कैसी ये मोहब्बतें : (भाग -1) – Love Story in Hindi | True Love Story in Hindi

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हेलो दोस्तों ! कहानी की इस नई Series में हम लेकर आए हैं आपके लिए एक और नई कहानी। आज की कहानी का नाम है – ” कैसी ये मोहब्बतें “। यह इस कहानी का (भाग -1) है। यह एक True  Love Story है। कहानी को पूरा जरूर पढ़ें। तो चलिए शुरू करते हैं…
कैसी ये मोहब्बतें : (भाग -1) - Love Story in Hindi | True Love Story in Hindi

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 कैसी ये मोहब्बतें : (1) 

(महादेव के मंदिर में एक लड़की हाथ जोड़े शिकायती अंदाज में बोले जा रही है।)

देखिए महादेव, इस बार आपको मेरी मदद करनी होगी। हमने आपसे छोटी सी बात कही थी कि मैं 12वीं की परीक्षा में अच्छे अंको से पास हो जाऊं ताकि मेरे बाबा मुझे दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए इजाजत दे दे। 

नहीं तो आपको पता ही है मेरे बाबा इसी शहर के किसी कॉलेज में दाखिला करवा देंगे। पर आप तो जानते ही हैं ना महादेव कि मैं दिल्ली में जाकर पढ़ना चाहती हूं। 
वह लड़की अपने ही धुन में हाथ जोड़े बोले जा रही थी। तभी उसे वहां के पुजारी जी आवाज देते हैं –

संध्या बिटिया यह लो तुम्हारा प्रसाद। वैसे तुम्हारा परिणाम आया कि नहीं (पुजारी जी हाथ में प्रसाद देते हुए बोले)।

कहां पुजारी काका..?? उसी के लिए तो यहां पर आई हूं। महादेव से प्रार्थना करने… (संध्या ने पुजारी से कहा)

सब ठीक हो जाएगा भरोसा रखो इन पर, पुजारी जी ने कहा और अपने काम में लग गए।

वैसे पुजारी काका, बाबा मिले तो बोल दीजिएगा मैं घर के लिए निकल गई हूं पूजा करके (संध्या ने पुजारी जी से कहा)।

ठीक है बिटिया बोल दूंगा (पुजारी ने संध्या से कहा)।

संध्या भी घाट से होते हुए बनारस की गलियों में चली आई। बनारस की गलियां तंग जरूर होती हैं और चहल-पहल भी बहुत होती है। यहां आपको कभी सन्नाटा मिल ही नहीं सकता। 

कभी कभी तो रात भी यहां भोलेनाथ के नामों से गुंजायमान रहती है। संध्या घर आती है, जूती उतारती देती है और सामने बने तुलसी को हाथ जोड़कर प्रणाम करती है।

जैसे ही वह घर के अंदर आती है तो उसकी दीदी आरती बोलती है – आ गई तुम महादेव से अपनी शिकायत करके।

आपको तो पता ही है दीदी कि मेरा आज रिजल्ट आने वाला है तो मुझे टेंशन तो होगी ना। मेरा सपना है दिल्ली जाकर पढ़ने का। अगर रिजल्ट में अच्छे नंबर नहीं आए तो बाबा मेरा दाखिला यही किसी कॉलेज में करवा देंगे (संध्या ने अपनी बहन से कहा)।

तू टेंशन मत ले हर बार तो तू अच्छे नंबर से पास हुई है तो इस बार भी अच्छे नंबरों से पास होगी (आरती ने संध्या को दिलासा देते हुए कहा)

अच्छा दीदी यह सब छोड़ो बाबा कहां है.??

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हम यहां हैं। संध्या… हम मंदिर ही गए थे दर्शन के लिए तो पुजारी जी ने बताया कि आप अभी अभी मंदिर से निकल चुकी है। साथ ही हमने आपके परिणाम के लिए शुभकामनाएं भी मांगी थी।

श्री सुशील कुमार मिश्रा जी संध्या के बाबा बनारस के हाई स्कूल के प्रधानाचार्य हैं। उनका बहुत ही सरल और शांत स्वभाव सबको पसंद है। उनको सभी लोग बहुत सम्मान देते हैं। उनके परिवार में वह और उनकी दो बेटियां हैं। 

बड़ी का नाम, आरती और छोटी का नाम संध्या है। उनकी पत्नी अस्वस्थ होने के कारण उनकी 10 साल पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। तब संध्या सिर्फ 8 साल की थी और आरती 12 साल की थी। 
दोनों की परवरिश अकेले ही सुशील जी ने बड़े लाड प्यार से की है। उनका छोटा सा सुखी परिवार है।

संध्या और आरती ने अपने बाबा के पैर छुए।

जीते रहिए ! (सुशील जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा)

बाबा आप बैठिए ! मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूं (आरती ने अपने बाबा से कहा)।

सुशील जी आंगन में खाट पर बैठते हुए संध्या को अपने पास बुलाया और बोले – आप परेशान क्यों हो रही हो ? तुम्हारा रिजल्ट बहुत ही अच्छा आएगा।

मैं अपने रिजल्ट को लेकर परेशान नहीं हूं बल्कि मुझे तो दिल्ली जाकर पढ़ने के लिए आप से पूछना है, बाबा ! (संध्या ने अपने मन में बढ़बढ़ाते हुए कहा)।

संध्या ने अपने बाबा को एक प्यारी सी मुस्कान दी।

बाबा यह लीजिए आपकी अदरक वाली चाय – (आरती ने अपने बाबा को चाय का कप देते हुए कहा)।

आपके ससुराल जाने के बाद पता नहीं हमें यह अदरक वाली चाय मिलेगी भी या नहीं – (सुशील जी ने संध्या की तरफ देखते हुए कहा)।

बाबा मैं अभी कहीं नहीं जा रही हूं – (आरती ने अपने बाबा से कहा)।

बेटा… एक दिन तो सभी बेटियों को अपने घर जाना होता है तो आप दोनों को भी जाना होगा – (सुशील जी ने उदास मन से कहा)।

फिर दोनों उनसे लिपट गई और बोलने लगी – हम दोनों आपको कभी भी छोड़कर नहीं जाएंगे, समझे आप… सांध्या और आरती ने साथ मिलकर जवाब दिया।

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अरे ! अरे ! बहुत प्यार कर लिया आप दोनों ने अब हमें कुछ नाश्ता भी मिलेगा या नहीं – (सुशील जी ने हंसकर कहा)।

ठीक है बाबा… आप हाथ मुंह धो लो तब तक मैं नाश्ता लगाती हूं – (आरती ने अपने बाबा से कहा)।

सभी डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए नाश्ता करने लगे। तभी किसी की आवाज आई…

अरे भाई ! हमें भी कुछ खाने को मिलेगा – (त्रिपाठी जी घर के अंदर आते हुए बोले)।
हां चाचा जी ! बिल्कुल… क्यों नहीं मिलेगा। हमने तो पहले से ही आपके लिए नाश्ता बना कर रखा है – (संध्या ने पैर छूते हुए कहा)।

राकेश त्रिपाठी जी सुशील जी के बहुत करीबी दोस्त हैं। यह कहिए कि उनके हर सुख – दुख में साथ देने वाले राकेश जी ही थे। राकेश जी को कोई औलाद नहीं है। इसलिए वह और उनकी पत्नी सरला त्रिपाठी जी संध्या और आरती को ही अपनी बेटियों की तरह मानते हैं।

अरे हमारी आरती बिटिया कहां है – (त्रिपाठी जी ने इधर-उधर देखते हुए कहा)।

हम यहां हैं… चाचा जी ! बस आपके लिए नाश्ता लेकर आ रहे हैं – (नाश्ते की प्लेट उनके सामने रखते हुए बोली) और पैर छूते हुए कहा – चाची जी नहीं आई… चाचा जी !

अरे बेटा ! वह अपने मायके गई हुई है – (राकेश जी ने नाश्ता करते हुए कहा)।

अच्छा संध्या बिटिया… आज तो आप का रिजल्ट आने वाला है ना – (राकेश जी ने संध्या से पूछा)

जी, चाचा जी! उसी को लेकर परेशान हूं – (संध्या ने जवाब दिया)।

हमें तो पता है हमारी बिटिया जरूर अच्छे नंबर से पास होगी। वैसे क्या सोचा है आपने… कि किस कॉलेज में दाखिला करवाओगी – (त्रिपाठी जी ने संध्या से सवाल किया) ?

जी, चाचा जी! मैंने तो सोचा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में अपना दाखिला करवाऊं – (संध्या ने नजरें नीचे करते हुए जवाब दिया)।

यह तो बहुत अच्छी बात है, त्रिपाठी जी ने कहा।

कितनी बार कहा है संध्या… कि आप इसी शहर में रहकर पढ़ाई पूरी करेंगी – (सुशील जी ने थोड़ा गुस्से से कहा)।

आप सब तो जानते ही हैं कि मेरा सपना दिल्ली जाकर पढ़ना है – (संध्या ने रोनी सी सूरत बना कर कहा)।

अरे ! सुशील… तू भी क्या बच्चों की तरह जिद लेकर बैठा है। अब उसका मन है तो उसे पढ़ने जाने दे – (त्रिपाठी जी ने सुशील जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा)।

बाबा, चाचा जी… पहले रिजल्ट तो आने दीजिए, आरती ने कहा।

रिजल्ट कितने बजे तक आएगा, संध्या बिटिया…- (त्रिपाठी जी ने पूछा) ?

12:00 बजे तक आ जाएगा, चाचा जी – (संध्या ने जवाब दिया)।

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ठीक है फिर… हम चलते हैं बिटिया, शाम को मिलते हैं। अरे तुम यहीं बैठे रहोगे क्या..?? त्रिपाठी जी ने सुशील जी से कहा।

फिर दोनों चले जाते हैं…

दीदी आपको क्या लगता है, बाबा मान तो जाएंगे ना – (संध्या ने आरती से पूछा) ?
अरे ! मेरी प्यारी बहन… सब ठीक हो जाएगा। तू टेंशन मत ले – (आरती ने संध्या को दिलासा देते हुए कहा)।
इस कहानी का यह अध्याय यहीं समाप्त होता है क्या संध्या के बाबा उसे दिल्ली जाकर पढ़ने के लिए इजाजत देंगे या नहीं जानने के लिए इस कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें।

 कैसी ये मोहब्बतें : (भाग -2) 

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