बाढ़ का कहर | BADH KA KAHAR | Hindi Kahani | Moral Kahaniya | Gaon Ki Kahani | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बाढ़ का कहर ” यह एक Gaon Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Gaon Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


रात का समय था। बिरजू और हीरा किसी काम से नदियापुर गांव जा रहे थे।

बिरजू, “हीरा, अरे! चलते-चलते मेरे पैर जवाब दे चुके हैं। गर्मी भी लग रही है। चलो, एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर लेते हैं।”

हीया, “अरे! यहाँ रुकना सही नहीं है, ये जंगल है।”

बिरजू, “अरे! नदियापुर गांव जंगल के बीच ही बसा है। चल, थोड़ा सुस्ता लेते हैं, वैसे भी शाम तो हो ही गई है।”

बिरजू की बात सुनकर हीरा न चाहते हुए भी एक पेड़ के नीचे बैठ गया। अचानक, उन दोनों के कानों में एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई।

हीरा, “बिरजू भैया, तुमने कुछ सुना? यहाँ जंगल में कौन सा बच्चा रो रहा होगा?”

बिरजू, “आवाज़ तो मेरे भी कानों में आ रही है, चलो चलकर देखते हैं।”

बिरजू और हीरा आसपास नज़र दौड़ाने लगे। तभी उन दोनों की नज़र एक बच्चे पर पड़ी। वे दोनों उस बच्चे के करीब चले गए।

हीरा, “बिरजू भैया, यह बच्चा तो यहाँ अकेला है। यहाँ तो आस-पास कोई मौजूद नहीं।”

बिरजू उस बच्चे को गौर से देखने लगा। उसके चेहरे पर डर और भय के साये लहराने लगे।

बिरजू, “यहाँ से भाग, हीरा।”

हीरा, “अरे! क्या हुआ? अचानक तुम्हारा चेहरा फटे हुए पपीते जैसा कैसे हो गया?”

बिरजू, “हीरा, गौर से देख। यह बच्चा कोई इंसान का बच्चा नहीं, बल्कि कागज़ का बना मालूम पड़ता है।”

बिरजू के कहने पर हीरा उस बच्चे को ध्यान से देखने लगा।

हीरा, “बिल्कुल सही कह रहे हो, बिरजू भैया। यहाँ से भागो।”

वे दोनों डरते हुए वहाँ से भाग गए।

उसी नदियापुर गांव में झुमरी नाम की एक सुंदर स्त्री अपनी पाँच वर्षीय बेटी चमकी और पति बसंत के साथ रहती थी।

झुमरी का पति बहुत गरीब था। एक दिन झुमरी का पति, बसंत दोपहर के समय अपने घर पर उदास बैठा था।

झुमरी, “क्या हुआ जी? आप इतने उदास क्यों बैठे हैं?”

बसंत, “काफी दिनों से मुखिया जी से अपनी मजदूरी माँग रहा हूँ, लेकिन वह दिख ही नहीं रहे हैं।”

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झुमरी, “उनसे कहते क्यों नहीं कि हमारे घर में राशन भी खत्म होने को है? अगर आप वहाँ हमें समय पर पैसे नहीं दे सकते, तो फिर ऐसी जगह काम करने से क्या फायदा?”

मुखिया, “क्या बात है बसंत? तुम यहाँ कैसे?”

बसंत, “मुखिया जी, आपने मुझे छह महीने से मेरी मजदूरी नहीं दी। मेरे घर पर राशन खत्म होने को है।

मत भूलिए, मेरी पत्नी और मेरी बेटी मेरी जिम्मेदारी हैं।”

मुखिया, “तो मैं क्या करूँ? तूने अपनी बच्ची क्या मुझसे पूछकर पैदा की थी क्या?”

बसंत, “मुखिया जी, मैं तो बस अपने पैसे माँग रहा हूँ। मुझसे बत्तमीजी से बात मत कीजिए।”

आदमी, “तुमने नौकरों को ज्यादा सिर पर चढ़ा रखा है, मुखिया। अगर ये मेरा नौकर होता, तो मैं इसका लात-घूंसों से ऐसा स्वागत करता कि ये फिर कभी किसी से ज़ुबान लड़ाने के काबिल नहीं रहता।”

मुखिया, “तो फिर इस नेक काम में मैं फिर देरी क्यों करूं?”

इतना कहकर मुखिया बसंत को बुरी तरह पीटने लगा और धक्के देकर बाहर निकाल दिया।

मुखिया, “जा, नहीं देता तेरे पैसे। जिससे शिकायत करनी है कर ले, जो उखाड़ना है उखाड़ ले।”

बसंत रोते हुए घर आ गया और सारी घटना अपनी पत्नी झुमरी को बताने लगा।

झुमरी, “चिंता क्यों करते हैं जी? ईश्वर पर भरोसा रखें, सब कुछ सही हो जाएगा।”

बसंत, “तुम समझ नहीं रही, घर का राशन खत्म होने को है। आज तो मेरे पास चमकी के दूध के भी पैसे नहीं बचे। मैं क्या करूँ?”

झुमरी, “चिंता मत कीजिए, मैं अपने पड़ोस में रहने वाली अनीता से कुछ पैसे उधार माँग लेती हूँ।

आप बस ऐसे उदास मत बैठिए। और हाँ, कभी भी हिम्मत मत हारिएगा।”

झुमरी की बात सुनकर बसंत मुस्कुरा दिया। कुछ देर बाद झुमरी पड़ोस में अपनी दोस्त अनीता के घर गई।

अनीता, “आओ झुमरी, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी। अगर तुम नहीं आतीं, तो कुछ देर में मैं वैसे ही तुम्हारे घर आने वाली थी।”

झुमरी, “मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है।”

अनीता, “हां हां बोलो ना, क्या बात है?”

झुमरी, “मुझे कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा, लेकिन मुझे कुछ पैसों की जरूरत है।

वो क्या है ना, आजकल मेरे पति को कहीं काम नहीं मिल रहा। बोल रहे थे कि बाजार में काफी मंदी चल रही है।”

अनीता, “ये बात तो सही है। सभी जगह बुरा हाल है, झुमरी।”

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इतना कहकर अनीता ने कुछ पैसे झुमरी के हाथ में पकड़ा दिए।

झुमरी, “मैं तुम्हारे ये पैसे बहुत जल्दी चुका दूँगी।”

अनीता, “अरे! जब मर्ज़ी आए तब चुका देना, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा?”

झुमरी, “मैं कुछ समझी नहीं?”

अनीता, “देख झुमरी, आजकल का ज़माना बदल गया है। मुझे देख, मेरे पति भी काम करते हैं और मैं भी काम करती हूँ।

क्यों ना तुम भी अपने पति का हाथ बंटाना शुरू कर दो? कुछ पैसे घर आएँगे, तो अच्छा ही होगा।”

झुमरी, “तुम सही बोल रही हो, अनीता। मन तो मेरा भी बहुत करता है, लेकिन मुझे कोई काम भी तो नहीं आता।”

अनीता, “तुम उसकी चिंता मत करो, झुमरी। मैं कागज़ के बहुत अच्छे खिलौने बनाती हूँ।

तुम चाहो तो मैं तुम्हें सिखा सकती हूँ। जिस तरह से मैं बाजार में ठेला लगाकर कागज़ के खिलौने बेचती हूँ, उसी तरह तुम भी बेचना। एक से भले दो।”

झुमरी को अनीता का यह उपाय पसंद आया। उस दिन के बाद झुमरी, अनीता के साथ कागज़ के खिलौने बनाना सीखने लगी।

कुछ ही दिनों में झुमरी कागज़ के खिलौने बनाने में निपुण हो गई।

अनीता, “अरे वाह झुमरी! तुम तो मुझसे भी अच्छे कागज़ के खिलौने बनाने लगी। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा।”

झुमरी, “नहीं अनीता, तुमसे अच्छी तो मैं कभी नहीं बना सकती। आखिर तुम मेरी गुरु ठहरी।”

अनीता, “ठीक है झुमरी, तुम पहले इम्तिहान में तो पास हो गई। बल्कि यूँ कहो फर्स्ट डिवीज़न से पास हुई हो। अब तुम्हारी दूसरी और आखिरी परीक्षा होनी है।”

झुमरी, “अब मुझे कौन-सी परीक्षा पास करनी है?”

अनीता, “कल तुम मेरे साथ बाज़ार में खिलौने बनाकर बेचोगी। देखते हैं, किसके खिलौने ज्यादा बिकते हैं?”

अगले दिन झुमरी अनीता के साथ दूसरा ठेला लगाकर कागज़ के खिलौने बेचने के लिए खड़ी हो गई। कुछ ही देर में झुमरी के सारे खिलौने बिक गए।

अनीता, “अरे वाह झुमरी! मेरे ठेले में तो कुछ थोड़े खिलौने बचे हैं, लेकिन तुम्हारे तो सारे खिलौने बिक गए।”

झुमरी, “कहीं तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?”

अनीता, “अरे! इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है? ईश्वर हर किसी को अपना-अपना नसीब देता है।”

उस दिन के बाद अनीता और झुमरी रोज़ सुबह बाज़ार में कागज़ के खिलौने बेचने जातीं।

शाम तक झुमरी के सारे खिलौने बिक जाते। झुमरी के दिन अब बदलने लगे थे।

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एक दिन बसंत झुमरी से बोला, “मैंने ज़रूर पिछले जन्म में कुछ अच्छे पुण्य किए होंगे झुमरी, जो मुझे इस जन्म में तुम्हारी जैसी पत्नी मिली।”

झुमरी, “ऐसी बातें क्यों करते हैं जी? अगर हर दुख में पति पत्नी का साथ देता है, तो क्या पत्नी उसके दुख में उसका साथ नहीं दे सकती?”

बसंत, “मैं तुम्हें यह बताने के लिए आया हूँ कि मुझे चौधरी के खेतों में काम मिल गया है।”

झुमरी, “ये तो बहुत अच्छी बात है जी! अब हमारी कमाई दुगनी हो जाएगी। अब हम अपनी बिटिया रानी को अच्छे स्कूल में एडमिशन दिलवा सकेंगे।”

झुमरी की बात सुनकर बसंत मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया।

एक दिन की बात है। झुमरी और अनीता बाज़ार में ठेला लगाकर कागज़ के खिलौने बेच रही थीं कि तभी मुखिया कुछ लोगों के साथ वहाँ आ गया।

मुखिया, “कैसी हो झुमरी? देख रहा हूँ, तुम्हारे खिलौने आजकल बहुत ज्यादा बिक रहे हैं।

और तो और, तुम्हारे वस्त्र भी बता रहे हैं कि तुम्हारी आमदनी अच्छी हो रही है।”

झुमरी, “सब ईश्वर की कृपा है, मुखिया जी। यहाँ कैसे आना हुआ?”

मुखिया, “बात ये है झुमरी कि हमारा गाँव दो नदियों के बीच में है। वर्षा प्रारंभ होने वाली है

और मुझे सूचना मिली है कि इस बार हमारा गाँव भयंकर बाढ़ की चपेट में आ सकता है।”

झुमरी, “इस तरह से तो गांव वालों का जीवन यापन बर्बाद हो जाएगा।”

मुखिया, “इसीलिए मैं चंदा इकट्ठा कर रहा हूँ। झुमरी, तुमसे भी मैं चंदा लेने आया हूँ।”

झुमरी ने उस दिन की सारी कमाई मुखिया के गुल्लक में डाल दी और साथ ही उसकी दोस्त अनीता ने भी।

मुखिया, “झुमरी, मैं सारे गाँव वालों से चंदा लेकर उनके लिए शहर से अच्छे कंबल और बहुत-सी खाने-पीने की वस्तुएँ लेकर आऊँगा।”

झुमरी, “मुझे तुम पर विश्वास नहीं है, मुखिया जी। वैसे भी तुम मेरे पति की छह महीने की तनख्वाह रोके बैठे हो।

देखते हैं, गाँव वालों की कितनी मदद करते हो?”

मुखिया, “अरे! तुम अभी तक अपने पति की मार को दिल पे लगाए बैठी हो? मगर वह मुझे आकर बत्तमीजी से बात कर रहा था।”

इतना कहकर मुखिया वहाँ से चला गया। दिन ऐसे ही बीतने लगे, मगर झुमरी ने देखा कि मुखिया शहर से कुछ भी लेकर नहीं आया।

एक दिन की बात है। मुखिया अपने मुनीम प्रेमचंद से बातें कर रहा था। झुमरी अपने पति बसंत के साथ काम से जा रही थी। मुखिया को देखकर झुमरी बोली,

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झुमरी, “मुखिया जी, एक महीने पहले आप सारे गाँव वालों से चंदा लेकर गए थे यह बोलकर कि हमारा गाँव भयंकर बाढ़ की चपेट में आने वाला है।

वर्षा प्रारंभ होने वाली है, मगर मुझे तो अभी तक कोई इंतज़ाम नहीं दिखता।”

झुमरी की बात सुनकर मुखिया बुरी तरह तिलमिलाकर रह गया।

मुखिया, “तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे कि तुमने दस-बीस लाख रुपया चंदे में दिया हो।

अरे! डेढ़ सौ रुपये चंदे में डालकर अपने आपको क्या समझ रही हो?”

बसंत, “मुखिया जी, आपको इस तरह से मेरी पत्नी का अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है।”

मुखिया, “मुंह बंद रख बसंत, पिछली बार की मार भूल गया क्या? गाँव में तेरी पत्नी के अलावा ना जाने कितने लोगों ने मुझे चंदा दिया है?

उन्होंने तो मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा। यहाँ से चला जा वरना तेरा फिर से मार-मारकर बुरा हाल कर दूँगा।”

बसंत अपनी पत्नी के साथ वहाँ से चला गया।

मुनीम, “देख रहे हो मुनीम जी? इस बसंत की पत्नी के कागज़ के खिलौने बाज़ार में क्या बिकने लगे, यह तो अपने आपको आपसे भी बड़ा समझने लगा।”

मुखिया, “सही कहा आपने। जब तक आप इन दोनों पति-पत्नी को गाँव से धक्के देकर बाहर नहीं निकालवा देता, मैं चैन की नींद नहीं सो सकता।”

मुनीम, “वैसे, क्या वास्तव में हमारे गाँव में बाढ़ आने वाली है?”

मुखिया, “अरे! कोई बाढ़-वाढ़ नहीं आने वाली है। ये न्यूज़ वाले तो वैसे भी हर साल यही खबर चला देते हैं कि बाढ़ आने वाली है, गाँव डूबने वाला है

और मैं इसी खबर का फायदा उठाकर गाँव से अच्छा-खासा चंदा वसूल लेता हूँ। हर साल की तरह इस बार भी कुछ नहीं होगा।”

उस दिन के बाद मुखिया ने झुमरी और उसके पति बसंत के खिलाफ़ गाँव में कान भरने शुरू कर दिए।

गाँव वाले मुखिया की बातों में आकर झुमरी और बसंत को अपना दुश्मन समझने लगे।

झुमरी से उन सब ने झुमरी के कागज़ के खिलौने खरीदने बंद कर दिए।

थक-हारकर बसंत और झुमरी अपने घर पर ताला लगाकर दूसरे गाँव की ओर चल दिए।

झुमरी एक जंगल मैं बैठकर आँसू बहाती हुई बोली, “ये सब मेरे सच बोलने का नतीजा है।”

बसंत, “दिल छोटा मत करो, झुमरी। तुमने तो सच बोला है और सच बोलने वालों की कभी हार नहीं होती।”

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झुमरी, “वो सब तो ठीक है जी, लेकिन अब क्या होगा? हमारे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं और बोतल में सिर्फ चमकी का आधा गिलास दूध बचा है।”

झुमरी ने इतना कहा ही था कि तभी एक बच्चे के रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। उसने देखा कि एक पेड़ के नीचे सुंदर सा बच्चा रो रहा है।

झुमरी, “ये किसका बच्चा है?”

बसंत, “पता नहीं, लेकिन मुझे तो ये बहुत भूखा लगता है।”

झुमरी, “मेरे पास भी आधा बोतल दूध है। अगर मैं इसे पिला दूँगी, तो हमारी चमकी भूखी रह जाएगी।”

बसंत, “चिंता मत करो, झुमरी। यह बच्चा कई दिनों से भूखा मालूम पड़ता है। पहले इसे दूध पिला दो।”

झुमरी उस बच्चे को दूध पिलाने लगी। बच्चे ने दूध पिया ही था कि अचानक रंग-बिरंगी किरणों के साथ उसका आकार बड़ा होने लगा और वह एक सुंदर नवयुवक में परिवर्तित हो गया।

झुमरी, “कौन हो तुम?”

नवयुवक, “मैं एक जादुई कागज़ी पुरुष हूँ। मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है। तुम्हारे पास सिर्फ आधी दूध की बोतल थी

और तुमने अपने बच्चे को न पिलाकर वह मुझे पिला दी। मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अब से जो भी कागज़ के खिलौने बनाओगी, उनमें जादुई शक्तियाँ आ जाएँगी

और मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताने वाला हूँ—तुम्हारा गाँव भयंकर बाढ़ की चपेट में आने वाला है। कल तुम्हारे गांव में तबाही ही तबाही मच जाएगी।”

इतना कहकर वह सुंदर पुरुष वहाँ से गायब हो गया।

झुमरी, “हम नहीं जा सकते, हमारा गाँव मुसीबत में है।”

बसंत, “तुम सही कहती हो झुमरी, हमें गाँव वालों की मदद करनी चाहिए।

और वैसे भी मुखिया ने हमारे खिलाफ़ गाँव वालों के कान भरे हैं, वरना गाँव वाले बुरे नहीं हैं।”

झुमरी और बसंत दोबारा अपने गाँव वापस आ गए। झुमरी ने अगले दिन की तैयारी शुरू कर दी।

उसने एक बहुत सुंदर कागज़ की नाव बनाई और उसमें अलग-अलग तरह के सुंदर-सुंदर घर बनाए।

देखते ही देखते उसके कागज़ की सुन्दर बड़ी नाव बहुत बड़ी हो गई और एक विशाल नाव में परिवर्तित हो गई। झुमरी अपने परिवार को लेकर उस नाव में चली गई।

बसंत, अरे झुमरी! यह तो लगी नहीं रही कि ये कागज़ की है। इसकी दीवारें तो पत्थर से भी मज़बूत मालूम पड़ रही हैं।”

झुमरी, “उसने सही कहा था, इसके अंदर अद्भुत जादुई शक्ति आ गई हैं।”

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अगले दिन भयंकर बारिश शुरू हो गई। देखते ही देखते पूरे गाँव को बाढ़ ने अपनी चपेट में ले लिया।

गाँव में हाहाकार मच गया और झुमरी नाव बाढ़ में तैराने लगी।

झुमरी ने देखा कि उसकी दोस्त अनीता पानी में डूब रही थी। झुमरी ने तुरंत नाव को वहाँ जाने का आदेश दिया।

झुमरी, “अनीता, कागज़ की नाव के ऊपर आ जाओ।”

अनीता, “ये कैसा चमत्कार है?”

झुमरी, “वो सब बातें बाद में करेंगे, पहले अपने परिवार को लेकर ऊपर आ जाओ। तुम्हारा परिवार सुरक्षित रहेगा।”

अनीता अपने परिवार को लेकर नाव पर चढ़ गई। उसने गाँव के सभी लोगों को झुमरी की नाव पर चढ़ा लिया, सिवाय मुखिया के घर को छोड़कर।

मुखिया दौड़ता हुआ आया और बोला, “मुझे भी नाव में ले लो, झुमरी। मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”

बसंत, “मेरा दिल तुम्हारी तरह नहीं है, मुखिया जी। आओ, अपने परिवार को लेकर नाव पर चढ़ जाओ।”

मुखिया अपने परिवार को लेकर नाव पर चढ़ गया और झुमरी की ओर देखकर बोला, “मुझे माफ़ कर दो।

मैंने तुम्हारे साथ कितना बुरा सुलूक किया? और उसके बाद भी तुमने मेरी कितनी मदद की?”

झुमरी, “मुखिया जी, हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए। पता नहीं कौन कब किसके काम आ जाए?”

तभी अनीता झुमरी से बोली, “झुमरी, बाढ़ बहुत ज्यादा भयंकर है। हमारे गाँव के अलावा और भी गाँव इसकी चपेट में आ गए होंगे। हमें उनकी भी मदद करनी चाहिए।”

झुमरी को अनीता की बात पसंद आ गई। झुमरी अपनी जादुई नाव को लेकर दूसरे गाँवों में गई और लोगों की मदद करने लगी।

कुछ दिनों बाद जब बाढ़ का पानी उतर गया, तब झुमरी ने अपनी कागज़ की नाव में कागज़ के भोजन बनाने शुरू कर दिए।

झुमरी जैसे ही कागज़ के भोजन बनाती, वो असली भोजन में बदल जाते।

बसंत, “अरे वाह झुमरी! ये कैसे संभव हुआ? कागज़ के भोजन असली भोजन कैसे बदल जा रहे हैं?”

झुमरी, “तुम्हें याद नहीं, उस जादुई सुंदर पुरुष ने हमसे क्या कहा था? तुम कोई भी कागज़ का खिलौना बनाओगी, उसमें जादुई शक्तियाँ आ जाएँगी।

मुझे विश्वास था कि अगर मैं कागज़ के भोजन बनाना शुरू करूँगी, तो वे असली भोजन बन जाएँगे।”

अनीता, “ये ईश्वर ने हमारी मदद की है, झुमरी। देखो ना, इस तरह से कितने लोग भूखे मरने से बच जाएँगे?”

इस तरह गाँव में सभी लोग भूखे मरने से बच गए। कुछ महीनों बाद सब कुछ फिर से ठीक हो गया।


दोस्तो ये Gaon Ki Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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