गरीब बहू | Gareeb Bahu | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब बहू ” यह एक Saas Bahu Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Kahaniyan या Bedtime Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
गरीब बहू | Gareeb Bahu | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Gareeb Bahu | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

गरीब बहू

चंदन नगर नामक एक छोटे से गांव में विमला काकी नाम की एक औरत रहा करती थी। उसकी बबली नाम की बहू थी, जो बहुत ही सीधी और सांवली थी। 
जिसकी वजह से बिमला काकी उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं किया करती। एक दिन बिमला काकी अपनी झोपड़ी में आराम से खर्राटे लेकर सो रही होती है। 
तभी अचानक एक कांच की बोतल के गिरने की आवाज आती है और विमला काकी की अचानक से आँख खुल जाती है।
विमला,” अरे रे ! अब क्या हो गया ? अब ना जाने इस बबली बहू ने क्या तोड़ दिया ? हाय ! चल कर देखूं तो सही। “
जिसके बाद विमला काकी रसोई में जाती है और देखती है कि उसकी बहू टूटी हुई अचार की कांच की बोतल के पास खड़ी है और उसके हाथ में कुछ अचार के टुकड़े है, जिसे बबली बड़े मज़े से खा रही होती है। “
बबली,” अरे वाह वाह! कितना स्वादिष्ट और मजेदार अचार है ? लेकिन अब माँ जी तो मुझे बहुत गुस्सा करेंगी। 
मुझसे तो पूरी अचार की बोतल ही टूट गई। अब मैं क्या करूँगी ? “
विमला,” अरे रे बबली बहु ! ये क्या किया तूने ? मेरा बनाया सारा आचार गिरा दिया तूने। ये कैसी बहू पल्ले पड़ी है जो भी करती है, बस उल्टा ही करती है। 
ना तो तेरा रूप है, ना गुण। ना जाने कौन सी घड़ी में मैं तुझे अपने बिरजू के लिए ब्याह कर ले आई। मेरा सारा आचार…। “
बबली,” ना जाने क्यों माँ जी हमेशा मेरे रूप को लेकर बातें बनाती हैं। अगर मैं रूपवती नहीं हूँ तो इसमें मेरी क्या भूल ? 
ऊपर वाले ने ही मुझे बदसूरत बनाया है। माँ जी भी ये बात समझती नहीं है। “
अगले दिन विमला काकी जंगल में से कुछ केले के पत्तों को तोड़कर लाती है और अपनी झोपड़ी में लेकर जाती है। और बबली को तेज आवाज लगाते हुए कहती है।
विमला,” अरे ओ बबली बहू ! कहाँ है ? जल्दी बाहर तो आ ज़रा। “
बबली,” अरे ! ये क्या, आप इतने सारे पत्ते क्यों ले आईं ? इतने सारे पत्तों का आखिर क्या होगा बताओ ना मां जी ? “
विमला,” अरे ! कल मेरे गांव की मेरी सहेलियां आ रही हैं। उनके लिए ये केले के पत्ते हैं। 
उन्हें केले के पत्तों पर खाना बहुत पसंद है। इसलिए ये केले के पत्ते कल के भोजन में इस्तेमाल करना। “
बबली,” जी, जी माँ जी… अच्छे से समझ गई। आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। “
विमला,” अच्छा अच्छा ठीक है। लेकिन कल ज़रा मेरी सहेलियों के सामने मेरी नाक मत कटवा देना। ज़रा अपना ये रंग रूप थोड़ा संवार लेना, समझी ?
वैसे तो ना जाने मेरी सहेलियां देख कर ही तुझे क्या कहेंगी ? मेरी तो नाक ही कट जाएगी। “
बबली,” मेरे इस काले रूप के कारण माँ जी मुझे कितना कुछ बोलती हैं ? लेकिन कल मैं मां जी की सहेलियों के सामने दिखा दूंगी कि मैं कितनी सुंदर हूँ ? “
अगले दिन…
विमला,” अरे रे ! आओ आओ। आ गई तुम दोनों ? मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी ? आंखें तरस गईं थीं तुम्हें देखने के लिए, मेरी प्यारी सहेली। “
सहेली,” अरे ! हाँ हाँ विमला काकी, हमारा भी तुमसे मिलने का बहुत मन था और फिर तेरी बहू से भी तो मिलना है। “
दूसरी सहेली,” बिल्कुल सही बोल रही हो। आज तो हम बिमला काकी की बहू के हाथ का ही भोजन खाएंगे, हाँ। “
विमला,” अरे ! हाँ हाँ, क्यों नहीं..? मेरी प्यारी सहेलियों, इतनी जल्दी क्या है, मिल लेना मेरी बहू से ? पहले हम थोड़ी बातें तो कर लें। “
सहेली ,” अरे ! हाँ हाँ क्यों नहीं बिमला काकी ? आखिर हम तीनों सहेलियां इतने दिनों बाद जो मिल रही हैं। आज तो खूब बातें होंगी, हाँ। “
बबली,” अरे रे ! लगता हैं माँ जी की सहेलियां आ गई हैं। मुझे उनके सामने सज संवरकर कर जाना होगा। लेकिन मेरा ये काला रंग… मैं इसे कैसे छुपाऊं ? ” 
विमला,” ओ बबली बहू ! ज़रा बाहर तो आ, देख तो कौन आया है ? “
तभी बबली बाहर सबके सामने जाती है। बबली की हालत बहुत खराब होती है। 
देखने में बबली बहुत खराब लग रही होती है, जिसे देखकर विमला काकी की तीनो सहेलियां हंसने लगती हैं‌। “
सहेली,” बिमला काकी, तेरी बहू तो सबसे निराली है निराली। “
अपनी सहेलियों की ऐसी बातें सुनकर विमला को बहुत गुस्सा आता है।
बबली,” देखिए माँ जी, मैं हो गई बहुत सुंदर। आपने बोला था ना आज आपकी सहेलियों के सामने सुंदर लगना है ? तो देखो लग रही हूँ ना सुंदर ? “
विमला,” अरे रे ! थोड़ी सी बुद्धू है मेरी बहू इसलिए। “
विमला ,” जाओ जाओ बबली बहू, मेरी सहेलियों के लिए भोजन ले आओ… जाओ जाओ। “

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बबली,” अरे ! हां मां जी, मैं भी आप सभी लोगों के लिए भोजन लेकर आती हूँ। “
तभी बबली केले के पत्ते अपने हाथ में लेकर आती है और सभी के सामने रख देती है। लेकिन काफी देर तक बबली और कोई भोजन नहीं लेकर आती। यह देखकर तीनों सखियां हैरान हो जाती हैं।
बबली,” अरे ! आप सभी भोजन खा क्यों नहीं रहे हैं ? खाइए ना खाइए भोजन। यही तो आपको पसंद है ना ? “
विमला,” अरे बबली बहू, क्या पागल हो गई है ? आखिर कहाँ हैं तेरा बनाया भोजन ? 
जा जल्दी लेकर आ, कितना इंतज़ार करायेगी मेरी सहेलियों को ? “
बबली,” अरे मां जी ! आप भी ना… भोजन तो मैंने कब का आपकी सहेलियों के सामने रख दिया हैं ? लेकिन ये तो खा ही नहीं रही हैं। 
खाइए ना। आप सभी को केले की पत्ती बहुत पसंद हैं ना ? माँ जी आपके लिए तो जंगल से लाईं थीं, हाँ। “
सहेली,” ये क्या विमला काकी..? क्या हम ये केले के पत्ते खाएंगे ? “
दूसरी सहेली,” छी छी… अरे ! कुछ भोजन नहीं खिलाना चाहती तो बता देती। अब हम यहाँ से जा रहे हैं। “
विमला,” अरे रे ! ये क्या किया तूने ? आज तो तूने सारी हद पार कर दी। तुझसे कहा था ना इन केले के पत्तों पर अपना बनाया भोजन परोसना और तुने इन्हें ही भोजन समझ लिया ?
अरे रे ! तेरी बुद्धि तो किसी काम की नहीं। एकदम अकल से खाली है तू। 
अरे ! आज तो तूने अपनी कम बुद्धि की वजह से मुझे मेरी सहेलियों के सामने बुरा बनवा दिया। अरे ! मैं कहती हूँ चली जा यहाँ से। 
अगर तू थोड़ी देर भी मेरे सामने रही, मेरे घर में रही तो अच्छा नहीं होगा। बता देती हूँ… चली जा यहां से। “
बबली,” अरे माँ जी ! ये आप क्या बोल रही हैं ? माफ़ कर दो मुझे। मुझे घर से मत निकालो। मैं कहां जाऊगी। माँ जी, माफ़ कर दो। “
बेचारी बबली घर से बाहर निकलने के बाद जंगल की ओर चल देती है। 
बबली,” जाने अब मैं कहाँ जाउंगी ? इस जंगल में भी मुझे डर लग रहा है। अगर कोई जानवर मुझे खा गया तो..? 
नहीं नहीं, मैं किसी का भोजन नहीं बनना चाहती हूँ। ना जाने अब आगे मेरे साथ क्या होगा ? “
तभी बबली को एक छोटा सा तालाब दिखाई देता है, जिसके पास एक बूढ़ी औरत बैठी होती है और जिसके हाथ में मछली पकड़ने वाली छड़ी होती है।
वह बार बार मछली पकड़ने की कोशिश करती हैं, लेकिन एक भी मछली उसके हाथ में नहीं आ पाती।
बबली,” अरे ! कौन हैं आप अम्मा और क्या इस नदी में मछलियां पकड़ रही हैं ? “
बुढ़िया,” अरे बेटी ! मैं एक बुढ़िया अभागी हूँ, जो इस जंगल में रहा करती हूँ और अक्सर इस तालाब से कुछ मछलियां पकड़ के ले जाया करती हूँ और उनसे ही अपनी भूख शांत कर लिया करती हूँ। 
कई दिनों से एक मछली भी हाथ नहीं आई है। कई दिनों से भूखी हूँ। आज एक मछली भी हाथ आ जाए तो मेरी भूख शांत हो जाए। “
बबली,” अरे रे ! बस इतनी बात से दुखी हो ? मैं आपके लिए मछली पकड़ देती हूँ। 
अभी देखिएगा, एक बार में ही मछली मेरे हाथ में आ जाएगी, हाँ। फिर आप उसे पकाकर अपनी भूख शांत कर लेना। “
बबली,” ये देखिये अम्मा जी, मैंने कहा था ना… देखिये कितनी सारी मछलियां हैं ? देखिये देखिये। “
बुढ़िया,” अरे वाह वाह बेटी ! ये तो सच में कितनी सारी मछलियां हैं ? तेरा बहुत बहुत धन्यवाद बेटी इस बूढ़ी की मदद करने के लिए। 
आज मुझे भूखा नहीं सोना पड़ेगा। वाकई तू एक नेक दिल इंसान है। अच्छा, अब मैं चलती हूँ। “
बबली,” ठीक है अम्मा, अब तुम जाओ और इन मछलियों से अपनी भूख शांत करो। “
बुढ़िया,” हाँ हाँ बेटा, जाती हूँ। सदा सुखी रहो तुम। बाकी सब माया है सब माया। “
जिसके बाद वह बूढ़ी वहाँ से चली जाती है और थोड़ी दूर जाते ही गायब हो जाती है। 
बबली जंगल में आगे बढ़ती है और देखती है कि एक बहुत ही भयानक और अजीब दिखने वाली औरत बैठी रो रही होती है। बबली उसे देखकर डर जाती है।
बबली,” अरे ! कौन हो तुम ? रो क्यों रही हो और तुम देखने में इतनी भयानक क्यों हो ? क्या तुम मनुष्य नहीं हो ? मुझे बहुत डर लग रहा है ? “
औरत,” क्या बताऊँ तुम्हें ? मैं मनुष्य ही हूँ। लेकिन मैं वो अभागी हूँ जिसे कोई भी देखना पसंद नहीं करता। 
कुछ समय पहले मैं बहुत सुंदर हुआ करती थी। अपने रूप का मुझे बहुत घमंड था, जिसकी वजह से मैं सभी को नीच समझा करती थी। 

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लेकिन एक दिन एक भूखी भिखारिन भोजन मांगने मेरे द्वार पर आई। उसका रूप बहुत गन्दा था। 
लेकिन अपने रूप के घमंड के कारण मैंने उसे नीच समझा और बिना कुछ भोजन दिए घर से भगा दिया। उसी भिखारिन के श्राप के कारण मेरा ये हाल हो गया। 
मेरी इस भयानक रूप के कारण कोई भी गांव वाला मुझे देखना पसंद नहीं करता। इसलिए मैं यहाँ सबसे छुपकर इस जंगल में आ गई। मैं यहीं बैठी कई कई दिनों से रोती रहती हूँ। “
बबली,” अरे रे ! चुप हो जाओ, मैं तुम्हारा दुःख समझ सकती हूँ। मेरे भी काले रूप के कारण मेरी माँ जी ने मुझे घर से निकाल दिया। 
मेरा ये रूप उन्हें पसंद नहीं। लेकिन ये तुम्हारा भयानक रूप तो मुझसे भी ज्यादा खराब और डरावना है। 
क्या तुम्हारे इस भयानक रूप से निजात पाने का कोई रास्ता नहीं है ? “
औरत,” रास्ता है। एक दिन इस जंगल में एक साधू आए थे जिन्होंने मुझे कहा था कि अगर कोई नेक दिल इंसान इस जंगल में आएगा और उस विशाल नदी के जल को छूकर मुझे देगा, जिसे पीकर मुझे मेरे इस भयानक और डरावने रूप से छुटकारा मिल जायेगा। 
क्योंकि इस विशाल नदी का जल सिर्फ नेक दिल इंसान ही छू सकता है और तब से मैं रोज़ उस नेक दिल इंसान की राह देखती रहती हूँ। न जाने वो कब किस रूप में मेरे सामने आ जाये ? “
बबली,” क्या अब इसमें मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ ? कहाँ है वो विशाल नदी, बताओ मुझे ? तुम देखना, मैं उस विशाल नदी के जल को छू लूंगी, हाँ। “
औरत,” क्या तुम सच में मेरी मदद करना चाहती हो ? लेकिन उस नदी का जल वही इंसान छू सकता है जो नेक दिल हो। 
अगर कोई और उस विशाल नदी के जल को छूने की कोशिश करता है तो वो उस नदी में हमेशा के लिए समा जाता है। “
बबली,” नहीं, तुम देखना मुझे कुछ नहीं होगा। मैंने तो कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। 
मैं अवश्य ही तुम्हारी मदद करूँगी। अगर उस विशाल नदी के जल से तुम्हें तुम्हारे भयानक रूप से छुटकारा मिल सकता है तो। चलो मेरे साथ उस विशाल नदी के पास, मैं करूँगी तुम्हारी मदद। “
औरत,” यही वो विशाल नदी है। तुम अगर इस नदी के जल को छू पाओ तो ही पता चल पाएगा कि तुम एक नेक दिल इंसान हो या नहीं ? 
इसके बाद ही तुम मेरी मदद कर पाओगी। नहीं तो हमेशा के लिए इस विशाल नदी में समा जाओगी। “
बबली अपना सर हाँ में हिलाती है और जैसे ही नदी के जल में हाथ डालती है तो बबली के हाथ पर खूब सारी तितलियां आकर बैठ जाती है। 
लेकिन बबली को कुछ नहीं होता है। जिसके बाद बबली अपने हाथों में वह नदी का पानी लेती है और अपने हाथों से भयानक औरत को पीला देती है। 
उसके ऐसा करते ही भयानक औरत का भयानक और डरावना रूप चला जाता है और वह एक साधारण रूप में आ जाती है।
औरत,” अरे वाह ! देखो मैं फिर से अपने रूप में आ गई हूँ। अब कोई मुझसे नहीं डरेगा। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद ! 
तुम वाकई एक नेक दल इंसान हो। आज तुम्हारी वजह से मुझे मेरे भयानक और डरावने रूप से छुटकारा मिल सका। “
बबली,” अरे ! तुम अपने पहले वाले रूप में आ गई। मेरे लिए तो इतना ही काफी है। 
तुम्हारा वो भयानक और डरावना रूप तो मुझसे भी देखा नहीं जा रहा था। लेकिन अब सब ठीक हो गया है। 
अब तुम अपने घर जा सकती हो। तुम्हें कोई गांव वाला कुछ नहीं बोल पाएगा, हाँ। “
कुछ समय बाद…
बबली,” अरे ! कौन हो तुम और यहाँ इस नदी में क्या कर रहे हो ? तुम देखने में बहुत ही भयानक हो। 
मुझे कुछ मत करना, मैंने कुछ नहीं किया। छोड़ दो मुझे, जाने दो। “
बूढ़ा,” अरे रे बबली बेटा ! तुम डरो मत, मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगा। ये एक जादुई नदी है, जिसका स्वामी मैं हूँ। 
इस जंगल में वही इस जादुई नदी के जल को छू सकता है, जिसका हृदय नेक और कोमल होता है। तुमने इस नदी के जल से जिस भयानक औरत की मदद की, वो और कोई नहीं बल्कि मैं ही था। 
वो मेरी ही माया थी जो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ। बताओ, तुम्हें मुझसे क्या चाहिए ? मैं तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूँगा। “
बबली,” अरे ! क्या आप सही बोल रहे हैं ? अरे ! मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा। मैं आपसे ज्यादा तो कुछ नहीं चाहती हूँ। 
मेरी सबसे बड़ी समस्या मेरा ये काला और भद्दा रूप ही है, जिसकी वजह से मुझे लोगों की बातें सुननी पड़ती है और इसकी वजह से मेरी सास ने मुझे घर से निकाल दिया। 
अब आखिर मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊं ? मेरी सहायता कीजिए। “
बूढ़ा,” ओह ! अच्छा तो ये बात है। ठीक है बबली, तुम रुको ज़रा। तुम्हारी ये परेशानी अभी हल किये देता हूँ बेटी। 
देखो बबली, अब तुम सबसे सुंदर हो गई हो। तुम्हें अब कोई भी कुछ नहीं कह पाएगा। जाओ, अब तुम अपने घर जाओ। सदा सुखी रहो। “
बबली,” अरे वाह वाह! मैं तो बहुत सुंदर हो गई… बहुत ही सुंदर। अब कोई चाहकर भी मेरे रूप को नहीं कोस पाएगा और माँ जी तो मेरा ये रूप देखकर बहुत खुश हो जाएंगी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अच्छा, अब मैं चलती हूँ हाँ। “
जिसके बाद बबली अपने घर जाती है जहाँ पर उसके सास बैठी रो रही होती है। बबली को देखते ही वह खुश हो जाती है।
विमला,” अरे बहू ! आ गई तू ? कहाँ चली गई थी ? मैंने कितना ढूंढा तुझे ? 
बता कहाँ गई थी और ये क्या बबली बहू… तेरा तो पूरा रूप ही बदल गया। आखिर ये सब हुआ कैसे, बता मुझे ? “
बबली,” देखिए ना मां जी, अब मैं कितनी सुंदर हो गई हूँ ?आपको अब मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी, हाँ। 

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देखिए तो अब मैं कितनी सुंदर हो गई हूँ ? देखिए देखिए… और ये सब उस नदी के कारण हुआ। “
विमला,” अरे ! क्या बोल रही है बबली बहू ? विशाल नदी..? क्या सच में किसी विशाल नदी के कारण तुझे सुंदर रूप मिला ? “
बबली,” हाँ माँ जी, विशाल नदी। ये सब उसके ही कारण हुआ है। “
विमला,” अरे ! क्या तू सच बोल रही है ? अरे वाह बहू ! मैं तो तेरे जैसी बहू पाकर धन्य हो गयी। 
लेकिन बहू अब मुझे तेरे रंग रूप से कोई फर्क नहीं पड़ता। तेरे जाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि तू कितनी अच्छी है ? 
तेरा दिल एकदम साफ़ और नेक है। कितना कुछ सुनाया मैंने..? मुझे माफ़ कर दे बहू। “
बबली,” नहीं नहीं माँ जी, आप चुप हो जाइए। मैंने आपको माफ़ कर दिया। आप मेरी विमला काकी है। इसलिए मैं आपसे कभी नाराज़ नहीं हो सकती हूँ, हाँ‌। “
दोनों आपस में गले मिलते हैं।

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