हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बच्चा चोर” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Baccho Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
कहानी है भरतपुर गांव के छोटे से मजदूर मंगलू की। मंगलू घर से जल्दी-जल्दी तैयार होकर निकल रहा था, तभी पीछे से उसकी पत्नी शीला ने चिल्लाकर आवाज लगाते हुए कहा।
शीला, “अरे! कहाँ चले गए तुम? तुम्हें तो काम से निकाल दिया था ना? हे भगवान! मेरी तो किस्मत ही फूट गई जो तुझ गरीब मजदूर से ब्याह किया।
जब से इस घर में आई हूँ, मैंने एक बार भी पनीर की सब्जी नहीं खाई।”
मंगलू,”तुम चिंता ना करो, शीला। आज 50 मज़दूरों को 12 बजे से पहले फॅक्टरी पर बुलाया गया है।
जो भी पहले आएगा, उसे काम पर रख लिया जाएगा। मुझे भी जल्द से जल्द वहाँ पहुंचना होगा। अगर मुझे काम मिल गया तो आज रात पनीर ही बनाना।”
मंगलू ये कहकर निकल गया, लेकिन उसकी पत्नी शीला उसे कोसती रह गई। रास्ते में मंगलू ने देखा कि गांव के चौराहे पर एक बच्चा एक कोने में बैठा हुआ वहाँ से आ रहे लोगों को देख रहा है।
मंगलू,”कोई उस बच्चे के पास रुक क्यों नहीं रहा है? ओह हाँ, सबको तो जल्द से जल्द फैक्टरी पहुंचना होगा।
पर वो बच्चा मुझे इस गांव का नहीं लग रहा। ना जाने कौन है ? पर दिखने में तो अच्छे घर का लग रहा है। लेकिन इसे अकेले छोड़कर मैं जा भी तो नहीं सकता।”
मंगलू फिर उस बच्चे के पास जाकर उससे पूछता है।
मंगलू, “बेटा, आप कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो?”
बच्चा,”आपका कौन।”
मंगलू,”मैं मंगलू, तुम कौन?”
बच्चा,” गणेश। “
मंगलू, “अरे! ये तो बप्पा का नाम है। तुम हो कौन? इस गांव के नहीं लगते।”
बच्चा,”मैं भूत हूँ।”
मंगलू,”पर इतने प्यारे भूत नहीं होते बबुआ।”
बच्चा, “पर मैं तो हूँ। तुम कौन हो?”
मंगलू, ” मैं मंगलू हूं। तुम कौन हो?”
बच्चा,”मैं गणेश हूँ।”
मंगलू,”अरे! नाम नहीं पूछा।”
मंगलू को वो बच्चा बड़ा प्यारा लग रहा था और बातों से शरारती भी। क्योंकि अपने माता-पिता से अलग होने के बावजूद वो रो नहीं रहा था। मंगलू ने बेहद सोच-समझकर पूछा।
मंगलू, “तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं?”
गणेश,”अपने घर पर होंगे।”
मंगलू,”उनके साथ घर पर क्यों नहीं हो?”
बच्चा चोर | Baccha Chor | Hindi Kahani | Moral Story | Kids Story | Baccho Ki Kahaniyan
गणेश,”क्योंकि मैं उनसे नाराज हूँ।”
मंगलू,”अच्छा, पर क्यों?”
गणेश,”वो मुझे बहुत डांटते हैं, इसलिए।”
मंगलू,”तो क्या वो तुम्हें लेने आएँगे?”
गणेश,”हाँ, लग रहा है।”
मंगलू उसकी बात सुनकर एक बार फिर से हंसने लगा और सोचता है।
मंगलू, “ये बच्चा तो बड़ा शैतान लगता है। शायद इसके माता-पिता को पता है कि ये कहाँ है? मुझे चलना चाहिए, वरना मुझे देर हो जाएगी।”
मंगलू,”अच्छा, तो तुम अपने माता-पिता का इंतज़ार करो। कोई ना कोई तुम्हें लेने जरूर आएगा। ठीक है, मैं चलता हूँ।”
ये बोलकर मंगलू आगे बढ़ गया, पर कुछ कदम चलकर वो रुक गया और पीछे मुड़कर देखा तो मंगलू हैरान रह गया, क्योंकि गणेश उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था।
मंगलू,”अरे! तुम मेरे पीछे क्यों आ रहे हो? वहीं बैठो। तुम्हारे माता-पिता तुम्हें लेने आ जाएंगे। जाओ।”
गणेश,”नहीं, मैं तुम्हारे साथ ही जाऊंगा।”
मंगलू,”अरे बिटवा! मुझे फैक्टरी जल्दी पहुंचना है और तुम्हारा वहाँ कोई काम नहीं है।”
गणेश,”नहीं नहीं, मुझे तुम्हारे साथ जाना है।”
गणेश दौड़कर उसके पीछे आने लगा। तभी एक पत्थर से टक्कर खाकर वो नीचे गिर गया, जिससे उसकी चीख निकल गई।
मंगलू जल्दी से उसके पास आकर उसे उठाते हुए कहता है।
मंगलू, “गिर गए ना? क्यों पीछा कर रहे हो मेरा, बिटुआ? वहाँ बैठ क्यों नहीं जाते?”
गणेश,”मुझे तुम्हारे साथ आना है।”
मंगलू,”पर मैं तो काम से जा रहा हूँ, खेलने नहीं जा रहा।”
गणेश,”मुझे भी तुम्हारे साथ चलना है।”
गणेश ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। मंगलू उसे चुप कराने के लिए कहता है।
मंगलू, “अच्छा, चुप हो जाओ। कुछ नहीं हुआ, कुछ नहीं हुआ। तुम्हें मेरे साथ चलना है, ना? चलो।”
गणेश,”हाँ।”
मंगलू,”तो तुम मेरा हाथ पकड़ लो, चलो।”
मंगलू बच्चे का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लेकर चलता है। उसने मंगलू का हाथ पकड़ रखा होता है, इसलिए मंगलू को भी रुकना पड़ता है। फिर वह उस बच्चे की तरफ देखकर बोलता है।
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मंगलू, “क्या हुआ? जल्दी चलो भाई, हमें जल्द से जल्द फॅक्टरी पहुंचना है।”
गणेश,”पर मुझे सूसू जाना है।”
मंगलू,”ये क्या होता है, बबुआ?”
गणेश,”अरे! सूसू नहीं पता, मुझे वाशरूम जाना है।”
मंगलू,”अब ये बाशरूम क्या होता है?”
गणेश ने अपनी छोटी-छोटी हाथों को उठाया और अपनी आखरी ऊँगली दिखाते हुए बोला।
गणेश, “ये… मुझे सूसू करना है।”
मंगलू,”अच्छा, तो तुमको यहाँ जाना है, तो चलो हमारे साथ।”
मंगलू ने उसे एक पेड़ के पीछे खड़ा करते हुए कहा।
मंगलू,”कर लो तुम्हारा सूसू।”
गणेश,”छी…मैं यहाँ सूसू नहीं करूँगा, मुझे वाशरूम में ही जाना है।”
मंगलू,”बबुआ,अब ये बाशरूम कहाँ से ढूंढे हम? चलो कर लो, हमें देर हो रही है। जल्दी करो।”
गणेश,”नहीं, मैं यहाँ नहीं जाऊंगा।”
मंगलू,”अरे! बबुआ, मान जाओ। काहे इतनी नौटंकी कर रहे हो? अच्छा चलो, हम तुम्हें चॉकलेट खिलाएंगे, ठीक है।”
गणेश,”सच्ची..? ठीक है, फिर मैं जाता हूँ।”
थोड़ी देर बाद मंगलू गणेश को लेकर फैक्टरी की तरफ चला गया। पर वहाँ पर आकर देखता है कि उसे देर हो चुकी थी और 50 लोगों को पहले ही रख लिया गया था।
बाकी लोग वहाँ खड़े नारे लगा रहे थे। तभी उनमें से एक बोला, “हमको भी इंसाफ चाहिए, हमें हमारा काम वापस दो।
मंगलू,”यहाँ सुनने वाला कौन है? कोई नहीं। ऐसे माहौल में झगड़े जल्दी होते हैं, इसलिए मुझे गणेश को जल्दी से यहाँ से लेकर जाना होगा।”
गणेश का हाथ कस कर पकड़ वह वहाँ से जाने लगा। पर इससे पहले ही वहाँ पर हाथापाई शुरू हो गई।
मंगलू ने उस बच्चे को अपने सीने से लगा लिया और उसे लेकर जैसे-तैसे वहाँ से निकल गया।
मंगलू,”समझ में नहीं आ रहा कि अब इस बच्चे का क्या करूँ? मैं इस बच्चे को अकेले नहीं छोड़ना चाहता, पर अब इस बच्चे के साथ मुसीबत तो बढ़ती ही जा रही है।
इस बच्चे की वजह से मैं देर से पहुंचा। और अब अगर इसे कुछ हो गया, तो इल्जाम मुझ पर ही आएगा।”
मंगलू ने गणेश को एक जगह पर बैठाया और पूछा।
मंगलू, “भूख लगी है?”
गणेश, “हाँ।”
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मंगलू, “तुम यहीं बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ।”
गणेश ने हाँ में जवाब दिया। मंगलू ने उसे एक जगह बैठाकर वहाँ से चला गया।
मंगलू ने एक दुकान पर जाकर कुछ खाने का सामान लिया और वापस गणेश के पास आकर बोला।
मंगलू, “तुम यह खाओ, मैं अभी आया।”
गणेश खाने लगा और मंगलू ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और वहाँ से चला गया। वह चलते-चलते काफी दूर तक चला आता है।
मंगलू, “अरे! मैं एक मासूम बच्चे को अकेले छोड़ आया। भला फैक्ट्री में चल रहे झगड़ों में उसका क्या कसूर? वह तो खुद माँ-बाप से बिछड़ा हुआ है, बेचारा।”
और वह पीछे की ओर भागता है। वह वहाँ पहुँचता है और देखता है कि दो-तीन आदमी उस बच्चे के पास थे। उसे संदेह हुआ कि कहीं वे उसे किडनैप ना कर लें।
वह भागकर उस बच्चे के पास आया और कहा।
मंगलू “बिटुआ, तुम ठीक तो हो? मुझे आने में देर हो गई। इन लोगों ने तुम्हें परेशान तो नहीं किया?”
गणेश (रोते हुए), “तुम कहाँ थे? ये गंदे लोग मुझे परेशान कर रहे थे। मुझे डर लग रहा था।”
मंगलू ने कहा, “चुप चुप, चुप हो जा बिटुआ। अब हम तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।”
गणेश, “पक्का नहीं जाओगे ना?”
मंगलू ने कहा, “हाँ बिटुआ, हम तुम्हारे साथ ही रहेंगे। अब शांत हो जाओ, चलो।”
मंगलू उन लोगों को देखता है जो उसे किडनैप करने आए थे, पर अब वे सारे उलटे पांव भागने लगे।
थोड़ी देर बाद मंगलू गणेश का हाथ पकड़ लेता है और उसे लेकर पैदल ही चलने लगता है।
मंगलू, “पता नहीं कौन है, पर अकेले नहीं छोड़ूंगा जब तक इसे इसके माँ-बाप के हवाले नहीं कर देता।”
वह उसे लेकर जा रहा होता है कि एक आदमी उसकी ओर भाग कर आते हुए कहा।
आदमी,”अरे मंगलू! यह बच्चा तेरे साथ कौन है भाई?”
मंगलू, “अरे! रुक जा, सांस लेने दे गुड्डू। मैं नहीं जानता यह बच्चा कौन है? यह बस मुझे रास्ते में अकेला मिल गया।”
गुडडू, “अरे! अभी-अभी सुनकर आ रहा हूँ कि फैक्ट्री के मालिक का बेटा यहाँ आते ही खो गया है।”
गुड्डू, “कहीं ये वही तो नहीं?”
मंगलू,” पता नहीं, चल पूछते हैं।”
दोनों गणेश को लेकर वापस फैक्ट्री चले जाते हैं, जहाँ माहौल में गर्मागर्मी थी। मंगलू और गुड्डू दूसरे रास्ते से गणेश को लेकर फैक्ट्री के अंदर जाते हैं।
फैक्ट्री के मालिक यहाँ-वहाँ घूम कर परेशान से कुछ बोले जा रहे थे।
मालिक, “मुझे सबसे पहले मेरा बच्चा चाहिए, फिर मैं बाकी का काम करूँगा।
आज अगर मुझे मेरा बच्चा नहीं मिला, तो मैं किसी को काम नहीं करने दूंगा। सबको निकाल दूंगा।”
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उन्हें वहाँ देख गणेश मंगलू की गोद से उतरकर भागकर उनकी तरफ जाते हुए चिल्लाया।
गणेश, “पापा, पापा!”
मालिक, “गणेश, मेरे बच्चे, कहाँ थे तुम और यहाँ कैसे पहुंचे?”
गणेश, “यह पतले नौटंकी बाज़ अंकल मुझे यहाँ लाए।”
मालिक, “अच्छा, मेरा बच्चा ठीक तो है ना?”
गणेश, “हाँ पापा, ये अंकल बहुत अच्छे हैं। इन्होंने मेरा बहुत ख्याल रखा। मुझे सूसू करवाया, खाना खिलाया और मुझे गंदे लोगों से भी बचाया।”
मंगलू,”कुछ आदमी गणेश को किडनैप करने के इरादे से आए थे, पर हमारे होते हुए हम बिटुआ को कैसे कुछ होने दे सकते थे?”
मालिक,” तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरे बच्चे को सही-सलामत मेरे पास पहुँचाने के लिए। तुमने मेरी सबसे बड़ी मदद की है। मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूंगा।”
मंगलू, “नहीं मालिक, आप ऐसे बोलकर मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। यह तो मेरा फर्ज था। आखिर आपका नमक खाया है।
मालिक, मैं भी पहले आपकी फैक्ट्री में काम करता था। पर आज जब सबको वापस काम मिलने वाला था, तो मैं देर से पहुंचा।”
मालिक, “कर भला तो हो भला। तुमने मेरे बच्चे को सही-सलामत मुझ तक पहुंचा दिया, इसका अहसान तो मैं नहीं चुका सकता, पर तुम्हें तुम्हारा काम लौटा सकता हूँ।”
मंगलू खुशी से उछल पड़ा और कहा।
मंगलू, “हे भगवान! किसी ने सच ही कहा है, किसी का भला करोगे तो आपका भी भला होगा।
मैंने बच्चे की मदद की। असल में तो मैं अपनी ही मदद कर रहा था।”
घर वापस लौटते हुए मंगलू ने रास्ते में पनीर और मिठाई खरीदी। घर लौटकर उसके हाथ में सामान की थैली देखकर उसकी पत्नी शीला उछल पड़ी और पूछा।
शीला, “अरे! यह क्या लेकर आए?”
मंगलू, “पनीर और मिठाई लाया हूँ, शीला। अब से हमारे दिन फिरने वाले हैं।
मालिक ने मुझे अच्छी तनख्वाह पर काम में रख लिया है। अब तुम्हें अच्छा खाना खाने के लिए तरसना नहीं पड़ेगा।”
शीला की आँखें नम हो गईं और उसने पूछा।
शीला, “लेकिन यह सब हुआ कैसे?”
मंगलू ने पूरा किस्सा सुनाया, तब शीला मुस्कुराते हुए कहती है, “कर भला, तो हो भला।”
दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!