हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” रहस्यमय चित्रकार ” यह एक Rahasyamay Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Mysterious Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जूनागढ़ राज्य में राजा खड़क सिंह का राज था। सब तरफ खुशहाली थी और राजा भी अपने राज्य में रहने वाले हर एक कलाकार का सम्मान करता था और उन्हें पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करता था।
एक दिन दरबार में,
मंत्री, “महाराज, हमारे राज्य में एक नया चित्रकार आया है जो सबकी बहुत सुंदर-सुंदर तस्वीर बनाता है।”
राजा, “अच्छा… अगर ऐसा है तो हम भी उस चित्रकार से हमारी तस्वीर बनवाना चाहेंगे।”
राजा, “सिपाहियों, जाओ और जाकर उस चित्रकार को हमारे महल में लेकर आओ।”
राजकुमार, “मैं भी अपनी तस्वीर बनवाऊंगा और फिर मैं उस तस्वीर को अलग-अलग राज्यों में पहुंचवाऊंगा ताकि मुझे कोई अच्छी सी राजकुमारी पसंद कर ले।”
राजा, “हा हा हा… आपको और कोई राजकुमारी पसंद करे? यह तो हो ही नहीं सकता। शक्ल देखी है आपने अपनी?”
अगले दिन उस चित्रकार को महल में बुलवाया जाता है।
चित्रकार, “महाराज की जय हो!”
राजा, “तो तुम ही हो वो चित्रकार जिसके बारे में हमने इतनी तारीफ सुनी थी?”
चित्रकार, “हाँ महाराज। मैं हूँ चित्रकार छबीला। आदेश कीजिए महाराज, क्या हुक्म है?”
राजा, “हमने तुम्हें यहाँ हमारी तस्वीर बनाने के लिए बुलवाया है।”
चित्रकार, “ठीक है महाराज, मैं चित्र तो बना दूंगा। पर मैं आपको पहले ही आगाह करना चाहता हूँ।”
राजा, “क्या आगाह करना चाहते हो? पर क्यों? किस बात के लिए?”
चित्रकार, “महाराज, मैं जिसका भी चित्र बनाता हूँ, उसके साथ चार दिन के अंदर-अंदर कोई ना कोई दुर्घटना हो जाती है।”
राजा, “क्या बात कर रहे हो? यह सब अंधविश्वास है और मैं इन अंधविश्वास में नहीं मानता।”
चित्रकार, “तो ठीक है महाराज, मैं आपका चित्र बनाने के लिए तैयार हूँ।”
फिर चित्रकार राजा का चित्र बनाने लगता है।
राजकुमार, “छबीला जी, आप मेरी भी एक तस्वीर बनाना ताकि मुझे भी कोई सुंदर सी राजकुमारी पसंद कर ले।”
राजा, “वह चित्रकार मेरी तस्वीर बनाएगा, उसके बाद किसी और की, समझे? अब दफा हो जाओ यहाँ से।”
चित्रकार राजा की बहुत सुंदर तस्वीर बना देता है। राजा उसे देखकर बहुत खुश हो जाता है।
राजा, “अरे! तुमने तो काफी सुंदर तस्वीर बनाई है। ये लो, तुम्हारे लिए इनाम।”
राजा सोने के सिक्कों से भरी एक थैली चित्रकार को देता है।
चित्रकार, “ठीक है महाराज, मैं चलता हूँ। पर याद रखना, मैं जिस किसी की भी तस्वीर बनाता हूँ, उसके साथ कुछ ना कुछ बुरा होता है।”
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राजा, “अरे! जिसको ऐसी बीवी और ऐसा बेटा मिला हो, उसके साथ और क्या बुरा हो सकता है?”
रानी गुस्से से राजा की तरफ देखती है।
राजा, “मेरा मतलब है कि जिसको ऐसी बीवी और ऐसा बेटा मिला हो, उसके साथ कुछ गलत हो ही नहीं सकता ना।”
राजकुमार, “अरे! ऐसे कैसे हम आपको जाने दे सकते हैं? अभी तो आपको हमारी भी तस्वीर बनानी है, आप भूल गए? चलिए चलिए हमारे साथ और हमारी भी तस्वीर बनाए।”
चित्रकार, “जो हुक्म, युवराज।”
फिर चित्रकार प्रताप की तस्वीर बनाने के लिए उसके साथ जाने लगता है। तभी महाराज के ऊपर झूमर गिरते-गिरते बच जाता है। सब लोग बहुत हैरान हो जाते हैं।
चित्रकार, “देखिए मैंने कहा था ना, मैं जिस किसी की भी तस्वीर बनाता हूँ, उसके साथ बुरा होने लगता है।”
राजा, “अरे! ये तो एक इत्तेफाक है। कुछ बुरा-उरा नहीं होता।”
फिर थोड़ी देर बाद राजा का पैर फिसल जाता है और राजा गिर जाता है।
राजा, “अय्यायो!”
रानी, “अरे महाराज! आपको मैंने कितनी बार कहा है की थोड़ा वजन कम कर लीजिए? देखिए, आपके गिरने से महल का फर्श टूट गया।”
राजा, “अरे रानी साहिबा! हम गिर गए हैं। आपको हमसे ज्यादा महल की फर्श की पड़ी है? अब हाथ दीजिए और उठाइए हमें।”
मंत्री, “महाराज, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह चित्रकार सच कह रहा है? अगर इसके चित्र बनाने में आपकी जान पर कोई खतरा हुआ तो?”
राजा, “अरे! नहीं नहीं मंत्री जी, आप ऐसे ही परेशान हो रहे हैं।”
मंत्री, “नहीं महाराज, हम इन बातों को ऐसे नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकते।”
तभी राजा के पास से एक खंजर उड़ता हुआ निकल जाता है।
मंत्री, “सिपाहियों, ज़रा देखो कौन है वहाँ पर?”
पर सब लोग राजा के लिए बहुत ही परेशान हो जाते हैं।
मंत्री, “सिपाहियों, महाराज की सुरक्षा में कड़ा पहरा लगाया जाए और ध्यान रखना महल में कोई भी अनजान व्यक्ति बिना इजाजत के नहीं आना चाहिए।”
सिपाही, “जो हुक्म, मंत्री जी।”
फिर महल में कड़ा पहरा लगा दिया जाता है और राजा के कक्ष के बाहर भी तिगुना पहरा लगा दिया जाता है।
रानी, “हे भगवान! सिपाहियों, महामंत्री, जल्दी आओ! महाराज महाराज, उठिए ना! महाराज, उठिए महाराज!”
मंत्री, “क्या हुआ रानी साहिबा?”
रानी, “महामंत्री, ये देखिए महाराज को क्या हुआ? ये उठ ही नहीं रहे हैं! अब मैं क्या करूँगी?
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मेरा सुहाग गुजर गया। मैं कैसे सजूंगी, कैसे संवरूंगी महाराज? आपको मेरे महंगे ज़ेवरों की कसम, आपको उठना ही होगा।
अब मैं महंगे जेवरातों का क्या करूँगी? उठ जाइए ना महाराज। मैं बिना सजे-संवरे कैसे दिखूंगी, आप ही बताइए ना महाराज? उठ जाइए महाराज, उठ जाइए।”
रानी की दो दासियां रानी को संभाल कर बाहर ले जाती हैं। पूरे राज्य में मातम छा जाता है।
रानी, “महाराज, आप इतनी जल्दी क्यों चले गए?”
तभी एक सिपाही वहाँ पर दौड़ा-दौड़ा आता है।
सिपाही, “युवराज की जय हो! युवराज, पड़ोसी राज्य के राजा ने हमारे राज्य पर हमला कर दिया है।”
राजकुमार, “पिताजी, अगर आप मुझे पहले ही युद्धनीति बता देते तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। मुझे तलवार भी ठीक से पकड़ना नहीं सिखाया कठोर कही के।”
पर मंत्री की सूझबूझ से युवराज युद्ध जीत जाते हैं।
मंत्री, “क्या हुआ युवराज? आप चिंतित लग रहे हैं?”
राजकुमार, “नहीं-नहीं मंत्री जी, मैं बस ये सोच रहा था कि जब मैं उस चित्रकार से चित्र बनवा रहा था, तब चित्र नहीं बन पाया था।
तो क्यों ना मैं भी उस चित्रकार से अपना चित्र बनवाऊं, ताकि हम पता लगा सकें कि क्या सच में उस चित्रकार के चित्र बनाने के बाद कोई दुर्घटना होती है?”
राजकुमार की बात सुनकर मंत्री भी थोड़ा सोच में डूब जाता है।
मंत्री, “वह तो ठीक है, पर अगर आपकी जान को भी खतरा हुआ तो?”
राजकुमार, “महामंत्री जी, आपका डर सही है। पर हमें इस बात का पता तो लगाना पड़ेगा।”
अगले दिन फिर से उस चित्रकार को बुलवाया जाता है।
मंत्री, “चित्रकार छबीला, हम यह चाहते हैं कि आप हमारे राजकुमार की भी एक तस्वीर बनाएं।”
चित्रकार, “पर युवराज, आपको तो पता है कि मेरे चित्रकारी की वजह से महाराज का निधन हो गया। और फिर भी आप मुझसे अपना चित्र बनवाना चाहते हैं?”
राजकुमार, “आपसे जितना कहा जाए, बस आप उतना ही कीजिए।”
फिर चित्रकार राजकुमार प्रताप की एक तस्वीर बना देता है।
राजकुमार, “चित्रकार छबीला, आपने हमारी तस्वीर तो बहुत सुंदर बनाई है। पर आपको कुछ दिन हमारे महल में ही रुकना होगा।”
चित्रकार, “जो आज्ञा महाराज।”
उसी रात को एक नकाबपोश राजकुमार के कमरे में राजकुमार को मारने के लिए पहुँच जाता है। तभी वहाँ पर महामंत्री आ जाता है और वो नकाबपोश भाग जाता है।
मंत्री, “राजकुमार, मैंने अभी-अभी यहाँ पर किसी को देखा।”
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राजकुमार, “पर यहाँ तो मेरे अलावा और कोई नहीं था। ज़रूर आपको वहम हुआ होगा।”
महामंत्री, “, नहीं युवराज, महाराज की मौत के बाद हमें और भी सतर्क रहना होगा। हम किसी भी बात को हल्के में नहीं ले सकते।”
राजकुमार, “ठीक है महामंत्री जी, पर आप अभी अपने कक्ष में जाकर आराम कीजिए।”
रानी भी अच्छे चित्र बनवाने के लालच में उस चित्रकार के पास पहुँच जाती है।
रानी, “चित्रकार छबीला, हम तुम्हें आदेश देते हैं कि तुम हमारी एक ऐसी तस्वीर बनाओ जिसमें हम बिना सजे-संवरे भी बहुत सुंदर दिखें। आसपास के राज्यों की सभी रानियाँ उस चित्र को देखकर हमसे जले।”
चित्रकार रानी की भी तस्वीर बना देता है और अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
रानी (सिपाहियों से), “सिपाहियों, महामंत्री जी को जल्दी से बुलाया जाए।”
रानी, “महामंत्री जी, देखिये उस चित्रकार ने हमारी कैसी तस्वीर बनाई है?
हमने उसे कहा था कि तुम मेरी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाना जिसे देखकर आसपास की सारी रानियाँ हमसे जलने लगें, पर उसने तो हमें ही जला दिया।”
मंत्री उस तस्वीर को देखकर हैरान हो जाता है।
महामंत्री, “इस तस्वीर के मुताबिक आपका चेहरा जला हुआ है। तो मतलब आपके साथ भी ऐसी ही कुछ घटना होने वाली है, आप ज़रा सावधान रहना।”
तभी रानी की एक दासी गर्म पानी लेकर आती है और रानी का हाथ जल जाता है। रानी इस वाकये से घबरा जाती है।
रानी, “मुझे बचाइए, मैं अपने सुंदर चेहरे को इतना बुरा नहीं देख सकती। मुझे बचाएं महामंत्री, मुझे बचाइए।”
अगली सुबह राजकुमार तलवारबाजी का अभ्यास कर रहा था, तभी तलवार लगने से उसका हाथ कट जाता है।
दूसरी तरफ जब रानी रसोई का मुआयना करने गई, तो उसकी आँखों में मिर्ची चली जाती है।
दोनों महामंत्री के पास जाते हैं और सारी बात बताते हैं। महामंत्री सारी बातें सुनकर बहुत हैरान हो जाता है।
महामंत्री, “मतलब उस चित्रकार के चित्र बनाने के बाद सच में कोई ना कोई दुर्घटना होती है। ऐसा कैसे हो सकता है?
महारानी जी और राजकुमार, आप दोनों अपना ध्यान रखिए और थोड़ी ज्यादा सतर्कता बरतिए।”
रानी, “ठीक है, महामंत्री जी।”
राजकुमार, “आज 4 दिन हो गए हैं मेरी तस्वीर बने हुए। मतलब आज मेरे साथ कुछ ना कुछ घटना होने वाली है। मुझे सावधान रहना होगा।”
रात को एक नकाबपोश फिर से राजकुमार पर हमला करने आता है। वह राजकुमार के सीने में छुरा घोंप देता है, तब पीछे से राजकुमार उसे पकड़ लेता है।
राजकुमार (सिपाहियों से), “सिपाहियों… सिपाहियों, जल्दी इस नकाबपोश को पकड़ो!”
सभी वहाँ पर पहुँच जाते हैं।
मंत्री, “क्या हुआ?”
राजकुमार, “ये नकाबपोश हमारी जान लेने के लिए हमारे कमरे में घुस आया था?”
रानी, “तुम मेरे बेटे को भी मारना चाहते थे? ये ले।”
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राजकुमार, “तुम..? अच्छा तो वो तुम्हीं थे जिसने मेरे पिताजी को भी मार डाला और अब मुझे मारना चाहते हो?”
रानी,”ये ले, तूने मेरी इतनी बदसूरत तस्वीर बनाई और अब तू मेरे बेटे को भी मारना चाहता है।”
चित्रकार, “मुझे माफ़ कर दीजिए, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।”
रानी, “तुम्हारी गलती नहीं है? तुमने मेरी इतनी बदसूरत तस्वीर बनाई और कहता है कि मेरी गलती नहीं है। बता, तुझे यहाँ किसने भेजा था?
माफ़ कर दीजिए, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मुझे ये सब करने के लिए आपकी महामंत्री ने कहा था और ये सारा षडयंत्र भी उन्हीं का था।”
राजकुमार, “क्या…महामंत्री जी का?
तभी महामंत्री अपनी तलवार निकालकर राजकुमार को मारने के लिए आगे बढ़ता है, पर एक सिपाही मंत्री का हाथ पकड़ लेता है।
सिपाही, “तुम्हें क्या लगता है, तुम हमारे राज्य को हड़प लोगे और हम कुछ नहीं कर पाएंगे?”
और फिर सिपाही अपनी दाढ़ी-मूंछ निकालकर राजा के भेष में आ जाता है।
राजा, “सिपाहियों, पकड़ लो इन्हें।”
सब लोग हैरान हो जाते हैं।
रानी, “महाराज, आप जिंदा हैं?”
राजा, “हाँ, मैं जिंदा हूँ। मुझे इस चित्रकार पर तो पहले से ही शक था। पर महामंत्री, मैंने तुमसे ये उम्मीद नहीं की थी। बोलो, क्यों किया तुमने ये सब?”
महामंत्री, “मुझे तो पहले से ही बदला लेना था। मैंने बहुत बार तुम्हें मारने की कोशिश की थी, पर मेरी सारी कोशिशें नाकाम रहीं।”
राजा, “पर तुम मुझे क्यों मारना चाहते थे?”
महामंत्री, “यह तुम पूछ रहे हो कि मैं तुम्हें क्यों मारना चाहता था? बचपन से ही तुम्हारे और मेरे बीच में जो भी प्रतियोगिता रही, वो हमेशा तुम जीत जाते थे।
और तो और, जब हम दोनों स्वयंवर के लिए गए, तब मुझे पहली नजर में रानी से प्रेम हो गया।
पर स्वयंवर जीत कर रानी भी तुमने हासिल कर ली। उस दिन से ही मैंने यह फैसला ले लिया था कि मैं तुम्हें मारकर तुम्हारा राज्य छीन लूँगा, पर तुम हर बार बच जाते।
इसीलिए मैंने राजकुमार को भी युद्धनीति से दूर रखा, ताकि तुम्हारे बाद यहाँ कोई मूर्ख राजकुमार कुछ ना कर सके।”
राजा, “सिपाहियों, ले जाओ मंत्री को और इस चित्रकार को भी।”
रानी, “महाराज, ये आपने कितना बढ़िया षड्यंत्र रचा? आप ज़िंदा हैं, मैं अपने सारे गहने पहन सकती हूँ।”
राजा, “हाँ, मैं ज़िंदा हूँ। बस मैं मरने का नाटक कर रहा था। मुझे इस चित्रकार पर शुरू से ही शक था।
पर मेरा शक यकीन में तब बदला जब मैंने इस चित्रकार को किसी से बात करते हुए सुना कि उसने मेरे दूध में जहर मिला दिया है।
और फिर मैंने वह दूध फेंक दिया और मरने का नाटक किया ताकि मैं इनकी हरकतों पर नजर रख सकूँ और इनके षड्यंत्रों का पर्दाफाश कर सकूँ।”
रानी, “ओह! सब तो ठीक है, पर उस चित्रकार से मेरी एक सुंदर सी तस्वीर जरूर बनवा दीजिएगा।”
यह सुनकर सब लोग जोर-जोर से हंसने लगते हैं।
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