैंने इसे पकड़ लिया, मैंने चोर पकड़ लिया।”
फिर झुमरी उसे थप्पड़ लगाती है और उसका नकाब निकालती है, तो वो कोई और नहीं लाला सेठ होता है।
झुमरी, “लाला तू..? तू इस हद तक गिर जाएगा, मैंने ये सोचा भी नहीं था। जो किसी की जान ले सकता है, वो कुछ भी कर सकता है।”
लाला सेठ, “ऐ झुमरी! तुझे क्या लगता है, मैं तुझे ऐसे ही छोड़ दूंगा? तुझे तो मैं तेरे बाबा के पास पहुंचा कर ही रहूँगा।
उसे भी मैंने बहुत धमकियों दी थी पर वह सीधी तरह नहीं माना। फिर मैंने उसका पत्ता काट दिया।
पर अब तुने भी मेरी नाक में दम कर दिया है, मैं तुझे भी नहीं छोड़ूंगा और ये पागल आज तो अभी मेरे हाथों से मरेगा।”
और फिर लाला सेठ चाकू निकालकर झुमरी को मारने के लिए आगे बढ़ता है। तभी वो पागल सीधा खड़ा हो जाता है और लाला सेठ का हाथ पकड़ लेता है और चाकू नीचे फेंक देता है।
लाला सेठ को वो एक थप्पड़ मारकर नीचे गिरा देता है। लाला सेठ का थप्पड़ की वजह से सिर चकराने लगता है और उसके कानों से खून निकलने लगता है।
इंस्पेक्टर, “हवलदार, पकड़ लो इस लाला सेठ को और बंद कर दो हवालात में।”
लाला सेठ, “तुम..? तुम ठीक कैसे हो गए और ये सब क्या नाटक लगा रखा है?”
इंस्पेक्टर, “ये कोई नाटक नहीं है, लाला सेठ। तुझे पकड़ने के लिए मुझे पागल बने रहने का नाटक करना पड़ा,
ताकि मैं तुझे रंगे हाथों पकड़ सकूँ। ये देख, तेरे किए हुए सारे गुनाहों के सबूत… ये फोटो।”
झुमरी, “हाँ, लाला सेठ। तुझे क्या लगा था, मैं अकेली हूँ? मेरा साथ देने वाला कोई नहीं? जब तूने मेरे पिताजी को दुकान बंद करने के लिए धमकाया था,
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तब मैं अकेली बगीचे में बैठी हुई रो रही थी। तब इंस्पेक्टर जुगनू मेरे पास आए और मुझसे पूछा।
इंस्पेक्टर जुगनू, “अरे! क्या हुआ गुड़िया रानी?”
झुमरी, “कुछ नहीं, वो मोटा मिठाई वाला… वो मेरे पिताजी को रोज़ धमकाता है और उन्हें जलेबियाँ बेचने के लिए मना करता है। उस मोटे सेठ की वजह से मेरा भी कोई दोस्त नहीं बनता।”
इंस्पेक्टर जुगनू, “अच्छा… तो आज से मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, पर तुम्हें उस मोटे सेठ को पकड़ने में मेरी मदद करनी पड़ेगी।”
इंस्पेक्टर जुगनू, “तभी से मैं पागल बनकर तुम्हारे खिलाफ़ सबूत इकट्ठा कर रहा था। फिर कुछ दिनों के लिए काम की वजह से मुझे बाहर जाना पड़ा।
पर जब मैं गांव में आया, तब मुझे पता चला कि झुमरी के पिताजी की किसी ने हत्या कर दी।
पर तुम्हारे खिलाफ़ किसी ने भी गवाही नहीं दी। तब से मैं झुमरी की मदद करती हूँ और तेरे उन भाड़ों के गुंडों से भी मैंने ही इसे बचाया था।”
और फिर इंस्पेक्टर जुगनू लाला सेठ को जेल में बंद कर देती है।
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