कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

व्हाट्सएप ग्रुप ज्वॉइन करें!

Join Now

टेलीग्राम ग्रुप ज्वॉइन करें!

Join Now

हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” कंजूस सेठ का हलवा ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Short Funny Stories, Comedy Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


नगर खजुरा गांव में मंगतलाल नाम का बड़ा ही कंजूस आदमी रहता था, साथ ही एक नंबर का आलसी और कमजोर भी।

उसकी पत्नी शबाना मंगतलाल की इस आदत से बड़ी परेशान रहती थी।

1 दिन सुबह-सुबह मंगतलाल अपनी पत्नी को आवाज देता है,

मंगतलाल, “अजी सुनती हो? जब मैं तुम्हारे घर पिछली बार गया था ना, तो तुम्हारी माँ ने मुझे जो खिलाया था, आज मुझे वही खाने का दिल कर रहा है।”

शबाना, “क्या, गालिया?”

मंगतलाल, “अरे मूर्ख! गालियां भी कोई खाने की चीज़ है?”

शबाना, “तुम तो वही खाते हो और इसी लायक हो।”

मंगतलाल, “अरे! तुम्हारी माँ ने जो मुझे बना कर खिलाया था, मैं उसकी बात कर रहा हूँ।”

शबाना, “क्या खिलाया था, नाम बताओ?”

मंगतलाल, “नाम तो याद नहीं आ रहा है, लेकिन वो मीठा था।”

शबाना, “मीठा था… मिठाई?”

मंगतलाल, “अरे बेवकूफ! क्या तुम्हारी माँ मिठाई बनाती है?”

शबाना, “फिर क्या था? जब तक तुम मुझे नाम नहीं बताओगे, तब तक मुझे कैसे पता कि तुमने क्या खाया था?”

मंगतलाल, “वो मीठा-मीठा था और हाँ, उसमें काजू, किशमिश, बादाम वगैरह भी पड़े थे।”

शबाना, “खीर खाई थी?”

मंगतलाल, “मेरी पूरी बात सुनो। वो मीठा-मीठा था, देखने में भूरे रंग का था।”

शबाना, “समझ गई। मेरी माँ ने तुम्हें हलवा खिलाया था।”

मंगतलाल, “बिलकुल सही कहा तुमने, हलवा खिलाया था तुम्हारी माँ ने मुझे। वही खाने का मन है। आज तुम मेरे लिए हलवा बना दो।”

शबाना, “घर में जहर खाने के भी पैसे नहीं हैं और तुम्हें हलवा खाना है।”

मंगतलाल, “हलवा बनाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए, तुम बस मुझे बताओ।”

शबाना, “तुम्हारे पास सब्जी लाने के तो पैसे होते नहीं हैं। बड़े आये हलवे का सामान लाने वाले।”

मंगतलाल, “तुम मुझे सिर्फ हलवे का सामान बताओ, बाकी काम मेरा।”

कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

शबाना, “ठीक है। आटा, चीनी, घी और काजू-किशमिश-बादाम लाकर दे दो, फिर हलवा बना कर खिलाती हूँ।”

मंगतलाल, “ठीक है, मैं सामान लेने जाता हूँ और सामान लाकर तुम्हें देता हूँ। फिर तुम मेरे लिए स्वादिष्ट हलवा बनाना।”

शबाना, “सब्जी लाने के पैसे नहीं हैं और हलवे का सामान लाने के पैसे हैं?”

मंगतलाल, “हलवे के सामान के लिए पैसे नहीं चाहिए होते, सिर्फ हलवा खाने की लगन होनी चाहिए।”

मंगतलाल थैला लेकर हलवे का सामान लेने निकल पड़ता है। रास्ते में उसे गांव की शीला भाभी आम खाती हुई दिखती है।

मंगतलाल, “अरे शीला भाभी! तुम ये क्या खा रही हो?”

शीला भाभी, “आँखें हैं या बटन? दिखाई नहीं देता कि आम खा रही हूँ?”

मंगतलाल, “पता है भाभी, इसमें छोटे-छोटे कीड़े होते हैं?”

शीला भाभी, “चल-चल आगे चल। मुझे चैन से बैठकर आम खाने दे।”

मंगतलाल, “ठीक है, अब तुम कीड़े खाना चाहती हो तो मैं क्या कर सकता हूँ? वैसे मैं तुम्हारे पास एक काम से आया था।”

शीला भाभी, “इतना तो मुझे पता ही था कि तेरे जैसा कामचोर आलसी बिना काम के घर के बाहर आएगा कैसे?”

मंगतलाल, “अब तुम मेरी तारीफ करना बंद करो और मेरी बात सुनो, आज मेरी शबाना हलवा बना रही है।

मेरे पास आटा और चीनी नहीं है, बाकी घी और मेवा तो है। क्या तुम मुझे आटा और चीनी उधार दे दोगी?”

शीला भाभी, “मैं किसी को न उधार देती हूँ और न उधार लेती हूँ।”

मंगतलाल, “ठीक है, ठीक है। अगर तुम उधार नहीं देती, तो तुम उस हलवे में हिस्सेदार बन जाओ।”

शीला भाभी, “हिस्सेदार? वो कैसे?”

मंगतलाल, “देखो, तुम मुझे आटा और चीनी देकर उस हलवे की एक हिस्सेदार बन जाओ।

जब हलवा बन जाएगा, तो तुम आकर अपने हिस्से का हलवा खा लेना। तुम्हें तो बिना मेहनत के हलवा खाने को मिल जाएगा।”

शीला भाभी, “तुम्हारी बात तो बिलकुल ठीक है। वैसे भी मुझे बड़े दिनों से हलवा खाने का दिल कर रहा था। रुको, मैं सामान लाती हूँ।”

बिना मेहनत के हलवा खाने के लालच में शीला आटा और चीनी देने को तैयार हो जाती है और घर के अंदर चली जाती है।

मंगतलाल, “न जाने ये शीला भाभी कहाँ चली गई? कितनी देर लगा रही है? अभी मुझे बाकी के सामान का भी इंतजाम करना है।”

शीला भाभी, “मंगतलाल, ये लो आटा और चीनी। अब बताओ, हलवा खाने कब आऊं?”

मंगतलाल, “2 घंटे बाद मेरे घर पर आ जाना।”

शीला भाभी, “ठीक है। मैं 2 घंटे बाद तुम्हारे घर हलवा खाने आती हूँ।”

कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

मंगतलाल ने आटा और चीनी का तो इंतजाम कर लिया। अब बचा घी और मेवा।

फिर वह गांव के किराने वाले की दुकान पर जाता है। किराने वाला सेठ दुकान पर सो रहा होता है।

मंगतलाल, “सेठ जी… सेठ जी, अरे! कोई है दुकान में या सब मर गए?”

सेठ (हड़बड़ाते हुए), “अरे! तू पागल है क्या? तूने तो मुझे हार्ट अटैक कर दिया होता।”

मंगतलाल, “हार्ट अटैक? क्या तुम्हें दिल की बीमारी है?”

सेठ, “दिल की बीमारी नहीं है, लेकिन ऐसे किसी को जगाते हैं क्या?”

मंगतलाल, “अगर तुम्हें दिल की बीमारी है तो तुम मगरमच्छ का अंडा खाया करो। उससे तुम्हें ताकत मिलेगी।”

सेठ, “ऐ राम राम राम राम! मेरी दुकान पर खड़े होकर अंडे की बात करता है। सारा धर्म भ्रष्ट करेगा क्या मेरा? मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ।”

मंगतलाल, “अच्छा अच्छा, फिर तो तुम्हें हार्ट अटैक ही पड़ेगा।”

सेठ, “अपनी बकवास बंद कर और ये बता दुकान पर क्यों आया है?”

मंगतलाल, “मुझे काजू, किशमिश और बादाम उधार दे दो। 15 साल बाद तुम्हारा पैसा दे दूंगा।”

सेठ, “क्या..? मैं 15 साल तक तेरे पैसे का रास्ता देखूंगा? मैंने उधार देना बंद कर दिया है।”

मंगतलाल, “लेकिन मेरे पास तो पैसे नहीं है।”

सेठ, “पैसे नहीं है तो जा यहाँ से। मेरा दिमाग मत खा।”

मंगतलाल, “मुझे तुम्हारा दिमाग खाकर पेट भरने की जरूरत नहीं है। आज मेरे घर पर वैसे भी हलवा बन रहा है हलवा।

सेठ, “तो यहाँ क्या कर रहा है ? अपने घर जा और जाकर हलवा खा।”

मंगतलाल, “अरे कैसे खाऊं हलवा? हलवे का बाकी सारा सामान तो मेरे पास है। लेकिन काजू, किशमिश और बादाम नहीं है।

और बिना इसके कैसे बनेगा हलवा? एक काम करो, तुम मुझे काजू, किशमिश और बादाम दे दो।”

सेठ, “मैंने उधार देना बंद कर दिया है।”

मंगतलाल, “ठीक है। उधार देना बंद कर दिया है, तो तुम हलवे में हिस्सेदार बन जाओ। हिस्सेदार तो बन सकते हो?”

सेठ, “हिस्सेदार… कैसा हिस्सेदार?”

मंगतलाल, “आज मेरी शबाना हलवा बना रही है। आटा, चीनी, घी, ये सब तो हैं। सिर्फ काजू, किशमिश और बादाम नहीं हैं।

तुम एक काम करो, मुझे काजू, किशमिश और बादाम देकर उस हलवे में हिस्सेदार बन जाओ।”

सेठ, “हां…ये तूने कुछ अच्छी बात कही।”

कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

मंगतलाल, “मुझे पता था, तुम लालची सेठ हिस्सेदारी के नाम पर तुरंत सामान दे देगा।”

सेठ, “काजू, किशमिश…। अब ये बता हलवा खाने कब आऊं?”

मंगतलाल, “अरे, भूखे पहले हलवा बनने तो दे। हलवा बनने में समय लगता है। तुम 2 घंटे बाद मेरे घर पर आना और अपने हिस्से का हलवा खा लेना।”

सेठ, “12 बज रहे हैं, मैं पूरे 2 बजे दुकान बंद करके तुम्हारे घर पर आता हूँ।”

मंगतलाल, “ठीक है, ठीक है। 2:00 बजे मेरे घर पर आना अपने हिस्से का हलवा खाने।

मंगतलाल ने आटा, चीनी और मेवे का इंतजाम कर लिया था हलवा बनाने के लिए। अब ज़रुरत थी बस घी की। तभी उसकी नजर गाँव के दूध वाले बंसी पर पड़ती है।

मंगतलाल, “ओह बंसी भाई! क्या कर रहे हो?”

बंसी, “दिखता नहीं है, आराम कर रहा हूँ?”

मंगतलाल, “एक बात बताओ, ये भैंस काली होती है फिर भी दूध सफेद क्यों देती है?”

बंसी, “ऐ तुम मेरा दिमाग खराब मत करो, समझे? जाकर खुद भैंस से पूछ लो।”

मंगतलाल, “मुझे भैंस की भाषा नहीं आती।”

बंसी, “ओ भैया ओ! लेकिन भैंस को तुम्हारी भाषा आती है, समझे?”

मंगतलाल, “लेकिन भैंस को मेरी भाषा कैसे आती है?”

बंसी, “ऐ तुम उसके पास जाओ, वो तुम्हें तुम्हारी भाषा समझाएगी।”

मंगतलाल, “कौन-सी भाषा?”

बंसी, “ऐ लात की भाषा, जो तुम्हे समझ में आती है। वो तुम्हें लात मारकर जरूर समझा देगी, जाओ।

मंगतलाल, “अरे अरे! नाराज़ मत हो। एक काम करो, मुझे दो कटोरा घी उधार दे दो, मैं तुम्हें वापस कर दूंगा।”

बंसी, “कब वापस कर दोगे?”

मंगतलाल, “मेरी भैंस आने के बाद लौटा दूंगा।”

बंसी, “तुम्हारे पास कौन-सी भैंस है?”

मंगतलाल, “अभी नहीं है, लेकिन चार-पाँच साल के बाद मैं भैंस ले लूंगा।”

बंसी, “ए चल भाग यहाँ से। तू चार-पाँच साल बाद भैंस लेगा, फिर उसके दूध से घी बनाएगा और मुझे लौटाएगा?

मैं उधार नहीं दूंगा। पैसे हैं तो घी ले जा, नहीं तो मेरा दिमाग मत खा। चल निकल।”

मंगतलाल, “पैसे तो नहीं है उधार दे दो।”

बंसी, “ऐ बोला ना एक बार तुझे कि मैं उधार नहीं दूंगा।”

कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

मंगतलाल, “ठीक है ठीक है, नाराज मत हो। उधार नहीं दोगे तो हिस्सेदार बन जाओ।”

बंसी, “किस चीज़ का हिस्सेदार बन जाऊं? तुम्हारे पास है क्या बे?”

मंगतलाल, “आज तुम्हारी शबाना भाभी हलवा बना रही हैं। मेरे पास हलवे का बाकी सारा सामान है, सिर्फ घी नहीं है। अगर तुम घी दे दोगे, तो मैं हलवे में तुम्हें हिस्सेदार बना दूंगा।”

बंसी, “ए शबाना भाभी के हाथ का हलवा तो बड़ा स्वादिष्ट होता है, मैंने पिछला गाल खाया था।”

मंगतलाल, “अरे !तो फिर क्या सोच रहे हो? घी दे दो और हलवे में हिस्सेदार बन जाओ, नहीं तो मैं किसी और को हलवे में हिस्सेदार बना लेता हूँ।”

बंसी, “ऐ नहीं नहीं, शबाना भाभी के हाथ के हलवे में तो मैं ही हिस्सेदार बनूँगा। ऐ रुको रुको, मैं अभी घी देता हूँ हैं?

मंगतलाल ने हलवे के लिए सारी चीज़ों का इंतजाम कर लिया और अपनी अक्ल पर बड़ा खुश था।

मंगतलाल, “शबाना… ओह शबाना! अरे! कहां चली गई। ये लो, मैं हलवे का सारा सामान ले आया हूँ। अब जल्दी से मेरे लिए स्वादिष्ट हलवा बना दो।”

शबाना, “तुम ये सामान ले कहाँ से आए हो? तुम्हारे पास तो पैसे नहीं थे?”

मंगतलाल, “तुम क्या गाँव की कोतवाल हो, जिसे पूरी पंचायत का पता होना चाहिए? चुपचाप ये सामान लो और हलवा बनाओ।”

शबाना हलवा बनाती है। हलवा बनकर तैयार होता है।

शबाना, “गज्जू, आओ आकर हलवा खा लो।”

मंगतलाल, “अरे मेरी शबाना! हलवे की खुशबू तो बड़ी मजेदार आ रही है। जल्दी से मुझे हलवा दो।”

शबाना कटोरी में थोड़ा सा हलवा निकालकर मंगतलाल को देती हैं।

मंगतलाल, “हलवा दो सच में बड़ा स्वाद बना है। कुछ भी कहो, तुम्हारे हाथों में तुम्हारी माँ की तरह जादू है। जबान थोड़ी तेज है, लेकिन हाथों में जादू है। आहाहा…।”

तभी बाहर से बंसी की आवाज़ आती है।

बंसी, “ऐ मंगतलाल भाई! हलवे की खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है।”

मंगतलाल , “आ गए तुम..? बाकी के कहाँ है?”

तभी सेठ और शीला भाभी भी आ जाते हैं।

शीला भाभी, “ऊंह… हलवे की खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है। मंगतलाल, जल्दी हलवा लेकर आओ।”

सेठ, “जल्दी लाओ जल्दी, मुझे तो बड़ी ज़ोरों की भूख लगी है।

मंगतलाल, “गांव बसा नहीं और भिखारी पहले आ गए।”

सेठ, “क्या कहा तुमने?”

मंगतलाल, “कुछ नहीं, बैठो तुम तीनों।”

कंजूस सेठ का हलवा | KANJOOS SETH KA HALWA | Funny Story | Achhi Achhi Kahani | Majedar Kahaniyan

मंगतलाल हलवे का बर्तन लेने अंदर जाता है और शबाना के कान में कुछ बोलता है।

बंसी, “ऐ एक बात बताओ, मैं इस हलवे का हिस्सेदार हूँ, क्योंकि मैंने इसमें घी दिया था। लेकिन तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?”

शीला भाभी, “मैंने आटा और चीनी दिया था।”

सेठ, “इसने मुझे हिस्सेदार बनाकर मेरी दुकान से काजू, किशमिश और बादाम लिया है।”

मंगतलाल, “ठीक है ठीक है, ज्यादा पंचायत की जरूरत नहीं है। हलवा तैयार है, लेकिन ये हलवा हम में से कोई एक ही खा सकता है।”

बंसी, ओ भैया ओ! हम में से कोई एक क्यों खाएगा हलवा? हिस्सेदार तो हम सब हैं।”

मंगतलाल, “देखो, हम चारो सो जाते हैं। और जो सबसे अच्छा सपना देखेगा, हलवा वही खाएगा।”

चारों कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो जाते हैं। तभी शबाना कटोरी लेकर आती है और मंगतलाल और शबाना पूरा हलवा चट कर जाते हैं।

थोड़ी देर बाद—
सेठ, “अरे ओ मंगतलाल! बंसी, शीला भाभी, उठो और कितना सोओगे तुम सब?”

मंगतलाल, “अब बताओ, किसने क्या सपना देखा?”

शीला भाभी, “मैंने देखा कि मैं कश्मीर में घूम रही हूँ।”

सेठ, “मैंने देखा कि मैं फिल्मों में जो है, हीरो बन गया हूँ।”

बंसी, “ओ भैया! ये तो सब बकवास है। मैंने देखा कि मैं चाँद पर बैठकर पूरा हलवा खा रहा हूँ।”

मंगतलाल, “मेरा सपना तो बड़ा भयानक था। मैंने देखा कि मेरे घर में एक बड़ा राक्षस आया

और तलवार लेकर बोला- ‘जल्दी हलवा खाओ नहीं तो मैं तुम्हें इस तलवार से काट दूंगा और मैं डरता हुआ, रोता हुआ चुपचाप हलवा खा रहा हूं।”

सेठ, “फिर क्या हुआ?”

मंगतलाल, “होना क्या है? अब मैं अपनी जान थोड़ी ना देता। इसलिए देखो मुझे, ये सारा हलवा मुझे खाना पड़ा।”

मंगतलाल और शबाना ने सारा हलवा खा लिया था। सेठ, बंसी, और शीला के हाथ कुछ नहीं लगा। वो सिर्फ हलवे के सपने ही देखते रह गए।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


Leave a Comment

लालची पावभाजी वाला – Hindi Kahanii ईमानदार हलवाई – दिलचस्प हिंदी कहानी। रहस्यमय चित्रकार की दिलचस्प हिंदी कहानी ससुराल में बासी खाना बनाने वाली बहू भैंस चोर – Hindi Kahani