हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बुद्धिमान राजकुमार ” यह एक Raja Rani Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Majedar Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Budhhiman Rajkumar | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Achhi Achhi Kahaniya
बुद्धिमान राजकुमार
रायगढ़ की रियासत के राजा विक्रम सिंह एक लोकप्रिय राजा थे। उनके राज्य में हर तरफ खुशी थी। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उनका अपना ही मंत्री उन पर घात लगाए बैठा है।
राजा विक्रम सिंह का मंत्री राजा का मान सम्मान देखकर बहुत जलता था। वह स्वयं राजा बनना चाहता था।
इसीलिए राजा के बेटे प्रताप को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र रचता रहता था। राजा ने बूढ़े व्यक्ति को चोरी के लिए दंड दिया।
राजा,” बोलो… तुम अपना अपराध कबूल करते हो ? “
बूढ़ा आदमी,” जी महाराज, पर मैं मजबूर था। चोरी नहीं करता तो क्या करता ? “
राजा,” वृद्ध व्यक्ति, तुम्हारी सजा यह है कि इस राज्य का कोई भी व्यक्ति तुम्हारी किसी भी तरह की मदद नहीं करेगा। “
अगले दिन चौराहे पर…
बूढ़ा व्यक्ति,” बहुत गर्मी है। प्यास लगी है। अब तो चला भी नहीं जाता। “
वह पेड़ के नीचे खड़ा हो जाता है और चक्कर खाकर जमीन पर गिर जाता है।
प्रताप,” बाबा, उठो बाबा। “
बूढ़ा व्यक्ति,” पानी… पानी। “
प्रताप पास के ही एक तालाब से पानी लेकर आया।
प्रताप,” लो बाबा पानी पी लो। कहां जाना है आपको ? “
बूढ़ा व्यक्ति,” रहने दो। कोई देख ना ले, जल्दी से यहां से चले जाओ नहीं तो तुम भी दंडित कर दिए जाओगे। “
प्रताप,” आप दंड की चिंता मत करो। मैं आपको घर पहुंचाकर आता हूं। “
प्रताप उसे अपने कंधों पर बैठाकर घर ले गया।
राज दरबार में राजकुमार प्रताप राजा विक्रम के सामने खड़े हैं।
राजा,” तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया है ? “
प्रताप,” क्योंकि यह मानवता के विरुद्ध है। “
मंत्री,” क्षमा महाराज… हमारी न्याय संहिता के अनुसार राजा हमारी प्रजा के लिए ईश्वर समान होता है और उसकी आज्ञा सर्वोपरि है।
जो भी व्यक्ति राजा की आज्ञा का पालन नहीं करेगा या उसका उल्लंघन करेगा, वो दंड का पात्र है। “
राजा,” तुम अपनी गलती स्वीकार कर लो तो कोई भी तुम्हें दंड नहीं देगा। “
मंत्री,” पर राजन…”
राजा,” मंत्री जी… “
प्रताप,” यदि मैंने गलती मान लिया तो कोई भी व्यक्ति कभी भी किसी दीन दुखी की सहायता नहीं करेगा। “
राजा,” तुम राजकुमार हो, मेरे पुत्र हो। तुम दंड के भागी बने तो महारानी का क्या होगा ? “
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सभा के बाहर खड़ी प्रजा…
प्रजा,” अरे ! यह राजकुमार है। इसे कोई दंड नहीं मिलेगा। सच बात है। राजा अपने बेटे को बचाने के लिए न्याय की अवहेलना करके कोई ना कोई उपाय निकाल ही लेगा।
भैया, यदि किसी साधारण व्यक्ति ने राजा की आज्ञा का उल्लंघन किया होता तो अब तक तो उसे सूली पर लटका देते।
देखना तो अब यह है कि राजा कैसे अपने बेटे को बचाता है ? “
सेनापति,” चुप रहो तुम लोग। “
सेनापति,” महाराज, प्रजा का कहना है कि आप राजकुमार को दंड से बचाने के लिए न्याय नहीं करेंगे। “
मंत्री,” महाराज, आप न्याय की मिसाल हैं। न्याय करना राजा का परम कर्तव्य है। “
राजा,” राजकुमार मैं तुम्हें एक राजा नहीं बल्कि पिता बनकर समझा रहा हूं। अपनी गलती स्वीकार करो। “
सेनापति,” महाराज ठीक कह रहे हैं। इसी में सब की भलाई है। “
प्रताप,” महाराज मैं भी आप ही का पुत्र हूं। मेरे दृष्टिकोण से मैंने एक प्यासे व्यक्ति की मदद करके कोई अपराध नहीं किया। आपकी नजर में यदि ऐसा करना अपराध है तो मुझे दंड स्वीकार है। “
मंत्री,” अब आएगा मजा। राजकुमार को रास्ते से हटाने का यह अच्छा अवसर है। “
राजा,” मंत्री, इस अपराध का क्या दण्ड है। “
मंत्री,” महाराज, राजकुमार को इस राज्य को छोड़कर 6 महीने के लिए जंगलों में वनवासी का जीवन जीना होगा। यही इनके अपराध का प्रायश्चित है। “
राजा,” इसके अतिरिक्त कोई अन्य उपाय सेनापति ? “
सेनापति,” महाराज, आप न्याय करने के लिए स्वतंत्र हैं। राजकुमार को इतना कठोर दंड देना उचित नहीं है। “
मंत्री (मन में),” अरे ! यह सेनापति का बच्चा मेरी यह योजना असफल ना कर दे। “
मंत्री,” महाराज, यदि आपने आज न्याय नहीं किया तो प्रजा में क्या संदेश जाएगा ? “
राजा,” राजकुमार प्रताप को 6 महीने बनवास का दंड दिया जाता है। “
मंत्री,” महाराज, आज आपने न्याय की मिसाल कायम कर दी। “
राजकुमार सामान्य वस्त्र पहनकर राजा और रानी को प्रणाम करके चले गए।
वह जंगल में एक झोपड़ी बनाकर लकड़हारा बनकर रहने लगा।
प्रताप,” आज पता नहीं लकड़ी लेने के लिए कितना दूर जाना पड़ेगा ? “
वह आगे आगे चलता रहा। उसे एक तालाब दिखाई दिया। उसने हाथ – मुंह धोये तो पीछे से एक आवाज आई।
दासी,” अरे ! तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो ?
प्रताप,” मैं यहां पानी पीने आ गया था। “
दूसरी दासी,” अच्छा… अच्छा चलो अब जल्दी से यहां से चले जाओ। हमारी राजकुमारी आने वाली हैं। “
प्रताप,” ठीक है। मैं चला जाता हूं। “
पहली दासी,” सुनो… दाईं ओर से निकल जाओ। “
प्रताप दाईं ओर से निकलने के लिए मुड़ा कि उसे एक राजकुमारी और दो अगल-बगल दासियां दिखाई दी।
दूसरी दासी,” हे प्रभु ! यह क्या अनर्थ हो गया ? इस भिखारी की नजर राजकुमारी पर पड़ गई। “
वह चिल्लाते हुए भागी।
दासी,” अनर्थ हो गया राजकुमारी, अनर्थ हो गया। आप तो बाईं ओर से आने वाली थी फिर दाईं ओर क्यों आ गई ? “
राजकुमारी,” मैं तो केवल टहल रही थी। अब क्या होगा ? “
दासी,” अरे ! कुछ नहीं, पहले इस भिखारी को रास्ते से हटाओ। “
पहली दासी,” ऐ… तुम भागो यहां से। आज तुम्हारी वजह से अनर्थ हो गया। “
दासी,” राजकुमारी, पता नहीं महल में क्या कोहरा मचा होगा ? “
दासी,” महाराज… महाराज अनर्थ हो गया। “
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मंत्री,” अरे ! क्या हो गया; जो तुम इतनी जोर जोर से चिल्ला रही हो ? देखती नहीं… महाराज ज्योतिषी बाबा के साथ व्यस्त हैं। “
महाराज,” क्या हुआ ? तुम यहां क्या कर रही हो ? तुम्हें तो इस समय राजकुमारी के साथ वन में होना चाहिए था। “
दासी,” महाराज, मैं उन्हीं के साथ थी। वहीं की खबर लायी हूं। महाराज, जब राजकुमारी तालाब के पास जा रही थीं तो वहां एक भिखारी आ गया और उसकी नजर राजकुमारी पर पड़ गई। “
राजा,” यह क्या कह रही हो ? “
दासी,” महाराज, यह एकदम सत्य है।
राजा,” बाबा, अब क्या करें ? कोई उपाय हो तो बताइए ? “
बाबा,” महाराज, मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि इन 15 दिनों में जिस पुरुष की दृष्टि राजकुमारी पर पड़ेगी, उसे ही उनका जीवन साथी बनना चाहिए। नहीं तो उनका जीवन कठिनाइयों से भर जाएगा। “
दासी,” महाराज, लेकिन वह तो एक भिखारी था जो भटकता हुआ वहां पहुंच गया। “
तभी राजकुमारी और दोनों दासियां भी वहां आ गई।
दासी,” महाराज, वह कोई भिखारी नहीं बल्कि एक बनवासी लकड़हारा था। महाराज, मैंने सब बंदोबस्त ठीक से कर दिया था।
मैं नहीं जानती थी कि टहलते हुए राजकुमारी बाईं ओर की जगह दाईं ओर से आ जाएंगी। “
राजकुमारी (रोते हुए),” पिताजी, क्षमा कर दीजिए। “
राजा,” ज्योतिषी बाबा, कुछ तो उपाय होगा ? मेरी पुत्री के जीवन का प्रश्न है। “
ज्योतिष बाबा,” महाराज, मैंने आपको सब स्पष्ट बता दिया है। या तो राजकुमारी उस व्यक्ति से विवाह कर ले और यदि नहीं करना चाहती तो आजीवन कुंवारी रहे।
परंतु अब यदि किसी और व्यक्ति से विवाह किया तो इनके प्राणों पर संकट आ सकता है। निर्णय आपको करना है। “
राजा,” पुत्री, अब निर्णय आपको करना है। “
दासी,” राजकुमारी जी, आजीवन कुंवारी रहना अधिक कष्टदाई है। “
ज्योतिष बाबा,” मेरे पास एक उपाय है। शादी के बाद उस लकड़हारे को घर जमाई बना लीजिए। “
राजा,” जी बाबा… यह ठीक रहेगा। “
राजा (सैनिकों से),” उस लकड़हारे को लेकर आओ। “
सैनिक उस लकड़हारे को दरबार में लेकर आते हैं।
राजा,” हम अपनी पुत्री का विवाह तुमसे करना चाहते हैं। क्या तुम तैयार हो ? “
प्रताप,” यदि मैं तैयार नहीं हुआ तो क्या आप मुझे यहां से जाने देंगे ? “
राजा,” नहीं, यदि तुम नहीं मानोगे तो तुम्हें जबरदस्ती राजकुमारी से विवाह करना पड़ेगा। “
प्रताप,” महाराज, मुझे भविष्यवाणी वाली बात पता चल गई है। मैं विवाह से इनकार नहीं कर सकता किंतु मेरी एक शर्त है। “
राजा,” बोलो, कैसी शर्त ? “
प्रताप,” विवाह के बाद तो मैं वन में ही रहूंगा महल में नहीं। “
राजा,” नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम सोचो… मेरी पुत्री वहां कैसे रहेगी ? “
प्रताप,” वह मैं नहीं जानता। मुझे आपके राज महल से अधिक अपना आत्म सम्मान प्यारा है। “
राजा,” ठीक है। “
राजकुमारी,” पिताजी, यह आपने क्या कर दिया ? “
राजा,” पुत्री, मैंने बहुत सोच समझकर यह फैसला किया है। यदि तुम्हारा विवाह नहीं हुआ तो मेरी मृत्यु के बाद तुम यह सब कैसे संभालोगी ? ”
महारानी,” मैं अपनी इकलौती पुत्री को किसी लकड़हारे को नहीं दूंगी। “
राजा,” महारानी, तुम इसे कुछ सिखाओ ताकि यह विवाह के बाद उस लकड़हारे को इस राजमहल वापस ले आए। “
बड़ी धूमधाम से प्रताप और राजकुमारी का विवाह हो गया।
राजा,” यह लड़का ना तो दिखने में लकड़हारा लगता है और ना ही बातों से। “
महारानी,” हां, आप ठीक कह रहे हैं। काश ! यह कोई राजकुमार होता। “
प्रताप,” महाराज, आज विवाह संपन्न हुए पूरे दो दिन हो चुके हैं। अब हमें यहां से चलना चाहिए। “
महारानी,” पुत्र, कुछ दिन और यहां रुक जाओ। “
प्रताप,” कृपया हमें जाने दें। “
प्रताप और राजकुमारी वन में चले गए।
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राजा (सैनिकों से),” तुम इन दोनों पर छिपकर नजर रखो। देखो… इन्हें किसी भी चीज से परेशानी ना हो और दोनों सुरक्षित रहें। “
रायगढ़ राज्य में…
मंत्री (सैनिकों से),” प्रताप का दंड दो दिन में पूरा हो जाएगा। प्रताप किसी भी हालत में यहां जीवित वापस नहीं आना चाहिए। जंगल में आग लगा दो या उसे तलवार से काट दो। समझ गए ना..?? “
सैनिक,” मंत्री जी, आप बेफिक्र रहें, काम हो जाएगा। “
जंगल में…
राजकुमारी,” हे ईश्वर ! इस जन्म में मुझे किस अपराध का दंड मिल रहा है ? मैं इतनी छोटी सी घास फूस के झोंपड़ी में कैसे रहूंगी ? “
राजकुमारी पूरी रात नहीं सो पाती। सुबह उसे दासी की बात याद आ गई।
दासी,” राजकुमारी जी, आप जंगल में बिल्कुल मत रहना। मैं तो कहती हूं आप अपने पति को इतना तंग करना, इतना तंग करना कि आखिर वह सारी बातें छोड़कर महल में रहने के लिए आ जाए। “
राजकुमारी,” दासी ने बिल्कुल ठीक कहा था। मुझे ऐसा ही करना चाहिए। “
राजकुमारी ने मटके का सारा पानी धरती पर गिरा दिया, कंबल फाड़ दी और अनाज बिखेर दिया। “
प्रताप कुछ फल लेकर बाहर से आया।
प्रताप,” अरे ! यह क्या हो गया ? अनाज तो खराब हो गया। मटका भी टूट गया। “
राजकुमारी,” यह कपड़ा भी गया। “
प्रताप,” यह तुमने क्या किया ? “
राजकुमारी,” हां, क्योंकि मुझे यहां नहीं रहना। तुम ही बताओ मैं यहां कैसे रहूं ? बोलो…”
प्रताप,” दण्ड पूरा होने में अभी दो-तीन दिन शेष है। “
राजकुमारी,” बोलते क्यों नहीं..?? “
प्रताप,” तुम बस कुछ दिन और सह लो। उसके बाद मैं तुम्हें एक रानी की तरह रखूंगा। “
राजकुमारी,” ओ हो… उसके बाद क्या कोई खजाना हाथ लग जाएगा ? “
प्रताप,” हां। “
राजकुमारी,” झूठे कहीं के। मुझे बहला रहे हो ? देखो रथ बाहर खड़ा है। पिताजी ने हम दोनों को बुलाया है। कुछ दिन वही रहेंगे। अब चलो। “
रात के अंधेरे में जंगल में दो आदमी प्रताप की झोपड़ी में आग लगा देते हैं।
सैनिक,” अब नहीं बचेगा। “
दूसरा सैनिक,” भैया, राजकुमार के चिल्लाने की आवाज तो आई नहीं। प्रताप की झोपड़ी यही है ना ? “
सैनिक,” हां हां, यही है। चिल्लाएगा कैसे ? राजा का बेटा तो राख हो गया। चलो अब भागो। “
प्रताप (राजकुमारी से),” अब चलो यहां से। या यहीं अपने पिता के महल में रहने का विचार है ? “
राजकुमारी,” थोड़े दिन और रुक जाते हैं ना। “
प्रताप,” नहीं, हमें आज ही यहां से किसी भी हालत में जाना होगा। “
राजकुमारी,” मैं उस जंगल में नहीं रहूंगी। ”
प्रताप,” चलो तो। “
राजकुमारी,” यह सारथी कहां चला गया? अब रथ कौन चलाएगा ? “
प्रताप,” मैं चलाऊंगा रथ। रथ नगर के रास्ते से होता हुआ अंजान रास्तों पर आगे बढ़ गया।
राजकुमारी,” अरे ! यह जंगल का तो मार्ग नहीं है। “
प्रताप,” अब हमें जंगल में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। “
राजकुमारी,” तो हम कहां जा रहे हैं ? कहीं तुम मुझे जान बूझकर कष्ट देने के लिए मेरे माता-पिता से दूर तो नहीं ले जा रहे हो हां..? “
प्रताप,” नहीं, मैं तुम्हें अपने माता पिता के पास लेकर जा रहा हूं। “
राजकुमारी,” हैं… कौन है ? वह कहां रहते हैं ? क्या करते हैं ? “
प्रताप,” अरे ! इतने सारे प्रश्न एक साथ। “
तबी रथ राजमहल की ओर बढ़ता है।
सैनिक (बिगुल बजाते हुए),” राजकुमार प्रताप पधार रहे हैं…। “
राजा और रानी भाग कर आते हैं और उसके गले लग जाते हैं।
महारानी,” यह तुम्हारे साथ सुंदर सी लड़की कौन है ? “
प्रताप,” ये राजा विश्वा की पुत्री, मेरी पत्नी और आपकी बहू है। “
महारानी दोनों की आरती उतारकर दोनों को महल में ले जाती है। तभी राजा विश्वा रस्सियों से बंधे दो आदमियों के साथ वहां आ गये।
प्रताप,” पिताजी, यह राजकुमारी के पिता, राजा विश्वा हैं। “
राजा,” पधारिए महाराज… पधारिए। “
राजा विश्वा,” प्रताप, मुझे सब पता चल गया है। महाराज, पहले आप अपने मंत्री को बुलाइए। “
राजा विश्वा,” इन दो व्यक्तियों ने कल रात जंगल में राजकुमार प्रताप की झोपड़ी में आग लगा दी। “
राजा,” चलो अब तुम दोनों सच सच बताओ। तुम दोनों ने ऐसा क्यों किया ? वरना…”
सैनिक,” महाराज, हमें मंत्री जी ने ऐसा करने के लिए कहा था। वह नहीं चाहते थे कि राजकुमार प्रताप जीवित राज्य वापस आएं।
वह आपसे ईर्ष्या करते हैं। वह नहीं चाहते कि राजकुमार प्रताप राजा बने। “
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राजा,” सेनापति, मंत्री और इन दोनों सैनिकों को तुरंत कारावास में डलवा दो। “
राजा,” मुझे क्षमा कर दो मेरे पुत्र… तुम सच में बहादुर, निडर और एक अच्छा राजा बनने योग्य हो। मुझे तुम पर गर्व है। “
राजा विश्वा,” और हमें अपने जमाई राजा पर नाज़ है। क्यों बेटी..?? अब तो खुश हो ना ? “
उसके बाद राजकुमार प्रताप और राजकुमारी दोनों खुशी-खुशी महल में रहने लगते हैं।
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