चमत्कारी चप्पल | Chamatkari Chappal | Jadui Kahani | Hindi Kahaniyan | Magical Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चमत्कारी चप्पल ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Magical Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में करोड़ीमल नाम का एक जमीनदार रहता था, जो गांव के भोले-भाले लोगों को पैसा देकर उनसे भारी ब्याज वसूलता था

और उनके खेत पर कब्जा भी कर लिया करता था। उसकी पत्नी मंजरी एक मूर्ख स्त्री थी।

करोड़ीमल, “अरे! कहां हो मंजरी? जल्दी से चाय लेकर आओ, मुझे काम पर जाना है।”

मंजरी, “ला रही हूँ,जी।”

करोड़ीमल, “कितनी देर से यही बात बोल रही हो कि ला रही हूँ, ला रही हूँ? अरे! कब लाओगी? जल्दी से मुझे चाय दे दो, हाँ।”

मंजरी एक कप चाय क्रोधित होकर करोड़ीमल को देती हुई बोली।

मंजरी, “ये लीजिए आपकी गरमा-गरम चाय। बोल तो ऐसे रहे जैसे खेत पर आप स्वयं हल जोतेंगे। अरे! दूसरों का खून पीने के अलावा आपने अपने जीवन में कोई दूसरा काम किया है क्या?”

करोड़ीमल, “आज का दिन मेरे लिए बहुत शुभ है, मंजूरी। सुबह-सुबह ऐसी बातें करके मेरा मूड खराब मत करो, हाँ।”

मंजरी, “अरे! तो क्या गलत बोल रही हूं, जी? यहाँ से जाकर खेत पर आराम से कुर्सी पर बैठ जाओगे और दो-तीन घंटे कपटा और संपत से अपने पैरों की मालिश करवाओगे। इसके अलावा और कोई काम है तुम्हें?”

करोड़ीमल, “ऐसी बात नहीं है, मंजूरी। ये काम भी बड़ी मेहनत का होता है।

तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम करोड़ीमल की बीवी हो। करोड़ीमल की होशियारी के सामने कोई टिक नहीं पाता।”

मंजरी, “जिसे आप होशियारी कहते हैं ना, उसे दूसरी भाषा में कमीनापन कहते हैं। एक बात याद रखिएगा,

आपकी ये होशियारी ना एक दिन आपको जेल की सलाखों तक पहुंचा देगी।”

करोड़ीमल क्रोधित होते हुए अपनी पत्नी से बोला, “मेरी होशियारी मुझे जेल तक पहुंचाए या ना पहुंचाए,

लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारी मूर्खता मुझे किसी दिन जेल की सलाखों तक जरूर पहुंचा देगी।”

इतना बोलकर करोड़ीमल अपने दोनों नौकरों की ओर देखकर बोला, “ए कपटा, ए संपत… ऐसे क्या देख रहे हो रे?

चलो जल्दी से, अगर यहाँ पर कुछ देर और रुका तो मेरे दिमाग का दही हो जाएगा, चलो।”

करोड़ीमल अपने खेत में जाकर कपटा और संपत से पैर दबवाने लगा।

करोड़ीमल, “कपटा, मुझे बताओ कि अब गांव में कौन-कौन रह गया है, जिसका खेत अब तक हमारे नहीं हुए?”

कपटा, “अभी तो आधा गांव है,सरकार।”

करोड़ीमल, “क्या..? तो फिर मेरी होशियारी का क्या फायदा? मैं इतनी मेहनत से पैसा कमाकर लोगों को ब्याज पर पैसा देता हूँ और भारी सूद लगाकर उनसे मनमानी करता हूँ और अभी सिर्फ गांव के आधे खेत ही हमारे हुए हैं?

निकम्मों, दिन-भर मेरी रोटियां तोड़ते हो तुम दोनों। कोई मुझे अच्छा उपाय नहीं दे सकते?”

इतना कहकर करोड़ीमल ने एक लात कपटा के मुँह पर मार दी।

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संपत, “सरकार, एक किसान अभी है जिसने आपके पैसे अभी तक नहीं लौटाए। आज उसके पास 12 बजे तक का वक्त था। सरकार, वो अपने वक्त से 5 मिनट लेट है।”

करोड़ीमल, “कौन है वो?”

संपत, “अरे! वही अपना रतन, जिसके खेतों पर आपकी बहुत सालों से नजर है।”

संपत की बात सुनकर करोड़ीमल की आँखों में चमक आ गई।

करोड़ीमल, “मैं अभी रतन का हिसाब-किताब देखकर आता हूँ, तुम दोनों यहाँ से कहीं मत जाना।”

इतना कहकर करोड़ीमल चला गया।

कपटा, “मेरी समझ में नहीं आता, संपत कि आखिर ये बंदर जैसी शक्ल वाला करोड़ीमल अपने आप को समझता क्या है? यार?”

संपत, “ओ कपटा! पता नहीं अपने आप को समझता क्या है?”

कपटा, “बोलता तो ऐसे है जैसे इससे ज्यादा चालाक सारे संसार में कोई नहीं।”

संपत,”अरे! कहे का समझदार? अरे! एक नंबर का मूर्ख इंसान है, एक नंबर का।”

कपटा, “सही कह रहे हो, संपत भाई। गांव के लोगों को ब्याज पर पैसा देता है और उसके बदले में उनकी जमीन उनसे छीन लेता है।

और इसे ये मूर्ख अपनी अक्लमंदी बताता है। ये कभी ना कभी तो इसका भंडा जरूर फूटेगा, देखना।”

संपत, “चिंता मत कर, इसकी मूर्ख पत्नी इसके काल का कारण बनेगी, भाई देखना।”

तभी वहाँ पर करोड़ीमल आ गया।

करोड़ीमल, “ऐ! चलो, मेरे साथ रतन के घर पर चलो।”

इधर रतन अपनी पत्नी के साथ बैठा खाना खा रहा था, तभी जमीनदार अपने साथियों के साथ आ धमका।

करोड़ीमल, “मुझसे कर्जा लेकर चुकाने के बजाय तू यहाँ आराम से खाना खा रहा है और वो भी पनीर की सब्जी है?”

रतन, “लेकिन जमीनदार साहब, अभी तो मेरे पास 15 दिन का वक्त है।”

करोड़ीमल, “तू तो बोल रहा था कि पैसा लौटाने का आज इसका वादा था।”

संपत, “ये झूठ बोल रहा है, सरकार। आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है? हम भी इस गांव में आपके सच्चे और वफादार नौकर हैं।”

करोड़ीमल, “ऐ! मेरे नौकर कभी मुझसे झूठ नहीं बोलते। तेरी मोहलत खत्म और तेरे खेत मेरे।”

सुनीता, “ऐसा जुल्म मत कीजिए, सरकार। ठीक है, आप मुझे कल तक की मोहलत दे दीजिए।”

करोड़ीमल, “ठीक है, कल दोपहर तक का वक्त देता हूँ तुझे।”

ज़मींदार वहाँ से चला गया। रतन की पत्नी सुनीता रतन से बोली,

सुनीता, “अभी तो फसल कटी भी नहीं, पैसे कहाँ से दोगे?”

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रतन, “खेत बचाने के लिए मेरे मन में जो आया, मैंने बोल दिया।”

सुनीता, “गई भैस पानी में। सत्य नाश, अब तो खेत भी गए हाथों से।”

रतन, “बस करो सुनीता, मुझे कुछ सोचने दो।”

सुनीता, “मेरी समझ में नहीं आ रहा, हमारे पास तो 15 दिन का वक्त था। अचानक से करोड़ीमल यहाँ पर पैसे मांगने क्यों आ गया?”

रतन, “जिस तरह से उसका नौकर संपत उससे बात कर रहा था, उससे मुझे यही लगता है कि उसने करोड़ीमल से झूठ बोला है।”

सुनीता, “उस कलमुए को झूठ बोलने की आखिर क्या जरूरत थी? उसके एक झूठ से हमारे खेत हमारे हाथ से जा सकते हैं।”

रतन, “सारा गांव जानता है कि कपटा और संपत दिनभर करोड़ीमल की चापलूसी करते रहते हैं और करोड़ीमल को कौन नहीं जानता?

हो ना हो कपटा और संपत में से किसी एक ने डरते हुए ये झूठ उससे बोला है।”

सुनीता, “अब खड़े-खड़े जेम्स बॉन्ड बनना बंद करो और ये सोचो कि आगे करना क्या है?”

रतन, “फिलहाल तो मैं कुछ देर के लिए अकेला रहना चाहता हूँ ताकि कुछ सोच सकूँ और तुम जब तक मेरे आसपास रहोगी तो मैं कुछ सोच नहीं पाऊंगा।

मैं जंगल जा रहा हूँ, सिर्फ वही एक जगह है, जहाँ एकांत में बैठकर मैं कुछ उपाय सोच सकता हूँ।”

रतन जंगल निकल गया। अचानक रतन की नजर एक साधु पर पड़ी जो आंखें बंद किए हुए तपस्या कर रहे थे।

एक सांप फन फैलाए ऋषि के सिर पर मंडरा रहा था। वो सांप ऋषि को डसने ही वाला था कि रतन ने एक लकड़ी से उसे भगा दिया। ऋषि की आंखें खुल गईं।

ऋषि, “ये सांप मुझे डस कर मुझे मार देता, तुमने मेरी जान बचाई, बेटा और तुम्हारी वजह से मेरी तपस्या भी पूरी हो गई। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ।”

इतना कहकर उस ऋषि ने एक चमकदार पीतल की चप्पल रतन को दे दी।

रतन, “ये क्या बाबा? मैंने आपकी जान बचाई और आप मुझे ये पीतल की चप्पल दे रहे हैं। बाजार में ये कौड़ियों के भाव भी नहीं बिकेगी।”

ऋषि, “मूर्ख मनुष्य, ये कोई मामूली चप्पल नहीं है। ये बोलने वाली चप्पल है। तेरी समस्या का निदान इन्हीं चप्पलों में छिपा है।”

रतन, “बाबा, मेरी समस्या का निदान यह पीतल की चप्पल है नहीं, बल्कि धन है। मैंने कुछ समय पहले गांव के जमींदार से ब्याज पर पैसे लिए थे

और उसे चुकाने के लिए मेरे पास 15 दिन का समय था, लेकिन वो आज ही अपने पैसे मांगने आ गया, वो भी ब्याज सहित।

अगर मैं उसे पैसे नहीं दूंगा तो वो मेरे खेत पर कब्जा कर लेगा। बाबा, करोड़ीमल ने ना जाने कितने लोगों की जमीन पर ऐसे ही कब्जा किया है।”

ऋषि, “मूर्ख मनुष्य, धन किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता। मेरी बात पर विश्वास कर।

तेरी समस्या का निदान और यहाँ तक कि सारे गांव की समस्या का निदान इन्हीं चप्पलों में छुपा हुआ है। ये बात तुझे कुछ समय बाद स्वयं पता लग जाएगी।”

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रतन, “बाबा, आप करोड़ीमल को नहीं जानते। अरे! उसकी होशियारी के आगे आज तक कोई नहीं टिक पाया।”

ऋषि, “चिंता मत कर, बच्चा। करोड़ीमल की होशियारी धरी की धरी रह जाएगी मेरी इन बोलने वाली चप्पलों के आगे, जो मैंने तुझे दी है।”

रतन, “बाबा, लेकिन ये कहाँ बोल रही है? ये तो बड़ी साधारण चप्पल लगती है।”

ऋषि, “ये अपनी मर्जी से बोलती है। समय आने पर तू सब जान जाएगा। चप्पल पहन ले और निश्चिंत होकर अपने घर चला जा।”

रतन वहाँ से चुपचाप चला गया और अपने घर के बाहर अपने आप से बोला,

रतन, “सुनीता को नहीं बताऊँगा उस बाबा के बारे में, नहीं तो सारे गांव में ढिंढोरा पीट देगी।

बोल दूंगा कि मोहन के घर पर गया था पैसे उधार मांगने के लिए, मगर मोहन ने पैसे तो उधार नहीं दिए, ये पीतल की चप्पल मुझे पकड़ा दी।”

रतन के घर में घुसते ही उसकी पत्नी सुनीता ने सवालों की बौछार कर दी।

सुनीता, “इतनी देर जंगल में कैसे लग गई आपको? मैं आपका कब से इंतजार कर रही थी? मेरे मन में कितने बुरे-बुरे विचार आ रहे थे?

आप जानते हैं, मुझे आपकी कितनी चिंता हो रही थी? और ये चप्पल आपको कहाँ से मिली?”

तभी उस चप्पल से रतन की ही आवाज आने लगी, जो उसने बाहर अपनी पत्नी के बारे में बोला था।

चप्पल (रतन की आवाज में), “नहीं बताऊँगा, नहीं तो तुम सारे गांव में ढिंढोरा पीट दोगी।”

यह सुनकर सुनीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

सुनीता, “क्या कहा तुमने? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की?”

रतन, “सुनीता, ये मैंने नहीं बोला।”

सुनीता, “तो फिर किसने बोला? मुझे क्या मूर्ख समझा है?”

रतन ने सारी घटना सुनीता को बता दी।

सुनीता, “सही बोल रहे हो, मुझे कुछ-कुछ लगा ही था कि आवाज इन चप्पलों से आई है।

वैसे भी साधु महाराज ने कुछ सोच कर ही बोला होगा। चलो, अब सो जाओ।”

अगले दिन रतन जमीनदार करोड़ीमल के खेत में चला गया।

करोड़ीमल, “अरे! क्या बात है रतन, इतनी जल्दी तुमने पैसों का इंतजाम कर लिया?”

रतन, “नहीं करोड़ीमल जी, मैं आपसे बहुत जरूरी बात करने के लिए आया हूँ।”

करोड़ीमल, “अब मेरे इतने बुरे दिन आ गए कि मैं तुमसे जरूरी बात करूँगा? जल्दी बोलो, मुझे बहुत जरूरी काम से कहीं जाना है।”

रतन, “करोड़ीमल जी, अगर आप मुझे कुछ दिनों की और मोहलत दे देते, तो मेरे लिए अच्छा हो जाता।”

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करोड़ीमल, “ये बात तो तुमने बिलकुल सही कही है, तुम्हारे लिए बहुत अच्छा होता। लेकिन मेरे लिए ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं है, समझे?”

रतन, “मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा।”

करोड़ीमल (मन में), “अब मैं इस मूर्ख को कैसे समझाऊं कि मैं इसकी जमीन का सौदा एक बहुत बड़े बिल्डर से करके आ गया हूँ और आज उस बिल्डर के जरिए मुझे बहुत भारी रकम मिलने वाली है।”

करोड़ीमल, “नहीं रतन, मेरी जुबान से निकले हुए शब्द तीर की तरह हैं। मैं तुम्हें अब और मोहलत नहीं दे सकता।”

तभी करोड़ीमल की नजर रतन की चप्पल पर पड़ी।

करोड़ीमल, “मुझे देने के लिए तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन पहनने के लिए ये पीतल की चप्पल जरूर हैं।”

रतन, “करोड़ीमल जी, ये चप्पल मेरी नहीं है।”

करोड़ीमल, “लेकिन अब मेरी नजर इस पर पड़ गई है, तो ये मेरी ही हुई। लाओ, इसे मुझे दे दो। ये चप्पल सिर्फ मेरे पैरों को शोभा देगी।”

रतन, “लेकिन मेरी बात तो सुनिए… ये चप्पल।”

करोड़ीमल, “कपटा… संपत, छीन लो इसे रतन के पैरों से। आज शुभ काम करने मैं यही चप्पल पहनकर जाऊंगा।”

कपटा और संपत ने वो चप्पल रतन से छीन ली और उसे मारकर वहाँ से भगा दिया। करोड़ीमल ने वो चप्पलें पहन लीं। चप्पल पहनते ही…

करोड़ीमल, “चप्पल पहनते ही मुझे तो जोर से आने लगी है, भई।”

बाथरूम के बाहर करोड़ीमल ने वो चप्पलें उतार दीं। उसके अंदर जाते ही कपटा और संपत ने उसकी बुराइयां शुरू कर दीं।

कपटा, “अरे यार संपत! इस सेठ की चापलूसी करते-करते तो मैं तंग आ गया हूँ।”

संपत, “सही कहा यार, एक तो दिन भर इसकी चापलूसी करो और ऊपर से इसकी मार भी खाओ। किसी दिन साले को चाय में जहर देकर जान से मार दूंगा।”

कपटा, “सही कहा क्षार, भगवान खुश होकर हमारे सारे बुरे कर्म माफ़ कर देगा।”

तभी करोड़ीमल बाथरूम से बाहर आया। दोनों चुप हो गए। जैसे ही उसने चप्पलें पहनीं, अचानक चप्पलें कपटा और संपत की आवाज में बोलने लगीं।

चप्पल (कपटा और संपत की आवाज में), “अरे यार संपत, इस सेठ की चापलूसी करते-करते मैं तंग आ गया हूँ।

एक तो दिन भर इसकी चापलूसी करो और ऊपर से इसकी मार भी खाओ। किसी दिन साले को चाय में जहर देकर जान से मार देंगे।”

करोड़ीमल, “ऐ नमकहरामो! तुम मेरे बारे में ये सोचते हो? मैं अब तक अपनी आस्तीन में सांपों को पाल रहा था? इसका मतलब ये जादुई चप्पल है।”

इतना बोलकर जमीनदार ने कपटा और संपत को पीटकर भगा दिया। और अपनी पत्नी मंजूरी के पास आकर बोला।

करोड़ीमल, “सुनो मंजरी, आज घर पर एक बिल्डर आने वाला है गांव की जमीन खरीदने। वो वहाँ पर कोई प्लाट या बिल्डिंग बनाना चाहता है।

तुम चाय-नाश्ते में कोई कमी नहीं रखना, वो बहुत मोटी रकम लेकर आने वाला है।”

मंजरी, “आपकी होशियारी का कोई जवाब नहीं है। उस मूर्ख को तो ये भी नहीं पता होगा कि जो जमीन वो खरीदने आ रहा है,

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वो जमीन तुम्हारी है ही नहीं, बल्कि उन गांव वालों की है जिन्हें तुमने थोड़ी सी रकम दी थी और बदले में भारी ब्याज लगाकर उनसे उनकी जमीन छीन ली।

उसे तो ये पता ही नहीं है कि तुम इंसान की खाल में छुपे हुए भेड़िए हो, जिसने गरीबों का खून चूस-चूसकर इतनी दौलत कमाई है।”

करोड़ीमल, “चुप हो जाओ मंजरी, चुप हो जाओ। दीवारों के भी कान होते हैं। ये बातें अभी बोलनी जरूरी हैं क्या?”

कुछ देर बाद वो बिल्डर आ गया। जमीनदार उस बिल्डर की चापलूसी करने लगा, मगर अचानक वो चप्पलें सेठ करोड़ीमल की पत्नी की आवाज में बोलने लगीं,

चप्पल (मंजरी की आवाज में), “उन्हें तो ये पता ही नहीं है कि ये गांव की जमीन तुम्हारी है ही नहीं,

बल्कि उन गांव वालों की है, जिन्हें तुमने थोड़ी सी रकम दी थी और बदले में भारी ब्याज लगाकर उनसे उनकी जमीनें छीन लीं।

उन्हें तो ये पता ही नहीं है कि तुम इंसान की खाल में छुपे हुए भेड़िए हो, जिसने गरीबों का खून चूस-चूसकर इतनी दौलत कमाई है।”

बिल्डर एक ईमानदार इंसान था। उसकी समझ में सारा मांजरा आ गया। उसने गुस्से से जमीनदार की ओर देखकर कहा,

बिल्डर, “तुम्हें शर्म आनी चाहिए। तुम गांव वालों की जमीनों पर कब्जा कर लेते हो? मुझे ऐसी जमीन पर कोई बिल्डिंग नहीं बनानी,

जहाँ पर सैकड़ों गांव वालों की मेहनत लगी हो। तुम्हें तो जेल में होना चाहिए। ये तो अच्छा हुआ, भाभी जी के मुँह से सच्चाई बाहर आ गई।”

मंजरी, “लेकिन मैंने तो कुछ बोला ही नहीं…”

इतना कहकर बिल्डर ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस ने जमीनदार को गिरफ्तार कर लिया।

करोड़ीमल (पुलिस से), “मुझे अरेस्ट मत करो थानेदार साहब, मैं सबकी जमीन वापस कर दूंगा।”

थानेदार, “जिन जमीनों को तू वापस करने की बात कर रहा है, वो तेरी या तेरे बाप की नहीं है।

वो तो गांव वालों की है। उन्हें वैसे भी वापस की जाएगी, और तू अब सारा जीवन जेल की चक्की पीसेगा, समझा?”

करोड़ीमल की सारी होशियारी धरी की धरी रह गई। रतन खुशी-खुशी अपनी जमीन के कागज ले आया।

वो अपनी पत्नी को सारी घटना बता ही रहा था कि तभी वो ऋषि प्रकट हो गए।

ऋषि, “बेटा, मैंने तुमसे कहा था ना कि तुम्हारी और सारे गांव की समस्या का समाधान इन चप्पलों में छुपा है। देखो, इन चप्पलों ने सारे गांव की समस्या का समाधान कर दिया।”

इतना कहकर वो ऋषि रतन के हाथ से उन चप्पलों को लेकर गायब हो गए।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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