कंजूस सेठ की दावत | Kanjoos Seth Ki Dawat | Hindi Kahani | Funny Story | Majedar Kahaniyan

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” कंजूस सेठ की दावत ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


सेठ बंसी बहुत ही अमीर आदमी था। बचपन से ही वह कंजूस स्वभाव का था।

उसकी इसी आदत की वजह से उसकी पत्नी रज्जो उससे बड़ी दुखी रहती थी। उसके दो बेटे थे।

बंसी, “भोंदू, छत पर धूप में एक बाल्टी पानी रख दे और दो गिलास पानी उबाल दे। गले में खराश है, थोड़ा गरारा कर लूँगा।”

भोंदू, “जी मालिक, अभी किए देता हूँ।”

कुछ समय बाद…
भोंदू, “ये लीजिए मालिक, एक ग्लास गर्म पानी। कर लीजिए गरारा।”

बंसी, “अरे वाह! तुम तो बहुत समझदार हो गए हो,भोंदू। एक ही ग्लास में काम चला लिया।

चल चल, अभी छत पर रखा पानी वाला बाल्टी नीचे ले आ। गर्म हो गए होंगे। इसमें से आधा ग्लास गर्म पानी बाल्टी में डाल दे। आज बहुत ठंड है।”

भोंदू (मन में) ,”आधा ग्लास गर्म पानी में नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?”

बंसी, “अरे भोंदू! दुकान के लिए देर हो रही है, खाना अभी नहीं बना है क्या?”

भोंदू, “मालिक, दाल अभी नहीं हुई है मालिक। दोपहर तक हो जाएगी, तो पहुंचा दूंगा।”

बंसी, “अबे, 4 घंटे में कौन सी दाल बनती है? पूरे महीने का ईंधन एक ही दिन में उड़ा देगा क्या?”

भोंदू, “नहीं मालिक, अब मैं आपका नौकर हूँ उस करोड़ीमल सेठ का नहीं। इसलिए अब मैं जो भी करूँगा, आपके हिसाब से करूँगा।

वो मालिक, मैंने जो आपको दो ग्लास पानी उबाल कर दिया था, उसकी भाप से आधा ग्लास गर्म पानी इकट्ठा किया था।”

बंसी, “चलो अच्छा किया, उससे तुमने भी करारा कर लिया ना?”

भोंदू, “नहीं मालिक, मैं इतना मतलब ही थोड़े ही ना हूँ। मैंने उसमें दो ग्लास और पानी डाल कर दाल उबालने के लिए छत पर डाल दिया है। दोपहर तक दाल तैयार हो जाएगी।”

बंसी, “अच्छा, ऐसा सही में हो जाएगा? तब तो मेरा ईंधन भी बच जाएगा।”

भोंदू, “आज तो प्रयोग कर रहा हूँ मालिक, अगर कामयाब रहा तो रोज़ इसी तरह बनाऊंगा। और मालिक, बाजार से एक अंडा ले आऊं क्या?”

बंसी, “अबे, पागल हो गया है क्या? सावन के महीने में अंडा खायेगा?”

भोंदू, “वो मालिक, मैं तो अगले महीने के लिए ही बोल रहा था कि अंडा लाकर रख देंगे, एक महीने में मुर्गा बन जाएगा तो पूरा घर खायेगा।”

बंसी, “ले आ ले आ। आज तुने साबित कर दिया कि तू ही मेरा सच्चा नौकर है।”

सेठ बंसी नहा धोकर तैयार हो कर बैठा रहता है। तभी राजू कॉलेज जाने के लिए बाइक की चाबी लिए हुए आता है।

सेठ बंसी, “अरे राजू! ये मोटरसाइकिल की चाबी लेकर सुबह सुबह कहाँ चल दिए? चल इधर आ और बाइक की चाबी दे।”

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राजू, “अरे पापा! कॉलेज जा रहा हूँ, पापा। लेट हो रहा है।”

सेठ बंसी, “चल इधर ला बाइक की चाबी। पाँच मन अनाज खा खा के कितना मोटा हो गया है? साइक्लिंग कर, साइक्लिंग।

ये पकड़ साइकिल की चाबी और चल मुझे दुकान पर छोड़ते हुए अपना कॉलेज निकल जाना।”

राजू, “पापा, एक तो मैं 60Kg का हूँ, ऊपर से आप 82Kg के, साइकिल कहाँ उतना वजन सह पाएगी?

ऐसा करते हैं, मोटरसाइकिल ले लेते हैं पापा। जल्दी पहुँच भी जाएंगे और दोनों उस पर निकल भी जाएंगे।”

सेठ बंसी, “चुपचाप साइकिल निकालो और मुझे दो, मैं दुकान तक साइकिल चला कर ले जाऊंगा।

तुम पीछे पीछे जॉगिंग करते हुए दुकान तक पहुँचो, फिर वहाँ से तुम साइकिल लेकर कॉलेज चले जाना।”

रज्जो, “अरे! काहे मेरे बच्चे के शरीर पर नजर लगा रहे हो? एक तो ऐसे ही सूख के कांटा हो रहा है, ऊपर से तुम इसको इतना परेशान करोगे तो बच्चा कैसे रह पाएगा जी?”

रज्जो, “जा बेटा जा, तू अपना बाइक लेकर निकल। इन्हें जैसे जाना है वैसे जाएं दुकान।”

बंसी, “अरे रज्जो! तुम दोनों एक दिन मुझे रोड पर ला दोगे।”

सेठ बंसी, “रुक राजू, मैं भी चलता हूँ। जब मोटरसाइकिल ले ही जा रहा है तो मैं अपना एनर्जी क्यों खत्म करूँ?

मुझे दुकान पर छोड़ के चले जाना, बची हुई एनर्जी से दुकान में मैं दो चार बोरियां उठाकर रख दूंगा।”

इसी तरह सेठ बंसी की कंजूसी की वजह से पूरे परिवार सहित मोहल्ले के सभी लोग परेशान रहते थे। सेठ बंसी की कंजूसी की चर्चा दूर दूर तक मशहूर थी।

एक दिन सेठ बंसी अपनी दुकान में था।

बंसी, “अरे सोहन! अंदर तो देखो, क्या फूटने का आवाज आया?”

सोहन, “चूहे ने डिटोल किसी सीसी गिरा दी है, वही फुट गया है।”

बंसी, “ये ले जाओ यहाँ से कपड़ा, और डेटॉल को वहाँ से पोछकर दूसरी सीसी में निचोड़ कर रख दो और कपड़ा लेकर मेरे पास वापस आओ।”

सोहन, “ये लो सेठ जी, मैंने सारा डेटॉल अच्छी तरह से कपड़े से निचोड़ कर दूसरी सीसी में रख दिया है।”

सेठ बंसी, “अरे! ये ऊँगली कैसे कट गई? इसमें से तो खून निकल रहा है।”

सेठ बंसी, “ला इधर डिटोल वाला कपड़ा ला, उतना डिटॉल बर्बाद हो गया। तुम लोगों का तो कुछ जाता नहीं है।

मैंने इसलिए अपनी ऊँगली काट ली ताकि इस डिटॉल का यूज़ कर सकूं, समझा?”

सोहन, “भाई, दात देनी होगी आपकी कंजूसी को।”

सेठ बंसी, “क्या बोला?”

सोहन, “कुछ नहीं, बोल रहा हूँ कि दात देनी होगी आपकी दिमाग की।”

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ग्राहक, “दो किलो चीनी देना।”

सोहन, “ये लो भैया, और बोलो।”

ग्राहक, “अच्छी वाली दो। पिछली बार यही वाला ले गया था, बिलकुल मिठी नहीं है।”

बंसी, “चीनी मीठी नहीं थी? लो, कर लो बात।”

ग्राहक, “हाँ, तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ?”

बंसी, “वो तो तुम्हीं जानो। देखो भाई, एक हफ्ते तक चीनी मत खा, तब देखना थोड़ी चीनी भी कैसी मीठी लगती है?”

ग्राहक, “ये क्या बकवास है भाई?”

बंसी, “अरे कैसी बकवास भाई? जितना दाम उतना काम, समझे? अब निकलो यहाँ से।”

एक बार सेठ बंसी अपनी दुकान से घर जा रहा था।

बंसी (गाना गाते हुए), “ला ला ला… आज मौसम है सुहाना, दारू पीने का है बहाना। ला ला ला…।”

उसका एक गाड़ी से अक्सीडेंट हो गया। बंसी को शहर के एक बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया।

उनकी हालत काफी सीरियस थी। खून काफी निकल चुका था, इसलिए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन कुछ ही दिनों में वह ठीक होकर अपने घर वापस आ गए।

वर्मा जी (पड़ोसी), “चलो भाई साहब, आप मौत के मुँह से वापस आ गए। अब एक पूजा कर पार्टी दे दो।”

बंसी, “माफ़ करना वर्मा जी, एक तो उतना खून गिर गया और बचा कुचा खून आप लोग जला रहे हो। अभी 7 लाख रुपए लगे हैं और 10 लाख रुपए का प्लान बना रहे हो?”

वर्मा जी, “ओह! सचमुच..? मैं शर्मिंदा हूँ।”

रज्जो, “क्यों जी, वर्मा जी क्या गलत बोले थे जो तुमने उन्हें इस कदर बोला कि बेचारे आँख नीचे किये हुए चले गए?”

बंसी, “आया था मुझसे पार्टी लेने। एक तो 7 लाख रुपए चले गए, ऊपर से 10 लाख रुपए का चूना लगाने चला है।”

रज्जो, “कान खोल के सुन लो, अगर पार्टी नहीं हुई तो तुम्हारा 20 लाख रुपए का नुकसान नहीं करवाई तो मेरा नाम भी रज्जो नहीं।”

बीवी का हुक्म था, वो भी पैसों की धमकी। सेठ बंसी पार्टी के लिए मान जाता है।

मोहल्लेवालों ने सोचा कि शायद इस हादसे के बाद सेठ की कंजूसी खत्म हो गई है।

सेठ बंसी ने सबको भोज के लिए आमंत्रित किया, और लोग बढ़-चढ़कर इसमें शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर करने लगे।

राजू, “पिताजी, वो टेंटहाउस वाला आया है।”

बंसी, “हां हां, उसे अंदर बुलाओ।”

टेंटहाउस वाला, “जी सेठ जी, मैंने छत का सारा नाप ले लिया है। टेंट लगाने में लगभग साढ़े तीन लाख रुपए का खर्चा आएगा।”

सेठ बंसी, “अच्छा, अगर ऊपर से सीलिंग नहीं करेंगे तो कितना खर्चा आएगा?”

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टेंट वाला, “अगर ऊपर से सीलिंग नहीं करेंगे तो 2.75 लाख खर्च होंगे।”

सेठ बंसी, “अगर टेंट ना करें तो सिर्फ कुर्सी-टेबल का क्या पड़ेगा?”

टेंट वाला, “अगर टेंट ना करें और बत्ती, बाजा, जेनरेटर भी हटा दीजिए तो सिर्फ कुर्सी-टेबल का 40 हजार पड़ेगा।

और अगर कुर्सी-टेबल भी हटा दीजिए तो छत पर दरी बिछाकर खिलाते हैं तो ₹300 की दरियों में काम चल जाएगा।”

सेठ बंसी, “बहुत अच्छा! गुड, बहुत ही समझदार टेंट वाले हो तुम। मैं तुम्हारा टेंट का रेकमेंड अपने दोस्तों को जरूर करूँगा।”

राजू, “पिताजी, वो टेंट वाला तो बिना कुछ एस्टीमेट बताए ही चला गया।”

सेठ बंसी, “अरे! वो बहुत ही समझदार टेंट वाला था। साढ़े तीन लाख रुपए उसने आज मुझे बचा दिया।

मेरे इलाज में लगे 7 लाख रुपए का आधा पैसा आज रिकवर हो गया।”

राजू, “पिताजी, इनविटेशन कार्ड छपवाने के लिए 5 हजार रुपए चाहिए थे।”

सेठ बंसी, “अरे! सबको तो मुँह से ही बोल दिए हैं। इनविटेशन कार्ड का क्या करोगे? वैसे भी इनविटेशन कार्ड अब पुराने हो गए हैं।

ज़रा अपना मोबाइल का ब्लूटूथ ऑन कर, डेटा देना। मैं अभी व्हाट्सएप से सभी को इनविटेशन भेज देता हूँ।

चलो, ये भी 5 हजार बच गए। अभी भी 3.45 लाख मुझे रिकवर करने होंगे।”

राजू, “हलवाई भी पूछ रहा था कि मेन्यू में क्या-क्या रहेगा?”

सेठ बंसी, “हाँ, उसे भी बुलाओ। आज उसका भी फाइनल कर ही देता हूँ। आखिर संडे को भोज जो है।”

अगले दिन…
हलवाई, “प्रणाम हजूर!”

बंसी, “अरे रामचंद्रन! क्या हाल हैं? क्या बजट है तुम्हारा?”

रामचंद्रन, “ठीक हैं हजूर, वो 500 आदमियों का खाना बनाने का 20 हजार लगेगा, मालिक।”

सेठ बंसी, “अरे! इतना चार्ज तो फाइव स्टार होटल के शेफ भी नहीं लेते 1 दिन का खाने का।”

रामचंद्रन, “हुजूर, 20 आइटम भी तो हैं। कम से कम 10-12 कारीगर लगेंगे।”

सेठ बंसी, “20 आइटम..? किस बेवकूफ ने ये मेन्यू बनाया है? 20 आइटम खाते-खाते आदमी का हाजमा खराब हो जाएगा।

उन्हें अस्पताल जाना पड़ेगा। मैं अभी आ रहा हूँ अस्पताल से, मैं जानता हूँ कितना फीस लेता है डॉक्टर? 10 आइटम का बताओ, कितना लगेगा?”

रामचंद्रन, “हुजूर, 12 हजार से कम में नहीं हो पाएगा।”

सेठ बंसी, “ठीक है, लेकिन जो भी आइटम बनाओगे, मेरे ऑर्डर के बिना खाने के लिए नहीं भेजोगे। अगर भेज दिए तो उसके पैसे काट लूँगा और उस आइटम में लगा मटेरियल का पैसा भी लूँगा। सो ध्यान रहे।”

रामचंद्रन, “ठीक है मालिक, आपके ऑर्डर के बिना कोई आइटम सर्व करने के लिए नहीं जायेगा।

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इसी तरह सारा व्यवस्था करते-करते दावत का दिन भी आ गया। दावत सेठ बंसी की छत के ऊपर जाड़े की गुनगुनी धूप में ओपेन रखा गया था। दावत का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक रखा गया था।

लोग 9 बजे से ही आना शुरू हो गए थे।

सिंह साहेब की पत्नी, “ए जी! इस प्लेट में सभी आइटम डाल दो, मैं नीचे जाकर खा लूँगी। ऊपर सबके सामने खाने में शर्म आ रही है।”

सिंह साहेब, “प्लेट रख, प्लेट रख। सेठ इसी प्लेट का लोगों से पैसा वसूलेगा। इसका धन शैतान भी नहीं पचा पाएगा।”

वर्मा जी, “सिंह साहेब, ये कंजूस सेठ तो बहुत बड़ा भव्य मकान बनवा रखा है। विश्वास नहीं होता कि इतना खर्चा मकान में इसने कैसे किया होगा?”

सिंह साहेब,”अरे वर्मा जी! बंसी जब पहला-पहला करोड़पति बना था, तो उसमें थोड़ा दिखावा भी आ गया था।

चलो देर से ही सही, सेठ बंसी का कंजूसी पन तो कम से कम दूर हुआ ना? देखिए, सेठ बंसी इधर ही आ रहे हैं।”

बंसी, “अरे सिंह साहब! कोने में क्यों खड़े हैं? आइए, दरी पर बैठ कर आराम से बातें करते हैं।

आज तो रविवार है, छुट्टी का दिन है। इसलिए मैंने आज दावत दी ताकि आप लोगों को किसी काम को छोड़कर आना न पड़े।”

सिंह साहब, “ये बात तो ठीक किया है आपने बंसी जी, लेकिन मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि लोग दावत अक्सर रात में देते हैं, लेकिन आपने दिन में दिया, ऐसा क्यों?”

सेठ बंसी, “देखिए, जो लोग रात में दावत देते हैं वो दरअसल आपको खाना खिलाते ही नहीं है।”

सिंह साहब, “क्यों? ऐसा क्यों?”

सेठ बंसी, “क्योंकि रात में ज्यादा खाना खाने से भोजन पचता नहीं है और आपको डॉक्टर के पास जाना पड़ता है, इसलिए मैंने दिन में दावत रखा।

जो मज़ा जमीन पर बैठकर खाने में है, वो कुर्सी-टेबल में कहाँ है? इसलिए मैंने सारा कुर्सी-टेबल मना कर दिया।”

सिंह साहब, “बहुत सही किया। लेकिन दावत में थोड़ा गाना-बजाना, म्यूसिक होता है तो मन लगता है।

जब दावत दे रहे हैं तो गाना-बजाकर, बत्ती जलाकर दिखावा क्या? मैं दिखावे में विश्वास नहीं रखता। दूसरी बात, म्यूसिक के धुन में एक-दूसरे से बात करना मुश्किल होता है।

इसलिए मैंने बत्ती-बाजा सब कैंसिल करवा दिए। ओपन स्काइ में जाड़े की गुनगुनी धूप में पिकनिक का मज़ा लीजिए।”

दावत 10 बजे से शुरू होना था। दो बजने जा रहे थे, लेकिन अभी तक दावत का नामो-निशान नहीं था।

लोग सुबह से ही भूखे पहुँचे हुए थे। कुछ लोग बाहर, तो कुछ लोग छत पर भूख से बेहाल होकर टहल रहे थे।

भोंदू, “मालिक, सुबह 10 बजे से ही खाना बनकर तैयार है। दो बजने जा रहे हैं, कहे तो स्टॉल लगवा दूँ?”

सेठ बंसी, “हाँ, अब स्टॉल लगवा दो। लेकिन छत पर नहीं, घर के बाहर जो खाली मैदान है उसमें।

उसमें अपने आदमी को लिट्टी, चाट, चाउमीन, समोसे, गोलगप्पे सभी आइटम वहाँ लगवा दो और ₹50 प्लेट बेचना चालू करो।”

भोंदू, “मालिक, लोग पूछ रहे हैं कि खाना कब चालू होगा, उन्हें क्या बोलूँ?”

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सेठ बंसी, “उनको जाकर बोल दो कि खाने में अभी दो घंटे और लगेंगे। अगर कुछ खाना चाहते हैं तो बाहर लिट्टी, चाट, समोसा, गोलगप्पा वाले सब बेच रहे हैं। वहाँ जाकर तब तक कुछ खा लीजिए।”

इस तरह सुबह से भूखे लोग सामने मैदान में जाकर चाट, पकोड़े, गोलगप्पे, समोसे, चाउमीन सब कुछ खाकर अपनी भूख मिटा रहे थे और पैसा भी दे रहे थे। तभी भोंदू आकर बताता है कि दावत का खाना बन चुका है।

भोंदू, “आओ सब लोग, खाना तैयार है, आओ।”

सिंह साहब, “क्या ये सेठ सबको पपलो बना दिया है? अब सबका पेट तो ये चाट-पकोड़े खाकर भर गया, खाना क्या खाक खाएंगे?”

वर्मा जी, “अरे भैया! जो भी हो, दावत में आए हैं तो अब कुछ न कुछ देकर जाना ही होगा। चलो, अब वहाँ भी थोड़ा पेट पूजा कर लेते हैं।”

पैसे देकर पेट भर चुके लोग अनमने ढंग से गिफ्ट का एनवेलप सेठ बंसी को थमाते हैं और थोड़ा बहुत खाकर चले जाते हैं।

सेठ बंसी, “देखा भोंदू, मोहल्ले वाले मुझसे दावत लेकर मुझे चूना लगाने चले थे। मैंने 100 लोगों का खाना 500 लोगों को खिला दिया।

उनसे गिफ्ट भी लिया और 10 हजार का फास्ट फूड बिचवाकर प्रॉफिट भी निकलवा लिया।”

भोंदू, “अरे वाह मालिक! आप तो मेरे साथ रहते-रहते मुझसे भी ज्यादा समझदार हो गए।”

सेठ बंसी, “क्या कहा भोंदू?”

और सब हंसने लगते हैं।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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