गरीब मां का बलिदान | Gareeb Maa Ka Balidan | Hindi Kahani | Maa Ki Kahaniyan

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब मां का बलिदान ” यह एक Maa Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Latest Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


सुलेखा की शादी रायपुर में सुभाष के साथ 4 साल पहले हुई थी। सुभाष बहुत ही अड़ियल स्वभाव का था।

सुभाष अक्सर सुलेखा को ताने मारता कि 4 साल की शादी में अभी तक एक भी बच्चा उसने पैदा नहीं किया। सुलेखा बहुत दुखी रहने लगी।

एक दिन सुभाष सुलेखा को छोड़कर चला गया। सुलेखा को पता चला कि सुभाष दूसरी शादी करके किसी और के साथ रहने लगा है।

सुलेखा को कुछ समझ नहीं आया कि इतना बड़ा दुख लेकर वो अपनी माँ के पास कैसे जाए? क्योंकि उसकी बूढ़ी माँ पहले ही बीमार रहती थी,

पर सुलेखा के पास कोई और चारा नहीं था, वो अपनी माँ के घर चली जाती है।

सुलेखा की मां, “बेटी, तू अचानक… क्या हुआ? और दामाद जी नहीं आए?”

सुलेखा, “माँ, वो मुझे छोड़कर चले गए। उन्होंने किसी और से शादी कर ली क्योंकि मैं उन्हें बच्चा नहीं दे पाई।”

सुलेखा रोने लगती है। उसका दुःख देखकर जानकी सदमे में रहने लगती है। सुलेखा को 1-2 दिन ही आए हुए होते हैं।

अचानक एक दिन काम करते हुए सुलेखा बेहोश हो जाती है। जानकी बराबर में रहने वाले हकीम को बुलाती है।

हकीम, “आपकी बेटी माँ बनने वाली है। ये पेट से है।”

जानकी, “क्या..? हकीम जी, मेरी बेटी माँ बनने वाली है?”

सुलेखा, “माँ, मैं क्या करूँ? मेरा जीवन एक ऐसे दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है जिसमें पीछे मुड़ने का कोई फायदा नहीं।

मुझे अब इस बच्चे के लिए खुद जिम्मेदारी संभालनी है। एक गर्भवती माँ का प्यार मेरे बच्चे को माँ-बाप दोनों का प्यार देगा।”

सुलेखा के साथ जो भी गलत हुआ था वो उसे दोबारा याद नहीं करना चाहती थी। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे।

सुलेखा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वो घरों में चौका बर्तन का काम करने लगी। सारा दिन घरों में काम करके वो थकी हारी घर लौटती थी।

गर्भवती होने के कारण उसे काम करने में तकलीफ तो होती थी पर उसे बच्चे के लिए मेहनत करनी थी।

नौ महीने बाद सुलेखा एक बेटे को जन्म देती है। बेटे को देखकर सुलेखा की आँखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं।

बेटे के जन्म से मानो उसे जीने का सहारा मिल जाता है, पर सुलेखा की माँ उम्र और बीमारी के चलते बेटी का साथ नहीं निभा पाती।

सुलेखा की माँ का देहांत हो जाता है। सुलेखा माँ के बिना अधूरी हो गई थी। सुलेखा ने दोबारा काम पर जाना शुरू कर दिया। अब वो बेटे सुमित को भी काम पर साथ ही लेकर जाती।

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एक दिन…
मालकिन, “सुलेखा, तुम ये छोटे बच्चे के साथ काम पर आती हो। सारा ध्यान तो तुम्हारा इसकी देखभाल में ही लगा रहता है।

ऐसे तो तुम कोई काम नहीं कर पाओगी। ऐसा करो तुम अपना हिसाब कर लो, कल से काम पर मत आना।”

सुलेखा, “अब मैं क्या करूँ? मेरे सारे घर धीरे-धीरे छूट गए। पैसे भी खत्म हो गए। मुन्ना, रो मत, मैं तेरे लिए अभी दूध लेकर आई।”

सुलेखा, “भैया थोड़ा सा दूध मिलेगा, मेरा बच्चा बहुत भूखा है।”

दुकानदार, “मुफ्त में तो मैं तुझे दूध नहीं दूंगा। हाँ, एक काम कर… वो जो दूध के बड़े डिब्बे रखे हैं ना, वो सारे डिब्बे अच्छे से धो दे और बदले में अपने बच्चे के लिए दूध ले जा।”

सुलेखा सारे डिब्बे धो देती है और अपने बेटे सुमित को दूध पिलाती है। मुश्किल भरे दिनों में भी एक माँ ने अपना साहस नहीं खोया था। एक रात जब सुलेखा अपनी झुग्गी में सो रही होती है।

पड़ोसी, “अरे! उठो उठो सब, बस्ती में आग लग गई है। झुग्गियों से बाहर आओ सब।”

पड़ोसन, “सुलेखा… ओ बेटी सुलेखा, जल्दी से बाहर आ। झुग्गियों में आग लगी है।”

सुलेखा, “अरे! झुग्गी में आग कैसे लगी गई। अब मैं बाहर कैसे निकलूं? अरे! मेरा बच्चा… मैं कैसे जाऊँ इस झुग्गी से बाहर? दरवाजे पर तो आग है। ये…ये चादर लपेट देती हूँ मुन्ना को।”

सुलेखा जैसे-तैसे सुमित को बचाते हुए झुग्गी से बाहर निकलने लगती हैं तभी एक जली लकड़ी सुलेखा के मुँह पर गिर जाती है।

सुलेखा अपनी परवाह किए बिना सुमित को झुग्गी से बाहर सुरक्षित ले आती है, पर सुलेखा का मुँह एक तरफ से आग की वजह से जल जाता है।

सुलेखा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अपने चेहरे का इलाज करवा पाए इसलिए उसका चेहरा देखने में भद्दा हो जाता है।

पर सुलेखा इस बात की बिलकुल परवाह नहीं करती। उसे यही सुकून होता है कि उसने अपने बेटे की जान बचाई और भगवान की कृपा से उसके बेटे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

दिन बीतने लगते हैं। अब सुमित स्कूल जाने लगा था। और सुलेखा चाहती थी कि सुमित पढ़-लिख कर बहुत ही बड़ा आदमी बने, इसलिए वो दिन-रात मजदूरी करके मेहनत करती रहती थी।

एक दिन…

सुमित, “अरे राजू! आजा। रुक, मैं अभी अपनी कॉपी लेकर आया तब तक तू कमरे में बैठ।”

राजू, “नहीं सुमित, तू मुझे कॉपी यहीं दे दे, मैं अंदर नहीं आ रहा। वो तुम्हारी माँ को देखकर मुझे बहुत डर लगता है और रात को नींद भी नहीं आती। उनका चेहरा बहुत ही डरावना है।”

सुमित, “अच्छा ठीक है, राजू।”

सुलेखा, “अरे सुमित! तुम्हारा दोस्त राजू आया था, पर घर के अंदर क्यों नहीं आया?”

सुमित, “वो आपके डरावने और बदसूरत चेहरे से घबराता है। सिर्फ वही नहीं, मेरे सारे दोस्त आपका इतना खराब चेहरा देखकर डर जाते हैं।

मानो किसी भूत को देख लिया हो। तभी मेरा कोई दोस्त मेरे घर आने के लिए हाँ नहीं बोलता।

आपकी वजह से मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती, मां। पता नहीं मेरी जिंदगी में ऐसी माँ क्यों लिखी है? लोगों की माँ बहुत ही सुंदर होती है, पर मेरी माँ बदसूरत क्यों है?”

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सुमित गुस्से में कमरे से चला जाता है। सुलेखा रोने लगती है, पर वो उस वक्त कुछ नहीं बोलती।

समय ने अपनी चाल पकड़ी और सुलेखा की मेहनत से सुमित पढ़-लिखकर एक ऑफिस में नौकरी पर लग गया।

सुलेखा को लगा कि शायद अब उसकी किस्मत के दिन पलटने वाले हैं। सुमित की नौकरी लग गई है और अब वो घर का खर्च भी उठाएगा और सुलेखा को आराम मिलेगा और वो बेटे का सुख भोग पाएगी।

सुमित अपने ऑफिस की लड़की राशि से शादी कर लेता है। सुलेखा बेटे की खुशी की खातिर कुछ नहीं बोलती।

एक दिन सुमित ऑफिस के काम से बाहर गया होता है। राशि अपनी कुछ सहेलियों को घर पर बुलाती है।

राशि, “माँ जी, आज मेरी कुछ सहेलियां लंच पर आ रही हैं। आप प्लीज़ उनके सामने अपना ये बदसूरत चेहरा लेकर बिल्कुल मत आना।

वरना मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। एक काम करो, आप अपना मुँह ढक लो जिससे कि मेरी सहेलियों को आपका चेहरा नज़र नहीं आएगा।

आप जल्दी से सारा लंच बनाकर रख दो, तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ। मेरी सहेलियां आने ही वाली होंगी।”

बेचारी सुलेखा कुछ नहीं बोलती और उदास मन से रसोई में खाना बनानी चली जाती है। दोपहर में राशि की सहेलियां लंच पर आती हैं और खाना खाने बैठती हैं।

तभी सुलेखा वहाँ सब्जी का कटोरा लेकर आती हैं और जब वह एक लड़की को सब्जी देने लगती हैं,

सहेली पूछती है, “ये कौन है?”

राशि, “अरे! ये मेरी नौकरानी है।”

सहेली कहती है, “अच्छा, तो खाना इन्होंने बनाया है? बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाया है आपने?”

राशि के मुँह से नौकरानी सुनकर सुलेखा घबरा जाती है और उसके हाथ से सब्जी लड़की के कपड़ों पर गिर जाती है।

लड़की सुलेखा का मुँह देख लेती है और डर जाती है। उसकी चीख निकल जाती है।

सहेली, “कितना बदसूरत चेहरा है ? मुझे नहीं खाना इनके हाथ का खाना।

फ्रेंड्स, आपने इनका चेहरा देखा है? अगर देखोगे तो 10 दिन तक सो नहीं पाओगे।”

राशि, “अरे! ऐसे कैसे तुम लोग जा सकती हो? खाना तो पूरा खाकर जाओ।”

सहेली, “नहीं, हमें अब भूख नहीं है। हम लोग अब चलते हैं।”

राशि गुस्से में कहती है, “करा दी ना मेरी बेइज्जती मेरी सहेलियों के सामने? मैंने कितनी बार कहा था, अपना ये मनहूस चेहरा मेरी सहेलियों के सामने बिल्कुल मत लाना?

पर आपने मेरी एक नहीं मानी। आने दो सुमित को, मैं अब इस घर में एक पल भी नहीं रह सकती।”

सुमित के आने के बाद राशि तरह-तरह की बातें बनाकर सुलेखा के खिलाफ़ उसे भड़काती है।

राशि, “सुमित, अब मैं एक पल भी इस घर में और नहीं रह सकता। अगर तुमने अलग रहने का फैसला नहीं लिया तो मैं तुम्हें छोड़ कर अपने मम्मी-पापा के घर चला जाऊंगा।”

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सुमित, “माँ, हम और अब आपके साथ नहीं रह सकते। हमारा भी अपना जीवन है। हमारा भी अपना अलग परिवार बनेगा।

जब हमारे बच्चे होंगे और आपका ये बदसूरत चेहरा देखेंगे तो शायद वो भी शर्मिंदा होंगे। इसलिए यही सही रहेगा कि हम आपसे दूर हो जाएं।”

सुलेखा, “पर सुमित बेटा, मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? मेरा तो जीवन ही तुमसे है, बेटा।

मेरी तो हर सुबह, हर शाम तुम्हें देखकर ही होती है। तुम्हारे बिना मैं जिन्दा नहीं रह पाऊंगी मेरे बेटे। मुझे छोड़ कर मत जाओ।”

सुमित सुलेखा की बात को नहीं मानता और राशि के साथ अलग घर में रहने चला जाता है।

सुलेखा सुमित के जाने से बहुत दुखी हो जाती है। सुमित के बिना जीवन काटना सुलेखा के लिए एक सजा थी।

एक सुमित ही तो था जो उसके जीने की आस था। सुमित के जाने के दुख से सुलेखा बीमार रहने लगी। उधर सुमित राशि के साथ दूसरे घर में रहने लगता है।

एक दिन सुमित ऑफिस में होता है तभी उसे अचानक हार्ट अटैक आ जाता है। उसके मुँह से “माँ” शब्द निकलता है।

सुमित, “माँ, बहुत दर्द हो रहा है।”

सुलेखा सुमित के गम में बेहोशी की हालत में उसे याद कर रही थी। पड़ोस की श्यामा मौसी उसके साथ बैठी थी।

सुलेखा, “ऐसा लग रहा है जैसे मेरे बेटे ने मुझे पुकारा हो। जैसे वो किसी तकलीफ में हो। मैं आ रही हूँ मेरे बेटे, तू चिंता मत कर, मैं आ रही हूँ।”

सुलेखा की तबियत बिगड़ने लगती है। उसकी सांस फूलने लगती है।

श्याम मौसी, “क्या हुआ सुलेखा? अरे! ये तो बेहोशी की हालत में हो रही है और तेज बुखार भी है। लगता है इसे अस्पताल ले जाना होगा।”

श्याम मौसी कुछ लोगों की मदद से सुलेखा को अस्पताल ले जाती है। वहाँ डॉक्टर सुलेखा का चेकअप करता है।

तभी एक नर्स वहाँ आती है।

नर्स, “डॉक्टर, एक इमरजेंसी केस आया है। कोई मिस्टर सुमित है, उनकी वाइफ मिसेज राशि उनके साथ है।”

सुलेखा, “मेरा बच्चा सुमित..?”

सुलेखा, “डॉक्टर, पहले आप उन्हें देखो, मेरी चिंता मत करो।”

डॉक्टर सुमित को देखने लगता है। वो राशि से कहता है,

डॉक्टर, “देखिए, हमें जल्दी ही एक हार्ट की जरूरत है। इनका हार्ट पूरी तरह से डैमेज हो रहा है। अगर इनका हार्ट नहीं बदला गया तो इनकी जान भी जा सकती है।”

राशि रोनी लगती है। सुलेखा उसे रोता हुआ देख लेती है। वो नर्स से कहकर राशी को अपने पास बुलाती है।

सुलेखा,” राशि, रो मत बहू। मेरे होते हुए मेरे बच्चे पर आंच भी नहीं आ सकती। तुम चिंता मत करो।”

राशि रोते हुए सुमित के पास चली जाती है। सुमित की तबियत का सुनकर सुलेखा की तबियत बिगड़ने लगती है। उसकी सांस फूलने लगती है। वो डॉक्टर से कहती है।

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सुलेखा, “डॉक्टर, मुझे पता है मैं अब नहीं बचूँगी। आप मेरा एक काम करना, मेरा ये दिल मेरे बच्चे को दे दो। मेरे सुमित को बचा लो।”

कुछ समय बाद सुमित की तबीयत में सुधार आता है।

डॉक्टर, “ओह! गुड मिस्टर सुमित, अब आप कैसा फील कर रहे हैं?”

राशि, “आप बिलकुल खतरे से बाहर हैं। डॉक्टर ने कहा है आपको कुछ ही दिनों में छुट्टी मिल जाएगी।”

सुमित, “राशि, मुझे किसने बचाया? मुझे बताओ। उनका मुझ पर एक बहुत बड़ा अहसान है।”

डॉक्टर, “सुमित, आपकी माँ अस्पताल में थी जब आपको लाया गया। उनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब थी।

जब उन्होंने आपके बारे में सुना, आज जो दिल आपके अंदर धड़क रहा है, वो आपकी माँ का है।”

सुमित, “माँ, इतना बड़ा बलिदान मुझ पापी के लिए। क्यों माँ क्यों? मुझे माफी मांगने का हक भी नहीं दिया, माँ।

मेरी जिंदगी बचाने के लिए तुमने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, माँ। मुझे माफ़ कर दो, माँ। मुझे माफ़ कर दो।”

श्यामा मौसी, “सुमित बेटा, तुम अपनी माँ के बलिदानों का कर्ज जीवन भर नहीं चुका सकते।

तुम अपनी माँ के जिस चेहरे को बदसूरत कहते थे, उस चेहरे पर जले का निशान बचपन में तुम्हें आँख से बचाते हुए सुलेखा को मिला था।

वो खुदा की चपेट में आ गई थी पर तुम्हारी माँ ने तुम्हें कुछ नहीं होने दिया।”

सुमित श्यामा मौसी की बात सुनकर बहुत रोता है। राशि भी अपने किए पर बहुत दुखी थी। सुमित गंगा घाट पर माँ की अस्थियों को प्रवाहित करता है और हाथ जोड़ कर क्षमा मांगता है।

सुलेखा ने एक बात यह साबित कर दी थी कि एक माँ का कर्ज बच्चे आजीवन नहीं चुका सकते।


दोस्तो ये Maa Ki Kahani आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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