हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई तालाब ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Jadui Talaab | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales
कासगंज में एक बहुत बड़ा जमींदार रहता था। उस जमींदार की बहुत बड़ी हवेली थी।
उस हवेली में बिलुआ और गबरू नाम के दो व्यक्ति काम किया करते थे। बिलुआ स्वभाव से चतुर और मक्कार किस्म का व्यक्ति था, वहीं गबरू एक बेवकूफ, छोटे कद का बहुत भोला व्यक्ति था।
बिलुआ ज़मींदार के कमरे की सफाई कर रहा था कि तभी जमींदार उसे आवाज लगाता है।
जमींदार,” ओ बिलुआ… अरे ! कहाँ मर गया ? अरे ! आवाज़ दे देकर मेरा तो गला ही सूख गया। जल्दी से मेरे लिए एक गिलास पानी लेकर आ तो। “
बिलुआ,” पता नहीं इस जमींदार को कितनी प्यास लगती है ? इसे तो हर 10 मिनट बाद पानी चाहिए। एक नौकर तो इसे पानी देने वाला ही रख लेना चाहिए इसको। “
जमींदार,” बिलुआ, कहाँ मर गया ? अरे ! जल्दी आ। “
बिलुआ,” जी मालिक… जी मालिक बस अभी आया। “
बिलुआ तुरंत एक गिलास पानी लेकर जमींदार के कमरे में पहुँच गया। मगर उसने देखा ज़मींदार पानी पी रहा था।
बिलुआ,” मालिक, जब आपके पास पानी था तो आपने मुझसे क्यों मंगवाया ? “
जमींदार,” बेवकूफ कहीं के… तुझे आवाज़ लगा लगाकर मेरा गला सूख गया। मुझे फिर गबरू को आवाज़ लगानी पड़ी। “
बिलुआ गबरू को गुस्से से देखता हुआ बड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। वो अंदर ही अंदर गबरू से बहुत जलता था।
बिलुआ,” इस गबरू ने तो मेरा जीना हराम कर रखा है। हमेशा मुझे जमींदार के सामने बेइज्जत करने का बहाना ढूंढता रहता है। एक बार मौका मिला तो इसे अच्छा सबक सिखाऊंगा। “
शाम को बिलुआ अपना जल्दी जल्दी काम खत्म करके वहाँ से चल दिया। रास्ते में बिलुआ को कनुआ नाई मिल गया।
कनुआ,” अरे ! क्या हाल है बिलुआ भैया ? आज कैसे गुस्से में चले जा रहे हो ? लगता है जमींदार ने आज तुम्हें फिर से खरी खोटी सुना दी है ? “
बिलुआ,” तुम्हें क्या करना भैया ? तुम अपने काम से काम रखो। “
कनुआ,” वो तो सब ठीक है बिलुआ भैया लेकिन यहाँ इस तरफ काहे को जा रहे हो ? तुम्हारा घर तो दूसरी तरफ पड़ता है ना ? “
बिलुआ,” तुम्हें इससे क्या मतलब है ? तुम्हारी जासूसी करने की आदत नहीं जाती। “
कनुआ,” मैं जानता हूँ…जरूर चंपा से मिलने जा रहे हो। अभी अभी उसे ही मैंने देखा था पेड़ के पास। “
बिलुआ,” जब सब कुछ जानते ही हो तो पूछना जरूरी है ? “
कनुआ,” हम तेरे गांव के तुम्हारा शुभचिंतक… किसी दिन चंपा के पिता को तुम्हारे बारे में पता लग गया ना तो तुम्हारी चप्पलों से पीट पीटकर हालत खराब कर देंगे। बता रहे है हाँ। “
बिलुआ,” अरे ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। “
कनुआ,” मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताता हूँ बिलुआ भैया। चंपा का चक्कर तुमसे नहीं बल्कि गांव के ही रईसजादे बिल्लू से भी चल रहा है।
वो सिर्फ तुम्हें बेवकूफ बना रही है बेवकूफ। वो तुमसे प्यार नहीं करेगी, बता रहे हैं। “
नाई की बात पर बिलुआ बुरी तरह से झुँझला गया।
बिलुआ,” अरे ! वो मुझसे विवाह करे या ना करे। तुम्हें इससे क्या ? तुम अपने काम से काम क्यों नहीं रखते, भैया ? अब रास्ता छोड़ो मेरा, जाने दो मुझे। “
कनुआ नाई ने हंसते हुए उसका रास्ता छोड़ दिया और बिलुआ सीधा एक पेड़ के पास पहुँच गया जहाँ पर चंपा उसका इंतजार कर रही थी।
चंपा,” 1 घंटे से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ बिलुआ और तुम अब आये हो जब मेरा घर जाने का टाइम हो गया है। “
बिलुआ,” अरे ! बड़ी मुश्किल से तो आया हूँ वरना उस जमींदार का बस चले तो मुझसे 24 घंटे काम करवाए। “
चंपा,” बहुत बहाने हो गये। पहले ये बताओ… तुमने आज मुझसे वादा किया था कि तुम मुझे नौलखा हार पहनाओगे। कहा है मेरा नौलखा हार ? “
बिलुआ,” तेरा दिमाग ठीक है चंपा ? नौलखा हार तो तू ऐसे मांग रही है जैसे कि बाजार में ₹4 – 5 का बिकता हो। “
चंपा,” मुझे कोई मतलब नहीं बिलुआ। मुझे नौलखा हार चाहिए। फिर चाहे तुम चोरी करके लाओ या डाका डालके। “
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बिलुआ,” तू अच्छी तरह से जानती है चंपा कि मैं जमींदार के यहाँ पर काम करता हूँ। मैं कोई जमींदार नहीं हूँ। “
चंपा,” ठीक है, सोच लो… मेरे पीछे गांव का बिल्लू भी पड़ा हुआ है। मैंने तो सुन रखा है कि वो मेरे लिए नौलखा हार भी लेकर आ गया है।
3 दिन की मोहलत देती हूँ तुम्हें। अगर 3 दिन में तुम हार लेकर नहीं देते हो ना तो मैं बिल्लू से शादी करने की हामी भर दूंगी, हाँ। “
इतना कहकर चंपा वहाँ से चली गई और बिलुआ सर पर हाथ रखकर बैठ गया।
बिलुआ,” अरे ! अब इसके लिए नौलखा हार कहाँ से लेकर आऊं ? “
तभी बिलुआ को गबरू आता दिखाई दिया।
बिलुआ,’ अबे कहा जा रहा है इधर जंगल की तरफ ? “
गबरू,” मैं तो अक्सर खाना खाने के बाद जंगल की तरफ ही टहलने निकल जाता। “
बिलुआ,” सुबह जमींदार के सामने तो बड़ा अकड़ दिखा रहा था। जब उन्होंने मुझसे पानी मंगवाया था तब तुझे क्या जरूरत थी उनके लिए पानी लाने की ? “
गबरू,” उन्होंने मुझसे जब पानी मंगवाया तो क्या मैं उसे मना कर देता ? आखिरकार मैं उनके यहाँ पर काम करता हूँ। वो मुझे तन्खवाह देते हैं। “
बिलुआ,” चुपकर, जमींदार का चमचा बना फिरता है। भगवान ने तो तुझे ना शक्ल दी अच्छी और न ही सूरत।
एक तो तू काला ऊपर से नाटा भी। पता नहीं जमींदार ने तुझमें ऐसा क्या देख लिया जो तुझे काम पर रख लिया ? “
बिलुआ की बात सुनकर गबरू उदास हो गया।
गबरू,” अगर भगवान ने मुझे ऐसा बनाया है तो उसमें मेरी क्या गलती है ? बिलुआ, भगवान कोई भी चीज़ बुरी नहीं बनाते और जमींदार ने मुझे मेरी ईमानदारी और मेहनत देखकर काम पर रखा है। समझे..? “
बिलुआ,” तो तू कहना चाहता है कि मैं ईमानदार नहीं हूँ ? “
गबरू,” मैंने ऐसा तो नहीं कहा। तुम ही मेरी हमेशा बुराई करते रहते हो, मेरे खिलाफ़ जमींदार के कान भरते रहते हो।
मैं तो तुमसे कोई मतलब नहीं रखता। मैं तो किसी से भी नहीं बोलता कि तुम यहाँ चोरी छुपे सुखिया चाचा की बेटी चंपा से मिलने आते रहते हो। “
बिलुआ,” अच्छा… तो तुझे ये जलन है कि मैं चंपा से प्यार करता हूँ और तुझे चंपा घास तक नहीं डालती है। “
गबरू,” मैं तो ऐसा सोचता भी नहीं। “
बिलुआ,” सोचने से पहले अपनी शक्ल और अपना कद जरूर देख लेना। बदसूरत नाटा कहीं का ? “
इतना कहकर बिलुआ गबरू का मजाक उड़ाते हुए वहाँ से चला गया और गबरू उदास होकर जंगल की ओर चल पड़ा।
अगले दिन गबरू जमींदार के यहाँ काम पर चला गया और बिलुआ अभी तक काम पर नहीं आया था।
गबरू हवेली के फर्श पर पोछा लगा रहा था कि तभी ज़मींदार की पत्नी आशा गबरू के पास आकर बोली।
आशा,” ऐ गबरू ! जरा इधर तो आओ, तुमसे एक बहुत जरुरी काम है। “
गबरू,” जी मालकिन, अभी आया। “
आशा,” बिलुआ का इंतजार कर रही हूँ लेकिन लगता है वो तो नहीं आएगा। सुनो… ये सोने का हार है।
पूरे 25 तोले का है। इसे गांव जाकर सुरेश सुनार को दे आओ और संभलकर ले जाना। “
गबरू,” मालकिन, ये तो बहुत महंगा है। “
आशा,” तुम्हें गिफ्ट नहीं कर रही हूँ। इस हार का कुंडा टूट गया है। मैंने सुरेश से बात कर ली है। उसको बोल दिया है कि तुम्हें भेज रही हूँ मैं इसी के साथ। “
इतना कहकर जमींदार की पत्नी वहाँ से चली गई और बिलुआ ये सब कुछ चुपके से देख रहा था। तभी जमींदार के चीखने की आवाजें आने लगीं।
जमींदार,” बिलुआ कहां मर गया तू ? जल्दी से मेरे लिए एक ग्लास पानी लेकर आ। “
मगर बिलुआ ने उसकी बात को अनसुना कर दिया क्योंकि बिलुआ जानता था कि कुछ देर बाद जमींदार गबरू को आवाज लगाएगा और बिलुआ के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
जमींदार,” अरे गबरू ! ये बिलुआ पता नहीं कहाँ मर गया ? तू ही मेरे लिए एक ग्लास पानी ले आ। “
ज़मींदार की आवाज सुनकर गबरू जैसे ही जमींदार की ओर कमरे में बढ़ा तभी बिलुआ उसके सामने आ गया।
बिलुआ,” तुम्हारे हाथ में क्या है गबरू ?
गबरू,” अच्छा हुआ तुम आ गए बिलुआ भैया, मालकिन तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। मालकिन ने ये हार सुनार के यहाँ देने के लिए दिया था। “
बिलुआ,” लाओ, इसे मैं दे आता हूँ। तुम जाकर तब तक जमींदार साहब को पानी दे आओ। “
गबरू,” तुम इसे पकड़ो बिलुआ भैया, मैं अभी 5 मिनट में आता हूँ। “
इतना कहकर गबरू जमींदार के कमरे की तरफ चला गया और बिलुआ के होठों पर मक्कारी की मुस्कुराहट आ गई।
कुछ देर बाद जब गबरू वापस आया तो उसने देखा कि बिलुआ वहाँ पर नहीं था। गबरू को खड़ा देखकर आशा ने पूछा।
आशा,” तुम अभी तक यही हो ? “
गबरू,” मालकिन, हार बिलुआ भैया ले गए। “
तभी आशा को बिलुआ दरवाजे पर खाली हाथ दिखाई दिया।
बिलुआ,” कौन सा हार मालकिन ? मैं तो अभी अभी आया हूँ। “
गबरू,” ये क्या बोल रहे हो बिलुआ भैया ? अभी अभी तो तुमने हार लिया था। “
बिलुआ,” पागल हो क्या ? “
बिलुआ,” मालकिन, मैं तो अभी अभी आपके सामने ही आया हूँ। “
आशा बुरी तरह से चीखने लगी।
आशा,” अजी सुनते हो..? बहार आओ। तुम्हारा ये लड़ैता गबरू तो चोर निकला। “
आशा की बात सुनकर जमींदार बाहर आ गया।
जमींदार,” क्या हुआ..? क्यों कुत्ते की तरह भौंक रही है ? “
आशा,” मैं कुत्ते की तरह भौंक रही हूँ ? कुत्ता तो तुम्हारा ये लडैता है, पूरे 25 तोले का हार हड़प गया। “
गबरू,” मैंने कुछ नहीं किया, मालिक। मैंने वो हार बिलुआ भैया को दिया था। “
बिलुआ,” लेकिन मालिक मैं तो अभी अभी मालकिन के सामने आया हूँ। चाहें तो मालकिन से पूछ लो। “
आशा,” बिलुआ सही कह रहा है। “
जमींदार,” मक्कार नाटी… एक तो तुझे काम पर रखा ऊपर से तूने मेरे ही घर चोरी कर ली। “
गबरू,” मेरी बात का यकीन कीजिये। “
तभी जमींदार ने अपने चार पांच गुंडे बुला लिए और उनकी ओर देखकर बोला।
जमींदार,” मारो उसको। “
उन सबने गबरू को बुरी तरह से पिट डाला। ये देखकर बिलुआ बहुत खुश हो रहा था। “
जमींदार,” कल तक 25 तोले का हार अगर मेरे पास नहीं आया तो तेरे घरवालों को धक्के देकर तेरे घर से बाहर निकाल दूंगा और तेरे घर पर कब्जा कर लूँगा। “
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गबरू रोता हुआ चुपचाप जंगल की ओर चला गया। वह जंगल के तालाब किनारे बैठा रो रोकर अपने आप से बातें करने लगा।
गबरु,” 25 तोले का हार जमींदार को कहां से लाकर दूं ? एक तो गांव वाले वैसे भी मुझे बदसूरत और नाटा कहकर चिढ़ाते हैं।
ऊपर से कल जमींदार मेरे घरवालों को घर से बाहर निकाल देगा तो मैं क्या करूँगा ? मेरे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है। “
इतना कहकर गबरू उस तालाब से छलांग लगाने ही वाला था कि तभी उस तालाब से एक धुआं उठा और एक बेहद भयानक चेहरे वाली चुड़ैल उसके सामने आ गई।
चुड़ैल को देखकर गबरू बिल्कुल नहीं डरा। ये देखकर चुड़ैल को बड़ा आश्चर्य हुआ।
चुड़ैल,” ये तालाब मेरा है। मुझे देखकर अच्छे अच्छों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। तुझे डर नहीं लग रहा ? “
गबरू,” नहीं क्योंकि तुम से ज्यादा बदसूरत तो मैं हूँ, मुझे तुमसे डर क्यों लगेगा ? “
चुड़ैल,” किसने कहा कि तू मुझसे ज्यादा बदसूरत है ? “
गबरु,” गांव वालों ने। “
चुड़ैल अपनी आँखें बंद कर लेती है और अपने जादू के ज़ोर से गबरू के साथ हुई घटना को देख लेती है।
चुड़ैल,” तो तू मरना चाहता है ? “
गबरु,” हां, मेरा जीने का कोई मकसद नहीं। एक काम करो… तुम ही मुझे मार दो। “
चुड़ैल,” पहले इस तालाब में एक डुबकी लगा। डुबकी लगाने से ही तेरी मौत हो जाएगी। “
चुड़ैल की बात सुनकर गबरू दौड़ता हुआ तालाब में कूद जाता है। मगर जैसे ही डुबकी लगाकर अपना सर उठाता है तो वो देखता है कि वो लम्बा हो चुका था और एक सुन्दर युवक में परिवर्तित हो चुका था। अब उसके सामने कोई चुड़ैल नहीं बल्कि एक सुंदर स्त्री खड़ी थी।
गबरू,” मैं तो एक सुन्दर नौजवान में बदल गया और तुम तो एक चुड़ैल थी, ये सब क्या है ? “
परी (चुड़ैल),” मैं एक परी हूँ। तुम्हारा साफ दिल देखकर मुझे तुम पर दया आ गई। ये तालाब जादुई है। “
इतना कहकर उस सुंदर स्त्री ने एक सोने का भरा कलश गबरू को दे दिया।
गबरू,” ये तो पूरा सोने का भरा हुआ। मैं इतना सोने से क्या करूँगा ? “
परी,” तुम्हें अब किसी की गुलामी करने की जरूरत नहीं है। इस सोने से तुम ज़मींदार का कर्ज चुका देना। “
गबरू खुश होता हुआ अपने घर की ओर चला गया। अगले दिन उसने जमींदार के पास जाकर 25 तोले के बराबर सोना उसे दिया।
कुछ ही दिनों में गबरू ने जमींदार से बड़ी हवेली अपने गांव में बनवा ली और मुखिया की बेटी से उसका विवाह हो गया।
ये देखकर बिलुआ अंदर ही अंदर जले भुने जा रहा था। वह चंपा को यही बता रहा था।
बिलुआ,” पता नहीं ये नाटी इतना सुंदर और धनवान कैसे बन गया ? “
चंपा,” तुमने तो उसे चोरी के इलज़ाम में फंसा कर बाहर निकलवा दिया था। मगर हवेली से बाहर निकलकर तो उसकी किस्मत चमक गई। “
बिलुआ,” अरे ! उसे मैंने तेरे लिए ही तो फंसाया था। तुझे ही तो नौलखा का हार चाहिए था। “
चंपा,” नहीं, सच तो ये है कि तुम शुरू से ही गबरू से खार खाते थे। “
बिलुआ,” लेकिन तुमने ही तो कहा था कि चाहे चोरी करके लाओ या डाका डालकर लाओ लेकिन मुझे नौलखा हार चाहिए। “
चंपा,” अगर मैं तुमसे ये बोलती कि मेरे माता पिता को जाकर मार दो तो क्या मार देते ? “
बिलुआ,” ये कैसी बातें कर रही हो तुम ? “
चंपा,” सही बोल रही हूँ मैं। मैंने तुम्हारे जैसा घटिया आदमी कभी नहीं देखा। “
इतना कहकर चंपा ने बिलुआ का दिया हुआ हार बलुआ के मुँह पर फेंक दिया।
चंपा,” ये लो तुम्हारा चोरी के पैसों से खरीदा हुआ हार। मैं बिल्लू से शादी कर रही हूँ। “
इतना कहकर चंपा वहां से चली जाती है। लेकिन जमींदार एक पेड़ के पीछे खड़ा होकर यह सारी बातें सुन रहा होता है।
जमींदार,” बिलुआ तो वो तू है जिसने गबरू जैसे अच्छे इंसान पर गलत इलज़ाम लगाकर उसे जलील करवाया ? मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। “
इतना कहकर जमींदार ने वो हार बिलुआ से छीन लिया और अपने आदमियों से बोला।
जमींदार,” देखते क्या हो ? कुचल डालो इसे। मार मारकर भरता बना दो इसका। “
अपनी जान बचाने के लिए बिलुआ उसी जंगल की ओर भागा जिस जंगल में गबरू गया था। जमींदार के आदमी जंगल के बीच अचानक रुक गए। उनमें से एक आदमी बोला।
आदमी,” इसके आगे जाना बेकार है। इसके आगे कोई नहीं जाता। कहते हैं कि यहाँ पर एक चुड़ैल का राज़ है। “
सभी लोग वापस चल दिए और बिलुआ दौड़ता हुआ उसी तालाब के पास चला गया। तभी तालाब के पास जाते ही एक काला धुआं उठा। उसमें से एक भयानक शक्ल वाली चुड़ैल निकलकर बाहर आ गई।
चुड़ैल,” मेरे तालाब के पास तू क्या कर रहा है ? “
बिलुआ चुड़ैल को देखकर बुरी तरह से घबरा गया। चुड़ैल ने अपनी आँखें बंद करके बिलुआ के बारे में सब कुछ जान लिया।
अचानक वह सुंदर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गयी। ये देखकर बिलुआ बहुत हैरान रह गया।
बिलुआ,” कौन हैं आप ? “
परी,” कुछ समय पहले तुम्हारा दोस्त गबरू यहाँ आया था और इस तालाब में डुबकी लगाकर सुंदर युवक और बेहद अमीर हो गया। “
बिलुआ (मन में),” अच्छा… तो इसका मतलब उसके सुंदर और अमीर होने का ये राज़ है। अगर मैं भी इस तालाब में डुबकी लगा लूं तो क्या मैं भी अमीर और सुंदर हो जाऊंगा ?
परी,” अगर तेरे दिल में किसी के प्रति कोई बैर और कपट नहीं होगा तो वाकई उसके जैसा हो जाएगा। मगर याद रखना अगर तू कपटी हुआ तो इसका उल्टा होगा। “
बिलुआ,” मेरे दिल में किसी के लिए कोई बैर और कपट नहीं है। “
इतना कहकर बिलुआ ने उस तालाब में कूद लगा दी। मगर जैसे ही उसने तालाब में डुबकी लगाई और अपना सर ऊपर उठाया, उसने देखा कि उसके पूरे शरीर में जानवरों जैसे बाल निकल आये हैं।
बिलुआ,” अरे ! ये… ये मुझे क्या हो गया ? मैं तो बदसूरत हो गया।
परी,” दरअसल इस तालाब के अंदर एक खासियत है बिलुआ। मनुष्य जो अंदर से होता है ये तालाब उसके शरीर को वैसा ही बना देता है।
गबरू का दिल बेहद अच्छा और साफ सुथरा था इसलिए उसका शरीर भी सुंदर हो गया। मगर तेरा दिल दूसरों के लिए कपट और बैर से भरा है इसलिए तेरा शरीर भी ऐसा ही हो गया। “
बिलुआ,” मुझे माफ़ कर दो। मुझे पहले जैसा ही करदो। “
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परी,” अब ऐसा मुमकिन नहीं बिलुआ। अब तू सारी जिंदगी ऐसे ही रहेगा। “
बिलवा रोता हुआ वहाँ से बाहर निकल आया और सारी जिंदगी उसने जंगल में ही रहकर काटी।
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