हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई टोकरी ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Jadui Stories, Hindi Jadui Kahani या Magic Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
माँ, “बेटा माधव, मेरी नौकरी चली गई है। लाला सेठ अब गांव छोड़कर शहर जा रहे हैं, तो इसलिए मेरा काम छूट गया है।
तू अब कोई काम-धंधा कर ले, क्योंकि मैं तो बहुत थक गई हूँ और अब मुझसे नौकरी भी नहीं होती।”
माधव, “मां, मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी शहर चला जाता हूँ और वहाँ जाकर कोई काम-धंधा कर लेता हूँ।”
माँ, “नहीं, तू कहीं नहीं जाएगा। वैसे भी तेरे पिताजी तो अब रहे नहीं, मैं यहाँ किसके साथ रहूंगी?”
माधव, “माँ, हम दोनों शहर चलते हैं। मैं वहाँ जाकर कोई काम-धंधा ढूंढ लूँगा।”
माँ, “नहीं, ये घर तेरे पिताजी की आखिरी निशानी है। मैं मरते दम तक इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।
तू यहीं, इसी गांव में कोई काम-धंधा देख ले।”
माधव, “माँ, मुझे सिर्फ समोसे बनाने ही आते हैं। उसके अलावा मुझे कोई और काम नहीं आता है।
जैसे पिताजी समोसे बनाते थे, मुझे भी बस वही बनाने आते हैं।”
माँ, “ठीक है बेटा, तू भी बाजार में समोसे का ठेला लगा ले, इससे घर का गुज़ारा हो जाएगा।”
माधव, “ठीक है, माँ, मैं फिर जाकर वही करता हूँ।”
माधव जल्दी-जल्दी समोसे का ठेला लगाने की तैयारी करता है और बहुत सारे समोसे बनाता है।
माँ, “अरे वाह बेटा! वाह, वाह बेटा! खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है। तू बिल्कुल अपने पिताजी की तरह समोसे बनाता है।”
माधव, “हाँ माँ, मैंने समोसे बनाना पिताजी से सीखा है। देखना माँ, मैं जल्दी-जल्दी बहुत सारे समोसे बेचकर घर की सारी परेशानियां खत्म कर दूंगा।”
माँ, “हाँ बेटा, देख लियो, अब सब ठीक हो जाएगा।”
माधव के ठेले पर बहुत सारे ग्राहक खड़े होते हैं, लेकिन नंदू हलवाई की दुकान पर सिर्फ मक्खियाँ ही भिनभिना रही होती हैं।
ग्राहक, “अरे माधव भाई! ज़रा एक समोसा तो और देना क्योंकि एक समोसा खाने पर तो मेरा मन ही नहीं भर रहा है।”
माधव, “देता हूँ देता हूँ, आराम से बैठकर खाइए। बहुत गर्म-गर्म समोसे हैं, कहीं भैया आपका मुँह न जल जाए?”
ग्राहक, “ठीक है भैया, आप दे दो, हम आराम से बैठकर खाएंगे।”
एक-एक करके माधव के ठेले से सारे समोसे बिक जाते हैं। सभी ग्राहक स्वाद लेकर समोसे खाते हैं।
ग्राहक, “ये समोसे जो नहीं खाएगा, वो बहुत पछताएगा! क्यों, सही कहा ना मैंने, कुमती चाची?”
कुमती चाची, “हाँ बेटा, तू सही कह रहा है। मैंने पहले भी इसकी बगल वाली दुकान से समोसे खाए हैं,
लेकिन इस पूरे गांव में ऐसी कोई दुकान या ठेला नहीं है, जहाँ इतने अच्छे समोसे मिलते हों। ये समोसे बहुत लाजवाब हैं।”
ग्राहक, “हाँ चाची, यहाँ के समोसे जो कोई भी खाएगा, वह बार-बार मांगेगा।”
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माधव जल्दी से सारे समोसे बेचकर अपने घर चला जाता है।
माधव, “माँ, आपको पता है कि एक समोसा खाकर भी किसी ग्राहक का मन नहीं भरता है।
मुझे तो लगता है कि शायद हमारा समोसे का ठेला यहाँ चल जाएगा।”
माँ, “हाँ बेटा, तू सही कह रहा है। हमारा ठेला यहाँ चल जाएगा।”
माधव, “हाँ, लेकिन ये चिल्लर मैं कब तक ऐसे रोज़-रोज़ गिनूंगा?”
माँ, “बेटा, बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है। तू चिंता मत कर, जल्द ही हमारे भी बहुत अच्छे दिन आएँगे और तुझे ये चिल्लर नहीं गिननी पड़ेगी।”
माधव, “नहीं माँ, मैं तो चाहता हूँ कि मैं जल्द से जल्द बहुत सारे नोट गिनूं। ये चिल्लर अब मुझसे गिनी नहीं जाती है।”
माँ, “बेटा, ऐसे रातों-रात बड़ा आदमी नहीं बना जाता। तू समझ, धीरे-धीरे करके ही हम सारी परेशानियों को दूर कर पाएंगे।”
माधव, “हाँ माँ, मैं समझ गया हूँ कि आप क्या बोलना चाह रही हो? शायद माँ, तुम सही कह रही हो।”
अगले दिन माधव बाजार में ठेला लगाता है, और उसके ठेले पर ग्राहकों की भीड़ लगी होती है।
यह देखकर नंदू हलवाई अपने कारीगर छोटे लाल से कहता है।
नंदू, “देख रहे हो, छोटे लाल? सभी ग्राहक कैसे दौड़-दौड़कर उस नए समोसे वाले के पास जा रहे हैं और मेरे पास कोई भी नहीं आ रहा है?
लेकिन ये भूल गए हैं कि जो पुराना होता है, वही अच्छा होता है। बाकी तो बेकार सामान मिलाकर समोसे बेच रहे हैं।”
नंदू ये बातें माधव को सुना रहा होता है।
छोटे लाल, “लेकिन मालिक, यहाँ तो सभी लोग उस ठेले वाले के समोसे की तारीफ कर रहे हैं।”
नंदू, “हाँ अभी तो सही है, लेकिन कल को जब सबका पेट खराब होगा ना, तब सबको पता लगेगा कि किसके समोसे बेकार हैं और किसके अच्छे हैं?”
ये सब बातें सुनकर माधव गुस्से में अपने मन ही मन बोलता है।
माधव, “ये बस मेरे काम को बंद करने के लिए झूठी अफवाह फैला रहा है। ऐसा करने से मेरे समोसे बेचने का धंधा बंद नहीं हो सकता।
मुझे पता है कि जो भी सच्चाई के रास्ते पर चलता है, उसके साथ कभी कुछ गलत नहीं हो सकता।
जो बुरा करता है, भगवान उन्हें वक्त आने पर सही जवाब दे देता है।”
तभी सरपंच नंदू की दुकान के आगे आकर रुक जाता है।
नंदू, “आइए आइए, सरपंच जी। क्या चाहिए आपको? मुझे बताइए, मेरे पास सब चीजें हैं… अच्छी और शुद्ध। कोई भी मिलावटी चीज मैं नहीं रखता हूँ।”
सरपंच, “अरे नहीं रे! मैं तो माधव समोसे वाले का ठेला ढूंढ रहा हूँ। मैंने सुना है कि उसके ठेले पर स्वादिष्ट समोसे मिलते हैं। तुझे पता है क्या, कहाँ पर है उसका ठेला?”
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नंदू और सरपंच की बातें सुनकर माधव सरपंच को अपने ठेले के पास बुलाता है।
माधव, “आइए, सरपंच जी आइए। मैं ही हूँ माधव समोसे वाला।”
सरपंच, “क्या तुम ही वो समोसे वाले माधव हो, जिसके समोसे पूरे गांव में मशहूर हैं?”
माधव, “जी, सरपंच जी। आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं। आइए बैठिए, थोड़ा ठंडा पानी पीजिए और समोसे खाइए।”
सरपंच, “हाँ हाँ, ठीक है ठीक है। मैं बैठ जाता हूँ। मैंने तुम्हारे समोसे की बहुत तारीफ सुनी है। इसलिए मैं तुम्हें बहुत बड़ा ऑर्डर देने आया हूँ।”
माधव, “कौन सा ऑर्डर, सरपंच जी?”
सरपंच, “दो दिन बाद मेरे बेटे का जन्मदिन है, इसलिए मैं तुम्हें 1000 समोसों का ऑर्डर देने आया हूँ।”
सरपंच के ऑर्डर के बारे में सुनकर नंदू के तो होश उड़ जाते हैं।
माधव, “आप चिंता मत कीजिए, मैं आपको 1000 समोसे बनाकर समय पर आपके घर भिजवा दूंगा।”
सरपंच, “हाँ ठीक है, ठीक है, मेरे घर पर भिजवा देना।”
ऐसा कहकर सरपंच वहाँ से चला जाता हैं।
नंदू, “हे राम! मैंने माधव के धंदे को बंद करने के लिए कितने प्रयत्न किये? लेकिन कुछ भी काम नहीं आया।
हाय राम! ऐसे तो वो और मशहूर हो जायेगा। नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मैं उसे मेरे बरसो की मेहनत पर ऐसे पानी नहीं फेरने दूंगा।
मुझे कुछ करना पड़ेगा। क्या करू क्या करू, क्या करू? समझ नहीं आ रहा है कि मैं ऐसा क्या करू जिससे एक तीर से दो निशाने लग जाए?
सरपंच का ऑर्डर भी मुझे मिल जाए और माधव का धंदा भी बंद हो जाए। हाँ, एक उपाय सूझा है मुझे।”
अगले दिन माधव सरपंच के बेटे के जन्मदिन की पार्टी के लिए मेहनत से समोसे बना रहा होता है।
माँ, “अरे बेटा माधव! खाना तो खा ले। सुबह से ये समोसे बनाने में लगा हुआ है।
आ जा, चल, मैंने तेरे लिए खाना गर्म कर दिया है। खाना खा ले और थोड़ी देर आराम भी कर ले।”
माधव, “माँ, मैं समोसे बना कर आऊंगा। सरपंच जी ने मुझे समोसों का बहुत बड़ा ऑर्डर दिया है।
अगर सरपंच जीखुश हो गए तो फिर माँ, हमें किसी बात की परेशानी नहीं होगी। समझ गई न, तुम?”
माँ, “हाँ हाँ बेटा, मैं समझ गई समझ गई।”
माधव, “माँ, बस ये समोसे हो गए हैं। मैं सारे समोसे अच्छे से टोकरी में ढक कर रख देता हूँ।”
माधव सारे समोसे टोकरी में ढककर खाना खाने चला जाता है।
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नंदू, “हाँ, यहाँ बना रखे हैं इसने समोसे। अब इन समोसों को ठिकाने लगाता हूँ।”
नंदू अपनी पॉकेट में से एक शीशी निकालता है और सारे समोसों पर छिड़क देता है।
नंदू, “मज़ा आएगा। अब देखता हूँ माधव सरपंच के यहाँ समोसे कैसे देकर आता है? सुबह होते ही जब माधव ये सब देखेगा, तो उसकी शक्ल देखने वाली होगी।”
नंदू के समोसों पर दवाई छिड़कने से सारे समोसे सड़ जाते हैं और उनमें से बदबू आने लगती है।
अगले दिन…
माधव, “मां, ओह माँ! मैं सरपंच जी के यहाँ समोसे देने जा रहा हूँ।”
माधव जैसे ही समोसे उठाने के लिए बाहर आता है, समोसों में से आ रही बदबू को देखकर वह एकदम हक्का-बक्का रह जाता है।
माधव, “अरे माँ! देखो-देखो, इन समोसों को क्या हो गया है?”
माँ, “अरे… अरे बेटा! क्या हुआ? तू ऐसे क्या चिल्ला रहा है?”
माधव, “अरे माँ! देखो तो, मैंने तो रात को इन्हें ढक कर रखा था। शायद इसलिए इनमें से बदबू आ रही है। हाय हाय! अब मैं क्या करूँ? हाय हाय, सत्यानाश!”
माँ, “अरे बेटा! अब क्या होगा?”
माधव, “माँ, मैं सरपंच जी को क्या मुँह दिखाऊंगा? अब बोलो ना माँ, मैं क्या करूँ?
अगर मैंने शाम तक समोसे नहीं भेजे तो मेरी बहुत बदनामी हो जाएगी! हाय हाय माँ! मैं क्या करूँ?”
वो दोनों माँ-बेटे रो ही रहे थे कि तभी एक बुढ़िया अम्मा उनके घर के बाहर आकर बोलती है—
बूढ़ी अम्मा, “अरे! कोई है? ज़रा मुझे एक गिलास पानी तो पिला दो। बहुत गर्मी हो रही है। बहुत देर से मैंने न कुछ खाया है, न कुछ पिया है।”
माधव, “हाँ, आइए बूढ़ी अम्मा आइए, बैठिए। मैं अभी पानी लेकर आता हूँ। पानी पिलाने में कौन सी बड़ी बात है? आइए मेरे साथ, मैं आपको पानी देता हूँ।”
माधव बूढ़ी अम्मा को अपने घर में ले जाता है।
घर में जाकर बूढ़ी अम्मा के मुँह में पानी आ जाता है समोसों को देखकर—
बूढ़ी अम्मा, “अरे वाह बेटा! क्या बात है? इन समोसों में से एक समोसा मुझे भी दोगे? बहुत भूख लगी है। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया, एक समोसा दे दो।”
माधव, “बूढ़ी अम्मा, इन सारे समोसों में से तो बदबू आ रही है।”
बूढ़ी अम्मा, “तो क्या हुआ बेटा? इनमें से ही मुझे एक समोसा दे दो ना। कृपा करो, एक समोसा दे दो भगवान तुम्हारा भला करेगा।”
माधव समोसे की टोकरी में से एक सही सा समोसा निकालकर बूढ़ी अम्मा को खिला देता है और पानी देता है।
बूढ़ी अम्मा वो समोसा बहुत मज़े से खाती है।
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बूढ़ी अम्मा, “अरे वाह बेटा! ये समोसे तो खाने में बहुत अच्छे हैं। बहुत स्वादिष्ट समोसे बनाए हैं। मेरा तो एक समोसा खाकर मन ही नहीं भरा।”
माधव, “बूढ़ी अम्मा, ये तो ठीक है लेकिन मेरे साथ एक बहुत बड़ी समस्या हो गई है।
पता नहीं कैसे ये सारे समोसों में से बदबू आ रही है? मैं अब कैसे सरपंच जी को अपना मुँह दिखाऊंगा?”
बूढ़ी अम्मा, “बेटा, तू परेशान मत हो। जो मेहनत करता है, उसे मेहनत का फल अवश्य मिलता है।
तुम परेशान मत हो। बताओ, मैं तुम्हें मेरी भूख और प्यास बुझाने का क्या दूँ?”
बूढ़ी अम्मा माधव को अपनी टोकरी देती है।
बूढ़ी अम्मा, “तुम ये टोकरी ले लो बेटा, शायद ये तुम्हारे किसी काम आ जाए। ठीक है बेटा, अब मैं चलती हूँ।”
माधव, “ठीक है बुढ़ी अम्मा, आप आराम से जाइएगा।”
माधव, “अब इन बचे हुए समोसों को मैं कहाँ रखूँगा? चलो ठीक है, ये बचे-कुचे समोसे मैं इस टोकरी में रख देता हूँ।”
माधव सारे बचे-कुचे समोसे उस टोकरी में रख देता है।
मां, “अरे बेटा! तू ये क्या कर रहा है? मैं ये सारे समोसे बाहर फेंक आती हूँ।”
माधव, “इन सबको मां तुम बाहर फेंक दो।”
माधव, “हाँ। ला दे बेटा, मैं इन सबको बाहर फेंक कर आती हूँ।”
वो एक-एक करके सारे समोसे टोकरी में से बाहर निकालता है, लेकिन टोकरी में से समोसे निकलना खत्म नहीं होते।
ऐसा करते-करते उसकी दो-तीन बड़ी-बड़ी परातें समोसों से भर जाती हैं, लेकिन टोकरी में से समोसे निकलना खत्म नहीं होते।
माधव, “अरे-अरे! ये क्या हो रहा है? इतने सारे समोसे कहाँ से आ गए?”
मां, “बेटा, मुझे लगता है कि शायद ये टोकरी कोई जादुई टोकरी है। चल बेटा, एक काम कर, जल्दी-जल्दी से तू इस टोकरी में से समोसे बाहर निकाल दे और वो सारे समोसे सरपंच जी को दे आ।”
माधव, “हाँ माँ, मुझे भी लगता है कि ये सब उस बूढ़ी अम्मा की इस जादुई टोकरी का ही असर है।”
ऐसे-देखते-देखते टोकरी में से छह-सात बड़ी-बड़ी परातें भरकर समोसे निकल जाते हैं।
लाते, “बेटा, जा… तू ये समोसे सरपंच जी के घर दे आ।”
माधव, “हाँ माँ, मैं ये सारे समोसे सरपंच जी के घर दे आता हूँ।”
माधव, “हे भगवान! शुक्र है तेरा। आज भी इस जादुई टोकरी की वजह से हमारी इज्जत जाती-जाती बच गई।”
माधव सारे समोसे लेकर सरपंच के यहाँ जा रहा होता है कि तभी रास्ते में नंदू उसे देखकर हैरान हो जाता है
कि उसके पास इतने सारे समोसे कैसे आए? क्योंकि उसके बनाए हुए समोसे तो उसने खराब कर दिए थे।
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माधव, “ये लीजिए सरपंच जी, आपके ऑर्डर किए हुए सारे समोसे।”
सरपंच जी, “क्या बात है, माधव? तुमने तो सारे समोसे समय पर बनाकर दे दिए। ये तो तुम्हारी मेहनत का फल है।”
माधव वो सारे समोसे सरपंच जी को दे देता है और सरपंच उसे पैसों से भरी पोटली देता है।
माधव, “धन्यवाद सरपंच जी!”
माधव, “चलो, अब तो सारी परेशानियाँ ही खत्म हो गईं। सरपंच जी ने खुश होकर मुझे इतना बड़ा तोहफा दे दिया है।
चलो, ये जाकर मैं माँ को दिखाता हूँ। माँ बहुत खुश हो जाएगी।”
माधव, “माँ… माँ देखो, ये सरपंच जी ने कितने सारे पैसे दिए हैं?देखो माँ, देखो।”
लाते, “हाँ बेटा, ये तो बहुत सारे पैसे दिए हैं सरपंच जी ने। देखा बेटा, मैंने कहा था ना कि मेहनत करने वालों की भगवान जरूर सुनता है?”
माधव, “माँ, अब जब हमारे पास ये जादुई टोकरी है, तो हमें किसी चीज़ की परेशानी नहीं होगी।
अब हमें जब भी समोसे चाहिए होंगे, मैं इस टोकरी में एक समोसा रख दूँगा और फिर हमें बहुत सारे समोसे मिल जाएंगे।”
नंदू यह सारी बातें सुन लेता है।
नंदू, “अब मैं समझा कि माधव ने इतनी जल्दी इतने सारे समोसे कैसे बना दिए? रात होते ही मैं ये टोकरी उठा कर ले जाऊँगा।”
मां, “चल बेटा, अब तू कुछ खा ले। तूने सुबह से कुछ नहीं खाया।”
देर रात नंदू चुपके से माधव के घर टोकरी चुराने आता है।
नंदू, “मैं अब जल्दी से अंदर जाकर ये टोकरी चुरा लेता हूँ।”
नंदू चुपके से माधव के घर में जाता है और टोकरी को चुराकर ले जाता है। वह टोकरी को अपने घर ले आता है।
नंदू, “अब आएगा ना मज़ा। अब मैं इस टोकरी का इस्तेमाल करके देखता हूँ कि आखिर ये टोकरी कैसे अपना जादू दिखाती है?”
नंदू टोकरी में एक समोसा डालता है कि तभी उसमें कुछ जादू सा होता है और एक समोसे के बहुत सारे समोसे बन जाते हैं।
नंदू, “अरे-अरे! इस टोकरी ने तो एक समोसे के बहुत सारे समोसे कर दिए।
क्यों ना मैं इसमें सोने की कोई चीज़ डालकर देखूँ? क्या पता वो भी बहुत सारी हो जाए?”
नंदू टोकरी में जैसे ही सोने की चेन डालता है, वह चेन दो-तीन गुना होकर निकलती है।
नंदू, “अरे-अरे! ये क्या? इसने तो इस चेन की दो-तीन गुना चेन बना दी।
मैं अब इसमें घर के सारे सोने के जेवर डाल देता हूँ जिससे मैं बहुत बड़ा अमीर आदमी हो जाऊँगा।”
नंदू टोकरी में जैसे ही घर की सारी सोने की चीज़ें डालता है, वैसे ही टोकरी में से डरावनी आवाज़ आती है और जादुई रोशनी निकलने लगती है।
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नंदू, “अरे-अरे! ये क्या हो रहा है? इसमें से कैसी आवाजें आ रही हैं और ये कैसी रोशनी निकल रही है?”
थोड़ी देर में टोकरी से धुआँ निकलता है और नंदू की सारी सोने की चीज़ें टोकरी में से गायब हो जाती हैं।
नंदू, “अरे-अरे! ये क्या हो गया? इसमें से सारी सोने की चीज़ें कहाँ गईं?”
नंदू, “अरे! मैं तो लुट गया। मैं तो बर्बाद हो गया। ये… ये क्या हो गया मेरे साथ? मेरी सारी सोने की चीजें कहाँ चली गईं? हाय! अब मैं क्या करूँ?”
दोस्तो ये Jadui Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!