लालची खरबूजेवाला | LALCHI KHARBUJEWALA | Hindi Kahani | Achhi Achhi Kahaniyan | Bedtime Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची खरबूजेवाला ” यह एक Achhi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahaniyan या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


सोनगण राज्य अपने खरबूजे के स्वाद के लिए बहुत प्रसिद्ध था। इसी राज्य में खुज्जा नाम के आदमी को खरबूजे खाने का बहुत शौक था।

उसके सामने जितने खरबूजे आते, वह मिनटों में चट कर जाता।

महाराज, “मंत्री जी, राजकुमारी के विवाह की तैयारी में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।”

मंत्री, “जी महाराज। सभी तैयारियां ठीक से चल रही हैं।”

महाराज, “हमारे राज्य का खरबूजा सभी जगह प्रसिद्ध है, तो बारातियों के स्वागत में खरबूजे की कोई कमी ना रह जाए।

और ध्यान रहे कि राजकुमार की माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इसलिए वह यहाँ नहीं आएंगी।

मेरी पुत्री अपनी सास के लिए मूल्यवान उपहारों के साथ यहाँ के खरबूजे भी ले जाएगी।”

मंत्री, “महाराज, आप निश्चिंत रहिए। हमने पूरे राज्य से खरबूजे मंगवाने के लिए सेवकों को लगा दिया है।”

महाराज, “बहुत खूब और हाँ, विवाह में पूरे राज्य को आमंत्रित किया जाए। ध्यान रहे कि एक भी आदमी न छूटे।”

मंत्री, “महाराज, एक भी न छूटे?”

महाराज, “हाँ, एक भी आदमी न छूटे। वरना लोग क्या कहेंगे कि राजा ने अपनी पुत्री के विवाह में प्रजा को आमंत्रित नहीं किया।”

मंत्री, “महाराज, पूरे गांव को बुला लेंगे पर यदि एक आदमी को छोड़ दिया जाए तो…?”

महाराज, “किसे और क्यों?”

मंत्री, “महाराज, खुज्जा को आमंत्रित करने में खतरा है। आप तो जानते हैं कि उसकी खरबूजा खाने की कोई सीमा नहीं है।

और यदि खरबूजा उसके सामने हो तो उसे रोकना असंभव है। वह विवाह में आया तो बड़ी कठिनाई हो जाएगी, महाराज।”

महाराज, “इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं और राजकुमारी के ससुराल वालों की खास फरमाइश हमारा खरबूजा है।”

मंत्री, “महाराज, खुज्जा के आने से कहीं विवाह में बड़ी समस्या न खड़ी हो जाए।”

महाराज, “मंत्री, इसे मैं आप पर छोड़ता हूँ। इस समस्या का आप ही कोई उपाय सोचो।”

मंत्री, “महाराज, विवाह में खुज्जा को आमंत्रित न करने में ही भलाई है। यदि वह आ गया तो मैं नहीं कुछ कर पाऊंगा, उसकी वजह से कहीं आपकी नाक न कट जाए।”

महाराज, “नहीं नहीं मंत्री, ऐसा मत कहो। तुम ऐसा करो, खुज्जा को मत बुलाओ।

एक बार राजकुमारी का विवाह ठीक से संपन्न हो जाए, बाकी सब बाद में देख लेंगे।”

मंत्री, “जी, महाराज।”

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एक आदमी (ढोल बजाते हुए), “सुनो सुनो सुनो… महाराज ने राजकुमारी के विवाह में सभी प्रजावासियों को निमंत्रण भेजा है। सभी लोग अपना निमंत्रण पत्र ले लो। सुनो सुनो सुनो…।”

सेवक, “ये लो भैया, ये तुम्हारा निमंत्रण पत्र और ये तुम्हारा।”

तभी खुज्जा वहाँ आता है।

खुज्जा, “लाओ भैया, मेरा निमंत्रण पत्र।”

सेवक, “अरे! तुम्हारे नाम का निमंत्रण पत्र तो नहीं है।”

खुज्जा, “ऐसा कैसे हो सकता है? तुम अपने थैले में ध्यान से देखो।”

सेवक, “नहीं भैया, इसमें तो नहीं है। मैं मंत्री जी को बता दूंगा।”

अगले दिन…

जब दोनों आदमी फिर निमंत्रण पत्र देने आए तो खुज्जा उनके पास गया।

खुज्जा, “हाँ, मेरा निमंत्रण पत्र दे दो, तुम्हारा निमंत्रण पत्र नहीं है।”

सेवक, “तुम्हारा निमंत्रण पत्र नहीं है। मंत्री जी ने कहलवाया है कि तुम्हें विवाह में निमंत्रित नहीं किया गया है।”

खुज्जा, “पर क्यों?”

सेवक, “मैं नहीं जानता। और हाँ, मंत्री जी का एक और संदेश है तुम्हारे लिए कि इस बारे में तुम्हें उनके पास या महाराज के पास जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

वे लोग राजकुमारी के विवाह की तैयारियों में बहुत व्यस्त हैं।”

खुज्जा, “पूरे गांव को निमंत्रण दिया है बस मुझको नहीं, यह तो अन्याय है, सरासर अन्याय है।”

खुज्जा की पत्नी, “क्या हुआ जी? आपका मुँह क्यों उतरा हुआ है? किसी ने कुछ कहा? क्या हुआ जी, कुछ तो बोलो?”

खुज्जा, “महाराज ने पूरे गांव को निमंत्रण दिया है, बस मुझे छोड़कर।”

पत्नी, “अरे! बस इतनी सी बात राजकुमारी का विवाह है, सबको सौ काम है। हो सकता है कि मंत्री जी भूल गए हों। आप कल जाकर उन्हें याद दिला देना।”

खुज्जा, “नहीं नहीं, ऐसा नहीं है। निमंत्रण पत्र देने वाले सेवक ने बताया है कि हमें जानबूझकर नहीं बुलाया है और उनके पास जाने के लिए भी मना किया है।”

पत्नी, “ठीक है, तो हम नहीं जाएंगे। यदि वो हमारा सम्मान नहीं कर सकते, तो बिन बुलाए वहाँ जाकर हम अपना अपमान नहीं करवाएंगे?”

खुज्जा, “हां, तुम ठीक कह रही हो।”

मंत्री, “सुनो, पूरे राज्य में जितने भी खरबूजे हैं, उन्हें लेकर पुराने भंडारगृह में रखवा दो और एक आदमी को उनकी रखवाली के लिए लगा दो।”

सेवक, “जी। मंत्री जी, एक समस्या और है।”

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मंत्री, “कैसी समस्या?”

सेवक, “यदि राज्य के किसान अपनी मर्जी से खरबूजे न दें, तो क्या उनके साथ जबरदस्ती करना ठीक रहेगा?”

मंत्री, “किसान देंगे क्यों नहीं, भाई? राजकुमारी का विवाह है, और हमारे राज्य का खरबूजा हमारी आन-बान है।

इतना स्वादिष्ट फल हमारे आस-पास के राज्यों में तो क्या, दूर-दूर तक नहीं है।”

सेवक, “मंत्रीजी, वो बात तो ठीक है। पर आप तो जानते हैं कि हमारे राज्य के खरबूजे की मांग दूर दूर तक रहती है।

हर वर्ष किसान बड़ी मात्रा में इसका निर्यात करते हैं। उसे कैसे रोका जाए?”

मंत्री, “हम्म…ऐसा करो, खरबूजे के निर्यात पर रोक लगा दो। राज्य की सीमा पर पहरेदारी लगवा दो।

एक भी खरबूजा सीमा पार न जा पाए। तो थक-हारकर किसानों को सारे खरबूजे देने ही पड़ेंगे।”

सेवक, “जी, ये सही रहेगा।”

मंत्री, “बारात दो दिन तक हमारे राज्य में रुकेगी और बारातियों का स्वागत हमारे खरबूजे से ही होगा। तो इसकी कोई कमी नहीं होनी चाहिए।”

पत्नी, “सुनिए जी… ये लो पैसे और बाजार से एक किलो प्याज ले आओ।”

खुज्जा बाजार में गया।

खुज्जा, “ऐ भैया! एक किलो प्याज देना।”

तभी उसे खरबूजे वाला दिखा। वो उसके पास चला गया।

खुज्जा, “हम्म…बहुत बढ़िया है। भाई, खरबूजे देना। सब पैसे का दे दो।”

खरबूजे वाले ने पांच खरबूजे दे दिए। तभी बहुत सारे सिपाही आये और बाजार के सारे खरबूजे एक गाडी में रखने लगे।

सिपाही, “अरे! तुम लोगों को सारे खरबूजे हमें देने हैं। एक भी खरबूजा किसी को नहीं देना है। मंत्री जी से इसका उचित दाम आकर ले लेना।”

खुज्जा ने ये सब देखा, तो वहाँ से फौरन भाग गया और घर का दरवाजा बंद करके फटाफट खरबूजे खाने लगा।

पत्नी, “अरे! ये क्या कर रहे हो आप? प्याज कहां है?”

खुज्जा ने उसे हाथ से रोकने का इशारा किया। जब उसने सारे खरबूजे खा लिए, तो पेट पर हाथ फेरते हुए तेज डकार लेते हुए बोला,

खुज्जा, “अब बोलो, तुम क्या कह रही थी?”

पत्नी, “अजी, मैं पूछ रही थी, प्याज कहां है?”

खुज्जा, “प्याज कौनसे प्याज?”

वही लेने तो बाजार गया था ना।”

पत्नी, “वही लेने तो आप बाजार गये थे ना। पैसे… पैसे कहां हैं?”

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खुज्जा, “पैसे..? उनके तो मैंने खरबूजे ले लिए। तुम्हें पता है, महाराज के आदमी आए और बाजार से सारे खरबूजे ले गए।

बोले कि महाराज के अगले आदेश तक ये किसी को नहीं मिलेगा। अब तुम ही बताओ, महाराज के आदेश तक मैं बिना खरबूजे के कैसे रहूंगा? कुछ तो करना पड़ेगा।”

कहकर वो अंदर चला गया।

पत्नी, “ये और इनके खरबूजे किसी दिन मेरी जान ले लेंगे।”

खुज्जा खिड़की से देखता है कि उसके सामने वाला परिवार सज-धज कर जा रहा था।

औरत, “सुनिए जी, राजकुमारी की बारात सुबह ही आई है। जल्दी चलिए वरना भोज के लिए देर हो जाएगी।”

आदमी, “हां हां, चल रहे हैं।”

औरत, “सुनिए, मैं कैसी लग रही हूँ? ये साड़ी मैंने अपने मायके से आज के लिए विशेष तौर पर मंगाई है।”

आदमी, “अच्छी लग रही है।”

औरत, “कौन… मैं या साड़ी?”

आदमी, “अरे! दोनों। अब जल्दी चलो वरना देर हो जाएगी।”

वो दोनों चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद दो लोग एक खरबूजों से भरी गाड़ी को धकेलकर ले जा रहे थे।

खुज्जा ने खिड़की से देखा, तो उसके मुँह में पानी आ गया।

खुज्जा, “हम्म… खरबूजों की खुशबू तो कमाल की है। अगर मैं इनमें से…”

खुज्जा बाहर जाने के लिए दरवाजे से निकला।

पत्नी, “अरे! आप कहाँ जा रहे हो?”
खुज्जा, “एक काम याद आ गया, अभी निपटा कर आता हूँ।”

पत्नी, “हाय! आपको ऐसा कौन-सा काम याद आ गया?”

खुज्जा, “कहा ना, अभी आया।”

पत्नी, “ठीक है, पर घूमते-घामते बिन बुलाए, कहीं राजमहल के भोज पर न पहुँच जाना?”

खुज्जा, “नहीं-नहीं, मुझे अपने सम्मान की चिंता तुमसे अधिक है।”

कहकर वो चला गया। वो छिपकर गाड़ी का पीछा करने लगा।

खुज्जा, “कोई आदमी नहीं दिख रहा, पूरा गाँव सूना पड़ा है। सब लोग राजकुमारी के विवाह में गए हैं।”

दोनों आदमी गाड़ी को धकेलकर सूनी जगह पर ले गये।

खुज्जा, “अच्छा पुराने भंडारगृह में खरबूजा छिपाया हैं, ये मंत्री के दिमाग की करामात लगती है।”

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एक आदमी वहां पहरा दे रहा था।

आदमी, “ऐ भैया! हम दोनों पानी पीकर अभी आते हैं। आकर सारे खरबूजे भंडारगृह में रखेंगे।”

पहरेदार ने हां में सिर हिलाया। दोनों आदमी वहाँ से चले गए, तो पहरेदार भी अंगड़ाई लेते हुए बैठ गया।

खुज्जा छुपता-छुपाता आया है और चार-पाँच खरबूजे उठाकर दबे पांव वहाँ से भाग गया। थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठकर,

खुज्जा, “ये खरबूजे यहीं खा लेता हूँ। अगर भागवान ने देख लिया तो पूरी कहानी समझ जाएगी और लड़ेगी।”

खुज्जा ने घूंसे मारकर खरबूजे तोड़े और सब जल्दी-जल्दी खा गया। खाने के बाद उसने हाथ चाटे।

खुज्जा, “मज़ा आ गया। चोरी के खरबूजों का स्वाद ही अलग है।”

अगले दिन खुज्जा खिड़की से गाँव वालों को सज-धज कर विवाह में जाते हुए देख रहा था।

पत्नी, “अजी, आप भी क्या सबको देख रहे हो? चलिए, भोजन खा लो।”

खुज्जा हां में सिर हिलाकर भोजन करने बैठा।

पत्नी, “देखिए, मैंने आपकी पसंद की आलू की भाजी और गरमा-गरम पूड़ी बनाई है।

आपको पसंद है ना? हाँ, ये लो अचार और चटनी। भोजन करिए ना।”

खुज्जा, “वो दिखाई नहीं दे रहा है, वो कहाँ है?

पत्नी, “क्या?”

खुज्जा, “खरबूजा… अरे! तुम्हें पता तो है, मैं उसके बिना भोजन नहीं करता।”

पत्नी, “आपको भी तो पता है, राज्य के सारे खरबूजे महाराज ने राजकुमारी की बारातियों के लिए मंगवाए हैं।

जब तक बारात वापस नहीं जाएगी, हमें खरबूजा नहीं मिलेगा। अब आप छोड़िये नाशमिटे खरबूजों को।

देखिये मैंने आपके लिए क्या सब बनाया है? खाइए ना।”

खुज्जा चुपचाप खाने लगा।

खुज्जा, “खरबूजे के बिना तो निवाला अन्दर ही नहीं जा रहा।”

पत्नी, “मैं पानी लेकर आती हूँ। उसके जाते ही खुज्जा घर से निकला और सीधा पुराने भंडार गृह के पास पहुँचकर छिप गया।

एक आदमी ने भंडारगृह से खरबूजे गाडी में रखे और गाडी लेकर चला गया। दूसरा आदमी बाहर पहरेदारी करने लगा।

खुज्जा, “ये मंत्री भी बड़ा सनकी आदमी है, खरबूजों की पहरेदारी करवा रहा है।”

कहता हुआ वो वहीं बैठ गया और सो गया। उसके खर्राटों की आवाज गूंजने लगी।

खुज्जा ने अवसर पाकर खिड़की से भंडारगृह में कूद लगाई। दूसरी ओर राजकुमारी के विवाह के मंडप में पंडित जी ने वर वधू को बुलाया। तभी एक सिपाही भागता हुआ आया।

सिपाही, “महाराज… महाराज!”

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महाराज, “क्या हुआ? सब ठीक है?”

सिपाही, “अरे महाराज! राजकुमार की माँ आई हैं। वे द्वार पर हैं।”

महाराज दौड़ते हुए उनके स्वागत के लिए गए।

महाराज, “महारानी जी, आप यूँ अचानक? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है ना?”

महारानी, “महाराज, बेटे का विवाह है, इसलिए बारात निकलने के बाद मेरा मन नहीं माना और मैं पीछे-पीछे आ गई।

मुझे उम्मीद है मेरे यहाँ अचानक आने से आपको कोई समस्या तो नहीं हुई?”

महाराज, “नहीं-नहीं महारानी, ये आप कैसी बात कर रही हैं? आपके बेटे का विवाह है।”

सभी मंडप में चले गए। राजकुमार और राजकुमारी का विवाह संपन्न हुआ।

महाराज, “मंत्री जी, महारानी और बाकी लोगों के लिए खरबूजे मंगवाइए।”

मंत्री, “जी महाराज।”

एक आदमी गाड़ी लेकर भंडारगृह पहुंचा। गाड़ी की आवाज़ से पहरेदार उठकर खड़ा हो गया।

सिपाही, “दरवाज़ा खोलो।”

दरवाज़ा खुलने पर उन्होंने कमरे में केवल खरबूजे के छिलके बिखरे देखे। उनके बीच में खुज्जा बड़े मज़े से खरबूजे चाट-चाट कर खा रहा था। उन्हें देखकर उसने लंबी डकार ली।

पहरेदार, “अरे! ये कहाँ से घुस गया?”

आदमी, “भाई, ये तो सारे खरबूजे खा गया। अब क्या होगा? महाराज मुझे मृत्युदंड दे देंगे।”

पहरेदार, “ना ना, ऐसा मत कहो।”

आदमी, “मैं वहाँ खाली हाथ नहीं जाऊंगा।”

जब बहुत देर तक वो आदमी नहीं आया, तो मंत्री ने दूसरे आदमी को भेजा। वो भी नहीं आया। तीसरे आदमी को भेजा, पर वो भी नहीं आया।

मंत्री, “बहुत देर हो गई है। माजरा क्या है? कहीं महाराज क्रोधित न हो जाएं।”

तभी महाराज ने मंत्री को फिर संकेत दिया। तो वो खुद भंडारगृह की ओर चला गया, पर वो फिर भी नहीं आया।

इतनी देर होने पर महाराज मुख्य रसोईयेके पास गए।

महाराज, “इतनी देर हो गई, महारानी के लिए खरबूजा अभी तक क्यों नहीं आया?”

रसोइया, “महाराज, मैं नहीं जानता। मंत्री जी खुद भंडारगृह गए हैं।”

तभी पीछे से महारानी आ गई।

महारानी, “शांत हो जाइए महाराज। इतना क्रोधित होना ठीक नहीं। आपने विवाह का प्रबंध बहुत अच्छा किया। रही खरबूजे की बात तो कोई बात नहीं, फिर कभी चख लेंगे।”

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महाराज, “ऐसा मत कहिए, महारानी। खरबूजा अभी 5 मिनट में आएगा।”

महाराज ने रसोइया को देखा तो उसने सब कुछ बता दिया। सुनकर महारानी हंसने लगीं।

महारानी, “महाराज, आप भी ना। चलिए, हम खुद भंडारगृह की ओर चलते हैं।

इसी बहाने आपका राज्य भी देख लेंगे और हमारी सैर भी हो जाएगी।”

सभी भंडारगृह पहुंचे तो देखा मंत्री और बाकी लोगों ने खुज्जा को रस्सी से बांध रखा था। भंडारगृह की हालत देखकर महाराज हैरान हो गए।

मंत्री, “महाराज, आप यहां?”

महाराज, “मंत्री, यह क्या देख रहा हूँ?”

मंत्री, “महाराज, ये खुज्जा न जाने कैसे घुस गया। सारे खरबूजे खा गया।”

महारानी, “एक अकेला आदमी इतने खरबूजे खा गया?”

मंत्री, “जी महारानी।”

सुनकर महारानी हंसने लगीं।

महारानी, “महाराज, लगता है आपके राज्य के खरबूजों का स्वाद हमारे भाग्य में नहीं। अब इस बेचारे को छोड़ दीजिए।”

महाराज ने मंत्री को संकेत किया, तो खुज्जा की रस्सियां खोल दी गईं।

रस्सी खुलते ही खुज्जा पीछे की ओर भागकर कोने में छिपाए हुए दो खरबूजे उठाकर ले आया और महारानी को देने लगा।

खुज्जा, “मैंने ये बचाकर रखे थे। आप हमारी अतिथि हैं ना? ये लीजिए, आपके लिए।”

महारानी, “महाराज, आप निराले, आपका राज्य निराला और आपकी प्रजा भी निराली।”


दोस्तो ये Bedtime Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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