सुहागन | Suhagan | Horror Story | True Horror Story | Darawani Kahaniyan | Chudail Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सुहागन ” यह एक True Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Sachhi Horror Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


शाम का वक्त है। कुछ लोग जंगल से गुज़रने वाले थे। जंगल का खौफनाक रास्ता देख, फॉरेस्ट ऑफिसर से ज्यादा चिंता सुधीर और अन्य चौकीदारों को हो रही थी।

सुधीर, “साहब, टाइम से निकल जाएं। रास्ता बहुत ही खराब है। इतना लेट करना ठीक नहीं है।”

फॉरेस्ट ऑफिसर भी बात को समझ रहा था, मगर जवान होन कब खौफ की परवाह करता है?

फॉरेस्ट ऑफिसर ने सुधीर के कंधे पर हाथ रख कहा, “इतने दिनों से मैं रोज़ जंगल की सैर के लिए जाता हूँ।

आज तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिससे मुझे डर लगे।”

इस पर सुधीर बोला, “साहब, जंगल का रास्ता है। आपका अकेले जाना ठीक नहीं रहेगा। आप कहें तो दो-चार लठैत भेज दूं आपके साथ?”

फॉरेस्ट ऑफिसर सुधीर की बात सुनकर मुस्कुराने लगा और बाइक स्टार्ट कर जंगल की ओर चल दिया।

सुधीर ने फॉरेस्ट ऑफिसर को अकेले जाता देख, बाइक के पीछे दो लठैत चौकीदारों को भेज दिया।

जंगल में बाइक एक किलोमीटर अंदर चली ही होगी कि चढ़ाई के बाद फॉरेस्ट ऑफिसर की बाइक का पेट्रोल ख़त्म हो गया।

उसने मौका देख बाइक की डिग्गी से एक थैला निकाला और उसमें से कुछ मांस के टुकड़े निकाल पूरे जी जान से दूर जंगल में फेंकने लगा।

सारे मांस के टुकड़े फेंकने के बाद, ऑफिसर ने चैन की सांस लेते हुए खुद से कहा, “बहुत याद आएगी तुम्हारी।”

इतना कहकर ऑफिसर अभी ह कुछ ही दूर गया था कि तभी रास्ते में उसे एक अनजान शख्स दिखाई दिया।

फॉरेस्ट ऑफिसर, “तुम हमारी फॉरेस्ट चौकी के चौकीदार हो ना?”

फॉरेस्ट ऑफिसर के पूछने पर उस शख्स ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, “जी।”

इतना कहकर वो शक्स फॉरेस्ट ऑफिसर के साथ चलने लगा।

तभी फॉरेस्ट ऑफिसर ने शक्स से पूछा, “इतनी रात गए तुम बीच जंगल में क्या कर रहे हो? तुम्हें तो चौकी में होना चाहिए ना?”

इस पर फॉरेस्ट ऑफिसर के साथ चल रहे उस शख्स ने फिर हां में सिर हिलाया और कहा, “जी।”

वो शक्स फॉरेस्ट ऑफिसर के हर सवाल का जवाब ‘जी’ में देता था।

ऑफिसर ने उसे शख्स से फिर कहा, “इतनी गर्मी में कम्बल? बुखार है तो घर में बैठो।”

ऑफिसर की इस बात पर भी उस शक्स ने हां में ही सिर हिलाया और ‘जी ‘ कहा।

फॉरेस्ट ऑफिसर का मन अब खट्टा हो गया था। दोनों बात करते-करते करीब दो किलोमीटर और आगे बढ़ चुके थे।

पूर्णिमा की रात थी, चाँद भी अपने पूरे शबाब में था। फॉरेस्ट ऑफिसर ने उस शख्स को बड़े ध्यान से देखना शुरू किया।

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उस शख्स का चेहरा कम्बल की वजह से चाँदनी रात में भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था।

फॉरेस्ट ऑफिसर को इस बात से डाउट हो गया था, क्योंकि इतनी रौशनी में भी उस शख्स के पैर दिखाई नहीं दिए और उसके साथ चलने में कदमों की आहट भी सुनाई नहीं दे रही थी।

उसने बुदबुदाते हुए खुद से कहा, “हो न हो, ये आदमी तो नहीं है। सुधीर सही बोल रहा था, मुझे अकेले इतनी रात को जंगल में नहीं आना चाहिए था।”

खैर ऑफिसर ये सोच ही रहा था कि पीछे से साइकिल पर आ रहे कुछ लोगों की आवाजें सुनाई थी।

साइकल की आवाज़ सुनते ही फॉरस्ट ऑफिसर के साथ चल रहा शक्स फॉरेस्ट ऑफिसर की तरफ बहुत बड़ा मुँह फैलाकर झपट्टा मारता है।

एक पल को फॉरस्ट ऑफिसर की जान उसके हलक में आ चुकी थी। वो अपनी जान बचाने के लिए पीछे हुआ ही था कि लड़खड़ाकर वो कच्ची सड़क पर जा गिरा।

फॉरेस्ट ऑफिसर अपनी एड़ियां रगड़ता हुआ डर के मारे पीछे हटता जा रहा था,

क्योंकि उसके सामने खड़ा शक्स आधा जानवर और आधा इंसान का रूप ले एक दैत्य बन चुका था और फॉरेस्ट ऑफिसर की मौत पर उसी की तरफ बढ़ रहा था।

इससे पहले कि वो शक्स फॉरेस्ट ऑफिसर पर हमला करता, साइकिल पर आ रहे लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया जिसे सुनकर वह दैत्य जंगल की झाड़ियों में कूदकर गायब हो गया।

साइकिल वाले दो लोगों ने फॉरेस्ट ऑफिसर को नीचे गिरा देखा और उसे उठाते हुए पूछा, “साहब, आप ठीक तो हैं ना?”

इस पर फॉरेस्ट ऑफिसर ने कहा, “हां मैं ठीक हूं, पर ये कौन था यार? साला भूत-प्रेत टाइप लग रहा था।”

पहला आदमी, “छोड़िए साहब, ये जंगल है। यहाँ वही जिंदा रहता है, जिसे यहाँ के तौर-तरीके पता हों।”

जिन दो लोगों ने फॉरेस्ट ऑफिसर की मदद की थी, वे कोई और नहीं बल्कि सुधीर के भेजे हुए ही लठैत थे, जिसे फॉरेस्ट ऑफिसर अच्छे से पहचान चुका था।

उसने बिना ज्यादा बहस ना करते हुए अपनी बाइक उठाई और वापस चौकी की ओर चल दिया।

आखिरकार घंटे भर की पदयात्रा के बाद, अफसर अपनी फॉरेस्ट चौकी पर पहुँच गया।

उसकी हालत देख, सुधीर समझ गया कि फॉरेस्ट ऑफिसर के साथ कुछ गलत हुआ है।

सुधीर ने ऑफिसर को देखते ही कहा, “आ गये साहब, मैंने तो पहले ही कहा था कि जंगल में रात के टाइम अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है।

अभी कुछ रोज़ पहले ई तो संजू को मर्डर भओ। के कुछ गुंडे-बदमाश ऊके ऊपर पेट्रोल डालकर जिंदा जलाय देते रहे।”

फॉरेस्ट ऑफिसर, “वो साला भूत बना हुआ था क्या? मुझे मिला और वो लगभग दो किलोमीटर तक मेरे साथ भी चला।”

फॉरेस्ट ऑफिसर की बात सुनकर सुधीर तपाक से बोला, “साहब, आपको मिला का ऊ? ऊ साला ऐसे ना जाए, बहुतों को अपने साथ लें के जाए, साहब।”

सुधीर अभी बोल ही रहा था कि तभी अफसर ने सुधीर से फिर पूछा, “क्यों, मर्डर हुआ था क्या संजू का?”

सुधीर, “साहब, लड़कीबाजी को मैटर रहो है। कहावत है कि खबाए पियाए के मार देओ का।

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चलो, ई सब छोड़ो साहब जी। ई जंगल है, यहां जितने पत्ते, उतनी कहानी। अभी हम आपके लिए खाना लगाते हैं, ठीक है?”

खाना खाने के बाद, अफसर की खटिया वहीं चौकी के बगल में लगा दी गई। बिस्तर पर लेटते ही अफसर की आँख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला?”

रात के करीब 2:30 बजे छन-छन की आवाज़ सुनकर अफसर की नींद खुल गई। जागते ही अफसर ने सबसे पहले अपने आसपास देखा, पर उसे काले साए के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया।

वह वापस सोने जा ही रहा था कि तभी उसे अंधेरे में एक पेड़ से लटकी एक उल्टी लड़की दिखी।

वो लड़की लाल जोड़े में सजी रेंगते हुए फॉरेस्ट ऑफिसर के पास ही चली आ रही थी।

इससे पहले फॉरेस्ट ऑफिसर कुछ समझ पाता, खाट की रस्सियों ने उसके हाथ-पैर जकड़ लिए।

फॉरेस्ट ऑफिसर मदद के लिए सुधीर को बुलाना तो चाह रहा था, पर जैसे ही चिल्लाने के लिए ऑफिसर ने अपना मुँह खोला, खाट की रस्सियाँ खुद व खुद उसके मुँह में घुसने लगीं।

वह दर्द के मारे तड़प रहा था, छटपटा रहा था और वही लाल जोड़े में खड़ी लड़की धीरे-धीरे उसके करीब आती जा रही थी।

फॉरेस्ट ऑफिसर खटिया पर लेटा था, उसी की रस्सियों में बंधा पड़ा था।

जब लाल जोड़े में वो लड़की उसकी छाती पर आ के बैठ गई और उसकी छाती में अपने लंबे नुकीले नाखून गढ़ाते हुए बोली, “मुझे बर्बाद करके तू यहाँ मज़े कर रहा है? तुझे क्या लगा, मेरी जिंदगी बर्बाद करके तू जिन्दा बच जाएगा?”

उस लड़की की बात सुन और उसका डरावना और खूंखार चेहरा देख फॉरेस्ट ऑफिसर की रूह कांप गई थी।

वो कुछ बोल तो नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आँखों का डर देख ये साफ बता रहा था कि वो इस लड़की को बहुत अच्छे से जानता था और उसे अपनी मौत साफ दिखाई दे रही थी।

कि अचानक फॉरेस्ट ऑफिसर बोलने लगा, उसके हाथ-पैर की रस्सियाँ अपने आप ही खुल गईं क्योंकि फॉरेस्ट ऑफिसर को बचाने सुधीर आ गया था।

वो अपने एक हाथ में भभूत और दूसरे हाथ में एक माला लिए कुछ मंत्र बुदबुदा रहा था, जिसके असर से उस लाल साड़ी वाली औरत की शक्तियाँ कम होती जा रही थीं।

कुछ पल बाद ही फॉरेस्ट ऑफिसर एकदम सही-सलामत खड़ा था। वो लाल साड़ी वाली औरत हवा में तड़प रही थी।

सुधीर, “कौन है साहब ये?”

सुधीर के पूछने पर ऑफिसर बोला, “पता नहीं कौन है? मैं तो यहाँ चैन से सो रहा था कि अचानक यह लड़की मेरी छाती पर आ के बैठ गई और अपने नाखून गाड़ने लगी।”

ऑफिसर की बात सुन सुधीर ने उस लड़की से पूछा, “बोल जल्दी, कौन है तू? क्यों मेरे साहब की जान लेना चाहती है?

बोल जल्दी वरना मैं तुझे ये माला तोड़कर यहीं भशम कर दूंगा।”

लड़की, “मुझसे क्या पूछता है? अपने साहब से पूछ। मुझे बर्बाद कर जंगलों में चैन से रह रहा है।

आखिर ऐसा क्या गुनाह किया था मैंने, जो इसने मेरे साथ इतना बुरा किया?”

लड़की की बात सुन सुधीर भी सोच में पड़ गया, लेकिन इससे पहले कि वो उस लड़की से कुछ पूछता, ऑफिसर बोला, “सुधीर, मत सुन इसकी।

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ये एक भूतनी है। और तू अपने साहब की बात मान ना, भूतनी की बात मान रहा है। मैं तो कहता हूँ तोड़ दे उसकी माल और भसम कर दे इसको।”

अपने साहब की बात सुन सुधीर माला को खींचने लगा था, जिससे हवा में लड़की दर्द के मारे तड़पने लगी और उसके शरीर से हल्का हल्का धुआं भी निकलने लगा था।

पर उसने हार नहीं मानी और दर्द से कराहते हुए बोली।, “मैं और तुम्हारा फॉरेस्ट ऑफिसर विनोद अच्छे दोस्त हुआ करते थे। ये मेरे से प्यार करता था, लेकिन मैंने नहीं।

इसने मुझे मनाने की बहुत कोशिश भी करी। ये मुझसे शादी करना चाहता था पर मैं मजबूर थी।

मेरे पापा मेरी शादी कहीं और तय कर चूके थे, ये बात तुम्हारे ऑफिसर को हजम नहीं हुई। जिस रात मेरी सुहागरा थी, पता नहीं कैसे वो मेरे कमरे में आ गया।

मैं शादी के जोड़े में बैठी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी कि अचानक ये मेरे कमरे में घुस आया और मेरे चेहरे पर तेजाब डालकर मेरा चेहरा जला दिया।

मेरा चेहरा जल रहा था, मैं दर्द से चीख रही थी। मुझे इस आदमी ने बर्बाद कर दिया। मैं इसकी नहीं हो सकी तो इसने मुझे किसी और का भी नहीं होने दिया।

इस हादसे के बाद मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया। दुनियां वाले मेरा चेहरा देखकर घिन खाने लगे।

मुझे खुद से नफरत होने लगी थी, पर मैंने हार नहीं मानी। अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू किया, लेकिन ये भी बर्दाश्त नहीं हुआ।

ये विनोद फिर से मेरी जिंदगी में आया मुझे तबाह करने के लिए। ये मुझे अगवा करके इसी जंगल में ले आ और रोज़ मुझे अपनी हवस का शिकार बनाने लगा।

किसी जानवर की तरह मुझे रोज़ नोचता था। मैं कब तक इसको बर्दाश्त करती? मैं हार गई और मौत को गले लगा लिया।

फिर मेरे मरने के बाद इसने मेरे जिस्म के टुकड़े किए और रोज़ जंगल में सैर करने के बहाने ये मेरे जिस्म के टुकड़े जंगली जानवरों को खिलाया करता था।

तो अब तुम ही बताओ, क्या ये इंसान जिन्दा रहने के काबिल है?”

उस लड़की की बात सुन सुधीर दंग रह गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि कोई किसी के साथ इतना बुरा कैसे कर सकता हैं?

लड़की की कहानी सुन सुधीर ने अपना जादू रोक दिया और फॉरस्ट ऑफिसर से बोला, “तो जंगल रोज़ रात आप इस लड़की के शरीर के टुकड़े फेंकने जाते थे।

मुझे तो लगता था खूंखार जानवर सिर्फ जंगल में ही मिलते हैं, लेकिन आप जैसा घिनौना जानवर तो मैंने आज तक नहीं देखा, साहब।

आखिर क्यों आपने इस लड़की के साथ इतना बुरा किया? सुधीर की बात सुन विनोद ने उस लड़की से कहा।

ऑफिसर, “संचिता, तुम्हे याद है… एक रात पार्टी से निकलने के बाद हम मेरे घर आए थे और नशे में हम दोनों एक दूसरे के करीब आ गए थे।”

लड़की, “हां, पर वो मेरी गलती थी। विनोद, मैं बहक गई थी।”

ऑफिसर, “पर मैं तो पागल हो गया था ना। तुम मेरी लाइफ की पहली लड़की थी जिसके साथ मैंने वो पल बिताए थे,

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फिर मैं तुमको कैसे इतनी आसानी से जाने देता? मैंने वो सब किया जिससे मैं तुम्हे अपने पास सहेजकर रख सकता था।

पर मुझे मेरे किए पर कोई पछतावा नहीं है क्योंकि मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूँ। अब मौत आए तो आए।”

विनोद की बातों से उसका घमंड साफ दिखाई दे रहा था। उसने अपनी बात खत्म ही की थी कि सुधीर ने बुदबुदाते हुए इशारा किया

और संचिता की आत्मा विनोद के अंदर घुस गई। विनोद दर्द से तड़पने लगा था।

वो तकलीफ के मारे जमीन पर रेंगने लगा था क्योंकि संचिता की आत्मा विनोद के शरीर को अंदर से काटने लगी थी और उसके नाक, कानन और मुँह से खून गिरने लगा था।

विनोद की आँखों की पुतलियां लगातार बड़ी होती जा रही थी और अगले ही पल किसी बुलबुले की तरह फट पड़ी।

वो पूरी तरह से अंधा हो चुका था, पर संचिता का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था कि अचानक इस सुधीर विनोद के पास आया

और उसने गले में वही मारा डाल ली, जिससे उसने संचिता की आत्मा पर काबू किया था।

सुधीर, “संचिता विनोद के गले में जब तक ये माला है, तुमको उसके शरीर से कोई नहीं निकाल सकता है।

जब तक तुम्हारा बदला पूरा नहीं हो जाता, तुम्हें इसके साथ जो करना है, तुम कर सकती हो।”

सुधीर ने विनोद के शरीर पर काबू कर रखी संचिता से कहा और वापस मुड़ चौकी की ओर चल दिया।

संचिता भी विनोद को शरीर पर काबू में कर जंगल की ओर चल दी। फिर उस दिन के बाद से विनोद का कभी कुछ पता नहीं चला।

सुधीर ने रिपोर्ट लिख दिया कि फॉरस्ट ऑफिसर विनोद को जंगल की सैर करने का बहुत शौक था। एक दिन वो सैर पर गए तो पर कभी वापस लौट कर नहीं आए।

इस हादसे को आज 5 साल गुजर चुके हैं। और कभी कभी रात को सुधीर को जंगल से किसी के चीखने की आवाज आती है।

सुधीर जानता है कि आवाज विनोद की है, पर वो इसे किसी भूत, प्रेत या आदमखोर की आवाज बता एक झूठी कहानी बना देता है ताकि जंगल का खौफ बरकरार रहे।


दोस्तो ये True Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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