सास से अच्छी बहूरानी | Saas Se Achhi Bahurani | Moral Story | Saas Bahu | Saas Bahu Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सास से अच्छी बहूरानी ” यह एक Saas Bahu Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Saas Bahu Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


रामलाल, “हाँ भई, और क्या चल रहा है आजकल?”

राहुल, “सब बढ़िया चल रहा है, पापा।”

रामलाल, “तेरे ऑफिस में सब ठीक है?”

राहुल, “हाँ, पापा, सब ठीक है।”

रामलाल, “वैसे तेरे ऑफिस में सिर्फ लड़के ही हैं या लड़कियां भी काम करती हैं?”

राहुल, “हाँ लड़कियां भी हैं, पापा।”

रामलाल, “तो उन्हीं में से कोई एक लड़की देखकर उससे शादी क्यों नहीं कर लेता तू?”

राहुल, “क्या यार पापा, फिर वही बात?”

रामलाल, “हाँ तो क्या करें भई? हम जो लड़कियां दिखाते हैं, वो तुझे पसंद नहीं आती। अरे! कम से कम तू अपनी पसंद की ही कोई लड़की बता दे, भाई।”

राहुल को समझ आ गया कि उसके पिता अब इस टॉपिक को लंबा खींचने वाले हैं। तो उसने बिना कुछ कहे अपना नाश्ता जल्दी खाना शुरू कर दिया।

राहुल के पिता रामलाल पुलिस में दरोगा थे और अब रिटायर होने के बाद घर पर ही रहते थे।

राहुल उनका और उनकी पत्नी बिमला का इकलौता बेटा था और अब उसकी शादी की उम्र हो गई थी।

लेकिन फिलहाल राहुल का शादी को लेकर कोई प्लान नहीं था। लेकिन रामलाल उसे शादी करने के लिए लगातार फोर्स कर रहे थे।

बिमला, “ और क्या बातें चल रही हैं पापा बेटे में?”

रामलाल, “कुछ नहीं, मैंने तो बस ये बोला कि अगर इसके ऑफिस में सुंदर लड़कियां काम करती हैं तो कभी उन्हें अपने घर भी लेकर आए।”

बिमला, “अच्छा जी, और वो किस खुशी में?”

रामलाल, “अरे! बस ऐसे ही, इस बहाने थोड़ा हम भी खुश हो जाएंगे उन्हें देखकर।

अब हर टाइम तो दाल चावल नहीं खा सकते ना? कभी-कभी बिरयानी देखने का भी तो मन करता है ना?”

बिमला, “वैसे उम्र हो रही है आपकी। तो बस आप दाल चावल पर ही फोकस करो। कहीं बिरयानी आपकी तबियत ना खराब कर दे?”

रामलाल, “अरे अरे! अभी मेरी उम्र ही क्या है? अभी तो मैं जवान हूँ और जब तक घर में बहू नहीं आ जाती तब तक तो मैं बिरयानी खा सकता हूँ।”

बिमला, “हाँ, जैसे बहू के आते ही बड़े सत्संगी हो जाओगे। हम जानते नहीं क्या आपको?”

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राहुल, “अच्छा मम्मी,पापा शुरू से ही इतने रंगीन थे या अब बुढ़ापे में ज्यादा जवान हो रहे हैं?”

बिमला, “पता नहीं बेटा, घर में तो बड़े शरीफ बनकर रहते थे। पर पुलिस में थे ना तो सारा दिन तो बाहर ही रहते थे, अब बाहर कहाँ-कहाँ बिरयानी खाई, मुझे क्या पता?”

रामलाल, “तुम दोनों को क्या पता भई? जब मैं वर्दी पहनकर और काला चश्मा लगाकर अपनी जीभ से उतरता था ना, तो लड़कियां देखती रह जाती थी मुझे, ओह हो।

वो तो मेरे पल्ले तेरी माँ पड़ गई वरना माधुरी या जूही चावला से कम नहीं मिलती मुझे।”

बिमला, “हाँ हाँ, तो अब किसने रोका है? जाओ जाकर कर लो ना?”

रामलाल, “पक्का..? सच बताओ?”

बिमला, “देखो ज़रा, बेटे की शादी की उम्र हो रही है और ये महाशय घर में दो-दो बीवी रखने की बात कर रहे हैं।”

रामलाल, “नहीं बिमला दो नहीं, एक। तुम्हें तो फिर जाना पड़ेगा ना।”

रामलाल के मजाक से चिढ़कर बिमला वहाँ से चली गई और रामलाल ज़ोर-ज़ोर से हंसते रहे।

दरअसल रामलाल रंगीन मिजाज़ के आदमी थे और ये बात सब जानते थे। ऐसे ही कई दिन बीत गए और फिर राहुल के लिए कविता का रिश्ता आया।

कविता देखने में बहुत सुंदर थी तो राहुल ने झट से शादी के लिए हाँ कहा और फट से दोनों की शादी हो गई।

फिर कुछ दिनों के बाद।

कविता, “नमस्ते पापा जी!”

रामलाल, “नमस्ते, कैसी हो कविता?”

कविता, “मैं ठीक हूँ, पापा जी। वो तो सुबह ही ऑफिस निकल गए।”

रामलाल, “रात को देर से आया था और सुबह जल्दी निकल गया। अरे! पागल है क्या? नई नई शादी हुई है, पत्नी को टाइम देना चाहिए ना उसको?”

रामलाल की ये बात सुनकर पास ही खड़ी बिमला झेंप गई और कविता भी शर्माकर वहाँ से चली गई। फिर उसी शाम खाने की मेज पर…

रामलाल, “आ हा हा मज़ा आ गया। अब कल क्या बनेगा भई?”

बिमला, “आप बताओ, क्या खाओगे?”

रामलाल, “अरे! कविता से पूछो, वो जो कह दे हम सब वही खाएंगे, क्यों कविता?”

कविता, “जी पापा जी।”

रामलाल अपनी बहू कविता को खुश करने की कोशिश करता रहता था। पहले तो बिमला और राहुल ने इसे इग्नोर किया लेकिन धीरे-धीरे राहुल और बिमला को रामलाल का कविता के प्रति ये व्यवहार खटकने लगा।

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फिर एक दिन…

बिमला, “सुनिए, वो मुन्नी की बेटी का आज महिला संगीत है तो मैं और कविता दोनों वहाँ जा रहे हैं।”

रामलाल, “अरे! कविता को यहीं रहने दो, तुम अकेली चली जाओ।”

बिमला, “क्यों… कविता को यहाँ क्यों छोड़ दूं?”

रामलाल, “अरे! भूल गई, उसके पैर में मोच है ना, तो बेचारी कहाँ जाएगी?”

बिमला, “अच्छा, तो ठीक है फिर मैं भी नहीं जाउंगी।”

कविता, “नहीं मम्मी जी, आप जाओ ना। अगर आप नहीं जाओगी तो मुन्नी आंटी को बुरा लगेगा ना?”

बिमला, “ठीक है तो एक काम करो, तुम अपने कमरे में जाओ। मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगी।”

बिमला बहुत बेचैन थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी। दरअसल रामलाल का हर वक्त कविता का ख्याल रखना उसे परेशान कर रहा था।

उसके मन में उन दोनों को लेकर कई सवाल उठ रहे थे। जैसे कहीं उन दोनों के बीच कुछ ऐसा तो नहीं था जो एक ससुर और बहू के बीच बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

कविता के कहने पर वो पड़ोस के घर चली तो गई लेकिन वहाँ भी उसे चैन नहीं आया और वो थोड़ी ही देर में वापस आ गई तो देखा कि रामलाल हॉल में नहीं था।

बिमला को शक हुआ और वो दबे पांव कविता के कमरे की तरफ बढ़ी। वहाँ उसने देखा कि कविता बिस्तर पर लेटकर कराह रही थी

और उसके सामने रामलाल उसका पैर पकड़ कर बैठा था। ये देखकर बिमला आग बबूला हो गई।

बिमला, “शर्म आनी चाहिए आपको, आपने तो अपनी बहू को भी नहीं छोड़ा, छी…।”

कविता, “मम्मी जी रुकिए, आप गलत सोच रही हैं। आपके जाने के बाद मैं अपने कमरे में आ रही थी, तभी मेरा पैर फिर से मुड़ गया।

मेरी चीख सुनकर पापाजी दौड़ कर आए और उन्होंने मुझे यहाँ लिटा दिया। वो तो मेरे पैर पर गर्म पट्टी बांध रहे थे जिससे मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था।

आप गलत सोच रहीं हैं और वैसे भी पापा जी ने तो मेरी कई बार पट्टी की है।

बिमला,”कई बार पट्टी की है मतलब? ये क्या बोले जा रही है।”

रामलाल चुप खड़ा था। बिमला उस पर चिल्लायी जा रही थी तभी कविता उन दोनों के बीच आकर बोली,

कविता, “बस करिए मम्मी जी, आप लगातार गलत सोच रही हैं। आपको सच सुनना है ना, तो सुनिए… मेरे पापा का नाम हवलदार राधे श्याम था।

मेरे पापा और पापा जी एक ही थाने में थे, पर एक मुठभेड़ में मेरे पापा को गोली लगी। इस हादसे के बाद मेरे पापा बच नहीं पाए और इस सदमे में मेरी माँ की भी मौत हो गई।

पापा जी ने मेरे पापा को वचन दिया था कि वो मुझे बेटी बनाकर रखेंगे और उस दिन के बाद से मेरे स्कूल की फीस, हॉस्टल का खर्च सब कुछ पापा जी ने ही उठाया।

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और तो और मैं जिंदगी भर खुश रहूं, इसीलिए उन्होंने मेरी शादी अपने बेटे से ही करा दी। आपके पति देवता हैं मम्मी जी, जिन्होंने मुझ अनाथ को हमेशा अपनी बेटी माना है।”

ये कहते-कहते कविता ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। सच्चाई जानने के बाद बिमला रामलाल के पैरों में गिर पड़ी और उधर दरवाजे पर खड़ा राहुल भी पूरी बात जानने के बाद अपने आंसू नहीं रोक पाया।

और रामलाल को भी समझ आ गया था कि अपनी पत्नी से मजाक करने की आदत उसे कितनी भारी पड़ गई थी।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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