हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सबसे अच्छा दान ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में रतन और बिरजू नाम के धनी दो पड़ोसी रहा करते थे। एक दिन की बात है, रतन किसी काम से बाजार जा रहा था कि तभी रास्ते में मुखिया रतन को रोक कर बोला।
मुखिया, “क्या हाल चाल है रतन? आजकल बाजार में बहुत कम दिखाई देते हो।”
रतन, “ईश्वर की कृपा है, मुखिया जी। काम से फुर्सत ही नहीं मिलती, इसीलिए बाजार आने का समय बहुत कम मिलता है।”
मुखिया, “दरअसल, मैं तुम्हारे ही घर पर आ रहा था। अच्छा हुआ तुम मुझे बाजार में ही मिल गए।”
रतन, “अब तो आपको मेरे घर पर आना ही पड़ेगा, मुखिया जी। काफी दिन हो गए आपको मेरी पत्नी की हाथ का चाय पिए हुए।
किसी दिन जरूर आऊंगा, अभी मुझे तुमसे एक जरूरी काम था।”
रतन, “हाँ हाँ बोलिए मुखिया जी, क्या काम था?”
मुखिया, “रतन हमारे गांव में कोई अस्पताल नहीं है और इसलिए हम सब गांव वाले आपस में मिलकर के एक अस्पताल बनवाने जा रहे हैं।”
रतन, “ये तो बहुत शुभ काम है, मुखिया जी। बताइए मैं इसमें आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?”
मुखिया, “अपनी मर्जी से जितनी तुम्हारी हैसियत हो उतना दान तुम दे दो।”
मुखिया की बात सुनकर रतन ने अपनी जेब से ₹100 का नोट निकालकर मुखिया को पकड़ा दिया।
मुखिया, “रतन, सिर्फ 100रुपया?”
रतन, “मेरी बस इतनी ही हैसियत है, मुखिया जी।”
इतना कहकर रतन वहाँ से चला गया। मुखिया खराब मूड़ लेकर सीधे बिरजू के घर चला गया।
बिरजू, “अरे! आइए मुखिया जी। बड़ी लंबी उम्र है आपकी, मैं आपको ही याद कर रहा था।”
मुखिया, “कैसे हो बिरजू, सब घूस कुशल मंगल तो है ना?”
बिरजू, “ईश्वर की कृपा है, मुखिया जी। सब कुछ सही है और सुनाइए, कैसे आना हुआ?”
मुखिया, “अरे! तुमने तो सुना ही होगा अपने गांव में एक अस्पताल बन रहा है।”
बिरजू, “हाँ, मैंने सुना है और मुझे यह भी पता है कि सभी गांव वाले आपस में मिलकर चंदा दे रहे हैं।
इसलिए आपके आने से पहले ही मैंने ₹10 लाख का चेक आपके नाम का काट रखा है।”
मुखिया , “क्या बात है बिरजू? मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। लेकिन तुमने चेक मेरे नाम क्यों काटा? हॉस्पिटल के नाम से ही चेक काट देते।”
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बिरजू, “आप हमारे गांव के मुखिया हैं। मुझे आप पर पूरा भरोसा है।”
मुखिया, “एक तुम हो और एक वो तुम्हारा पड़ोसी रत्न है। जानते हो उसने अस्पताल को कितना दान दिया है… सिर्फ ₹100।
मेरी समझ में नहीं आता कि इतना धन का करेगा क्या? उसने तो कंजूसी की हद ही कर दी।”
इतना बोलकर मुखिया वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद बिरजू संपत के साथ अपने खेत में चला गया।
संपत बिरजू से बोला, “इस गांव में सबसे ज्यादा दान हॉस्पिटल को आपने दिया है। अब तो हॉस्पिटल का उद्घाटन आपके ही हाथों होगा।”
बिरजू, “जब सबसे अधिक दान मैंने किया है, तो फिर उद्घाटन भी मेरे ही हाथ होगा।”
संपत, “वैसे मुझे रतन से ऐसी उम्मीद नहीं थी। भाई इतना कंजूस निकलेगा, यह नहीं कभी सोचा था।”
सम्पत की बात सुनकर बिरजू मुस्कराकर रह गया। समय ऐसे ही बीतता गया। एक दिन की बात है।
रतन अपने घर पर अपनी पत्नी के साथ भोजन कर रहा था कि तभी गांव का एक व्यक्ति वहाँ आ गया।
रतन, “क्या हुआ, श्यामलाल चाचा? आप इतने घबराए हुए से क्यों हैं?”
श्यामलाल, “रतन मेरी पत्नी बहुत बीमार है, डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन बता दिया है और तुम तो मेरी हालत जानते हो। मैं तुमसे यहाँ पर मदद मांगने के लिए आया हूँ।”
रतन, “चिंता मत करो, श्यामलाल चाचा। ईश्वर पर भरोसा रखो, सब कुछ सही हो जाएगा।”
श्यामलाल, “मुझे 10 हजार रुपए की शख्स जरूरत है, रतन और इस पूरे गांव में सिर्फ तुम ही हो, जिससे मैं पैसे उधार मांग सकता हूँ। मैं तुम्हारे पैसे बहुत जल्दी लौटा दूंगा।”
रतन, “मुझे माफ़ कर दो, श्यामलाल चाचा। मेरे पास 10 हजार रुपए अभी इस समय नहीं है। इस समय मैं तुम्हारी 2 हजार की मदद कर सकता हूँ।”
इतना कहकर रतन ने श्यामलाल को 2 हजार रुपए पकड़ा दिए।
श्यामलाल, “मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, रतन। क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है कि मैं तुम्हारे पैसे लौटाऊंगा?”
रतन, “ऐसी बात नहीं है श्याम चाचा, मुझे आप पर पूरा भरोसा है। लेकिन यकीन मानिए मेरे पास इस वक्त सिर्फ 2 हजार रुपए ही पड़े हैं, जो मैं आपको देने के लिए तैयार हूँ।”
श्यामलाल, “ये 2 हजार भी अपने पास रख लो। जहाँ से मैं बाकी रुपए का इंतजाम करूँगा, वहाँ से मैं 2 हजार रुपए का भी इंतजाम कर लूँगा।
अरे! लानत है तुम पर रतन, इतनी धन दौलत होने के बाद भी किसी व्यक्ति की मदद तक नहीं कर सकते।”
श्यामलाल क्रोधित होता हुआ घर से बाहर निकला। रतन श्यामलाल को आवाज लगाता हुआ घर से बाहर आ गया, मगर श्यामलाल ने उसकी बात नहीं सुनी।
तभी रतन की पत्नी भी घर से बाहर निकल कर आ गई।
पत्नी, “अजी, लगता है श्यामलाल चाचा को पैसों की कुछ ज्यादा ही जरूरत होगी। मैंने उन्हें कभी इतने गुस्से में नहीं देखा।”
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रतन, “क्या मैंने उन्हें पैसे देने से इंकार किया था? मेरे पास सिर्फ इतने ही पैसे पड़े हुए हैं।”
पत्नी, “मेरी समझ में नहीं आता कि आपके पास अच्छी खासी खेती है।
हर साल आपकी फसल गांव में सबसे अच्छे दामों में बिकती है। आपके पास से इतना पैसा आखिर जाता कहाँ है?”
रतन, “भूलो मत कि हमारे बच्चे गांव से बाहर शहर में पड़ते हैं। उनकी स्कूल और मेंटेनेंस का खर्चा कितना आता है?
और फिर हमारे घर के खर्चे भी कुछ कम नहीं है।”
इधर श्यामलाल आँखों में आंसू लिए हुए जा रहा था कि तभी रास्ते में उसे गांव का मुखिया मिल गया।
मुखिया, “अरे! क्या बात है श्यामलाल? तुम्हारी आँखों में ये आंसू क्यों? सब कुछ कुसलमंगल तो है?”
श्यामलाल, “अब क्या बताऊँ मुखिया जी? मेरी पत्नी की तबियत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही।”
मुखिया, “हाँ, इस बात को मैं जानता हूँ। क्या हुआ, बोलो?”
श्यामलाल, “डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन बता दिया है। मुखिया जी, मुझे इस वक्त। 10 हजार रुपए की सख्त जरूरत है
और आप तो मेरी हालत जानते हो। मैं बड़ी उम्मीद लेकर रतन के पास ₹10 हजार रुपए उधार मांगने गया था।”
मुखिया, “मगर उसने तुम्हें 10 हजार रुपए नहीं दिए होंगे और यही कहा होगा कि उसके पास पैसे नहीं हैं।”
श्यामलाल, “हाँ, आपने बिल्कुल सही कहा। आपको कैसे पता?”
मुखिया, “क्योंकि जो व्यक्ति हॉस्पिटल के दान में भी कंजूसी करता हो, उस व्यक्ति के बारे में हम क्या ही कह सकते हैं?
अरे वह तो पुण्य का काम करने में भी घबराता है।”
श्यामलाल, “मुखिया जी, आप ही मेरी कुछ मदद कीजिए।”
मुखिया, “इस गांव में सिर्फ एक ही व्यक्ति है जो तुम्हारी मदद कर सकता है, वह है बिरजू। तुम्हें इसी वक्त बिरजू के पास जाना चाहिए।”
मुखिया की बात सुनकर श्यामलाल दौड़ता हुआ बिरजू के घर चला गया और उसे अपनी सारी स्थिति बता दी।
बिरजू, “अरे! तो तुम्हें उस कंजूस रतन के पास जाने की क्या आवश्यकता थी, श्यामलाल चाचा? तुम सीधे मेरे पास आते।”
इतना कहकर बिरजू ने 20 हजार रुपए की रकम श्यामलाल को पकड़ा दी।
श्यामलाल, “लेकिन मुझे सिर्फ 10 हजार रुपए की आवश्यकता है।”
बिरजू, “श्यामलाल चाचा, आप बहुत ही भोले हैं। अरे भाई!ऑपरेशन के बाद दवाइयां वगैरह में भी बहुत खर्चा आता है,
उसका इंतजाम आप कहाँ से करेंगे? इसीलिए ये 20 हजार रुपए आप रख लीजिए।”
श्यामलाल, “मैं तुम्हारे ये पैसे बहुत जल्द लौटा दूंगा, बेटा।”
बिरजू, “श्यामलाल चाचा, इन पैसों को लौटाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह पैसे मैंने तुम्हें अपना पिता समझकर दिया है
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और एक बेटे को अपने पिता के ऊपर किया गया अहसान कोई एहसान नहीं होता, बल्कि कर्तव्य होता है।”
श्यामलाल खुश होता हुआ वहाँ से चला गया। इतना बोल बाद वो अपने गोदाम में आ गया कि तभी वहाँ पर संपत दौड़ता हुआ आया।
संपत, “ये क्या बिरजू भाई… मैंने सुना है कि आपने श्यामलाल को 20 हजार रुपए दान में दे दिए? वो पूरे गांव में आपकी प्रशंसा के पुल बांध रहा है।”
बिरजू, “अच्छा… तो बात पूरे गांव में भी फैल गई।”
संपत, “आखिर उस भिखारी को 20 हजार रुपए देने की क्या जरूरत थी? मैं आपसे कब से 5 हजार रुपए मांग रहा हूँ, मुझे तो आप दे नहीं रहे।”
बिरजू, “बकवास बंद करो संपत, तुम हर महीने अपनी तनख्वाह ले जाते हो। फिर भी अगर तुम्हें पैसे और चाहिए, तो मैंने क्या तुम्हें मना किया है क्या?”
कुछ दिनों बाद गांव में अस्पताल बनकर तैयार हो गया। मुखिया ने अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए बिरजू को ही बुलाया था।
सारे गांववाले अस्पताल के सामने एकत्र थे, तभी बिरजू की नजर रतन पर पड़ी।
बिरजू, “अरे रतन! तुम भी अस्पताल को देखने के लिए आए हो? यूं भीड़ में क्यों खड़े हो?”
रतन भीड़ से निकलकर बिरजू के सामने आकर खड़ा हो गया।
मुखिया, “रतन तुम यहाँ क्यों आ गए? कहीं तुम्हें ऐसा तो नहीं लग रहा है कि हमारे अस्पताल का उद्घाटन तुम्हारे ही हाथों करवाने का इरादा है?”
रतन, “नहीं मुखिया जी, मुझे उद्घाटन करने का कोई शौक भी नहीं है। मैं तो बस ये चाहता हूँ कि गांव में अस्पताल जल्दी शुरू हो जाए ताकि गांव वालों को परेशानी न हो।”
मुखिया, “हाँ हाँ, पता है। इसीलिए तुमने चंदे में केवल ₹100 दिए थे।”
बिरजू, “मुखिया जी, ये बताइए कि अब क्या दे रही है?”
मुखिया, “अरे! बस डॉक्टरों की टीम यहाँ पर पहुंचने वाली होगी।”
मुखिया ने इतना कहा ही था कि तभी डॉक्टरों की टीम वहाँ पहुँच गई। बिरजू अस्पताल का रिबन काटने ही वाला था, तभी अचानक वो बेहोश होकर गिर गया।
मुखिया, “अरे! ये क्या हुआ? ये अचानक बेहोश कैसे हो गया?”
बिरजू को तुरंत उसी अस्पताल में ऐडमिट कर दिया और डॉक्टर उसकी जांच पड़ताल करने लगे। एक डॉक्टर रूम से बाहर निकल कर मुखिया से बोला।
डॉक्टर, “इनके परिवार वाले कहाँ हैं?”
मुखिया, “बिरजू के परिवार वाले तो सब अमेरिका में रहते हैं। डॉक्टर, बिरजू गांव में अपने साथी संपत के साथ रहता है। इसके परिवार वाले कभी कभी यहाँ आते हैं।”
डॉक्टर, “बात असल में ये है मुखिया जी कि बिरजू की एक किडनी बुरी तरह से खराब हो चुकी है।
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अगर अभी इसकी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया गया, तो इसकी जान जा सकती है।”
मुखिया, “चिंता मत कीजिए डॉक्टर, हमारे गांव में बिरजू ने इतने लोगों की मदद की है, कोई ना कोई किडनी देने के लिए तैयार जरूर हो जाएगा।”
इतना बोलकर मुखिया वहाँ से चला गया। मुखिया ने गांव के हर व्यक्ति से बिरजू के लिए किडनी मांगी, मगर सब ने किडनी देने से इनकार कर दिया सिवाय एक के।
कुछ दिनों बाद बिरजू स्वस्थ हो गया। मुखिया अस्पताल में बिरजू से मिलने के लिए आया।
मुखिया, “ईश्वर का लाख लाख शुक्र है कि तुम सवस्थ हो गए।”
बिरजू, “मुखिया जी, मेरी एक किडनी खराब हो चुकी थी। गांव के ही किसी व्यक्ति ने मुझे अपनी एक किडनी दान दी है।
मैं जानना चाहता हूँ ये काम मेरे वफादार साथी संपत के अलावा और कोई नहीं कर सकता।”
मुखिया, “नहीं बिरजू, तुम्हारा वफादार साथी तो संपत किडनी का नाम सुनते ही भाग गया। गांव के हर व्यक्ति ने तुम्हें किडनी देने से इंकार कर दिया।”
बिरजू, “तो फिर कौन है वो जिसने मुझे किडनी दी? मैं उसका आभार व्यक्त करना चाहता हूँ।
हालांकि अगर मैं अपनी सारी दौलत भी उसके कदमों में लाकर रख दूं, तो मैं उसका कर्ज नहीं चुका सकता।”
मुखिया, “उसने मना किया है कि तुम्हें उसका नाम न बताया जाए। अब तुम्हें घर चलना चाहिए, डॉक्टर ने तुम्हें छुट्टी दे दी है।”
बिरजू मुखिया के साथ अस्पताल से बाहर आया ही था कि तभी ये कार आकर रुक गई।
उस कार में से एक वकील निकलकर मुखिया के सामने हाथ जोड़ता हुआ बोला।
वकील, “मुझे माफ़ कीजिएगा, मुखिया जी। मुझे आने में थोड़ी देर हो गई।”
मुखिया, “कोई बात नहीं वकील साहब। तो क्या उस महान व्यक्ति का नाम पता लगा?”
वकील, “इस फाइल में उस व्यक्ति का नाम और फोटो मौजूद है, जिसने अस्पताल के लिए यह पूरी जमीन 2 करोड़ में खरीदकर दान दी है।”
इतना कहकर वकील वहाँ से चला गया। मुखिया ने जैसे ही फाइल खोलकर देखा तो उसमें रतन का फोटो लगा हुआ था।
बिरजू, “ये सब क्या हो रहा है, मुखिया जी?”
मुखिया, “मैं काफी दिनों से यह पता लगाने का प्रयास कर रहा था कि जिस जमीन पर यह अस्पताल बनकर तैयार हुआ है,
यह जमीन किसने खरीदकर दान में दी है? बिरजू, यह जमीन हमारे ही गांव के व्यक्ति रतन ने खरीद कर दान में दी है।”
बिरजू, “जिसे सारा गांव कंजूस के नाम से बुलाता है। मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि कहीं रतन की कोई चाल तो नहीं?”
मुखिया, “मैं बताना तो नहीं चाहता था, लेकिन अब तुम्हें बता देता हूँ। तुम्हें किडनी देने वाला कोई और नहीं बल्कि रतन है।”
मुखिया की बात सुनकर बिरजू की आँखों में आंसू आ गए।
बिरजू, “मुझे रतन के पास ले चलिए, मुखिया जी।”
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मुखिया बिरजू को रतन के घर पर ले गया। बिरजू हाथ जोड़ता हुआ रतन से बोला।
बिरजू, “मुझे माफ़ कर दो। मैंने तुम्हें कितना गलत समझा? तुमने आखिर बताया क्यों नहीं, तुमने अस्पताल के लिए 2 करोड़ की जमीन खरीदकर दान दी है
और ये जानने के बावजूद मैं कितना गलत हूँ? तुमने मेरा जीवन बचाने के लिए अपनी किडनी तक दान कर दी।”
रतन, “सच्चा दान वह नहीं होता बिरजू जो बताकर या दिखाकर किया जाए। सच्चा दान वह होता है जो छुपाकर किया जाए।
सच्चा दान वो होता है जिससे किसी का जीवन सफल हो सके।”
बिरजू, “मैं कितना गलत हूँ, मुखिया जी? मैं अब तक लोगों को धोखा देता आया हूँ। मैंने अस्पताल में दान भी दिखावे के लिए किया था।
सच यह है कि मैं दो नंबर का काम भी करता था। मैं अपने आप को कानून के हवाले कर दूंगा और अपने पापों का प्रायश्चित्त करूँगा।”
रतन, “अपने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए तुम्हारा जेल जाना जरूरी नहीं। बिरजू, तुम अभी और इसी वक्त अपने सारे बुरे धंधे बंद कर दो
और अपने बुरे धंधे से कमाई हुई सारी दौलत गरीबों को दान कर दो, फिर देखो तुम्हें तुम्हारे मन को कितनी शांति मिलती है?”
रतन की बात सुनकर बिरजू मुस्करा दिया और बिरजू ने ठीक वैसा ही किया। उसने अपने बुरे कर्मों से कमाई की सारी दौलत गरीबों में दान कर दी।
दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!