लालची छोले भटूरे वाली | LALCHI CHOLE BHATURE WALI | Moral Story | Moral Kahani | Hindi Moral Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची छोले भटूरे वाली ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Moral Stories, Hindi Stories या Hindi Moral Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


धनीराम की अंजू और मंजू नाम की दो जुड़वा बेटियां थीं। अंजू बचपन से ही बहुत समझदार और होशियार थी।

वो बचपन से ही घर के हर काम में अपनी माँ का हाथ बटाया करती थी।

वहीं उसकी जुड़वा बहन मंजू हमेशा हर काम में काम चोरी करती थी, इसलिए उसके पिता हर छोटी बात के लिए उस पर डांट लगाया करते थे।

मंजू को हमेशा अंजू से इस बात के लिए ईर्ष्या होती थी कि उसके पिताजी हमेशा सबके सामने अंजू की तारीफ करते थे और उसकी शिकायत लगाया करते थे।

कुछ सालों के बाद जब वो दोनों शादी के लायक हुईं, तो धनीराम ने रमेश और मुकेश नाम के दो जुड़वा भाइयों के साथ अंजू और मंजू की शादी करवा दी।

रमेश और मुकेश दोनों भाई अपने खेत में खेती का काम किया करते थे। उन दोनों के बीच बहुत प्यार था।

लेकिन जब दोनों भाइयों की शादी हुई, तो मंजू ने अपने पति मुकेश को उसके भाई और अपनी बहन के खिलाफ़ भड़का कर घर और खेत के दो हिस्से करवा लिए

और लड़-झगड़ कर खेत का ज्यादा हिस्सा अपने नाम करवा लिया। रमेश अपने भाई से जमीन के लिए झगड़ा नहीं करना चाहता था।

इसलिए उसने ज्यादा कुछ न कहते हुए अपने हिस्से की आधी जमीन उसे दे दी और अंजू और रमेश के हिस्से में खेत का हिस्सा बहुत ही कम आया।

अंजू, “रमेश जी, आजकल फसल बेच कर हम ज्यादा पैसे कमा नहीं पाते हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा ना, तो कुछ दिनों में हमें खेती करने के लिए भी कर्जा लेना पड़ेगा।”

रमेश, “तुम सही कह रही हो, अंजू। अब मुझे खेती के अलावा भी कुछ काम करना होगा, जिसमें मैं घर का खर्चा अच्छे से संभाल सकूँ।”

अंजू, “अगर आप बुरा ना मानें, तो क्या मैं आपसे एक बात कहूं? मुझे बचपन से ही खाना बनाने का बहुत शौक था।

इसलिए मेरी मां ने मुझे एक बार अपने खास मसाले वाले छोले भटूरे बनाना सिखाए थे और मैं चाहती हूँ ना कि हम दोनों मिलकर बाजार में छोले भटूरे का एक स्टाल लगाएं।

वैसे भी बाजार में आसपास कोई छोले भटूरे की दुकान है भी नहीं। हम ये काम करेंगे तो देखना, हमें बहुत मुनाफा होगा।”

रमेश, “कह तो तुम ठीक रहिए। अंजू, मैं एक काम करता हूँ, बाजार जाकर छोले भटूरे बनाने का सारा सामान लेकर आता हूँ,

फिर कल तुम बाजार में जाकर अपना छोले भटूरे का स्टाल लगाना।

लेकिन मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं हैं कि मैं तुम्हारे लिए छोले भटूरे बनाने का सामान खरीद कर ला सकूँ।”

यह सोचकर रमेश बहुत उदास हो जाता है। तभी अंजू रमेश को उसके बचत किए हुए कुछ पैसे देती है

और रमेश उन पैसों को लेकर बाजार में जाता है और वहाँ से छोले भटूरे बनाने का बहुत सारा सामान ले आता है।

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अंजू, “हे भगवान! मैं तो भूल ही गई। छोले भटूरे बेचने के लिए हमें एक ठेला भी तो किराये पर लेना होगा, लेकिन बचत के तो सारे पैसे तो ये सामान लाने में ही खत्म हो गए।”

अंजू की बात सुनकर रमेश भी परेशान हो जाता है, लेकिन वो अंजू को शांत करने के लिए उससे कहता है।

रमेश, “तुम चिंता मत करो, मैं कुछ करता हूँ। गांव में बहुत से जानकार हैं, कोई ना कोई तो हमारी मदद जरूर करेगा।”

इतना कहकर रमेश बाहर चला जाता है, तभी उसे रास्ते में मनोहर काका मिलते हैं। रमेश को परेशान देखकर मनोहर काका उससे पूछते हैं,

मनोहर काका, “क्या हुआ, रमेश बेटा? तुम इतने परेशान क्यों हो? कोई तकलीफ है, तुम मुझे बताओ। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”

मनोहर काका के पूछने पर रमेश उन्हें अपनी परेशानी बताता है, तभी मनोहर काका मुस्कराते हुए रमेश से कहते हैं,

मनोहर काका, “अरे बेटा! तो इसमें भला इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है? मेरे घर के आँगन में मेरा पुराना ठेला बड़ा है, तुम उसे ले जाओ। हाँ थोड़ी मरम्मत करानी पड़ेगी, लेकिन तेरे हो जाएगा।”

मनोहर काका की बात सुनकर रमेश बहुत खुश होता है। और वो मनोहर काका के ठेले को लेकर उसकी अच्छे से मरम्मत कर देता है।

अगले दिन अंजू सुबह जल्दी उठकर छोले भटूरे बनाने में लग जाती है और रमेश भी छोले भटूरे बनाने में अंजू की मदद करता है।

फिर दोनों मिलकर छोले भटूरे बनाकर अंजू अपना ठेला लेकर बाजार की ओर निकल जाती है और रमेश खेती करने अपने खेत की ओर निकल जाता है।

बाजार में उसका ठेला लगते ही वहाँ उसके छोले भटूरे की खुशबू फैल जाती है और स्वादिष्ट खुशबू को ढूंढ़ते हुए लोग उसके ठेले पर आने लगते हैं।

ग्राहक, “वाह बहन जी वाह! क्या खुशबू है! जब इन छोले भटूरे की सुगंध इतनी अच्छी है, तो ये खाने में कितने स्वादिष्ट होंगे?

मुझे तो इन्हें देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। ज़रा जल्दी से एक प्लेट लगा दीजिए!”

अंजू, “हां हां, क्यों नहीं भैया? बस अभी देती हूँ।”

अंजू अब ग्राहक के लिए गरमा-गर्म भटूरे तलती है और उन छोले भटूरे को खाकर वो ग्राहक बहुत खुश हो जाता है।

धीरे-धीरे उनकी खुशबू से अंजू के ठेले पर ग्राहकों की भीड़ लग जाती है। जो भी ग्राहक उसके छोले भटूरे खाता है,

वो अपनी उंगलियां चाटता रह जाता है। काम के पहले दिन ही इतनी अच्छी बिक्री देखकर अंजू बहुत खुश होती है।

वो अगले दिन फिर से छोले भटूरे बनाकर बाजार में मिलाती है और अगले दिन उसके ठेले पर और ज्यादा लोग उसके हाथ के छोले भटूरे खाने आते हैं।

देखते ही देखते कुछ ही दिनों में उसकी आमदनी भी अच्छी होने लगती है और अंजू उस कमाई से अच्छे खासे पैसे भी जोड़ लेती है। और रमेश से कहती है,

अंजू, “रमेश जी, कुछ महीनों की कमाई से मैंने कुछ पैसे जोड़े हैं। आप हर रोज़ पूरा दिन खेत में काम करते हैं और फिर बड़े बाजार तक पैदल चलकर सामान लाने जाते हो,

आप कितना थक जाते हो? मैं चाहती हूँ कि आप एक स्कूटर ले लो। इससे आपको थकावट भी नहीं होगी और आपका समय भी बच जाएगा।”

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रमेश, “नहीं अंजू, ये सब फालतू का खर्चा है। तो पैसे बचाकर अपने पास रखो, बाद में काम आएँगे।”

अंजू, “अरे! आप चिंता मत कीजिए रमेश जी। मैंने जरूरत के समय के लिए पैसे बचाकर अलग से रखे हैं, आप ज्यादा मत सोचिए और अपने लिए एक स्कूटर ले लीजिए।”

अंजू के बार-बार कहने पर रमेश एक सेकंड हैंड स्कूटर ले लेता है। और बचे हुए पैसों की एफडी करा के बैंक में जमा करा देता है।

कुछ महीनों में अंजू और रमेश की इतनी तरक्की देखकर मंजू बिल्कुल जल जाती है और अपने पति मुकेश से कहती है,

मंजू, “आखिर कब तक हम ये खेती करके इस थोड़ी सी कमाई में गुज़ारा करेंगे? अरे! अंजू और रमेश भाई साहब को देखो, कैसे कुछ ही महीनों में उन्होंने इतनी तरक्की कर ली?

अब तो रमेश भैया ने अपने लिए एक स्कूटर भी ले लिया है और एक आप हो, जो अपने लिए आज तक एक साइकिल भी नहीं ले पाए हैं।

मैं तो कहती हूँ कि मैं भी बाजार में अपना छोले भटूरे का स्टाल लगा ही लेती हूँ। और तो और मैं अंजू से भी स्वादिष्ट छोले भटूरे बनाती हूँ।

देखना, मेरे हाथ के छोले भटूरे खाकर कोई भी उसके हाथ के छोले भटूरे नहीं खाएगा।

आप एक काम करो, मुझे छोले भटूरे बनाने का सारा सामान और एक ठेला लाकर दे दो। कल से मैं भी छोले भटूरे बनाकर बाजार में अपना ठेला लगाऊँगी।”

मंजू की बातें सुनकर मुकेश भी छोले भटूरे का ठेला खोलने के लिए तैयार हो गया। लेकिन मंजू ने खेतीबाड़ी से कमाए पैसों में से भी थोड़े से पैसे की भी बचत नहीं की थी।

इसलिए उसने छोले भटूरे का स्टाल खोलने के लिए अपने खेत को जमींदार के पास गिरवी रख दिया और उन पैसों से एक छोले भटूरे का ठेला खोल लिया।

और अंजू के ठेले के ठीक सामने मंजू ने अपना ठेला लगा लिया। जहाँ अंजू ₹20 में छोले भटूरे की एक प्लेट बेचती थी, वहीं मंजू ने ₹15 में एक प्लेट छोले भटूरे बेचने लगी।

उसके ठेले पर अंजू के ठेले से कम दाम देखकर कुछ ही देर में उसके ठेले के बाहर भी ग्राहकों की भीड़ लग गई।

लेकिन जो स्वाद लोगों को अंजू के छोले भटूरे में मिलता था, वो स्वाद उन्हें मंजू के छोले भटूरे में नहीं मिला।

ग्राहक, “अरे बहन जी! सच कहूं तो आपके छोले भटूरे में वो बात नहीं, जो अंजू बहनजी के छोले भटूरे में है।

उनके छोलों की तो खुशबू इतनी अच्छी है कि मुँह में पानी आ जाता है।”

ग्राहक के मुँह से अंजू के तारे सुनकर मंजू और भी जल भुन जाती है। अगले दिन वह छोले को स्वादिष्ट बनाने के लिए उनमें तेज मिर्च मसाले डालकर बनाती है।

लेकिन तेज मिर्च मसाले डालने से उसके छोले का स्वाद बहुत ही चटपटा हो जाता है और एक निवाला खाते ही सभी ग्राहकों के कानों से धुआं निकलने लगता है।

ग्राहक, “अरे! ये कैसे छोले बनाए हैं? इतने तीखे… अरे! हफ्ते भर की मिर्ची आज ही डाल दी क्या आपने इन छोलों में?”

मंजू, “क्या कहा..? मिर्ची ज्यादा हो गई क्या?”

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ग्राहक, “ज्यादा..? इधर सब के कानों से धुआं निकल रहा है और आप पूछ रही हो कि मिर्ची ज्यादा हो गई क्या?

अरे बहनजी! ये पकड़ो। आपके ₹15 के धुएं निकालने वाले छोले भटूरे से तो अच्छा है, मैं ₹20 देकर अंजू दीदी के हाथ के छोले भटूरे खाऊं। उनके हाथ में जो स्वाद है, वो किसी के हाथ में नहीं।”

औरत, “अरे! सही कह रहे हो भैया, अंजू भले ही एक प्लेट छोले भटूरे के ₹20 लेती है, लेकिन उसके छोले भटूरे पूरे गांव में सबसे स्वादिष्ट हैं।”

इतना कहकर सभी ग्राहक वहाँ से चले जाते हैं और अंजू की दुकान से छोले भटूरे खरीदकर खाने लगते हैं। यह देखकर तो मंजू का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है।

अगले दिन सुबह-सुबह अंजू की खिड़की से उसके घर के अंदर झांकने लगती है और जैसे ही अंजू खेत से कोई सब्जी लेने जाती है,

वैसे ही मौका देखकर मंजू उसके छोले में खूब सारी मिर्ची मिला देती है। अंजू घर आकर अपने छोले भटूरे लेकर बाजार में बेचने चली जाती है।

तभी यह ग्राहक उसके ठेले पर आता है, लेकिन वो छोले भटूरे खाते ही पसीने से तर-बतर हो जाता है।

ग्राहक, “अरे! ये क्या खिला दिया? हे भगवान! इत्ती मिर्ची? पानी… पानी।”

ग्राहक की हालत देखकर अंजू उसे पानी देती है और जब वह अपने छोले को चख कर देखती है, तो उसकी आँखों से पानी आ जाता है।

अंजू, “हे भगवान! ये कैसे हो गया? मैंने तो छोलों में इतनी मिर्च डाली ही नहीं थी, तो फिर ये इतने तीखे कैसे हो गए? मुझे कुछ भी करके इनका स्वाद ठीक करना होगा।”

अंजू अब अपने दिमाग में एक आइडिया सोचती है और पास वाली दुकान से खूब सारी दही लेकर आती है

और वो छोले में थोड़ा पानी, नमक और दही मिलाकर मिर्ची के स्वाद को कम कर देती है। फिर ग्राहकों को छोले भटूरे खाने के लिए देती है।

ग्राहक, “अरे वाह अंजू दीदी! आज छोले में कुछ अलग डाला है क्या? बड़ा ही गजब का स्वाद आ रहा है, मज़ा आ गया। मैं तो कहता हूँ, आप हर रोज़ ऐसे ही छोले बनाइएगा।”

ग्राहक की बात सुनकर अंजू बहुत खुश होती है और हर दिन की तरह आज भी उसकी कमाई बहुत अच्छी होती है।

उसके सारे छोले भटूरे बिक जाते हैं, लेकिन उसके सामने खड़ी मंजू के ठेले पर गिने-चुने कुछ ही ग्राहक जाते हैं।

जिस वजह से वह अंजू से जलकर देर रात को उसके ठेले में आग लगा देती है और उसके ठेले को जला देती है।

सुबह जब अंजू उठकर अपने आँगन में जाती है तो अपने ठेले की ऐसी हालत देखकर उसे बहुत दुख होता है

और वह घर के अंदर परेशान होकर बैठ जाती है। आज वह छोले भटूरे बेचने के लिए बाजार भी नहीं जाती।

तभी वह शाम को दौड़ती हुई मंजू अंजू के पास आती है और जोर-जोर से रोने लगती है।

अंजू, “क्या हुआ मंजू, तू इस तरह से क्यों रो रही है?

मंजू, “अंजू दीदी, मैंने आप से जलकर पहले तो आपके छोलों को खराब करने की कोशिश की और जब मेरी वह तरकीब काम नहीं आई ना, तो मैंने आपके ठेले को ही आग लगा दी।

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इसलिए मेरे गुनाहों की सजा आज मुकेश जी को मिल रही है। उनकी तबियत अचानक खराब हो गई है।

डॉक्टर ने कहा है उनका ऑपरेशन करना होगा, जिसमें ₹5 लाख का खर्चा आएगा। मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं हैं, मैं उनका इलाज करा सकूँ।

तुमसे जल कर मैंने जो छोले भटूरे का ठेला खोला था ना, उसके लिए मैंने हमारी जमीन तक गिरवी रख दी थी।”

मंजू की ये बातें सुनकर अंजू को बहुत दुख होता है लेकिन वह बड़ा दिल रखकर उसे कहती है,

अंजू, “मंजू, जो हुआ सो हो गया। तुम चिंता मत करो, मुकेश भैया का इलाज मैं और रमेश जी करवाएंगे।

हमने बचत करके जो भी पैसा जोड़ा है, हम उसे डॉक्टर की फीस भर देंगे। और अगर उसके बाद भी पैसे कम पड़े तो हम अपना खेत बेच देंगे, लेकिन मुकेश भैया को कुछ भी नहीं होने देंगे।”

अंजू की बात सुनकर मंजू की आँखों में आंसू आ जाते हैं। एक साथ इतने सारे पैसों का इंतजाम करने के लिए रमेश अपना खेत बेच देता है

और हॉस्पिटल में मुकेश के ऑपरेशन के लिए ₹5 लाख जमा करवा देता है।

यह सब देखकर मंजू को अपनी करनी पर बहुत पछतावा होता है और वह अंजू और रमेश से अपनी करनी के लिए माफी मांगती है। अंजू और रमेश भी बड़ा दिल रखकर उसे माफ़ कर देते हैं।

राकेश के ठीक होने के बाद वे सभी मिलजुल कर एक साथ रहने लगते हैं।

अब दोनों बहनें मिलकर बाजार में अपने छोले भटूरे का स्टाल लगाती हैं और “अंजू-मंजू छोले भटूरे वाली” के नाम से यह मशहूर हो जाता है।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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