गरीब का बदला | GARIB KA BADLA | Hindi Kahani | Achhi Achhi Kahaniyan | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब का बदला ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


प्रीतमगढ़ के राजा खड़क सिंह बहुत ही अय्याश और मज़ाकिया किस्म का राजा था।

अपनी दो-दो पत्नियों के रहते हुए नर्तकियों के साथ मुजरा सुनता रहता था।

इसका फायदा डाकुओं के सरदार चम्पत सिंह ने उठाया। वो धीरे-धीरे सरताजपुर गांव का लगान वसूल कर राजा को देने लगा।

कुछ ही सालों में चम्पत सिंह इतना मज़बूत हो गया कि राजा भी उससे डरने लगे। वह मनमाना लगान वसूलने लगा।

एक दिन…

बेटा, “पिताजी, हम लोग दिन-रात कड़ी मेहनत करके कमाते हैं और डाकू चम्पत सिंह के आदमी हमारा धन छीनकर ले जाते हैं।”

पिताजी, “अरे बेटा! हम लोग गरीब पंडित हैं। हमें तो पूजा करवाकर अपना पेट भरना है। हमें राजनीति से क्या लेना-देना?”

बेटा, “नहीं पिताजी, हमारा काम हमारे धर्म की रक्षा करना भी है। इस बार हम लोग कोई कर नहीं देंगे।”

मां, “नहीं बेटा, डाकू लोग बहुत ही बुरे लोग हैं। उनका काम ही लूट, हत्या और छीना-झपटी है। इन लोगों से पंगा नहीं ले सकते।”

बेटा, “नहीं माँ, हमें आवाज़ उठानी ही पड़ेगी। कब तक हम गुलाम बनकर रहेंगे, बताओ?”

तभी जगीरा लगान वसूलने ज्ञानचंद के पड़ोसी रतन के पास पहुंचा।

जगीरा, “क्यों रे रतन! पिछली दो बार से तुम्हारे बेटे की तबियत खराब होने का बहाना बनाकर लगान नहीं दे रहा है। इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा।”

रतन, “आप सही कह रहे हैं, लेकिन मेरा बेटा बंकू सही में बीमार है और इस बार भी लगान नहीं चुका पाऊंगा।”

जगीरा, “रतन, मैं कुछ नहीं जानता कि तुम और तुम्हारे परिवार का क्या होगा? मुझे तो बस लगान से मतलब है

और वो तो तुम्हें देना ही पड़ेगा, चाहे तुम जी कर दो या मर कर दो।”

तभी बंकू को खून की उल्टी आती है।

सुनीता (बंकू की मां), “ये लो मंगलसूत्र और जाकर लाला से उधारी लेकर वैद्यजी से दवा ले आओ।”

जगीरा मंगलसूत्र सुनीता के हाथों से छीन लेता है।

जगीरा, “चलो, अब तक का लगान तो इससे चुका जाएगा और हाँ, आगे से लगान के पैसे समय से देना।

अभी तो मैं जा रहा हूँ, जल्दी ही दूसरा लगान लेने आऊंगा, समझे?”

सुनीता, “मालिक, हमारा बच्चा मर जाएगा। मंगलसूत्र दे दो। ये मेरी सुहाग की आखिरी निशानी बची थी।”

जगीरा, “मैं नहीं जानता कि कैसे क्या करोगे? हमें लगान मिल गया बस।”

चम्पत सिंह, “ऐ क्या हुआ बे? एक लगान वसूलने में इतनी देरी लगाएगा तो पूरे गांव का लगान लेते-लेते साल बीत जाएगा।”

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जगीरा, “सरदार, उसका बच्चा बीमार है और बोल रही है कि मंगलसूत्र इसके सुहाग की निशानी है। मेरा पैर पकड़े हुए है।”

चम्पत सिंह, “तो तुम देख क्या रहे हो? मारो एक लात। इन सूअरों को को जितना आज़ादी दोगे, उतना ही सर पर चढ़कर नाचेंगे।

अगर पैसे नहीं हैं तो सुंदर काया तो है ना? कहो कि शाम को हवेली पर चली आए, लगान माफ़ कर देंगे।”

बंकू एक पत्थर उठाकर चम्पत सिंह को मारता है।

बंकू, “कुत्ते, मेरी माँ को गाली देता है। मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा।”

पत्थर जाकर सीधा चम्पत सिंह के सीने में लगता है।

जगीरा सुनीता को ज़ोर से एक लात मारता है और बंकू को उठाकर वहीं पटक देता है। बंकू एक बार फिर खून की उल्टी करता है।

रतन, “माफ़ी, मालिक माफी… बच्चा है, माँ के बारे में गंदी बात सुनकर तहस में आ गया, मालिक।”

जगीरा, “इस हरामज़ादे की इतनी हिम्मत कि सरदार पर पत्थर चलाया? इसको ज़िंदा रहने का कोई हक़ नहीं है।”

सुनीता, “मालिक, अपना बच्चा समझकर छोड़ दीजिए, मालिक। मेरे घर का एकलौता दीपक बुझ जाएगा।”

चम्पत सिंह, “ठीक है, ओए जगीरा! छोड़ दे उसको। इसे ले चल उठाकर।”

दीपू का खून खौल जाता है और चम्पत सिंह की ओर दौड़ता है।

दीपू, “दुश्मन, मैं तुझे नहीं छोडूंगा। ये ले…।”

इतना कहकर दीपू एक लाठी चम्पत सिंह को मारता है। तब तक जगीरा और उसके गिरोह के अन्य डाकू दीपू को पकड़कर मारने लगते हैं।

चम्पत सिंह, “रुक जाओ जगीरा, इसने डाकू चम्पत सिंह पर हाथ उठाया है और एक नहीं, इस गांव के दो दो लड़के आज हम पर हाथ उठा रहे हैं।

इनकी सजा इन्हें मिलेंगी। चलो इसे हवेली पर ले चलो, वहीं हम इसकी सजा सुनाएंगे और उस लड़के की माँ को भी हवेली पर ले चलो।”

ज्ञानचंद, ” मालिक, आप इसे छोड़ दे, मालिक। हम ब्राह्मण हैं। हम अपने इष्ट देव की कसम खाकर कहते हैं,

अब ये ऐसा कभी नहीं करेगा। भीख मांगते हैं, हमें छोड़ दो। बदले में मुझे 10 कोड़े मार लो।

चम्पक सिंह उनकी एक नहीं सुनता। दीपू और सुनीता को लेकर वह अपने अड्डे पर चले जाते हैं।

इधर ज्ञानचंद और रतन राजा खड़क सिंह के पास पहुँचकर…

ज्ञानचंद, “महाराज की जय हो! मैं सरताजपुर गांव का एक दरिद्र ब्राह्मण हूँ।

मेरा बेटा दीपू और इसकी पत्नी सुनीता को डाकू चंपत सिंह और जगीरा पकड़कर अपने अड्डे पर ले गया है। कृपया सैनिक भेजकर उन्हें छुड़वा दीजिए।”

रतन, “हाँ महाराज, मैं एक किसान हूँ। मेरा बेटा बहुत दिनों से बीमार है।

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मेरी पत्नी को जगीरा और चंपत सिंह उठाकर ले गए हैं। उसे वापस करवा दो, महाराज।”

राजा, “क्या कहा… डाकू चंपत सिंह? देखो, तुम तो जानते ही हो कि डाकू चंपत सिंह से हमारी सेना भी डरती है।

इस मामले में मैं तुम लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता। अगर कुछ किया, तो वो मेरा तख्ता पलट कर सकता है भई।

बेहतर होगा कि तुम लोग चम्पत सिंह के पास ही जाओ, शायद उसे दया आ जाए।”

इधर डाकू चंपत सिंह के अड्डे पर…

चम्पत सिंह, “जगीरा, अरे! इस लड़के को पहाड़ी पर ले जाकर नदी में फेंक दे और सुनीता को कल सुबह इसके गांव पर छोड़ आना। आज ये मेरे साथ रहेगी।”

जगीरा दीपू को ले जाकर पहाड़ी से नीचे नदी में फेंक देता है। नदी में गिरते ही दीपू बेहोश हो जाता है

और रात भर बहते बहते एक अनजान जंगल के किनारे पत्थर से टकराकर रुक जाता है।

तभी एक महान तपस्वी देवराज की नजर उस पर पड़ती है और वो दीपू को अपनी कुटिया में ले जाकर उपचार करते हैं। कुछ ही देर में दीपू को होश आ जाता है।

दीपू, “मैं कहाँ हूँ? देवर्षि, आप कौन हैं?”

देवराज, “मैं तपस्वी देवराज हूँ, बालक। तुम नदी के किनारे पड़े थे, तो मैं तुम्हें कुटिया में ले आया। तुम कौन हो, बालक और नदी में कैसे गिर गए?”

दीपू, “देवर्षि, मैं प्रीतम गणराज्य के सरताजपुर गांव का एक दरिद्र ब्राह्मण का बेटा हूँ। हमारे राजा खड़क सिंह हैं,

लेकिन डाकू चंपत सिंह का आतंक हमारे गांव पर है। उसने हम सभी गांववासियों का जीना हराम करके रखा है।”

दीपू तपस्वी देवराज को सारी बात बताता है।

देवराज, “हम्म… दीपू, तुमने एक निर्भीक ब्राह्मण का कर्तव्य निभाया है। हम तुम्हें वरदान देते हैं

कि अन्याय के खिलाफ़ तुम जो भी काम करोगे, उसमें सामने वाले की आधी ताकत तुम्हारे अंदर आ जाएगी।”

दीपू जंगलों से होता हुआ अपने गांव की ओर चल देता है, लेकिन तभी उसके सामने जंगल का राजा, शेर आ जाता है।

दीपू, “देखो शेर भैया, मुझे गांव वालों को बचाने जाना है, मुझे छोड़ दो।”

शेर, “हाथ में आए शिकार को यूँ ही जाने दूं? मुझे बेवकूफ समझा है क्या?”

दीपू, “देखो भैया, ऐसे ही मैं बहुत गुस्से में हूँ और गुस्सा मत दिलवाओ, बता रहा हूँ, नहीं तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।”

शेर, “अच्छा… चूहे को भी गुस्सा आता है? तुमने एक शेर को ललकारा है, अब देख तुम्हें कैसे मैं चट कर जाता हूँ… देख?”

शेर पूरी ताकत से दीपू के ऊपर छलांग मार देता है। लेकिन दीपू पहले से ही चौकन्ना था

और पूरी ताकत से अपने मुक्के को शेर के जबड़े पर दे मारता है। शेर की आधी शक्ति दीपू में आ गई थी, इसलिए शेर कुछ दूर जाकर गिरता है।

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शेर की दहाड़ से पूरे जंगल के जानवर इकट्ठा हो जाते हैं। दोनों में भयंकर लड़ाई शुरू हो जाती है। आखिरकार दीपू जीत जाता है और शेर हार मान लेता है।

शेर, “मुझे छोड़ दो, बालक। तुम जो कहोगे हम और हमारी प्रजा तुम्हारे लिए करेंगे।”

दीपू, “तो ठीक है, तुम और सभी जंगल के जानवर हमारे गांव को डाकुओं से छुड़वाने में मदद करेंगे।”

शेर, “ऐसा ही होगा।”

दीपू, “चील, तुम जासूसी कर बताओगी कि चंपत सिंह का गिरोह कहाँ पर है? जब हम चंपत सिंह से लड़ रहे होंगे,

तभी तुम ऊपर से पैसों की बारिश कर देना ताकि डाकू लोग पैसे लूटने लगे और हम आसानी से उनको बंदी बना सकें।”

शेर, “वाह! अच्छी योजना है। मुझे तो डाकुओं का भोजन भी मिल जाएगा।”

दीपू, “बंदर मामा, आप पहले से ही सभी साथियों के साथ पेड़ों पर रहेंगे। मौका मिलते ही डाकू का हथियार उठाकर भाग जाना।”

शेर, “गजब… मुझे भी हथियार का डर नहीं रहेगा। निहत्थे डाकुओं का स्वादिष्ट भोजन… मज़ा आ जाएगा।”

दीपू, “कोयल बहन, तुम्हें जैसे ही कोई गड़बड़ दिखाई दे, अपनी मधुर आवाज़ से हमें सूचित करना।”

गांव में…

ज्ञानचंद, “अरे मेरा बेटा! जिंदा है तू?”

ज्ञानचंद, “अरे ओ दीपू की माँ! सुनती हो? ज़रा बाहर तो आना… देखो कौन आया है?”

दीपू की माँ, “आपको कई बार कहा कि दीपू का नाम ना लो, मुझे उसकी याद आ जाती है।”

दीपू की माँ, “अरे मेरा लल्ला! तू जिंदा है? मैंने तो आशा ही छोड़ दी थी।”

ज्ञानचंद, “हम कल सुबह ही गांव छोड़कर चले जाएंगे, नहीं तो चंपत सिंह के डाकू दीपू को जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”

दीपू, “पिताजी, अब हम नहीं… चंपत सिंह और उनके डाकू हमारे गांव को छोड़कर जाएंगे।”

दीपू की माँ, “नहीं बेटा, हम लोग उनसे नहीं जीत सकते। वे हथियारों से हम सभी को मौत के घाट उतार देंगे।

पिताजी की बात मान ले दीपू, हम लोग चलते हैं कहीं दूसरी जगह। अरे! जिंदा बचे तो कहीं भी रहकर अपना जीवन गुजार लेंगे।”

ज्ञानचंद, “हाँ बेटा, उस दिन सुनीता जगीरा को दांत काटकर भागकर जंगलों में जा छुपी।

चंपत सिंह और उनके डाकू रतन के घर पर आए और सुनीता के ना मिलने पर दोनों बाप बेटों को मारपीट कर गांव से निकाल दिया।”

दीपू ज्ञानचंद को अपने साथ हुई घटनाओं के बारे में बताता है। ज्ञानचंद और विजया को विश्वास दिलवाता है कि वो और जंगल के उसके साथी मिलकर डाकुओं को गांव से मार भगाएंगे।”

दूसरे दिन सुबह में कोयल आकर कूंकने लगती है।

दीपू, “पिताजी, लगता है खबरी ने डाकुओं को बता दिया कि मैं आ गया हूँ।”

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दीपू, “कोयल, तुम जाकर जंगल में खबर कर दो।”

तभी चील आकर बताता है कि चंपत सिंह अपने सभी डाकुओं के साथ गांव की तरफ आ रहा है।

इधर कोयल के कहने पर शेर सभी जानवरों को लेकर सरताजपुर गांव पहुँच जाता है। सभी गांव वाले घबराकर इधर-उधर भागने लगते हैं।

दीपू, “गांववासियों, जंगल से ये जानवर हमारी मदद के लिए आए हैं। आप लोग घबराए नहीं, अपने-अपने घरों में सुरक्षित रहें।”

शेर, “बोलो बालक, अब हमें क्या करना है?”

दीपू, “सबसे पहले शेर भैया, आप लाला के घर जाकर उसे हड़का कर पैसे ले आओ और चील को दे दो।

फिर सभी जानवरों के साथ छुपकर डाकुओं के आने का इंतजार करो।”

शेर, “चलो, ये काम तो मैं यूं ही कर दूंगा।”

शेर जैसे ही लाला सेठ के घर में घुसता है, पूरे घर में हड़कंप मच जाता है। सारे नौकर इधर-उधर भाग जाते हैं। सेठ तिजोरी छोड़कर कमरे में बंद हो जाता है।

बंदर मामा जाकर उसमें से सारे पैसे लेकर एक कपड़े में बांधकर चील को दे देते हैं।

तभी कोयल कूंकने लगती है। चंपत सिंह जगीरा और डाकुओं के साथ वहाँ पहुंचता है।

चम्पत सिंह, “पंडित, हमें मालूम है कि तुम्हारा बेटा जिंदा बचकर आ गया है। चुपचाप अपने बेटे को सरदार के सामने ले आओ, नहीं तो हम तुम्हारे घर को आग लगा देंगे, समझे?”

दीपू, “मैं भी तुम ही लोगों का इंतज़ार कर रहा था। अरे! तू क्या निकलेगा?

मैंने तुम्हें बिल से निकालने के लिए जानबूझकर तुम्हारे पास खबर पहुंचवाई थी।”

चम्पत सिंह, “अच्छा… तो चींटी के भी पर निकल आए? ए जगीरा! पकड़ कर लाओ उस पंडित के बच्चे को।

आज सभी गांव वालों के सामने उसे जिंदा जलाएंगे ताकि आज के बाद कोई सर नहीं उठा सके।”

दीपू, “अरे जगीरा! फिलहाल तो अपनी जान की फिक्र कर।”

दीपू, “साथियो, आक्रमण।”

पेड़ों पर से अचानक बंदर सारे कूद कर शोर मचाते हुए डाकुओं पर टूट पड़ते हैं और उनके हथियार लेकर पेड़ पर भाग जाते हैं।

तभी सभी जानवर एकाएक डाकुओं पर आक्रमण कर देते हैं। शेर को देखकर सभी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगते हैं।

तभी चील ऊपर से पैसों की बारिश कर देता है। डाकू लोग पैसा लूटने लगते हैं।

चंपत सिंह, “अरे हरामजादों! अरे पैसा छोड़ो और युद्ध करो।”

शेर कई डाकुओं को घायल कर देता है और उन्हें खा जाता है। सारे डाकू मारे जाते हैं।

दीपू, “भागता कहां है कमीने? ये ले मेरा फौलादी मुक्का।”

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चम्पत सिंह, “मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो। ये शेर मुझे खा जाएगा।”

वो कुछ सोच पाता, उससे पहले सारे जानवर उस पर टूट पड़ते हैं। जगीरा के साथ चंपत सिंह भी मारा जाता है।

दीपू, “गांव वालों, सभी अपने घर से बाहर आ जाओ। सारे डाकू मारे गए। अब हमारा गांव दरिंदो से मुक्त हो गया है।”

सारे गांववासी खुशी से नाचते हुए अपने अपने घरों से बाहर आ जाते हैं।

राजा खड़क सिंह सरताजपुर गांव को लगान मुक्त गांव घोषित कर देता है।

कुछ दिन बाद रत्न भी अपने परिवार के साथ गांव वापस आ जाता है। सभी खुशी खुशी रहने लगते हैं।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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