मूर्ख मालिक | Murkh Malik | Funny Story | Comedy Story in Hindi | Majedar Kahaniyan | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” मूर्ख मालिक ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Hindi Funny Stories, Comedy Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


गबरू, “ओ हो हो… मैं तो हूँ पागल मुंडा, तू है मेरी सोनी कुड़ी। ओह हो, मैं तो हूँ पागल मुंडा।

वाह वाह वाह वाह वाह! सुबह की सैर और ये पंजाबी गाने, भैया, मज़ा ही आ जाता है, हाँ।”

गबरू, “अरे झींगा, राजू! तुम..? तुम तो दूसरे गाँव में काम के खातिर गए थे ना, भैया?

ससुरा ई का… मतलब पंचरंगा आचार बनकर आये हो पूरे मतलब।”

झींगा, “अरे गबरू भाई! हम दोनों तो काम की खातिर दूसरे गांव गए थे, लेकिन वहाँ के सेठ ने…”

गबरू, “अबे अपने कासगंज में तो बड़े मिथुन बने फिरते हो, अब क्या टर टर रोये जा रहे हो? ओये झींगा! तुम फूटो अपने इस उलटी काली हांडी से।”

राजू, “पड़ोस के गांव का सेठ, वो कंजूस बंसी है और हम दोनों उसी के घर पर काम किया करते थे,

लेकिन काम पर रखने से पहले उसने एक शर्त रखी थी।”

गबरू, “शर्त… कैसी शर्त? बताओ, बताओ।”

राजू, “कि अगर हम दोनों अपनी मर्जी से काम छोड़ कर गए, तो वो हमें कोई पैसा नहीं देगा और ऊपर से हमारा मुँह काला कर सर मुंडवा के भेजेगा।

और अगर सेठ बंसी खुद हमें निकालता है, तो वो अपना मुँह काला कर सर मुंडवा लेगा और ऊपर से पूरे एक साल की तनख्वाह भी देगा।”

गबरू, “ए रे धत तेरे की है… पूरे कासगंज का नाम डुबो दिया भैया तुम दोनों तो‌। दूसरे गांव से सर मुंडवा कर आ गए भैया, बताओ तो।”

झींगा, “इतना हवा में मत उड़ो, गबरू भाई। उसके यहाँ तो 2 दिन तक काम कर पाना बहुत मुश्किल है, हाँ।

एक नंबर का कसाई है सेठ। कोलू का बैल बनाकर रखता है।”

गबरू, “दास्तों की इस बेइज्जती का बदला तो जरूर लेगा रे तेरा ये गबरू।”

राजू, “गबरू, तू ठीक तो है ना? भाई, तू रहने दे। पहले ही ढ़ाई फीट की हाइट है, सेठ तुझे बुरी तरह से घिस देगा भाई, खत्म हो जाएगा तू पूरी तरह।”

गबरू, “अरे! चुप करा तुम दोनों, है चुप। अब देखना ये छोटा पैकेट कैसे तुम्हारा बदला लेगा और कैसे बड़ा धमाका करेगा?

बस किसी तरह उसके घर में काम के लिए अंदर एंट्री मिल जाए बस।”

बंसी सेठ की पत्नी (रज्जो), “आज पूरे 3 दिन हो गए हैं उन नौकरों को गए हुए। मुझसे सारे घर का काम नहीं होता।”

बंसी, “अरे! इतना क्यों चिल्लाती हो? सुन रहा हूँ, मैं बहरा थोड़ी हूँ। तुम फायदा तो सोचो,

जब तक यहाँ काम किया एक भी पैसा नहीं दिया मैंने उन्हें और सारे काम भी करवा लिए।”

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रज्जो, “वो तो आप बहुत बहादुरी का काम करते हो, सब जानती हूँ मैं। मुझे नौकर चाहिए बस।”

बंसी, “हाँ हाँ, देखते हैं, देखते हैं। अगर कोई मेरी शर्तों पर काम करने को राजी हुआ तो।”

गबरू (बंसी के घर के बाहर), “अरे! किसी को ताजे ताजे फ्रेश नौकर की जरूरत हो तो रख सकता है।

हम नौकरी तलाश रहे हैं। एक नंबर नौकर, गबरू नौकर। जीसको चाहिए, जल्दी बताओ। नौकर रखो नौकर।”

रज्जो, “आपने सुना? बाहर कोई नौकरी की तलाश में घूम रहा है, जाओ जल्दी से।”

बंसी, “कमबख्त कही के, इतने जल्दी से कहाँ से नौकर पैदा हो जाते हैं? देखता हूँ।”

बंसी गेट के पास जाकर इधर-उधर देखता है, लेकिन नीचे कम हाइट का गबरू नजर नहीं आता।

बंसी, “तुम्हारे कान बडबडा रहे थे क्या? बाहर तो कोई नजर नहीं आ रहा।”

गबरू, “अरे! क्या तुम बाबूराव की तरह इधर-उधर झाँक रे ले हो भाई? अरे! नीचे देखो, नीचे। हम यहाँ खड़े हैं, भैया।”

बंसी, “अरे! आधे ही आए हो क्या यहाँ पे? अरे अरे! आधे कहाँ रह गए भाई?”

गबरू, “ध्यान से देखिए सेठ जी, जो हूँ, जैसा हूँ, इतना ही हूँ। बाकी का तो धीरे-धीरे दिख जाऊंगा।”

बंसी, “अच्छा अच्छा… क्या-क्या काम जानते हो और तुम्हारा नाम क्या है भई?”

गबरू, “नाचीज़ को गबरू के नाम से जाना जाता है और हम झाड़ू, पोंछा, जानवरों की देखभाल, इंसानों की देखभाल और खाने में दाल-भात सब जानते हैं।”

बंसी, “वो तो ठीक है, लेकिन मेरे यहाँ काम करने की एक शर्त है। अगर मंजूर हो तो काम शुरू करो, नहीं तो मेरा टाइम खोटी मत करो भैया।”

गबरू, “अरे अरे सेठ जी! आप बताओ तो सही, जो भी शर्त है, मुझे मंजूर है।”

बंसी, “बिना कुछ सुने ही मंजूर है? एक बार काम शुरू कर दिया, तो अगर अपनी मर्जी से भागे, तो तुम्हारा सर मुंडवा कर मुँह काला करके बिना किसी तनखा के जाना होगा।”

गबरू, “और अगर आपने निकाल दिया तो..?”

बंसी, “अभी एक पर्चा लिखकर रख लो। अगर शर्त के अनुसार मैं तुम्हें निकालता हूँ, तो पूरे 1 साल की तनख्वा दूंगा और साथ में अपना सर मुंडवा कर मुँह काला भी कर देना।”

गबरू, “ये कही आपने सेठों वाली बात है। मुझे नौकरी मंजूर है।”

उसके बाद बंसी गबरू को लेकर घर के बाहर…

बंसी, “सुनती हो, देखो तुम्हारा नौकर आ गया है।”

रज्जो, “अरे! ये किसका बच्चा आ गया यहाँ?”

बंसी, “अरे भाग्यवान! ये बच्चा नहीं है। ये गबरू है। आज से नौकरी करेगा यहाँ और वो भी शर्त के अनुसार, समझी?”

रज्जो, “जी समझ गई, लेकिन ऐसा ना हो इसका काम हमें करना पड़े।”

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गबरू, “सेठानी जी, आप निश्चिंत रहिए। आज से सारे काम हम ही संभालेंगे।”

बंसी, “गबरू, तुम्हें हमारी रज्जों की सेवा में रहना है और हमारे बच्चों की देखभाल भी।

इसके साथ-साथ हमारे खेतों के काम भी करने होंगे। हाँ, बाकी सब घर के छोटे-मोटे काम।”

गबरू, “सब करूँगा सेठ जी, सब करूँगा। बड़े तसल्ली बख्श तरीके से करूँगा।”

अगले दिन सेठ बंसी अपनी बीवी और बेटे के साथ बैठा होता है।

बंसी, “अरे गबरू! कहाँ मर गया रे?”

गबरू, “आपने बुलाया और हम चले आए। हाँ सेठ जी, बताइए… हुकुम कीजिए।”

बंसी, “अबे चक्की पांडे के फूफा! अबे, राजू को ज़ोर से पॉटी है, घर का संडास खराब है। इसको खेतों में हल्का करवा ला जा।”

गबरू, “जैसी आपकी इच्छा सेठ जी, अभी गया समझो।”

गबरू, “चलो, राजू।”

राजू को साथ खेतों की तरफ ले जाते उऔर एक झाड़ी के पीछे पॉटी करने बैठा दिया।

गबरू, “इस कंजूस सेठ ने तो राजू को सिर्फ पॉटी करवाने को कहा है, सू-सू नहीं। कहीं ये कम्बक्त सुसू ना कर दे?”

गबरू, “ओ! सुनो राजू के बच्चे, तेरे बाप ने मुझे सिर्फ पॉटी करवाने को कहा है, समझा?

अगर गलती से भी सुसू कर दी ना, तो तेरा सिर मुंडवा दूंगा। समझ लेना सोच लेना, बता रहा हूं।”

राजू, “अरे गबरू भैया! बिना सुसू के पॉटी कैसे करूं? सुसू तो पहले आ रही है।”

गबरू, “वो तेरी मर्जी है, जैसे मन आए कर। मैं तो शर्त की बात बता रहा हूं।”

राजू, “अगर गलती से सुसू निकल गया, तो ये मेरे बाल काट लेगा, क्या करूं?”

गबरू, “अरे राजू के बच्चे! अगर निपट लिया हो, तो चलें या फिर यहीं डेरा डालना है?”

राजू, “हां हां चलो।”

गबरू घर की तरफ बढ़ने लगता है, तभी पीछे देखता है और सोचता है, “कहीं इस कमबख्त ने एक साथ सुसू और पॉटी तो नहीं कर दी।”

गबरू, “अरे! इस राजू के बच्चे ने तो पॉटी भी नहीं की। खैर, कोई बात नहीं।”

इसके बाद गबरू राजू को लेकर घर आ जाता है। घर पर रज्जो से…

रज्जो, “अरे वाह! मेरा बेटा राजू आ गया?”

गबरू, “अरे सेठानी जी! पूरी तसल्ली बख्श तरीके से करवा कर लाया हूँ। आप बेफिक्र रहिए।”

उसके बाद बंसी और राजू दोनों बिस्तर पर लेट जाते हैं और थोड़ी देर बाद बंसी को सोते हुए कुछ बदबू आती है। नाक पर हाथ रखते हुए वो उठ खड़ा होता है।

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बंसी, “अरे रज्जो! घर में कुछ जल रहा है क्या? मेरी तो नाक के बाल तक झुलस गए। इतनी गन्दी बदबू आ रही है।”

रज्जो, “बदबू तो मुझे भी बहुत आ रही है। इस राजू की बिस्तर से बदबू आ रही है। देखूं तो।”

चद्दर हटाकर देखा तो राजू ने पूरा बिस्तर गंदा कर रखा है।

रज्जो, “अरे कमबख्त! ये क्या किया, पूरा बिस्तर खराब कर दिया।”

बंसी, “अबे नामुराद, गबरू के साथ गया तो था। सारी वहीं कर लेता, घर के लिए रखनी जरूरी थी क्या बे?”

राजू, “पापा, गबरू ने मुझे पॉटी करने नहीं दी। उसने कहा कि अगर मैंने पॉटी के साथ सू-सू किया, तो मेरे बाल काट लेगा।”

रज्जो, “इस गबरू की ये मजाल? मेरे लाल को पॉटी तक नहीं करने दी। आप अभी इसकी खबर लो।”

बंसी, “अबे गबरू! तेरी तो… इधर आ, इधर आ।”

गबरू, “जी सेठ जी, बंदा हाज़िर है। हुकुम कीजिए।”

बंसी, “हुकुम के बच्चे, तूने राजू को पॉटी नहीं करने दी? देख, उसने सब जगह रायता बिखेर दिया है।”

गबरू, “सरासर इलज़ाम है, सेठ जी। देखूं तो… छी-छी-छी। रात के सारे कड़ी-चावल बिस्तर पर लाकर रख दिए इस राजू ने तो… छी-छी-छी।

मैं तो इसे पॉटी करवाने लेकर गया था। इसने पॉटी करी ही नहीं। इसमें भला मेरा क्या कसूर?”

बंसी, “राजू तो बता रहा था कि तुमने कहा कि पॉटी करते हुए सू-सू मत करना, वरना तेरा सर मुंडवा दूंगा।”

गबरू, “जी, बिलकुल सही फरमाया सेठ जी।”

बंसी, “अबे ढाई विलांद के हैं, कम अक्ल हैं, बिना सू-सू किए ये पॉटी भला कैसे करेगा?”

गबरू, “गलत बात है, सेठ जी। बात पॉटी करवाने की हुई थी, ना कि सू-सू की।

आपको सू-सू की बात पहले बतानी चाहिए थी। आपने जो हुकुम दिया था, मैं भला उसे कैसे ना मानता?”

बंसी, “अबे बेवकूफ! दूर हो जा, दूर हो जा मेरी नजरों से।”

गबरू, “ऐसी बात है तो लो जी दूर हो गए। हो गए दूर।”

गबरू के जाने के बाद…

रज्जो, “ये किस पागल को रख लिया नौकरी पे? भगाओ इसे यहाँ से।”

बंसी, “अरे! शर्त के मुताबिक इसे भगाने का मतलब है, मेरा नुकसान।

एक साल की तनख्वाह और अपने बाल मुंडवाने पड़ेंगे। नहीं-नहीं, कुछ और सोचना पड़ेगा।

रज्जो, “इसे कुछ ऐसा काम दो कि खुद ही नौकरी छोड़कर भाग जाए।”

बंसी, “सही कहा रज्जो, इसको तो मैं ऐसा फंसाऊंगा कि याद रखेगा कि सेठ बंसीलाल नाम की भी कोई चीज़ है।”

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अगले दिन…

बंसी, “अबे गबरू… ओह गबरू!”

गबरू, “फरमाइये सेठ जी, बंदा हाज़िर है।”

बंसी, “गबरू, एक ठोकरा लो और उसमें क्यारी के लिए चिकनी मिट्टी ले आओ जंगल से। मैं काम से जा रहा हूँ।”

गबरू, “जी सेठ जी, जैसा आप कहें। आप तसल्ली बख्श तरीके से हो आइए बाहर से।”

बंसी, “और हाँ… तुम्हारी सेठानी जैसा कहे, ठीक वैसा ही करना। कोई शिकायत ना मिले।”

गबरू, “जी सेठ जी, आप बेफिक्र रहें।”

उसके बाद गबरू टोकरा और एक कुदाल उठाकर खेतों की तरफ़ चल देता है।

गबरू, “ऐ साला मैं तो साह बन गया, साह बनके तन गया, ओय होय। गबरू, तू तो सच में कमाल का सिंगर है रे।

चलते हुए बहुत ही दूर आ गए हैं। जंगल ठहरा बहुत दूर, ससुरा यहीं से कंकड़ वाली मिट्टी ले जाता हूँ।

गबरू ने वहाँ से मिट्टी भरी, लेकिन उससे टोकरी उठाई नहीं जा रही थी। जैसे तैसे करके उसने टोकरी सर पे उठा ली और घर पहुँच कर सेठानी के सर के पास रखकर,

गबरू, “अरे सेठानी जी! मिट्टी ले आया हूं, इसे कहां फेंकू?”

सेठानी, “अरे बेवकूफ! मेरे सर के पास आकर खड़ा हो गया, फेंक दो मेरे सर पर।”

गबरू, “अच्छा जी, ऐसा ही करता हूं।”

सेठानी, “हे भगवान! मार दिया, मार दिया इस बेवकूफ ने।”

तभी बंसी वहां आ गया।

बंसी, “अरे! ये चोट कैसे लगी?”

रज्जो, “उस ढेड़ फुटिए गबरू ने सर पर मिट्टी की टोकरी फेंक दी।”

बंसी, “अबे गबरू… गबरू!”

गबरू, “जी जनाब, बन्दा हाजिर है।”

बंसी, “अबे गधे! हमारी रज्जो का सर फोड़ दिया, अब इसकी मरहम पट्टी का खर्चा… ये क्या किया तुमने?”

गबरू, “आपकी आज्ञा का पालन, सेठ जी।”

बंसी, “अबे गधे! मैंने कब कहा ऐसा करने को?”

गबरू, “आपने ही कहा था, सेठ जी कि जैसा सेठानी कहे, बात माना करना। बस, उन्होंने कहा सर पे मिट्टी फेंक दो, मैंने फेंक दी।”

रज्जो, “हाय! किस पागल से पाला पड़ गया? वो तो मैंने गुस्से में कह दिया था।”

गबरू, “सेठ जी, मैं ठहरा मामूली नौकर, भला मेरी क्या मजाल कि मैं आपकी बात टाल सकूं?

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मैंने तो आपकी और सेठानी की बात ही मानी है। वरना मिला लो पर्चा, शर्त के अनुसार अगर मैंने कोई गलत काम किया तो निकाल दो मुझे, हां।”

बंसी, “अरे! बस कर नामुराद, बस कर। तुम तो गुस्सा हो गए। कोई बात नहीं, हल्की-फुल्की चोट तो लगती रहती है, है ना?”

अगले दिन दोपहर में…

रज्जो, “अरे गबरू! कहाँ रह गया? गबरू…”

गबरू, “जी, सेठानी जी, हुक्म कीजिए।”

सेठानी, “सुन, ये घर पे नहीं हैं। देख ज़रा चौपाल पे बैठे गप मार रहे होंगे। उनसे कहो कि घर में दाल चावल कुछ नहीं है, कुछ पैसे दे दें राशन के लिए।”

गबरू, “अभी गया, सेठानी जी।”

चौपाल पे सेठ बंसी और दो लोग बैठे गप्पे लड़ा रहे थे।

गबरू, “अरे सेठ जी सेठ जी! घर में दाल चावल सब खत्म है। आप कैसे कंजूस आदमी हो? जल्दी से पैसे निकालो, बाज़ार से साभान लाना है।”

बंसी, “अबे गधे! इसमें चिल्ला-चिल्ला कर कहने की क्या ज़रूरत है? आराम से मेरे कानों में भी तो बता सकता है।

सारे गांव में इज्जत का फालूदा निकाल रहा है कमबख्त वक्त कहीं का। चार आदमियों के सामने धीरे बोला कर।

ये पकड़ पैसे और जा अब यहां से। आता हूं कुछ देर में, चल जा।”

गबरू, “जैसा आप कहें, सेठ जी। अगली बार बिल्कुल नहीं चिल्लाऊंगा, धीरे से ही बात करूँगा।”

गबरू जैसे ही घर आता है, सेठ बंसी के घर में एक तरफ आग लग गई होती है। सब लोग चिल्ला रहे होते हैं। रज्जो और राजू भी चिल्ला रहे होते हैं।

आदमी, “अरे! आग लग गई भैया, बचाओ।”

रज्जो, “बचाओ, कोई आग बुझाओ।”

दूसरा आदमी, “अरे! बचाओ, अरे! बुझाओ बुझाओ भैया आग को बुझाओ।”

मुझे इसकी खबर सेट को देनी चाहिए हाँ।

गबरू, “अरे! मैं क्या करूँ? मुझे इसकी खबर सेठ को देनी चाहिए, हाँ।”

गबरू चौपाल पर जाकर सेठ के कानों में…

गबरू, “सेठ जी, सेठ जी, घर में आग लग गई।”

बंसी, “अबे! क्या बोल रहा है, सुनाई नहीं दे रहा।”

गबरू दोबारा वैसे ही बोलता है। दो तीन बार ऐसा करने पर…

बंसी, “अबे गधे! ज़ोर से बोल!”

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गबरू, “सेठ जी, घर में आग लग गई है।”

बंसी, “अबे! क्या… घर में आग? बेवकूफ, ज़ोर से क्यों नहीं बोल सकता था?”

गबरू, “सेठ जी, आपकी बात मान रहा था। आपने ही कहा था चार आदमियों के सामने धीरे बोला करो। अगर मैं गलत हूँ, तो मिला लो पर्चा।”

सेठ परेशान होकर सर पे हाथ रखता है।”

उसके बाद दोनों घर पहुंचते हैं।

बंसी, “अरे सेठानी! तुम ठीक हो ना?”

?”

रज्जो, “सब जल गया जी। देखो, ये कमबख्त नौकर आग लगने के बाद भी भाग गया।”

बंसी, “क्यूं बे! तू क्यों भागा? आग क्यों नहीं बुझाई तुमने?”

गबरू, “हुज़ूर, सच बोल रहा हूँ, मुझे आग बुझाने आती ही नहीं।”

बंसी, “अबे गधे! आग लग जाए तो मिट्टी, रेत, पानी जो मिले फेंक दो।”

गबरू, “जैसा आप कहें, हुज़ूर। अगली बार आग ऐसे ही बुझाऊंगा।”

अगली सुबह सेठ बंसी नहाने के लिए नल के पास तैयार बैठा था।

बंसी, “अरे गबरू! अरे… जल्दी से नहाने का गर्म पानी ले आ।”

गबरू, “जी हुज़ूर, अभी लाया। ये लीजिए सेठ जी।”

बंसी, “नहाने लायक है ना?”

गबरू, “अरे! उबालने लायक है, जनाब।”

बंसी, “क्या कहा?”

गबरू, “अरे! कुछ नहीं जनाब, शत-प्रतिशत नहाने लायक है।”

जैसे ही बंसी सेठ ने अपने नंगे बदन पर पानी डाला, वो कूदने लगा।

बंसी, “अरे! मार दिया रे। अरे, अरे! जल गया रे। मेरे शरीर में तो आग लग गई। अरे बचाओ, बचाओ।”

इतना सुनते ही गबरू ने झट से पास पड़ी मिट्टी उठाकर सेठ पर फेंकनी शुरू कर दी। और तब तक मिट्टी और कंकड़ फेंकता रहा जब तक सेठ ने चिल्लाना बंद नहीं किया।

रज्जो, “अरे! क्या हुआ जी?”

रज्जो, “अबे गधे! तू इनके ऊपर मिट्टी क्यों फेंक रहा है?”

गबरू, “ऐं अजीब परिवार है। सेठ जी ने ही कहा था कि आग लगने पर मिट्टी, रेत, कंकड़ सब फेंक दो।

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मैंने कुछ नहीं छोड़ा। अगर मेरी गलती है तो सेठ जी, मिलाओ पर्चा, निकाल दो मुझे नौकरी से।”

बंसी, “अबे… अबे! नहीं मेरे गबरू, अरे! तू तो खामखां गुस्सा हो रहा है।”

और इतना बोलकर बंसी बेहोश हो गया।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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