ईमानदार हलवाई | Imaandaar Halawai | Hindi Kahani | Moral Story | Achhi Achhi Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” ईमानदार हलवाई ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


मनोहर उर्फ मन्नू एक साधारण परिवार का लड़का था। बचपन से ही उसे टेस्टी खाने-पीने और खिलाने का बहुत शौक था।

पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता। स्कूल के रास्ते में टेस्टी मिठाइयां और पकवान बनते देख, वो घंटों हलवाई की दुकान पर बिता देता।

एक दिन स्कूल लेट पहुंचने पर,

मास्टर जी, “क्यों रे मन्नू, इतना लेट क्यों आए हो? तुम डेली लेट हो जाते हो, क्या बात है?”

लडका, “सर, ये पिंटू हलवाई की दुकान पर खड़ा होगा। मैं कल ही उसको देखा था स्कूल ड्रेस में। वहाँ पर ये जलेबियां छान रहा था।”

मास्टर जी, “ओह! तो इसकी हलवाई की दुकान है? मन्नू, पिताजी से क्यों नहीं कहते कि स्कूल जाने के टाइम पे काम ना करवाए?”

लडका, “नहीं, इसके पिताजी इंजीनियर हैं। ये तो रास्ते में पड़ने वाली दुकानों में काम करता रहता है।”

मास्टर जी, “अरे वाह! ये तो और अच्छी बात है कि मन्नू अपने खर्चे खुद उठाता है। तुम सभी को इसे फॉलो करना चाहिए।

जीवन में हमें सेल्फ-इंडिपेंडेंट ही होना चाहिए। शाबाश मन्नू! लेकिन पढ़ाई के समय पढ़ाई ही होनी चाहिए।”

लडका, “सर, आप समझ नहीं रहे हैं। ये काम करने के बदले पैसे नहीं लेता।

इसे खाना बनाने और खिलाने में मन लगता है। घर का सारा काम यही करता है। बोले तो मन्नू नहीं, ये मुन्नी है… हा हा हा।”

मास्टर जी, “चुप रहो। चलो सब अपनी-अपनी मैथेमेटिक्स की बुक निकालो।”

मास्टर साहब उस दिन से मन्नू पर नज़र रखने लगते हैं। वो लड़कों से ज्यादा लड़कियों में सहज रहता था।

लड़कियां उससे तरह-तरह के खाने की रेसिपी पूछा करतीं और वो उन्हें बनाने की विधि बताया करता।

मन्नू,”अरे! सुनो सारिका, देखो मैंने क्या आम का अचार बनाया है। ज़रा चक्कर तो देखो।”

सारिका, “अरे वाह! ला इधर ला। यम्म… रे कमाल का जादू है तेरे हाथों में मन्नू। इतना मज़ेदार है। वाह! मज़ा ही आ गया।”

ये सब देखकर मास्टर साहब एक दिन बाजार में मन्नू के पिताजी सोमू से मिलकर सारी बात बताते हैं।

मन्नू के पिताजी ने भी बताया कि वह लड़कियों वाला काम ही पसंद करता है। पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता।

एक दिन क्लास में बच्चे उसे छेड़ रहे थे।

मन्नू, “टीनू, मेरा बेलन दे दे, नहीं तो मैं सर से बोल दूंगा कि तुम लोग मुझे छेड़ रहे हो।”

टीनू, “मैं भी बोल दूंगा कि तुम अपने बैग में बेलन और खर्चूल छुपाकर लाते हो।”

मास्टर जी, “क्या हो रहा है? क्यों इतना शोर कर रहे हो तुम लोग? तुम लोगों ने पूरी क्लास को मछली बाजार बना दिया है।”

टीनू, “सर, ये रोज़ अपने बैग में खर्चूल और बेलन लाता है। सर, खाने की बात करता रहता है। हमें पढ़ने में डिस्टर्ब करता है।”

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मन्नू, “नहीं सर, ये सब झूठ बोल रहे हैं। मैं तो किसी को टोकता भी नहीं। ये लोग मुझे अकेला देखकर छेड़ते रहते हैं।”

मास्टर जी, “चलो-चलो सब बैठ जाओ। आज रिपोर्ट कार्ड डिस्ट्रीब्यूशन है।”

मास्टर जी, “मन्नू, तुम्हारा रिपोर्ट कार्ड सबसे ख़राब है। तुम हिंदी में फैल हो गए हो। हिंदी में गाय पर लेख में सिर्फ दूध से बनी मिठाई ही तीन पेज में लिखा है।”

टीनू, “मैंने बोला था ना सर, सारा दिन तो मिठाई वाले के पास रहता है। मैथ्स में कितने नंबर लाया है सर?”

मास्टर जी, “मैथ में सौ में से तीन नंबर आया है। इसने लिखा है तीन किलो दूध में सात किलो दूध मिलाने पर सीधा सात किलो दूध बनेगा।”

मन्नू, “जी सर, दूध वाले एक किलो में दही और 100 ग्राम पानी मिलाते हैं। इस हिसाब से साढ़े सात किलो दूध ही मिलेगा।”

मास्टर जी, “देखो मन्नू, तुम ना मुझे समझ में आ रहे हो, ना ही स्कूल मैनेजमेंट को। इसलिए मैनेजमेंट ने तुम्हें स्कूल से निकाल दिया है।”

टीनू, “सर? मन्ने तो अभी भी समझ नहीं आ रहा है। कभी मन्नू तो कभी मुन्नी दिखाई देता है।”

पूरी क्लास में सब ज़ोर-ज़ोर से ठहाका मारकर हंसने लगते है। मन्नू घर पर जाकर बताता है तो उसके पिताजी और परिवार वाले बहुत नाराज़ होते हैं।

मन्नू को कई साइकोलॉजिस्ट से भी दिखाया जाता है, लेकिन उसकी रुचि तो तरह-तरह के खाने बनाने में ही थी।

एक दिन मन्नू के पिताजी संत से मिलते हैं।

मन्नू के पिताजी, “गुरुदेव, यही है मेरा बेटा मन्नू। इसे सिर्फ किचन में ही अच्छा लगता है। खाना बनाना और लोगों को टेस्टी खाना खिलाना इसे पसंद है।”

गुरुदेव, “वाह! ये तो बहुत ही अच्छा गुण है। यही गुण तो इसे विशेष बनाते हैं। इसमें घबराने वाली क्या बात है?”

मन्नू के पिताजी, “गुरुदेव, इसकी अभी पढ़ने की उम्र है। पढ़ाई में मन ही नहीं लगता, सिर्फ खाना बनाने में लगा रहता है।

कुछ कीजिए महाराज, इसे स्कूल से भी निकाल दिया गया है। गांव के लोग इसे ट्रांसजेंडर, मुन्नी, छक्का न जाने क्या-क्या कहकर बुलाते रहते हैं। हमारी प्रतिष्ठा को इस कारण ठेस पहुंचता है।”

गुरुदेव, “देखिए, प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ना कुछ गुण होते हैं। इस बालक की रुचि टेस्टी खाना बनाने और खिलाने में है। इसे मेरे साथ भेज दो। संतों के साथ रहेगा तो कुछ दिनों में अच्छा हो जाएगा।”

मन्नू को संत के साथ भेज दिया गया। जल्द ही मन्नू मठ के सारे संतों का चहिता बन गया। वो अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर संतों को खिलाता।

एक दिन…
संत, “देखो मन्नू, मैं तुम्हें अपने साथ लाया था कि तुम एक अच्छे नागरिक बनो, लेकिन तुम तो पहले से ही बहुत अच्छे हो।

बस तुम्हारी रुचि खाना बनाने और खिलाने में है। अब तुम्हें यहाँ से जाना होगा।”

मन्नू, “क्यों गुरुदेव, मुझसे कुछ गलती हो गई है क्या?”

गुरुदेव, “तुम्हारी कोई गलती नहीं है, बेटा। मठ के सारे संत तुम्हारे द्वारा पकाए गए स्वादिष्ट भोजन के आदी हो गए हैं।

संतों के जीवन में सादगी होनी चाहिए, न कि स्वादिष्ट भोजन। स्वादिष्ट भोजन खाकर ये सुबह 4 बजे नहीं उठ पाते और भी दिनचर्या का काम भी नहीं हो पाता। इसलिए तुम अपने घर वापस लौट जाओ।”

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मन्नू, “ठीक है गुरुदेव, जैसे आपकी आज्ञा। लेकिन मुझे उस समाज में मन नहीं लगता।

मैं क्या करूँ? पिताजी कहते हैं कि पढ़ेगा लिखेगा नहीं, तो क्या करेगा जीवन में?”

गुरुदेव, “बेटा, तुम्हारा खाना बनाने और खिलाने का हुनर देखकर मुझे लगता है कि तुम्हें लोगों को खिलाने वाला काम करना चाहिए।”

मन्नू वापस अपने घर आ जाता है। गांव वाले फिर से उसे “मुन्नी-मुन्नी” कहकर चिढ़ाने लगते हैं।

एक बार गांव के सरपंच हुकम चंद की बेटी की शादी होती है। एक से एक पकवान बन रहे होते हैं।

सरपंच के कहने पर मन्नू सारे पकवानों की देखरेख कर रहा था, लेकिन उसी वक्त एक हलवाई को हार्ट अटैक आ गया

और एक मेन हलवाई लच्छू हलवाई को छोड़कर सभी कारीगर चले गए। उस समय मन्नू को मोर्चे संभालता है।

हुकम चंद, “बेटा मन्नू, मेरी इज्जत अब तेरे हाथ है। अगर मेहमान बिना खाए यहाँ से चले गए तो मेरी नाक कट जाएगी।”

मन्नू, “अरे चाचा! आपकी बेटी मेरी बहन है। आप फिक्र ना करो, दूसरे काम को देखो। मुझे सिर्फ चार-पांच काम करने वाले लड़के उपलब्ध करवा दीजिए।”

आदमी, “नहीं मालिक, आप नहीं समझ रहे। 12,000 आदमियों का खाना, वो भी 20 वेरायटी में, चार-पांच लड़कों से कैसे बनेगा?”

हुकम चंद, “ओह! अब क्या करूँ, कहाँ जाऊं? आज इतना जबरदस्त लगान है कि आसपास के गांव में कोई भी हलवाई खाली नहीं है। अब मेरी पगड़ी उछलना तय है।”

मन्नू, “सब हो जाएगा लच्छू चाचा, बस आप सबर रखो और जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो। सरपंच चाचा, आप जितनी जल्दी हो सके, चार-पांच लड़कों को भेजो।”

मन्नू लच्छू हलवाई और पांच लड़कों को लेकर अपने काम में लग जाता है। सिर्फ 10 मिनट में पाँचों लड़कों को काम समझाने के बाद, मन्नू सभी को उनके-अपने काम पर लगा देता है।

रात करीब 8 बजे बारात हुकुमचंद के दरवाजे पर आ जाती है। पता चलता है कि बारात में 200 आदमियों की जगह 300 लोग आ गए। हुकुमचंद दौड़कर मन्नू के पास आता है।

हुकुम चंद, “मन्नू, बारात में 100 आदमी ज्यादा हैं। पहले बारातियों को खाना खिलाओ, गांव के लोगों को बाद में देखेंगे। इज्जत तो चली ही गई।”

मन्नू, “चाचा, कुछ नहीं होगा। आप बस देखते जाइए। पहले बारातियों को खाना देते हैं, उनके खाते-खाते गांव वालों का भी खाना बन जाएगा।”

हुकुम चंद, “पता नहीं बेटा, क्या होगा? लेकिन तुमसे बात करके हिम्मत आ जाती है।”

कुछ समय बाद…
मन्नू, “चाचा, सारा खाना रेडी है। आप बस बारातियों को खाना खिलाइए।”

खाना बहुत स्वादिष्ट बना था। सारे बारातियों को खाना खिलाने के बाद गांव के लोगों को भी खाना खिला दिया जाता है।

हुकुमचंद यह देखकर काफी खुश हो जाता है। वह मन्नू की प्रशंसा पूरे गांव से कर रहा था।

हुकुम चंद, “अरे सोमू! कल अगर तुम्हारा बेटा मन्नू नहीं होता तो मेरी इज्जत चली जाती।”

सोमू, “वो सब तो ठीक है सरपंच जी, लेकिन इसी रुचि के चलते इसकी पढ़ाई छूट गई।

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लोग इसे मुन्नी और ना जाने क्या-क्या कहते हैं? यह आपसे छुपा हुआ नहीं है।”

हुकुम चंद, “अरे! कहने वालों को कोई रोक सका है? मन्नू जो टैलेंट है, वो किसी में नहीं।

कल मेरी बेटी की शादी में एक से एक ऑफिसर, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, बिजनेसमैन आए हुए थे, लेकिन मन्नू ने मेरी पगड़ी की लाज बचाई है।”

इसके बाद मन्नू गांव और आसपास में शादी समारोह में खाना बनाने का काम करने लगता है।

बारात में आए एक सेठ मन्नू के खाने की, खासकर उसके टेस्टी डोसे को खाने के बाद मन्नू को शहर में उसके रेस्टोरेंट में काम करने का ऑफर देता है।

मन्नू अब शहर में रेस्टोरेंट में जाकर काम करने लगता है, लेकिन जल्द ही रेस्टोरेंट के मेन शेफ से उसकी बनती नहीं और वो वहाँ से काम छोड़कर ठेले पर डोसे की दुकान खोल लेता है।

उसके मधुर व्यवहार और लज़ीज़ डोसे की वजह से जल्द ही वह छोटी सी दुकान से बड़ा रेस्टोरेंट बना लेता है।

इधर टीनू के पिताजी एक सड़क हादसे में गुजर जाते हैं। टीनू पिताजी का व्यापार ठीक से चला नहीं पाता और घाटे में चला जाता है।

वह काम खोजने शहर आता है। एक दिन टीनू को बहुत भूख लगी थी। टीनू को मन्नू के रेस्टोरेंट में डोसा खाने के बाद पता चलता है कि उसका पर्स किसी ने उड़ा लिया है।

पैसे के लिए टीनू की बहस रेस्टोरेंट के स्टाफ के साथ होने लगती है, तभी वहाँ पर मन्नू आ जाता है।

मन्नू, “अरे टीनू! तू यहाँ कैसे? और सुना… क्या हो रहा है? गांव का क्या हालचाल है?”

टीनू, “अरे मन्नू! बहुत टाइम पर मिला है यार। तुम्हारे पास अगर ₹225 हैं तो देना यार। मेरी जेब किसी ने काट ली है। मुझे डोसे का पैसा देना है।”

मन्नू, “ठीक है।”

मन्नू , “सर के पैसे मैं दे दूंगा। तुम लोग जाओ, और हाँ, एक कॉफ़ी लाना हम दोनों के लिए।”

मन्नू, “आओ टीनू, बैठकर बात करते हैं। बहुत दिन बाद मिले हो।”

टीनू, “अबे! तेरा तो हुलिया ही बदल गया है। और सुना, कहाँ काम चल रहा है आजकल?”

मन्नू, “मेरा काम तो यहीं चल रहा है। तुम अपना सुनाओ, यहाँ कैसे आए?”

टीनू, “अबे वाह! इतने बड़े रेस्टोरेंट में काम करता है तू? गुड यार, बहुत अच्छा काम पकड़ा है। तुम्हारी शिफ्ट कितने बजे की है?”

इतने में एक वेटर मन्नू के पास आकर बोलता है, “सर, मैनेजर साहब मीटिंग के बारे में पूछ रहे थे।”

मन्नू, “बस 5 मिनट में आता हूँ।”

टीनू, “अबे साले, जा मीटिंग अटेंड कर। नहीं तो मेरे चक्कर में मैनेजर कहीं तुझे छुट्टी ना दे दे।

और हाँ… देख, मैनेजर जैसे बड़े लोगों से टच बनाकर रख। अबे ये कोर्ट-टाई बदल कर प्रॉपर वेटर वाली ड्रेस पहन ले, नहीं तो बड़े लोगों का मूड का क्या भरोसा?”

मन्नू, “हा हा हा… बस 5 मिनट रुको, मैं मीटिंग से निपट कर आ ही रहा हूँ।”

टीनू, “हाँ भाई, मुझे भी तुमसे काम है।”

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टीनू, “वेटर, ज़रा इधर आना।”

वेटर, “जी सर, ऑर्डर कीजिए।”

टीनू, “अबे, अभी तो तुम लोगों को बताया कि मेरी जेब किसी ने काट ली है और ऑर्डर के बारे में क्यों पूछ रहे हो? मेरा मजाक उड़ा रहे हो क्या?”

वेटर, “सर, आप मन्नू सर के दोस्त हैं। आपको पैसे की क्या चिंता? आप बस ऑर्डर कीजिए ना।”

टीनू, “अबे! मन्नू को सर-सर कह के इतना मत चढ़ा दो कि खातिरदारी में उसकी सैलरी ही काट ली जाए।”

वेटर, “क्या सर, आप भी मजाक करते हैं? वो तो सैलरी हम सबको देते हैं। वो इस रेस्टोरेंट के मालिक हैं।”

टीनू, “क्या..? इतना बड़ा रेस्टोरेंट मन्नू का है?”

वेटर, “अरे! उनके तो ऐसे तीन-तीन रेस्टोरेंट हैं इस शहर में।”

तभी वहाँ पर मन्नू आ जाता है।

मन्नू, “सॉरी टीनू, मुझे देर हो गई आने में। वो मैनेजर हिसाब-किताब में कुछ घोटाला कर रहा था यार, हटा दिया उसे।

दोस्त, तू मैनेजर बनोगा? तुम्हारी मैथ्स तो बहुत अच्छी है। ₹50,000 सैलरी, गाड़ी और रहने-खाने का क्वार्टर मिलेगा।”

टीनू, “मुझे माफ़ कर दे दोस्त। मैंने हमेशा तेरा मजाक उड़ाया और तुम मुझे इस वक्त मदद कर रहे हो जब मुझे पैसे की सख्त जरूरत है। मैं दाने-दाने का मोहताज हूँ। सचमुच, तुम देवता हो यार।”

मन्नू, “अरे! बस कर पगले, अब रुलाएगा क्या?”

हर व्यक्ति की पहचान उसके रंग, रूप या लिंग से नहीं, बल्कि उसके व्यवहार और अच्छे आचरण से करनी चाहिए।

क्योंकि ईश्वर की बनाई हुई हर एक वस्तु और प्राणी अपने आप में अनमोल है।


दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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ईमानदार हलवाई – दिलचस्प हिंदी कहानी। रहस्यमय चित्रकार की दिलचस्प हिंदी कहानी ससुराल में बासी खाना बनाने वाली बहू भैंस चोर – Hindi Kahani