हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चायवाला की सफलता ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
ललिता, “सुबह-सुबह कहाँ चल दिए साइकिल उठाकर? रात भर खांसी के कारण सोए नहीं हो और सुबह होते ही चल दिए बहादुरी दिखाने।”
रमेश, “अरे ललिता! तुम समझती नहीं। पिछले चार दिनों से बेड पर लेटा हूँ।
दो महीने बाद ही मधु की शादी है, पैसे का कोई अतापता नहीं। ऊपर से जो थे, वो मेरे इलाज में चले गए।”
ललिता, “सब कुछ चला जाएगा तो फिर आ जाएगा, लेकिन तुम चले गए तो पूरा परिवार खत्म हो जाएगा।”
राजू, “अरे! क्या पिताजी..? एक तो रात भर खांस-खांस कर सोने नहीं दिया और अब 5 बजे से आप लोगों का ड्रामा स्टार्ट हो गया।
अरे! जब डॉक्टर ने आराम करने को कहा तो फिर सवेरे-सवेरे क्यों कसरत दिखाने पर उतारू हैं?”
रमेश, “यही ज़िन्दगी है। तुम्हें अभी समझ नहीं आएगा, बेटा।
जिसका जवान बेटा घर में बैठा हो, जवान बेटी की शादी का पैसा जुटाना हो, वो भला कैसे आराम फरमा सकता है?”
राजू, “अरे! लेकिन डॉक्टर ने आपको धुएं से दूर रहने की सलाह दी है और चाय की दुकान बिना धुएं के तो हो ही नहीं सकती।”
ललिता, “जब तुम्हें इतनी फिकर है बाबूजी की, तो फिर तू ही क्यों नहीं दुकान पर चला जाता?”
राजू, “ऐ माँ! तुझे पता है ना, मुझे चाय बेचना बिलकुल पसंद नहीं है, समझी?
लेकिन अगर तू कहती है तो… पिताजी के ठीक होने तक मैं चाय की दुकान पर चला जाऊंगा।”
राजू रमेश की चाय की दुकान पर जाकर चाय बेचने लगता है। लेकिन राजू हमेशा सोचता कि किस तरह से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाए
ताकि उन लोगों की दरिद्रता दूर हो सके? तभी राजू का दोस्त गट्टू वहाँ आकर बैठ जाता है।
गट्टू, “और भाई, कैसा है तू? आज चाचा नहीं आये दुकान पे?”
राजू, “अरे यार! वो पिताजी की तबीयत ज़रा खराब चल रही है, तो मैंने सोचा आज मैं ही दुकान पर हूँ।”
गट्टू, “अच्छा भाई, बहुत बढ़िया। आज फ्री में एक कप चाय तो मिलेगी ना भैया?”
राजू, “अबे भिकमंगे, कभी तो जेब में ₹5 रख लिया कर तू। हमेशा रोता ही रहता है।”
गट्टू, “अबे! भाषण मत दे अब। तुझे पता नहीं, मैंने गुड्डू बाबा को हाथ दिखाया था?
जल्दी ही मेरी लॉटरी लगने वाली है, लाखों की। तब तेरा सारा उधारी चुकता कर दूंगा, भाई।”
राजू, “ले ले कमीने, पी ले चाय और तेरी लॉटरी पिछले 5 साल से लगी हुई है।”
गट्टू, “अरे भाई! हो तो तेरे जैसा हो यार।”
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राजू, “लेकिन यार, लॉटरी की जरूरत तो मुझे सच में है यार। घर के हालात कुछ अच्छे नहीं हैं, ऊपर से बहन की शादी…।”
गट्टू, “अबे भाई! चिंता मत कर। सब काम अच्छे से हो जाएंगे। चिंता मत कर।”
इधर मधु के ससुराल वाले लगातार पैसों के लिए दबाव डाल रहे थे।
जगन, “देखो समधी जी, मेरा बेटा सुरेश और मधु की शादी ₹5 लाख में तय हुई थी।
सारे पैसे शादी के एक महीने पहले तक तुम्हें देने थे, लेकिन अभी तक तुमने सिर्फ ₹1 लाख ही दिए हैं भाई।”
रमेश, “देखिए समधी जी, ₹2 लाख शादी के लिए रखे थे। सोचा था, ₹2 लाख किसी से कर्ज लेकर मधु की शादी कर दूंगा।
लेकिन रखे हुए पैसे भी मेरे इलाज में खर्च हो गए। आपका बड़ा सा ढाबा है, मुझे 1 साल की मोहलत दे दीजिए। मैं… मैं आपकी पाई-पाई चुका दूंगा।”
जगन, “देखो भाई, कान खोल कर सुन लो समधी जी, मैं बिना पूरा पैसा लिए बेटे की शादी नहीं करने वाला।
1 साल तक मेरा बेटा कुआंरा नहीं रह सकता। एक सप्ताह में पूरे ₹4 लाख पहुंचा दो, नहीं तो ये शादी कैंसिल समझो भाई।”
जगन के जाने के बाद रमेश की तबीयत और बिगड़ जाती है। ललिता गांव के दबंग होशियार सिंह की पत्नी प्यारी से जाकर मिलती है।
प्यारी, “अरे ललिता दीदी! आज इधर का रास्ता कैसे भटक गई?”
ललिता, “वो मैं तुम्हारे पास ही आ रही थी, बहन। तो मधु की शादी के लिए ₹4 लाख की जरूरत थी।
भाई साहब को बोलकर दिलवा देती, तो मदद हो जाती हमारी।”
प्यारी, “ठीक है बहन, मैं उन्हें बोलती हूँ।”
प्यारी, होशियार सिंह को बोलकर ऊंचे सूद पर रुपए दिलवा देती है। ललिता घर पहुँचकर वो पैसा रमेश को दे देती है।
ललिता, “ये लीजिए₹4 लाख और जगन भाई साहब को जाकर दे दीजिए। शादी की डेट भी फाइनल करके ही आइएगा।”
रमेश जाकर जगन को पैसे दे आता है। अगले महीने के पहले सप्ताह में ही शादी तय हो जाती है।
इधर राजू को चाय की दुकान पर एक चोर बिरजू मिलता है। बिरजू एक नई बाइक पर सवार होकर राजू की दुकान के आगे रुकता है और बेंच पर बैठते हुए बोलता है,
बिरजू, “अरे राजू! अरे क्या बात है भाई? आजकल दुकान पे? ऐं भैया, बहुत बढ़िया।”
राजू, “और बिडजू भैया, कैसे हो? अरे! नई बाइक बहुत खूब।”
बिरजू, “अरे! यह तो बस ऐसे ही चलते-फिरते घरेली, भैया। इससे बढ़िया-बढ़िया मोटरसाइकिल गोडाउन में लगी है।”
बिरजू, “ए राजू! थोड़ा कड़क चाय बनाना।”
राजू, “भाई, एक बात पूछूं? तुम हर एक हफ्ते के बाद बाइक चेंज कर देते हो। आखिर इतने पैसे आते कहाँ से हैं?”
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बिरजू, “अबे कुछ नहीं भाई, बस नाइट शिफ्ट में काम करता हूँ। और बाकी तो तुम जानते ही हो… हुनर की कोई कमी थोड़े ही है बिरजू में।”
राजू, “भाई, मुझे भी अपने साथ रख लो। हमें पैसों की सख्त जरूरत है, भैया।”
बिरजू, “देख भाई, इस काम में रिस्क बहुत है। जेल भी जा सकता है, हां।”
राजू, “भाई, रिस्क से नहीं डरता। लेकिन पैसे मिलने चाहिए, बस।”
बिरजू, “हाँ तो ठीक है, तो आज रात मेरे साथ चल लियो। मेरे पास एक तगड़ा प्लान है।”
रात में बिरजू, राजू को लेकर सेठ करोड़ीमल के यहाँ चोरी करने पहुँचता है।
बिरजू, “राजू, तू वॉचमैन पर नजर रखियो, ठीक है? मैं दीवार फांदकर अंदर जा रहा हूँ।”
राजू, “अरे! नजर क्या रखना? वो तो सो रहा है। बाकी तुम बेफिक्र होकर हाथ साफ करो, मैं हूँ यहाँ पर।”
बिरजू, “ए! धीरे बोलो, धीरे। हमारे प्रोफेशन में बातों से कम, इशारों से ज्यादा काम किया जाता है, समझा? कोई बेवकूफी मत करना, समझे?”
राजू, “ओके भाई, ओके। आप जाओ, मैं देख लूँगा सब जाओ।”
बिरजू दीवार पर चढ़ जाता है, तभी राजू देखता है कि सेठ का कुत्ता बिरजू के पीछे से हमला करने वाला है।
राजू, “शश…शश…हट्ट।”
बिरजू, “अबे! पीछे मेरा पेंट नहीं फटा है। वो सूखे पत्ते पे चढ़ गया था, उसी की आवाज़ है।”
राजू, “शश…शश।”
बिरजू, “अबे गूंगे! कुछ बोलेगा भी या, श्श्श्श… हुशहुश ही करता रहेगा, हैं?”
तब तक सेठ का कुत्ता जोर से बिरजू का पिछवाड़ा नोंच लेता है। जैसे-तैसे दीवार से कूदकर बिरजू अपनी जान बचाकर भागता है।
बिरजू, “अरे मार डाला रे! अरे मेरा पिछवाड़ा बुलडॉग ने लहरा दिया भैया।
आह! अबे तुम्हें नज़र रखने को कहा था।अरे! तू कर क्या रहा वहाँ पर ऐ? कमबख्त ने सारे दांत गड़ा दिए।”
राजू, “भाई, मैं वही तो इशारे से बता रहा था कि पीछे देखो… पीछे।”
बिरजू, “अबे तुम्हारे मुँह में दही जमी थी क्या? बोल नहीं सकता था क्या?”
राजू, “बोलता कैसे? तुमने ही तो कहा था कि हमारे प्रोफेशन में बात कम, इशारों से ज़्यादा काम किए जाते हैं।”
बिरजू, “अबे! जब जान पे बनी हो, तो इमरजेंसी में रूल नहीं देखा जाता बे।”
राजू, “वैसे, जिस तरह से दीवाल से कूदे… मानना पड़ेगा, तुम भी कुत्ते से कम नहीं।”
बिरजू, “अबे! चलो अभी यहाँ से, कल देखेंगे। और वैसे तुम मेरी तारीफ कर रहे हो या मुझे कुत्ता कह रहे हो बे?”
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दूसरे दिन बिरजू और राजू सेठ करोड़ीमल के यहाँ रात में फिर से धावा बोलते हैं। इस बार राजू कुत्ते के लिए हड्डी लाता है, जिसे वो कैंपस में फेंक देता है।
कुत्ता हड्डी चबाने लगता है। इधर दोनों सेठ के घर में घुसकर चोरी करने लगते हैं।
तिजोरी साफ़ करने के बाद जैसे ही दोनों बाहर निकलने लगते हैं, कुत्ता एक बार फिर से बिरजू की तरफ लपकता है, जिसे राजू देख लेता है।
राजू एक पत्थर उठाकर ज़ोर से कुत्ते की तरफ फेंकता है। पत्थर सीधा जाकर बिरजू के पिछवाड़े में लगता है।
बिरजू, “अबे मार डाला रे!”
राजू, “सॉरी यार! मैं तो तेरे पीछे पड़े कुत्ते को मार रहा था।”
बिरजू, “अबे गधे! जब वो कुत्ता बना है, वो भौंक सकता है — काटेगा कैसे बे? अबे मैं तो उससे दूर था।
और वहीं पे पत्थर मारने की क्या ज़रूरत थी, जहां पे कुत्ते ने काटा था बे?”
उन दोनों की आवाज़ सुनकर सेठ जाग जाता है। भागते हुए राजू को सेठ पहचान लेता है और पुलिस को खबर कर देता है।
इधर जगन शगुन लेकर रमेश के यहाँ पहुँचता है।
जगन, “रमेश भाई, ये लो, बहू के लिए कुछ कपड़े और मिठाइयाँ हैं। अगले महीने की 6 तारीख का दिन निकला है।”
रमेश, “राजू बेटा, जा… सामान सब अंदर रख दे।”
तभी वहाँ राजू और बिरजू को खोजते हुए पुलिस आ जाती है।
पुलिस, “हाँ जी, रमेश चाय वाले का घर यही है के?”
रमेश, “हाँ, हम ही हैं। बताइए, कैसे आना हुआ?”
पुलिस, “अजी, आपका ही लड़का ना, राजू? कहाँ है वो?”
रमेश, “बेटा राजू, ज़रा बाहर तो आना।”
राजू पुलिस को देखकर सकपका जाता है। पुलिस उसे पकड़ कर हथकड़ी लगा देती है।
रमेश, “अब ये… ये सब क्या है?”
पुलिस, “अरे! कल रात ये सेठ करोड़ी मल के यहाँ चोरी कर रहा था।”
पुलिस राजू को ले जाती है।
जगन, “मैं अपने बेटे की शादी किसी चोर-लुचक्के के यहाँ नहीं कर सकता! कल तुम्हारा पैसा मिल जाएगा। अब मैं चलता हूँ।”
रमेश, “पर इसमें बेचारी मधु की क्या गलती है? जगन भाई, मैं… मैं अपनी पगड़ी तुम्हारे पैर पर रखता हूँ।
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यह शादी मत तोड़ो। लड़की की शादी टूटने पर समाज में बहुत बदनामी होगी।”
जगन, “बदनामी होगी नहीं, बदनामी हो चुकी है, भैया। हो सकता है ये ₹5 लाख जो तुमने मुझे दिए हैं,
वो भी चोरी के हों। मैं किसी भी हालत में अब ये शादी तुम्हारे यहाँ नहीं कर सकता, समझे?”
मधु की शादी टूट जाती है। इधर राजू को तीन महीने की सजा हो जाती है।
जेल में राजू सभी को अपने हाथों की बनी चाय पिलाता है।
कैदी, “श्श्श्श्श… भई वाह! क्या चाय बनाई है। ऐसी चाय बरसों के बाद पी है।”
दूसरा कैदी, “रे राजू! अरे तुम इतनी अच्छी चाय बना लेते हो, फिर इस चोर-लफंगे के फेरे में कैसे पड़ गए रे?”
राजू, “ज़्यादा पैसे के लालच में मैं बिरजू के साथ हो लिया। मेरी बहन की शादी भी मेरे कारण टूट गई।”
कैदी, “रे! कोई बात नहीं, कोई बात नहीं। जब जागो तभी सवेरा, समझ लिया। कोई भी काम छोटा नहीं होता।
बस उसे पूरी ईमानदारी के साथ किया जाए ना, तो वो तुम्हें मंज़िल पर पहुंचा ही देता है।”
₹3 लाख राजू को जेल से छुड़ाने में लग जाते हैं। ऊपर से होशियार सिंह, सूद समेत ₹6 लाख रमेश से मांगता है। रमेश का घर तक बिक जाता है।
जेल से आने के बाद राजू चाय की दुकान को “मसाला चाय” के नाम से फिर से खोलता है।
पुलिस, “शाबाश राजू! बहुत अच्छे। अरे! इनसे मिलो, ये है मेरा भतीजा, प्रकाश।
इसी गांव में टीचर बन के आया है। सोचा तुमसे मिला दूँ।”
राजू, “आइए सर, ये लीजिए मसाले वाली चाय पीजिए।”
प्रकाश, “बहुत अच्छा! इतनी ज़ायकेदार चाय तो शहरों के बड़े-बड़े रेस्टोरेंट और कॉफ़ी हाउस में भी नहीं मिलती है। आप शहर में क्यों नहीं ट्राई करते?”
राजू, “शहर में खोलने के लिए पूंजी चाहिए, जो मेरे पास अभी नहीं है सर।”
प्रकाश, “वैसे मेरे शहर वाले मकान में आगे वाले कमरे में आप चाय की दुकान खोल सकते हैं।”
पुलिस, “और हाँ भाई, जो भी घटेगा-बढ़ेगा, मुझसे पैसे ले लियो। कमाई होने पर वापस दे देना।”
रमेश से बात कर राजू शहर में मसाले वाली चाय की दुकान खोल देता है।
शहर में दुकान का पहला दिन,
ग्राहक, “अरे भाई, जल्दी से गरमा-गरम चाय लगा दो। साथ में एक फैन भी दे दियो, भाई।”
राजू, “ये लीजिए, गरमा-गरम मसाला चाय और ये रहा आपका फैन, भाई।”
ग्राहक, “भाई मेरे, क्या बवाल चाय बनाई है, भैया। “
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राजू, “अरे भैया! कोई गलती हो गई क्या? मीठा डालना तो नहीं भूल गया?”
ग्राहक, “अरे नहीं रे भाई! सब कुछ एकदम रापचिक है… एकदम कड़क। ऐसी चाय नहीं बनाता यहाँ कोई, हां।”
राजू, “धन्यवाद भाई! आज से आप यहीं चाय पीजिएगा।”
उसके बाद तो जैसे वहाँ चाय पीने वालों की होड़ सी लग गई। राजू की चाय की बिक्री बहुत अच्छे से होने लगती है।
टेस्टी चाय होने की वजह से जल्दी ही पूरे शहर में वो चाय की दुकान फेमस हो जाती है। राजू फिर से अपना मकान खरीद लेता है।
एक दिन धाकड़ सिंह राजू की चाय की दुकान पर आता है।
धाकड़ सिंह, “अरे भई वाह राजू! अरे तुम्हारी दुकान तो शहर की सबसे बड़ी दुकान हो ली। दुकान नहीं, ये तो रेस्टोरेंट है।”
राजू, “आइए सर, ये सब आपकी और प्रकाश सर की कृपा से ही हुआ है।”
धाकड़ सिंह, “अरे भाई! ये कैश काउंटर पर बैठी सुंदर लड़की कौन है?”
राजू, “वो… वो मेरी बहन मधु है। एक अच्छा सा लड़का मिल जाए, तो इसकी शादी करवा दूँ।”
धाकड़ सिंह, “अच्छा..? तो इसी की शादी टूट ली थी? वैसे एक बात बोलूं?
मेरा भतीजा प्रकाश इसके लिए कैसा रहेगा? मेरे भाई साहब तो हैं नहीं, हमें उसकी शादी करनी है।”
राजू, “प्रकाश सर जैसा लड़का किसे पसंद नहीं होगा, सर? संयोग से पिताजी भी यहीं हैं, मैं अभी बुलाता हूँ।”
राजू, “पिताजी, एक मिनट के लिए यहाँ आइएगा ज़रा।”
रमेश, “हाँ बेटा, बोलो क्या बात है?”
राजू, “ये हैं प्रकाश सर के चाचा, धाकड़ सिंह।”
रमेश, “अरे! प्रकाश सर को गांव में कौन नहीं जानता? बहुत ही नेक इंसान हैं।
और धाकड़ सिंह जी को तो मैं कैसे भूल सकता हूँ? तुम्हारी रिहाई में इन्होंने हमारी बहुत मदद की थी, बेटा।”
धाकड़ सिंह, “हां तो रमेश जी, क्या हम इस जान-पहचान को रिश्तेदारी में बदल सकते हैं?
मैं अपने प्रकाश का विवाह आपकी बेटी मधु से करना चाहता हूँ।”
रमेश, “इतनी बड़ी सौगात मेरे लिए कुछ और हो ही नहीं सकती। प्रकाश जैसा दामाद मिलेगा, ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।”
मधु और प्रकाश की शादी धूमधाम से हो जाती है। अब गांव में ही नहीं, बल्कि शहर के सबसे खुशहाल परिवार में रमेश के परिवार की गिनती होती है।
‘मसाला चायवाला’ एक ब्रांड के रूप में पूरे देश में उभरता है।
दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!