हादसा -2 | Hadsa 2 | Hindi Horror Kahani | Chudail Ki Kahani | Most Haunted Story | Horror Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” हादसा -2 ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Horror Kahani, Haunted Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


रात के अँधेरे में खूबसूरत चीजें भी भयानक लगने लगती हैं। फिर ये तो सुहागपुर का रहस्य था, जो अब अंधेरे में अपने भयानक रूप में सामने आया था।

सुहानी और रवि दोनों ही अंधेरे की उस भयानक रूप को देखकर हैरान थे।

रवि, “सुहानी, ये जो कुछ भी मैंने देखा, क्या वो तुमने भी देखा था ना?

अंधेरी रात, सुनसान इलाका, दूर-दूर तक सिवाय अंधेरे की कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में हमने जो कुछ भी देखा, वो…।”

दोनों बातें कर ही रहे थे कि रघु काका वहाँ पर आ गए।

काका, “अभी आपने जो देखा, वो सिर्फ आपको डराने के लिए भ्रम था। सुहागपुर में ना जाने कितनी राज़ दफन हैं और साथ में दफन हैं राज़ परिवार की खुशियां।

बरसों से इस परिवार ने अंधेरे के सिवाए और कुछ भी नहीं देखा।”

सुहानी, “काका, आप ये सब क्या कह रहे हैं? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।”

काका, “बेटा, तुम्हें शिकायत है ना कि तुम्हें राजा साहब ने अपने आप से दूर क्यों यखा?

मैं भी एक बेटी का पिता हूँ, उनके दिल का हाल अच्छी तरह से समझ सकता हूँ।

एक रात ऐसी नहीं बीती होगी जब उनकी यहाँ तुम्हें याद कर नम ना हुई हो। वो खुद को दुनिया का सबसे मजबूर पिता समझते थे।”

सुहानी, “काका, आप पहेलियाँ बुझाए जा रहे हैं। बताइए ना, आखिर क्या बात है?”

काका, “हंसते-खेलते इस राज़ परिवार को काली की ऐसी नजर लगी कि सब कुछ खत्म हो गया। सुहागपुर शमशान बन चुका है। यहाँ पर जिंदा लाशें रहती हैं।”

रवि, “जिंदा लाशें… मतलब?”

काका, “आप हैरान हो? आपके सारे सवालों के जवाब मिलेंगे। आइए मेरे साथ।”

कहते हुए रघु आगे-आगे जा रहा था। रवि और सुहानी उसके पीछे चलने लगे।

महल से निकलकर वे लोग जंगलों में पहुँच गए। चारों तरफ नजर घुमाई तो वहाँ कोई नहीं था।

फिर अंधेरे में चलता हुआ एक साया नजर आया। वो इस कदर आगे बढ़ रहा था,

मानो उसकी आँखें उस अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो। हाथ में छोटी टॉर्च लिए वो लोग आगे बढ़ते जा रहे थे।

जंगल के बीचोबीच जो उन लोगों ने देखा, वो किसी की भी रूह कंपाने के लिए काफी था। बड़े से पेड़ पर कई सारी लाशें लटकी हुई थीं।

कुछ सड़ी हुई कंकाल बन चुकी थीं। ये देख सुहानी की चीख निकल गई। रघु ने तुरंत उसके मुँह पर हाथ रखा और वो लोग दबे पैर महल वापस लौट आए।

सुहानी, “काका, अब ये मत कहना कि अभी जो कुछ भी मैंने देखा, वो मुझे डराने के लिए रचाया गया मेरी आँखों का भ्रम था।”

काका, “बिटिया, वो तुम्हारी आँखों का भ्रम नहीं था, बल्कि सुहागपुर की सच्चाई थी।”

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रवि, “इतनी सारी लाशें..? आप लोगों ने पुलिस में कंप्लेंट क्यों नहीं की?”

काका, “पुलिस कंप्लेंट? उन लाशों में तीन-चार लाश तो पुलिस वालों की ही थीं।

कुछ समय के बाद तो पुलिस वालों ने भी इस ओर ध्यान देना छोड़ दिया। अब तुम ही हमारी उम्मीद हो।”

सुहानी, “मगर मैं ही क्यों?”

काका, “बिटिया, क्योंकि तुम…।”

रघु कुछ और कह पाता, उसके पहले ही राजा साहब वहाँ पर आ गए और उन्हें देख रघु खामोश हो गया।

राजा, “रघु, हमने तुम्हें मना किया था ना कि बिटिया को कुछ भी नहीं बताना है? सुहागपुर को उसके हाल पर छोड़ दो।

तुम्हारी जिद पर हमने एक बार बिटिया को यहाँ पर बुला लिया, मगर अब सुहानी कल तुम वापस यहाँ से जाओगी।

मैं नहीं चाहता कि इस नर्क में तुम्हें कुछ भी हो। तुम मेरे पास मृदुला की आखिरी निशानी हो और मृदुला मेरा सच्चा प्यार है।”

काका, “आपके प्यार ने ही तो सुहागपुर की ऐसी दशा की है। वो आपकी ज़िंदगी में ना आती और ना ये सब कुछ होता, महाराज।”

राजा, “रघु, अपनी जुबान पर लगाम दो। खबरदार, इसके आगे अगर कुछ और भी कहा, तो तुम्हारी चमड़ी खींच लूँगा।”

काका, “महाराज, आप कहेंगे तो अपनी चमड़ी के जूते बनवाकर आपको मैं खुद पहना दूंगा।

मगर सुहागपुर की ये दशा मुझसे और बर्दाश्त नहीं होती। बिटिया को सब सच बताना ही होगा।”

सुहानी, “जी पिताजी महाराज, अब जब तक मुझे सब कुछ पता नहीं चलेगा, मैं कहीं नहीं जाने वाली।

यदि मैं सुहागपुर की खुशियां लौटा सकती हूँ, तो मैं तैयार हूँ। चाहे इसके लिए मुझे मेरी जान ही क्यों ना देनी पड़े? आप हमें सब बता दीजिए।”

सुहानी के पूछने पर रघु उसे सारी कहानी सुनाने लगा।

काका, “किसी समय में हमारा सुहागपुर बहुत ही समृद्ध राज्य हुआ करता था। गवर्नमेंट के आने के बाद भी लोग राजा साहब को ही अपना राजा मानते थे।

उनकी और बड़ी रानी माँ की बहुत इज्जत थी। मगर उनकी जिंदगी में काल का साया बनकर आई मृदुला।”

सुहानी, “मृदुला तो माँ का नाम था, हमारी माँ का… राजा साहब की पत्नी का।”

काका, “हां, वो राजा साहब की पत्नी थी, मगर दूसरी। उन्होंने खुद की ही बहन का घर उजाड़ दिया।

आपकी माँ यानी छोटी रानी साहिबा काला जादू जानती थी। राजा साहब को पाने के लिए उन्होंने अपनी ही बहन की कोख बांध दी ताकि उन्हें संतान न हो सके

और फिर खुद त्याग की प्रतिमा बनकर राजा साहब को वंश देने के लिए उनसे दूसरी शादी कर ली।”

सुहानी, “ये आप क्या कह रहे हैं? हमारी माँ राजा साहब की दूसरी पत्नी थी?”

काका, “थी नहीं है। उन्होंने ही सुहागपुर की ये दशा कर रखी है। उनकी मौत सिर्फ और सिर्फ आपके हाथों हो सकती है, क्योंकि आप ही उनकी संतान हैं।

वो आपको जन्म देते ही मारना चाहती थी, मगर राजा साहब ने आपको हमेशा उनसे बचा कर रखा।

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हमारे कुल गुरु ने उनकी सीमा सुहागपुर में ही बांध दी ताकि वो आपको कोई नुकसान न पहुंचा सके।

आपको आपकी खुद की माँ से बचाने के लिए महाराज ने यहाँ से दूर रखा। यहाँ तक कि बड़ी रानी साहिबा का अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया।

क्योंकि उन्होंने मरते वक्त राजा साहब से वचन लिया था कि पहले मृदुला की चिता को अग्नि मिले, उसके बाद ही मेरी चिता को अग्नि देना।

आज भी उनका शव महल के तहखाने में सुरक्षित है। मृदुला आज भी हर रात राजा साहब से आपका पता पूछने के लिए इस महल में आती है

और जब राजा साहब से सच नहीं उगलवा पाती, तो किसी न किसी की एक मौत तय होती है। उसने सभी लाशों को वहाँ उस पेड़ पर टांग रखा है।”

सुहानी, “नहीं, ये सच नहीं हो सकता। आप झूठ कह रहे हैं।”

काका, “यही सच है। अब आप पूरे 21 साल की हो चुकी हैं। आने वाली अमावस्या को मृदुला पूरे 108 जानवरों की बली चढ़ाएगी,

उसके बाद उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। फिर उसे रोक पाना लगभग नामुमकिन होगा।”

सुहानी, “हम रोकेंगे हमारी माँ को… मगर कैसे?”

राजा, “सुहानी, सुहागपुर को अपने हाल पर छोड़ दो और चली जाओ यहाँ से। हमने तुम्हारी माँ से सच्चा प्यार किया था,

मगर तुम्हारी माँ ने हमारा इस्तेमाल किया। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, बेटा।

अब हम नहीं चाहते कि वो तुम्हें कोई नुकसान पहुँचाए। हमारा क्या है? डॉक्टर्स जवाब दे चुके हैं, हम कुछ ही दिनों के मेहमान हैं।”

सुहानी, “महाराज, आपने हमें बहुत दिनों तक सच्चाई से दूर रखा। पर अब हमें सच्चाई पता चल चुकी है, इसलिए अब हमें उसका सामना करने दीजिए।

अब हम अकेले नहीं हैं। हमारे साथ रवि भी हैं। क्यों रवि… तुम मेरे साथ हो ना?”

सुहानी की बात सुनकर रवि ने आगे जाकर उसका हाथ पकड़ा और महाराज से आशीर्वाद लिया।

काका, “बेटा, यदि तुम चाहती हो कि तुम उसे मारो, तो तुम्हारे पास सिर्फ और सिर्फ कल की रात है।

उसके बाद मृदुला अपना अनुष्ठान शुरू कर देगी, उस समय उसे मारना किसी आम मनुष्य के बस की बात नहीं होगी।”

कहते हुए रघु ने सुहानी को एक किताब दी और सारी रात उस किताब में दिए हुए अनुष्ठान को करने के लिए कहा।

सुहानी और रवि दोनों मिलकर सारी रात उस अनुष्ठान को करते रहे। अगली सुबह जब उनका अनुष्ठान पूर्ण हो गया, तो अनुष्ठान में रखी हुई तलवार चमकने लगी थी।

रात को रवि और सुहानी रघु के साथ जंगल की तरफ बढ़ने लगे। सुहानी के हाथ में अनुष्ठान की तलवार थी।

जंगल में जानवरों के रोने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। तभी उस पेड़ पर, जहाँ पर सारी लाशें टंगी हुई थीं,

वहां वही औरत नजर आई, जो उस रात महल की छत पर आई थी। उसने सुहानी पर हमला किया, मगर सुहानी उसके लिए तैयार थी।

सुहानी ने तुरंत ही अपनी तलवार से उस पर वार किया। वो धुआं बनकर वहाँ से गायब हो गई।

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काका, “आपको अभी ऐसे कई सारे छलाओं का सामना करना पड़ेगा।”

जंगल में जानवरों की रोने की आवाज आ रही थी। वो लोग अब उस पेड़ के पास पहुँच चुके थे, जहाँ पर मृदुला भी मौजूद थी।

मृदुला, “आ गई मेरी बेटी? सुहानी, बहुत वर्षों से मैंने तेरा इंतज़ार किया।

अब तो तू पूरी 21 साल की हो गई है। मुझे पूरा यकीन था कि तू जल्दी आएगी। एक बार अपनी माँ के गले लग जा।”

कहते हुए वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी और अपने हाथों को बढ़ाकर सुहानी को पकड़ने की कोशिश कर रही थी, कि सुहानी ने उसके हाथों को काट दिया।

उसके हाथों से खून बह रहा था। खून की बूंद जमीन में समाकर उसके जैसी और मृदुला को पैदा करना था।

सुहानी के आसपास ढेर सारी मृदुला खड़ी थीं। उनकी हंसने की आवाज से सबके कान षटने लगे।

सुहानी, “काका, ये सब क्या है?”

काका, “ये माया है बेटा, और कुछ नहीं। बस एक बार ठीक तरह से ध्यान लगा, तुझे अपनी माँ सामने नजर आएगी।”

सुहानी ने आँखें बंद करके माँ काली का स्मरण करना शुरू कर दिया।”

जैसे-जैसे उसके मंत्र जाप चल रहे थे, नकली मृदुला गायब होने लगी।

मृदुला, “तू मुझे नहीं हरा सकती, तुझे मरना ही होगा।”

सुहानी, “माँ, माँ तो अपने बच्चे की रक्षा के लिए क्या कुछ नहीं करती और आप खुद मुझे मारना चाहती हैं?”

मृदुला, “मेरे जिंदा रहने के लिए तेरा मरना जरूरी है।”

कहते हुए वो उसे मारने के लिए आगे आई, तो पहले रघु ने उसे रोक लिया।

रघु उसके वार से घायल हो गया। सुहानी तब तक सतर्क हो चुकी थी और उसने उस तलवार से अपनी माँ का गला काट दिया।

जैसे ही सुहानी ने अपनी माँ का गला काटा, आसपास मौजूद नकारात्मक शक्तियाँ काला धुआं बनकर वहाँ से गायब हो चुकी थीं।

साथ ही सुहागपुर अब खुशहाल हो गया था। आज महाराज बहुत खुश थे, क्योंकि मरने से पहले उन्होंने सुहागपुर की मुसीबत को दूर होते देख लिया था।

महाराज ने मृदुला और अपनी पहली पत्नी दोनों का अंतिम संस्कार किया और साथ ही यह तय किया कि रवि और सुहानी का रिश्ता हो जाए।


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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