हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया जंगल ” यह एक Bhutiya Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Horror Story या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
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भूतिया जंगल
गांव में संपत और कप्तान नाम के दो व्यक्ति रहते थे। रत्नपुर गांव के करीब के जंगल में एक डायन का आतंक था।
रत्नपुर गांव के बहुत से लोग उस जंगल में गायब भी हो चूके थे। संपत और कप्तान उसी जंगल से गुजर रहे थे।
संपत,” अरे कप्तान भाई ! हमें शॉर्टकट रास्ते से नहीं आना चाहिए था। यहाँ से जल्दी चलो।
सुना है यहाँ पर लोग रहस्यमय तरीके से गायब होते हैं। ये जंगल बड़ा ही डरावना है। “
कप्तान,” अरे ! मेरा चेला होकर बुस्दिलों जैसी बातें कर रहा है।
संपत,” अरे कप्तान भाई ! पिछले ही महीने सुखिया चाचा का बेटा इसी जंगल से लापता हो गया था। जिसका सुराग आज तक नहीं मिला।
तुम तो वैसे भी नौ महीने शहर में बिताते हो और तीन महीने गांव में बिताते हो। तुम्हें क्या पता गांव में क्या चल रहा है ? “
कप्तान,” अबे तुम गांव के गंवार क्या जानो शहर के आमदनी के बारे में ? तुम तो बस सारा दिन मुंह उठाये गांव में फिरते रहते हो।
कितनी बार बोला है तुझे चेला कि मेरे साथ शहर आ जा ? लेकिन तू ये गंवारों वाली जिंदगी छोड़ना ही नहीं चाहता। “
तभी संपत की नजर एक पॉलीथीन पर पड़ी जिसे गुरु पकड़े हुए था।
संपत,” ये हाथ में क्या पकड़े हो कप्तान भैया ? ज़रा हमें भी दिखाओ क्या है इस पालीथीन में ? “
कप्तान,” अरे ! कुछ नहीं संपत, मेरी पत्नी ने शहर से कुछ डायपर के पैकेट मंगवाए थे, बस वही हैं। “
संपत,” डायपर के पैकेट..? लेकिन जहाँ तक मैं जानता हूँ तुम्हारे घर में तो कोई बच्चा है ही नहीं। “
कप्तान,” अबे पगला हो गया है क्या ? मुन्ना को भूल गया क्या ? “
संपत,” मुन्ना..? अरे वो तो 10 साल का हो चुका है, कप्तान भैया। सांड की तरह फैल फैलकर मोटा ताजा हो रखा है। क्या वो अभी भी ड्राइवर पहनता है ? “
कप्तान,” तुम गांव के गंवार क्या जानो ? तुम गांव के गंवार इस बात को नहीं समझोगे। हम शहर के रहने वालों के तौर तरीके कैसे कैसे होते हैं ? “
संपत,” बड़े शहर वाले बनते फिरते हो। अरे ! सीधे सीधे ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा वो सांड जैसा मुन्ना अब भी बिस्तर पर सूसू कर लेता है ? “
कप्तान,” अरे ! मैंने उसे बड़े लाड़ प्यार से पाला है। “
संपत,” क्या खाक लाड़ प्यार ? अरे ! कान पर दो मारो उसके, बिस्तर पर सुसु करना बंद कर देगा।
उसको पीटने के बजाय उसके लिए डायपर लाकर दे रहे हो और कहते हो कि हम शहर वालों के जीने के तौर तरीके बड़े अलग होते हैं। इससे तो अच्छा मेरा गावों है भला। “
संपत ने यह बात बोली थी कि तभी अचानक देखते ही देखते चारों ओर धुआं छा गया और अजीब अजीब सी आवाजों का शोर होने लगा। “
कप्तान,” ये धुआं कैसा सम्पत ? मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। “
तभी संपत के कानों में कप्तान की चीख टकराई। चीख सुनकर संपत बुरी तरह से डर गया और बेहद फुर्ती से वहाँ से भाग गया।
कुछ ही देर में संपत भागता हुआ गांव पहुँच गया और चिल्लाते हुए सबसे बोला।
संपत,” अरे ! गांव वालों कहा मर गये तुम सब के सब निकम्मों ? तुम सब के सब जल्दी से मेरे साथ चलो। कप्तान भाई लापता हो गए हैं। “
संपत की बात सुनकर गांव का मुखिया गुस्से से बोला।
मुखिया,” क्या बात है संपत ? क्या कुत्ते की तरह इतनी देर से भोके जा रहा है ? लगता है तू आज भी शराब पीकर आया है ?
कितनी बार कहा है तुझसे कि ज्यादा मत पिया कर, लिवर खराब हो जायेगा। अबे मर जाएगा किसी दिन। “
संपत,” जल्दी चलो मुखिया जी। गजब हो गया… मैं कप्तान भाई को बस स्टैंड लेने गया था और लौटते हुए हम उसी जंगल से गुजर रहे थे जिस जंगल में वो डायन रहती है।
अचानक चारों ओर धुआं धुआं छा गया और कप्तान भाई की चीख मेरे कानों में टकराईं। मैं बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर भागा हूं। “
मुखिया,” तू दोस्त के नाम पर कलंक है। अपने जिगरी दोस्त को जिसे तू अपना गुरु मानता है, उसे अकेला छोड़कर भाग आया। और हम सब गांव वालों को निकम्मा बोल रहा है। “
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संपत,” अरे तो क्या करता ? मैं भी उस डायन का शिकार हो जाता, हाँ ? “
मुखिया,” अगर मैं तेरी जगह होता, मैं अपने दोस्त का साथ कभी नहीं छोड़ता। भले ही मुझे उसके लिए अपनी जान ही क्यों नहीं देनी पड़ती ? “
संपत,” मुखिया जी, अब मेरा मुँह मत खुलवाओ। सब जानता हूँ मैं। पिछली बार जब रतन चाचा का बेटा उस डायन का शिकार बना था, तब आप ही उसके साथ थे।
मुझे सब पता है। लेकिन आपसे कोई सवाल नहीं कर सकता क्योंकि आप इस गांव के मुखिया जो ठहरे। “
संपत ने यह बात बोली ही थी कि कप्तान हांफता हुआ वहाँ पर आ गया और गुस्से से संपत से बोला।
कप्तान,” अबे साले जब तेरे जैसे दोस्त मेरे पास हो तो फिर मुझे दुश्मनों की क्या जरूरत है ? मुझे अकेला छोड़कर भाग आया तू । “
संपत,” अरे कप्तान भाई ! तुम सही सलामत वापस आ गए ? मैं तो समझा कि तुम्हें डायन ने पकड़कर मार दिया। मैंने अपने कानों से तुम्हारी चीज़ जो सुनी थी। “
कप्तान,” हां, मुझे उस डायन में पकड़ लिया था। मगर जैसे ही उस डायन ने मुझे पकड़ा, मैंने एक जोरदार मुक्का उसके मुँह पर मार दिया और वहाँ से भाग आया।
मैं उस डायन से लड़कर आ रहा हूँ और तू डरकर भाग गया ? “
संपत,” बड़े बहादुर बने फिरते वो कप्तान भाई। अगर इतनी ही बहादुरी थी तो फिर चीखें क्यों ? “
कप्तान ,” अबे अगर कोई अचानक से पीछे से पकड़ लेगा तो चौंककर तो अलख से चीख ही निकलेगी ना ? “
मुखिया,” अब तुम दोनों लड़ना बंद करो। गांव में ना जाने कितने लोग उस जंगल से लापता हो गए ? हमें इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द करना होगा। “
मुखिया ,” कप्तान, तुम ही पहले ऐसे व्यक्ति हो जो उस डायन के चंगुल से सही सलामत आ गए हो। इसका मतलब तुम में उसका सामना करने की हिम्मत है ?
तुम ही हमें उस डायन से छुटकारा दिला सकते हो। “
कप्तान ,” मेरा दिमाग खराब हो गया क्या ? अगर मैं जिंदा बचकर आ गया तो आपको क्या लगता है तुम्हारे पानीभर चढ़ाने से मैं क्या चढ़ जाऊंगा ?
मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाला। जाओ, जाकर कोई और बकरा ढूंढो। “
इतना कहकर कप्तान वहाँ से चला गया। मुखिया संपत की ओर देखने लगा।
संपत,” दिमाग खराब हो गया मुखिया जी ? मैं तो खुद ही बड़ी मुश्किल से जान बचाकर आया हूँ।
तुम गांव के मुखिया हो। गांव वालों ने तुम्हें चुना है तो तुम क्यों नहीं उस डायन से सामना करने के लिए जाते ? “
मुखिया,” अबे अगर मैं इस गांव का मुखिया हूं तो क्या मैं अपनी जान गंवा दूँ ? “
मुखिया ने इतना बोला ही था कि तभी एक बेहद बूढ़ा व्यक्ति जिसकी उम्र करीब 100 साल के आसपास थी, लाठी पकड़े हुए लड़खड़ाता हुआ वहाँ पर आ गया और कपकपाती आवाज़ में मुखिया की ओर देखकर बोला।
बूढ़ा,” चिंता मत कर, मैंने टेलीफोन के जरिए एक बहुत पहुंचे हुए साधू को उस डायन के बारे में बता दिया है।
आज रात वो आने वाला है। देखना वो साधू अपनी शक्ति से उस डायन को जलाकर राख कर देंगे, हाँ। “
अचानक वो बूढ़ा खांसने लगा। उसके हाथ से लाठी छूट गई और वह गिर गया। उसे गिरता देख मुखिया गुस्से में संपत की ओर देखकर बोला।
मुखिया,” अबे देखता क्या है ? उठा इसको। “
संपत,” ये झुमरी के परदादा भी ना… जब इनसे चला नहीं जाता तो फिर ये घर से बाहर निकल कैसे आते हैं ? “
तभी अपने परदादा को ढूंढ़ते हुए झूमरी वहाँ पर आ गई।
संपत,” ये तुम्हारा ये परदादा है ना ? इन्हें घर के अंदर बंद करके रखा करो। “
झुमरी ने संपत से बोला।
झुमरी,” हर बार इन्हें घर पर बंद करके बाहर जाती हूँ और पता नहीं कैसे दरवाजा खोल लेते हैं ? सैकड़ों बाहर गिर चूके हैं मगर मजाल है कि इनकी पसली में ज़रा सा भी कोई मामूली फ्रैक्चर हुआ हो। “
संपत ,” पता नहीं क्या खाया होगा इन्होंने जवानी में ? “
झुमरी अपने परदादा को लेकर वहाँ से चली जाती है। रात का समय था। एक साधू रत्नपुर गांव के उसी जंगल से शॉर्टकट रास्ते से निडर होकर चला जा रहा था।
तभी अचानक देखते ही देखते काला धुआं उठने लगा। मगर साधु निडर होकर वहाँ पर खड़ा रहा।
कुछ देर बाद धुआं छट गया। साधू के सामने एक बेहद भयानक चेहरे वाली डायन खड़ी हो गयी।
डायन,” क्या तुझे पता नहीं, यहाँ जो भी आता है ज़िंदा बच के नहीं जाता ? “
साधू,” हाँ, जानता हूँ। ना जाने कितने लोगों की जान ली है तुने ? लेकिन अब तेरा अंतिम समय आ गया है डायन क्योंकि मैं तुझे अपने मंत्रों की शक्ति से भस्म कर दूंगा। “
डायन ,” कोशिश करके देख ले। “
इतना बोलते ही साधू मन्त्र पढ़कर उसके ऊपर फेंकने लगा। मगर साधू के मंत्रों का असर उस डायन पर हुआ ही नहीं।
साधू,” ओम क्लीम चामुंडाए नमः। ओम क्लीम चामुंडाए नम:। ये कैसे हो सकता है ? इस पर तो मेरे मंत्रों का असर ही नहीं हो रहा है। “
डायन हंसने लगी। साधू बुरी तरह से डर गया। वो डरकर रत्नपुर गांव की ओर भागा और बेहोश हो गया।
अगले दिन साधु की जब आंख खुली तो उसे गांव का मुखिया और सारे लोग घेरे हुए बैठे थे।
संपत,” कही तुम वहीं साधू तो नहीं जो डायन से हमें मुक्ति दिलाने आए थे ? “
साधू,” हाँ, मैं वही साधू हूँ। “
कप्तान,” लेकिन तुम तो यहाँ बेहोश पड़े हुए हो। क्या तुमने डायन को खत्म कर दिया ? “
संपत,” वो डायन उम्मीद से ज्यादा ताकतवर निकली है। मेरे मंत्रों का उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ। “
संपत,” ये क्यों नहीं कहता कि तू एक पाखंडी साधु है ? “
साधू,” तुम मेरा अपमान कर रहे हो। “
संपत,” अरे ! जाओ बाबा। डायन के सामने जब भाग रहे थे तब अपमान नहीं हुआ था ? “
साधू,” तुम्हें कैसे पता कि डायन के सामने मैं भाग रहा था ? “
संपत,” तुम्हारी शक्ल बता रही है। “
तभी एक पागल वहाँ आकर गुस्से से बड़बड़ाने लगा।
पागल,” तुम सब डरपोक हो। आज रात में उस डायन का खात्मा कर दूंगा। “
मुखिया,” अरे ! अब ये पागल फिर से यहाँ पर आ गया। भगाओ इसे। “
संपत,” अबे पागल कौन है तू ? पिछले कुछ दिनों से तुने हम सब का जीना हराम कर रखा है। आज तुझे बताना ही पड़ेगा कि तू कहाँ से आया है? “
मुखिया,” पागल हो गया है क्या ? वो एक पागल है। वो तुझे कैसे बता सकता है कि वो कहाँ से आया है ? उस बेचारे को तो अपना ही होश नहीं है। “
वो पागल बड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया।
कप्तान,” देखना मुखिया जी, मुझे लगता है आज रात इस पागल की आखिरी रात है। “
संपत,” सही बोल रहा है तू। ये मरेगा साला आज। “
मुखिया,” अरे ! वो सब तो ठीक है लेकिन इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा ? इस बारे में सोचो।
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उस डायन के आगे तो ये साधू भी अपनी जान बचाकर भाग आया है। कप्तान और संपत, तुम दोनों इस गांव की आन बान और शान हो।
तुम दोनों की जोड़ी इस गांव में गुरु और चेले के नाम से मशहूर है। आखिर तुम दोनों इस समस्या का समाधान क्यों नहीं निकालते ? “
कप्तान,” क्योंकि हम कोई तांत्रिक नहीं हैं मुखिया जी। आपने स्वयं देखा, ये तांत्रिक खुद अपनी जान बचाकर भागा है। भला हम कैसे इस डायन का मुकाबला कर सकते हैं ? “
मुखिया,” तो फिर गांव के लोग ऐसे ही लापता होते रहेंगे क्या ? “
तभी गांव का एक आदमी बोला।
आदमी,” मुखिया जी, हम पुलिस की मदद क्यों नहीं ले सकते ? “
कप्तान,” अबे पागल हो गया है क्या ? पुलिस वाले कब से डायन और चुड़ैल को पकड़ने लगे ?
अगर वहाँ पर मुखिया जी शिकायत लेकर गए तो उलटे डंडे मारकर भगा देंगे। “
मुखिया,” बकवास बंद कर कप्तान। पिछली बार एक पुलिसवाला जो इन सब बातों पर यकीन नहीं करता था, उस जंगल में गया था। जो आज तक वापस नहीं लौटा। “
कप्तान,” तो फिर अब आप सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दीजिये, मुखिया जी। वही हम सबको इस मुसीबत से बचा सकते हैं। “
कुछ दिनों बाद उस डायन का आतंक इतना ज्यादा बढ़ गया कि रत्नपुर गांव के लोग रत्नपुर छोड़कर दूसरे गांव की ओर जाने लगे।
एक रात की बात है। वह पागल बड़बड़ाता हुआ उसी जंगल में जा रहा था कि तभी अचानक एक काला धुआं उठा।
उसमें से वही भयानक डायन निकलकर प्रकट हो गयी और पागल की ओर देखकर बोली।
डायन,” जंगल में मुझे सिर्फ इंसानों का मांस अच्छा लगता है, पागल का नहीं। “
पागल ,” तुझे कैसे पता मैं पागल हूँ। बेवकूफ डायन, लोग मुझे इसलिए पागल कहते हैं क्योंकि मैं दिन भर शराब पिए रहता हूँ और सच बोलता हूँ। “
डायन,” अगर तू पागल नहीं है तो मरने के लिए तैयार हो जा। डायन की बात सुनकर वो पागल हँसने लगा। “
डायन,” तू मेरी हँसी बना रहा है। “
पागल,” सच तो ये है कि तू डायन है ही नहीं। अगर डायन होती तो मुझे मार देती। “
पागल ने इतना कहा ही था कि डायन ने पागल को दबोच लिया। अचानक उस पागल की आँखों के सामने अंधेरा छाता हुआ महसूस हुआ।
कुछ देर बाद जब उसकी आंख खुली तो उसने अपने आप को जंगल की एक बंद काल कोठरी में पाया।
जहाँ रत्नपुर गांव के वो सारे लोग मौजूद थे जो लापता हो गए थे। उन सबके हाथ पैर बंधे हुए थे। उन्हीं में से एक व्यक्ति ने पागल से बोला।
आदमी,” अबे बेवकूफ, क्या जरूरत थी तुझे यहाँ पर आने की। आज रात वैसे भी हम सब को विदेश भेज दिया जाएगा। ये सारे के सारे लोग मानव तस्कर हैं।
हमारे ही गांव का कोई व्यक्ति उनसे मिला हुआ है जिसने डायन का खौफ फैला रखा है। “
पागल,” झूठ बोलते हो तुम। मैंने खुद देखा वो काला धुआं… उस धुएं में से वो जो डायन निकली। “
आदमी,” वो सब केमिकल का कमाल था। आज की तकनीकी के दौर में कोई भी मेकअप करके चुड़ैल डायन बन सकता है।
फ़िल्में नहीं देखी क्या ? अरे यार ! तू तो पागल है मैं तुझे क्या बताऊँ ? “
तभी एक और व्यक्ति वहाँ हँसते हुए आ गया।
पागल,” तुम तो रत्नपुर गांव के व्यक्ति हो। तुम्हारा नाम कप्तान है। “
तभी एक और व्यक्ति वहाँ हँसते हुए आ गया जो कोई और नहीं बल्कि कप्तान का दोस्त संपत था।
संपत,” गुरु, ये पागल तो बड़ा जल्दी से ही हो गया। मैं तो खामखां डर रहा था गुरु कि हम इस पागल को पकड़ के ले जाकर क्या करेंगे ?
ये पागल भला हमारे किस काम आने वाला था ? लेकिन ये तो सही हो गया। तुम्हारा आइडिया कमाल का था। “
कप्तान,” देखना संपत, आज की रात हम इन सबको शहर शिफ्ट कर देंगे और वहाँ से इन सब को पकड़कर विदेश में ले जाया जाएगा।
उसके बाद हम देखते ही देखते मालामाल हो जाएंगे। तुझे अंदाजा भी नहीं है संपत, हम इतने पैसे वाले हो जाएंगे कि रत्नपुर गांव जैसे ना जाने कितने गांव खरीद लेंगे ? “
कप्तान ने यह कहा ही था कि तभी उस पागल ने अपनी फटी हुई जेब से पिस्तौल निकालकर एक हवाई फायर कर दिया।
सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि कप्तान और संपत अचानक चौंक गए। “
संपत,” गुरु, उसके हाथ में तो पिस्तौल है। ये कोई पागल नहीं है, ये कोई पुलिसवाला लगता है। हमने पागल समझकर इसके हाथ पैर भी नहीं बांधे। “
कप्तान ,” तू सही कह रहा है संपत। लगता है हम दोनों से बड़ी चूक हो गई। “
देखते ही देखते पुलिस ने उन सब को घेर लिया। सारे पुलिस अधिकारी उस पागल को सल्यूट करने लगे। वह पागल व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि क्राइम ब्रांच ऑफिसर, अशोक था।
अशोक,” मुझे इन्टेलिजेन्स से सूचना मिली थी कि रत्नपुर गांव में बहुत से लोगों की मानव तस्करी होने वाली है। इसलिए मैं कुछ दिनों पहले यहाँ की छानबीन करने के लिए आ गया।
यहाँ आकर डायन की अफवाह सुनकर मुझे पक्का यकीन हो गया कि कोई और नहीं बल्कि कोई मानव तस्कर ही होगा जिसने डायन का खौफ फैला रखा है।
ताकि पुलिस और लोग डर की वजह से इस केस की तह तक ना जाए। और इस काम के लिए मेरी मदद गांव के मुखिया ने की। तभी गांव का मुखिया और उसी साधु के साथ और लोग वहाँ पर आ गए।
मुखिया मुस्कुराता हुआ बोला।
मुखिया,” मुझे तो उसी दिन तुम दोनों पर शक हो गया था।
जिस दिन तुम दोनों डायन के चंगुल से बचकर आ गए थे। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। सारा गांव डायन से डरा हुआ होता था और तुम दोनों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं होती थी।
मैं शुरू से ही क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर अशोक को जानता था। मुझे पक्का यकीन हो गया था कि मेरे गाव में कोई डायन वायन का प्रकोप नहीं है बल्कि ये तो किसी इंसान की ही करतूत है। “
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साधू,” तुम दोनों के ऊपर शक उस दिन और ज्यादा पक्का हो गया जिस रात डायन से मेरा सामना हुआ। डायन को भगाने के लिए मैंने बेहद प्राचीन मन्त्र पढ़कर फूंके।
मगर डायन टस से मस नहीं हुई। कहां से होगी..? क्योंकि मेरे सामने तो डायन थी ही नहीं। वह मंत्र डायनों और चुड़ैलों के लिए थे, इंसानों के लिए नहीं। “
पुलिस ने कप्तान और संपत को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और सारे गांव वालों को डायन से मुक्ति मिल गई।
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