हांडी | Handi | Horror Kahani | Darawani Kahaniyan | Bhutiya Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – हांडी। यह एक Darawani Kahani है। तो अगर आपको भी Horror Kahaniya, Bhutiya Kahani या Scary Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


मेरा नाम दीपक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ। ये घटना सन 1980 के आसपास की है।

उस समय में लॉ का स्टूडेंट था। मेरे बचपन में ही मेरे माता-पिता चल बसे थे। मेरी परवरिश मेरे चाचा जी ने की थी।

चाचा जी जिला कोर्ट में मुंशी थे। उन्होंने मुझे अपनी संतान की तरह पढ़ाया-लिखाया था। लेकिन ग्रेजुएशन तक आते-आते चाचा जी भी नौकरी से रिटायर हो गए।

परिवार में छह जनों का गुजर बहुत ही मुश्किल से हो रहा था। चाचा जी की पेंशन ऊँट के मुँह में चीरा जैसी साबित होती थी।

मैं पूरी कोशिश करता कि चाचा जी का कुछ सहयोग कर सकूँ। इसी सिलसिले में मुझे जो भी छोटा-मोटा काम मिलता, मैं उसे कर लिया करता।

मैंने रात में ऑटो भी चलाए, अखबार भी बाँटे, शहर के होटल में नाइट शिफ्ट में काम भी किया।

पर मुझे उतने पैसे नहीं मिल पाते कि मैं किसी की पेट पाल सकूँ और अपनी पढ़ाई भी पूरी कर सकूँ।

मैं ऐसी सोच को कुरेदते हुए वापस अपने घर पर आ रहा था। मेरे घर के रास्ते में श्मशान घाट पड़ता था।

उसी श्मशान घाट का एक अघोरी मुझे रोज़ आते-जाते देखता था और फिर एक दिन उसने मुझे टोकते हुए कहा,

अघोरी,”तुम ही हो ना, दीपक?”

दीपक,”हाँ, मैं दीपक हूँ। क्यों, क्या हुआ? कोई काम था आपको मुझसे?”

अघोरी ने अपनी बड़ी-बड़ी लाल आँखों से मुझे घूरा, फिर भारी आवाज में बोला,

अघोरी,”बेरोज़गार हो बेरोज़गार? कुछ रकम कमाना चाहोगे?”

मेरे मन में भी ख़ुशी उछली। अंधे को क्या चाहिए… दो आँखे।

दीपक,”जी, ज़रूर। लेकिन काम क्या करना होगा?”

अघोरी,”देखो बेटा, मैं तो सब कुछ साफ़-साफ़ बता देता हूँ, ताकि तुम्हारे मन में कोई भ्रम ना रहे। बात ऐसी है कि हम ठहरे सन्यासी अघोरी जन कल्याण के लिए कभी-कभार हमें कुछ कार्य सिद्ध करने होते हैं।

ऐसे कार्य गृह, नक्षत्रों और कालों की जटिल गणना के बाद ही किए जाते हैं। ऐसा ही एक कार्य है, जो मैं तुमसे करवाना चाहता हूँ।

इस कार्य का सही समय योग अगले शनिवार रात्रि बन रहा है। वैसे तो कोई कठिन कार्य नहीं है। मात्र 15 मिनट का काम है, जिसके बदले में तुम्हें मैं पूरे ₹5000 दूंगा।”

दीपक,”5000..? मेरे दिमाग में एकदम से धमाका सा गूंजा। ऐसा क्या है इस सिद्धि में…?”

अघोरी,”तुम्हें ऐसे कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। इतना समझ लो, ये सब जन कल्याण के लिए है।

तुम्हें तो बस चावल पकाकर मुझे लाकर देने हैं। 15 मिनट के ₹5000, कभी कमाए है जीवन में?”


अघोरी एक एक शब्द चबा-चबाकर बोला। मैं बड़ी अजीब सी हालत में खड़ा अघोरी को देखे जा रहा था।

मेरे दिल और दिमाग में बहस छिड़ गई। दिल कुछ कह रहा था और दिमाग कुछ और।

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दीपक (दिल),”जान है तो जहान है, दीपक मना कर दे।”

तभी दिमाग ने कहा,
दीपक (दिमाग), “शमशान में सिर्फ 15 मिनट रहने के ₹5000 मिल रहे है। दीपक सोच, तेरे कितने सारे काम एक झटके में पूरे हो जाएंगे?

तेरे चाचा का महंगा इलाज, तेरी पढ़ाई का खर्च, घर की मरम्मत, सब कुछ सिर्फ 15 मिनट में पूरे हो जाएंगे। हाँ कर दे, दीपक…तुरंत हाँ कर दे।”

दिल के पास तर्क-वितर्क थे तो दिमाग में अनेक उबलते छांए भरी पड़ी थीं। मेरी गरीबी और जरूरतें शमशान के अनदेखे प्रेतों से भी अधिक विकराल थीं। आखिरकार दिमाग जीता और दिल हारा।

दीपक,”ठीक है, मैं अगले शनिवार आ जाऊंगा।”

इतना कहकर मैं अपने घर आ गया। घर आकर भी मेरे दिले और दिमाग पर अघोरी और शमशान छाया रहा।

जैसे-तैसे अगला शनिवार आया। मुझे आज सुबह से ही कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी।

हालांकि मुझे अकेले ही श्मशान आने के लिए कहा था, लेकिन मैं इतना नादान और मूर्ख नहीं था कि अघोरी की सारी बातें मानकर चला जाऊं।

गाँव में मेरे कई पक्के दोस्त थे, जिनमें राजवीर मेरा बचपन का लंगोटिया यार था।

अघोरी के साथ हुई सारी बातचीत जब मैंने उसे बताई तो वो ख़ुशी-ख़ुशी मेरे साथ शमशान चलने के लिए तैयार हो गया और उसके साथ मेरे दो दोस्त अमर और बंसी भी थे।

अब हम चार लोग सावधानी के तौर पर अपने साथ मजबूत डंडे और टॉर्च लेकर शमशान घाट को चल दिए।

शमशान घाट के दक्षिणी भाग से कुछ दूरी पहले जंगली झाड़ियों और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों का झुंड था।

मैंने तुरंत ही अपने दोस्तों को पेड़ों पर चढ़ने का कहकर शमशान की ओर चल दिया। मैं अभी कुछ ही दूर अंदर गया था कि मुझे किसी की आवाज सुनाई दी।

अघोरी, “इधर आओ।”

ये आवाज़ अघोरी की थी। मैंने जब पीछे मुड़कर देखा तो मेरे सामने काली मानव आकृति खड़ी दिखाई दी, जो कि अघोरी था।

अघोरी, “आओ, मेरे साथ चलो।'”

अघोरी श्मशान घाट से कुछ दूरी पर ज़मीन पर बैठ गया और उसने अपने चारों ओर एक गोल घेरा खींचा और मुझे अपने सामने बैठा लिया।

अघोरी,” दीपक, ध्यान से सुनो। 12 बजने में कुछ ही समय शेष है। 12 बजते ही तुम्हें हांडी लेकर चिता के पास जाना है।

तुम्हारे पास मात्र 15 मिनट का समय होगा। जो चिता तेजी से जल रही है, उसके पैरों पर ये हांडी रखकर चावल पकने देना और ठीक 10 मिनट बाद हांडी उठाकर आ जाना।”

ये कहकर उसने एक छोटी सी परात में कुछ सामग्री डालकर आग जलाई और धीरे-धीरे मंत्र बुदबुदाने लगा। उसने कुछ मंत्र पढ़कर मेरे ऊपर भी फूंके।

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फिर चावलों से भरी एक हांडी में एक बोतल से पानी भरने लगा। लेकिन नहीं, ये पानी तो नहीं था। उसकी जलाई आग की मध्यम रौशनी में मैंने देखा कि उस पानी का रंग लाल था।

तो…तो क्या ये खून था? मेरे जिस्म में कपकपी की एक लहर सी दौड़ गई। फिर भी मैं हिम्मत करके बैठा रहा।

अघोरी, “12 बज गये। जाओ, तुरंत जाओ। जो कहा है करके आओ।”

अघोरी ये कहते ही मुझे चावलों से भरी हांडी थमा देता है। मैं भी तुरंत चावलों वाली हांडी उठाकर मन ही मन भगवान का नाम लेकर शमशान घाट के अंदर चल दिया।

मैं अभी कुछ ही कदम दूर गया था कि देखा, शमशान के अंदर दो चिताएँ सुलग रही हैं। पहली जली चिता की राख ठंडी पड़ गई थी, जबकि दूसरी जली चिता को देखकर लग रहा था कि इसे कुछ देर पहले ही जलाया गया है।

पर सवाल ये था कि हिंदू धर्म के नियमों के अनुसार सूर्यास्त के बाद शव का दाह संस्कार नहीं किया जाता है, फिर ये सब किसने किया?

मैं अभी भी इन सवालों से जूझता हुआ तेजी से दहकती चिता के समीप पहुंचा और हांडी को चिता के तख्ते पर लटका के उसके पाँव के पास रख दिया।

हांडी में चावलों के पकने की बुदबुदाहट साफ सुनाई दे रही थी। अभी तक सब कुछ सामान्य था।

हांडी से चावलों की भाप भी उठने लगी थी, और उसमें से एक अजीब सी गंध निकल रही थी। तभी मुझे लगा कि मेरे पीछे कुछ छिपा हुआ है।

अनगिनत कदमों की छाप मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी। घबराहट से पहले होश फाख्ता थे। मैं अघोरी के बताए सारे निर्देश पुरे जा रहा था।

घबराहट और जिज्ञासा में मैंने पीछे मुड़कर देखा कि ये शोर कैसा है? हे भगवान! मेरे पीछे बड़ा ही खतरनाक नजारा था।

मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। मेरे पैर वहीं जाम हो गए। हाथ बुरी तरह कांप रहे थे।

जिस चिता से मैं चावल की हांडी और रस्सी में पकड़ कर ला रहा था, उस चिता को चारों ओर से बहुत सारे बोने व्यक्तियों ने घेर रखा था। ये बौने लोग लगभग ढाई-तीन फुट के थे।

सभी के सभी गंजे और बिल्कुल नग्न अवस्था में थे। चिता से लगातार निकले जा रहे थे। इनकी संख्या कई 100 तक पहुँच गई थी,

और उस पर गजब की बात ये कि उन्होंने मेरी ओर भागना शुरू कर दिया। उनके मुँह से चीख-चिल्लाहट भी निकलने लगी। “

चीख, ” ये हांडी हमें दे दो, ये हांडी हमें दे दो।”

मैं इस समय शमशान के बिल्कुल बीच में था और बौनों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी। वे एक के बाद एक लगातार चिता से निकलते जा रहे थे। तभी मेरे अंतर्मन में एक आवाज गूंजी।

आवाज़, “भाग दीपक भाग।”

खुद से कहते हुए मैंने शमशान से बाहर की ओर दौड़ लगा दी थी, लेकिन शायद मैंने भागने में देर कर दी थी।

पांच-सात बौनों ने मेरे पैर को पकड़ लिया था। पल-पल मेरे पैर से पाँव से मांस का लोथड़ा अलग कर रहे थे।

मगर मैंने हार नहीं मानी और अपनी पूरी जी जान से शमशान से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। तभी राजू, अमन और बंसी तीनों मेरे सामने अपने हाथ में डंडा लिए सीना ताने मेरे खड़े थे।

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राजू, “दीपक, तू चिंता मत कर। हम आ गए। तुझे कुछ नहीं होने देंगे।

राजू के कहते ही अमन और बंसी भी मेरी ओर दौड़ पड़े। लेकिन बौनों की तादाद इतनी ज्यादा थी कि उनका कोई हिसाब नहीं था, और अभी भी वे चिता से निकलते जा रहे थे।

इधर मेरे साथ आए मेरे दोस्तों ने हार नहीं मानी थी। वो लोग डंडे से मारते हुए बौनों को मुझसे दूर कर रहे थे और मुझे सहारे से पकड़ शमशान के बाहर ले आए।

पर उनमें से एक भी शमशान घाट से बाहर नहीं आया। बस सभी श्मशान के गेट पर ही थे।

एक फौज की तरह चावलों की हांडी को देख रहे थे, क्योंकि हम सारे दोस्त शमशान घाट से जिंदा बाहर आ गए थे।

हम सब एक-दूसरे को देखकर खुश थे, पर सबके मन में बस एक ही सवाल गूंज रहा था कि आखिर ये बौने कौन थे और किसलिए हांडी के पीछे दौड़ रहे थे?

हम चारों सीधा उस अघोरी के पास गए। अघोरी मुझे जिंदा आता देखकर चौंक गया और मेरे साथ मेरे दोस्तों के गुस्से से भरे चेहरे को देखकर उसके पसीने छूटने लगे।

डर के मारे वह हमसे दूर भागने ही लगा था। बिना कोई सवाल-जवाब किए पहले तो मेरे दोस्तों ने उस अघोरी को डंडों से पीटकर अधमरा कर दिया।

फिर भी उसमें कुछ जान बाकी थी।

राजू, ” बिना कुछ पूछे तुझे इसलिए मारा ताकि तू झूठ बोलने की गलती दुबारा न करे, समझा? सीधा सीधा बता, कौन हैं ये बौने और क्या चाहते थे?”

इस सवाल पर अघोरी ने पहले तो दमभर सांस ली, फिर आहिस्ते से कहा।

अघोरी, “बेटा, हमारे दंत कथाओं में पिशाच का जिक्र है, जिसे हम लोग रक्त पिशाच के नाम से जानते हैं।

इसे एक वरदान भी मिला है और एक शाप भी, जो जन्मों से भूखा है, जो सिर्फ खून पीते हैं और अनाज खाते हैं, क्योंकि अनाज खाते ही उन्हें मुक्ति मिल जाती है।

और एक रक्त पिशाच मुक्त होने पर इस धरती पर 10 सोने के सिक्के छोड़कर जाता है। इन्हीं रक्त पिशाचों को मेरे दादा ने अपनी सिद्धियों और प्रेज शक्तियों से जगाया और उन्हें चिता के जरिए इस दुनिया में भी लाए।”

अघोरी की बातें सुनकर हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था।

मैं, “तो इसका मतलब इस हांडी में जितने चावल के दाने हैं, रक्त पिशाच हर एक दाने के बदले 10 सोने के सिक्के देगा?”

मेरे सवाल पर अघोरी ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, “हाँ, और हर एक चावल का दाना खाने के बाद रक्त पिशाच इस धरती से मुक्त हो जाएगा और वो 10 सोने के सिक्कों में बदल जाएगा।”

तभी राजू ने भी अघोरी से पूछा, “तो अगर रक्त पिशाच को अनाज ही चाहिए तो फिर वो हमारे शरीर को क्यों नोच रहे थे?”

इस पर अघोरी बोला, “तुम भूल गए हो, रक्त पिशाच जन्म से ही भूखा होता है। उसे अपनी भूख में इस कदर अंधा बना दिया है कि वो किसी राक्षस से कम नहीं है।

रक्त पिशाच को मुक्ति अनाज के दाने से मिलेगी, भले ही वो कितना ही मांस खा ले।

इसीलिए तो मेरे दादा ने मेरे बाप को रक्त पिशाच को परोस दिया और मैंने अपने दादा को। और ये लालच का पेट है, जो कभी भरता नहीं।”

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मैं और मेरे सारे दोस्तों ने कहानी पूरी जान ली थी, पर अब भी एक शक था कि अगर हमने उसे आज जिंदा छोड़ दिया, तो ये फिर कल किसी और दीपक, राजू या बंसी को रक्त पिशाच का शिकार बना देगा।

इसीलिए हमने चावल से भरी हांडी अघोरी को थमाई और उसे पकड़कर श्मशान के अंदर फेंक दिया। श्मशान के दरवाजे पर अभी भी सैकड़ों बौने रक्त पिशाच अपनी मुक्ति का इंतजार कर रहे थे।

चावल की हांडी के साथ अब अघोरी पर भी बौने रक्त पिशाच टूट पड़े। हमने अपनी आँखों से देखा कि एक चावल का दाना खाते ही एक रक्त पिशाच 10 सोने के सिक्कों में बदल गया।

और जब तक हांडी में एक दाना भी चावल का बचा रहा, रक्त पिशाच उसे खाने के लिए आते रहे। देखते ही देखते हमारी आँखों के सामने एक सोने का पहाड़ खड़ा हो गया।

पर इतना खौफनाक मंजर देखकर किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि कोई उस सोने को छुए भी। और उस अघोरी का तो अता-पता भी नहीं था।

उसकी एक-एक बोटी तक किसी को नहीं मिली। पर किसी तरह मैंने हिम्मत की और चावल के एक-एक दाने को खत्म करने के बाद रक्त पिशाच का दिया हुआ सारा सोना मैंने उसी श्मशान के किसी कोने में दफन कर दिया जिसकी खबर सिर्फ मुझे है, सिर्फ मुझे।


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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