शापित मंदिर | Shapit Mandir | Hindi Kahani | Moral Stories | Bedtime Stories in Hindi | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” शापित मंदिर ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Stories या Gaon Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


चंदन नगर गांव से दो किलोमीटर दूर नदी किनारे एक टूटा-फूटा मंदिर था। कहते हैं कि कभी चंदन नगर गांव उस नदी के किनारे बसा था,

लेकिन बार-बार बाढ़ आने के चलते और नदी की दिशा बदलने की वजह से 200 साल पहले चंदन नगर वर्तमान जगह पर बस गया।

वो पुराना मंदिर आज भी नदी किनारे ही विराजमान है। इस मंदिर को गांव वाले “भूतिया मंदिर” भी कहते हैं।

एक दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी। गांव का भुवन काम से लौट रहा था।

उसके कुछ ही दूरी पर गांव का नाई कनुआ कहीं से वापस लौट रहा था। अचानक से बिजली चमकी और मंदिर का घंटा बजने की आवाज आई।

भुवन, “हे भगवान! आज क्या अनर्थ होगा, पता नहीं। सब सुख रखना।”

तभी घंटे की आवाज और तेज़ होती गई और उसके सामने से कनुआ नाई उड़ता हुआ मंदिर की तरफ गायब हो गया।

भुवन, “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। कनुआ चाचा…।”

थोड़ी देर में बारिश रुक गई और भुवन भागता हुआ कनुआ के घर जा पहुंचा।

भुवन, “चाची, वो मंदिर… वो मंदिर!”

चाची, “बताओ रे! भुवन को क्या हुआ? इतना घबराए हुए क्यों हो? सब मंगल तो है ना?”

भुवन, “नहीं चाची, कनुआ चाचा मंदिर के घंटे की आवाज में गायब हो गए।”

चाची, “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। कह दो कि ये झूठ है। मेरी आँखों के सामने चाचा मंदिर की तरफ उड़ते हुए चले गए। मुझे माफ कर दो चाची, मैं कुछ नहीं कर सका।”

सरपंच, “धीरज धरो बहू, अब इन गांव वालों को सब पता नहीं किन पापों का फल मिल रहा है?”

अगले दिन…
बंकू, “पिताजी, बहुत प्यास लगी है। एक बोतल पानी लाया था, वो दोपहर में ही खत्म हो गया था।”

रतन, “जा, नदी किनारे जाकर पी ले।”

बंकू, “क्या पिताजी..? डेढ़ किलोमीटर पानी पीने के लिए जाऊँ?

क्यों ना हम अपने खेत में एक कुआँ खोद लें? मेरे सपने में भी आता है कि हमारे खेत में एक कुआँ है।”

रतन, “चल चुपचाप अपना काम कर। जब देखो उल्टा-पुल्टा बात करता रहता है, आलसी कहीं का। डेढ़ किलोमीटर चलने के चलते इनको खेत में ही कुआँ चाहिए।

अरे! सपना में कुआँ दिखता है। कल आलू भी निकालना है। माँ भी आएगी। दो बोतल पानी भर लेना।”

बंकू, “माँ देखो ना, बोतल से पानी खेत में गिर गया। प्यास लगी है। क्यों ना हम अपने खेत में कुआँ खोदें? सचमुच, मेरे सपने में दिखता है कि अपने खेत में एक कुआँ है‌।”

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सुनीता, “अब तो शाम हो ही गई है, घर जाकर पानी पी लेना बेटा।

बंकू, “माँ, मैं थोड़ा चेतन के पास जाऊँगा। तुम लोग घर चले जाना, मैं उससे मिलकर रात में घर लौटूंगा।”

रतन और सुनीता घर चले जाते हैं। बंकू अपने दोस्त चेतन से मिलने जाता है।

रात में घर पर…

सुनीता, “बेटी सुमति, पिताजी को थोड़ा खाना दे आ। रात के 9:00 बज गए हैं, नहीं तो वो सो जाएंगे। पता नहीं ये बंकू कहाँ रह गया?”

सुमति, “लाओ माँ, मैं दे देती हूँ।”

सुमति (रतन के पास जाकर), “पिताजी, ये लीजिए आपका खाना।”

रतन, “ठीक है बेटा, लाओ। बंकू अभी घर लौटा या नहीं अभी तक?”

सुमति, “नहीं पापा, बंकू भैया अभी तक नहीं आए हैं।”

तभी पुराने मंदिर के घंटे के बजने की आवाज आती है। आज बरसों बाद पुराने मंदिर का घंटा बजा था।

रतन, “बहुत दिनों बाद आज फिर पुराने मंदिर के घंटे बज रहे हैं। जरूर कुछ अनर्थ होने वाला है। ये बंकू ना जाने कहाँ रह गया?”

तभी सुनीता दौड़ती हुई आती हैं।

सुनीता, “अजी सुनते हो..?बाहर पुराने मंदिर के घंटे बज रहे हैं। अभी तक बंकू भी घर नहीं लौटा। गजब हो गया। जाने क्या होने वाला है?”

रतन, “अरे भाग्यवान! आ जाएगा। घंटे की आवाज सुनी होगी, तो वह अपने दोस्त से घर ही रुक गया होगा फिलहाल।”

सुनीता, “काश! आप जो कह रहे हैं, वैसा ही हो।”

सुमति, “अरे पिताजी! आप दोनों घंटे की आवाज सुनकर इतना डरे हुए क्यों हो? आखिर बात क्या है उस घंटे में?”

उसी समय दरवाजे पर कोई दस्तक देता है।

सुनीता, “लो आ गया मेरा बेटा बंकू। भगवान का लाख-लाख शुक्र है।”

सुनीता, “सुमति, जा भैया आया है, खोल दे दरवाजा।”

सुमति जाकर दरवाजा खोलती है।

सुमति, “अरे पंडित जी! प्रणाम।”

पंडित जी, “हाँ बेटा, मुखिया जी के यहाँ पूजा करवा कर लौट रहा था। तभी पुराने मंदिर का घंटा बजने लगा, तो मैं यहाँ आ गया।”

रतन, “अरे पंडित जी, प्रणाम। आइए आइए, अंदर आइए। बड़े दिनों बाद पुराने मंदिर का घंटा बजा है। पता नहीं किस बदनसीब की किस्मत खराब है?”

पंडित जी, “वैसे तुम्हारे परिवार में तो सब सुरक्षित है ना? मुँह क्यों लटका हुआ है तुम्हारा?”

सुनीता, “प्रणाम पंडित जी! देखिए ना, बंकू दोस्त के यहां गया था, अभी तक लौटा नहीं है। पुराने मंदिर से घंटे की आवाज़ आ रही है, चिंता लगी हुई है।”

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पंडित जी, “धीरज रखो बहू, कुछ नहीं होगा बंकू को। भगवान भला करेंगे। जहाँ होगा, सुरक्षित होगा।”

सुमति, “लेकिन उस पुराने मंदिर के घंटे की आवाज़ से सब इतना डरे हुए क्यों है? मुझे कोई बताता क्यों नहीं?”

पंडित जी, “ये तो कोई नहीं जानता बच्ची कि वो मंदिर का घंटा अपने आप बजता कैसे है?

लेकिन जब भी बजता है, गांव से कोई ना कोई लापता जरूर हो जाता है। इसीलिए मंदिर का घंटा बजते ही सभी अपने-अपने घर में घुस जाते हैं।”

सुमति, “तो इस घंटे को कोई खोलकर हटा क्यों नहीं देता?”

पंडित जी, “जिसने भी घंटा को हटाने की कोशिश की, उसी क्षण उसे लकवा यानी पैरालिसिस मार दिया।”

सुमति, “ओह! लेकिन ऐसा होता क्या है?”

पंडित जी, “हमारे पूर्वज बताते हैं कि सदियों पहले उस मंदिर के पुजारी की हत्या चोरों ने कर दी थी और कीमती आभूषणों और मूर्तियों को लेकर भाग गए।”

सुमति, “पर किसी ने पंडित जी की मदद नहीं की?”

पंडित जी, “पंडित ने जोर-जोर से घंटा बजाय, लेकिन सर्दी के 12:00 बजे ठंडी रात होने के कारण कोई भी गांव वाले मदद के लिए नहीं गया।

कहा जाता है कि उस पुजारी की आत्मा आज भी मंदिर में ही मौजूद है।

जब जब पुजारी की आत्मा घूमती है, मंदिर का घंटा बजने लगता है और गांव का कोई ना कोई व्यक्ति गायब हो जाता है।”

उधर घंटा बजने के पहले बंकू अपने दोस्त चेतन के घर पर था।

बंकू, “चेतन, रात काफी हो गई है। अब मैं चलता हूँ। पिताजी खाना खाते समय मुझे खोजते हैं। दरअसल मैं और पिताजी रात का खाना साथ में खाते हैं।”

चेतन, “ठीक है यार, तुम्हारे साथ भी पता नहीं चला कि टाइम कैसे गुजर गया? इतनी रात हो गई।”

तभी मंदिर का घंटा बजने लगता है।

चेतन, “अरे बंकू! थोड़ी देर रुक जा यार। पुराने मंदिर का घंटा बजने लगा। जरूर कुछ होने वाला है।”

बंकू, “नहीं यार, पहले ही काफी लेट हो चुका हूँ। पिताजी मेरे बिना खाए सो जाएंगे।

और वैसे भी मैं इस अंदर विश्वास को नहीं मानता। ठीक है चलता हूँ, 10 मिनट में घर पहुँच जाऊंगा।”

चेतन के बार-बार मना करने के बावजूद बंकू वहाँ से अपने घर की ओर चल देता है।

जैसे-जैसे वह चलता जाता, उसके कानों में पुराने मंदिर के घंटे की आवाज तेज़ होती जाती।

घंटे की आवाज अब उसके कानों में इतनी तेज हो गई कि वह दोनों हाथों से कानों को ढक लेता है। फिर भी घंटे की आवाज उसके कानों में नष्टर की तरह चुभ रही थी।

इस दौरान कब उसका पैर मंदिर की उलझल पड़ा, उसे पता भी नहीं चला? एकाएक वो देखता है कि वो मंदिर के पास खड़ा है और घंटा लगातार बजे जा रहा है।

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वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही घंटा चुम्बक की तरह उसे खींच लेता है और घंटे के अंदर बंकू ऐसे समा जाता है जैसे घंटा कोई ब्लैक होल हो। इसके साथ ही घंटे की आवाज आनी बंद हो जाती है।

इधर रतन के घर…

पंडित जी, “चलो, घंटे की आवाज तो बंद हुई। भगवान करे कहीं कोई हादसा ना हुआ हो।

ठीक है रतन, अब मैं चलता हूँ। बंकू भी तुम्हारा 10-15 मिनट में आ ही जाएगा।”

रतन, “ठीक है पंडित जी, प्रणाम!”

सुनीता, “सुनो जी, टॉर्च लेकर चेतन के यहाँ जाकर देखो। घंटे की आवाज तो बंद हुए आधा घंटा हो गया। बंकू अभी तक घर नहीं लौटा।”

रतन, “तुम ठीक कह रही हो, सुनीता। मैं अभी जाकर चेतन के घर बंकू को देखकर आता हूँ।”

रतन, “सुमति, ज़रा टॉर्च तो लाना।”

रतन पूरा रास्ता तोड़ते हुए बंकू को खोजते हुए चेतन के घर पहुंचा। वो दरवाजा खटखटाता है।

चेतन, “अरे अंकल! आप..? बंकू तो यहाँ से आधा घंटा पहले ही चला गया, जब घंटा बज रहा था। अभी तक घर नहीं पहुंचा क्या?”

रतन, “नहीं बेटा, अभी तक तो बंकू घर नहीं पहुंचा। लेकिन जब पुराने मंदिर का घंटा बज रहा था, तब उसे जाने क्यों दिए?”

चेतन, “अंकल, मैं बार-बार उसे मना कर रहा था कि अभी मत जाओ, लेकिन वो बोला कि मैं अंधविश्वास में नहीं मानता।

मेरे पिताजी मेरे बगैर खाना नहीं खाते और वो उसी समय चला गया।”

चेतन और रतन दोनों मिलकर बंकू को बहुत ढूंढ़ते हैं, लेकिन बंकू कहीं नहीं मिलता। रतन के घर पर हाहाकार मच जाता है।

तैसे-तैसे रात गुजरती है। सुबह होते ही रतन के घर पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

सरपंच, “रतन भाई, मुझे अभी-अभी पता चला कि घंटे की आवाज जो रात में हुई थी, उसके बाद से तुम्हारा बंकू गायब है?

मुझे इस बात का बहुत अफसोस है, लेकिन इसमें हम लोग कर भी क्या सकते हैं?”

रतन, “सरपंच साहब, बंकू मेरा इकलौता बेटा था। वह पूजा-पाठ और अंधविश्वास को नहीं मानता था।

कितनी बार उसे समझाया, लेकिन वह नहीं मानता? आज उसी का फल हम लोग भोग रहे हैं।”

सरपंच, “नियति के आगे हम सब लोग बेबस हैं। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे ऊपर क्या बीत रहा है। हम लोग तो सिर्फ सांत्वना ही दे सकते हैं।”

रतन, “हाँ, बेटा तो चला गया। अब तो सिर्फ सांत्वना ही हमारे हिस्से बची है।

अभी कल ही वो कह रहा था कि पिताजी एक कुआँ खेत में खुदवा दीजिए, मेरे सपने में आता है कि अपने खेत में कुआँ है।”

दो-तीन दिन बाद गांव में एक दुष्ट पंडित बाबा चूरनदास आते हैं। उसे पता चलता है कि रतन के घर से उसका इकलौता बेटा बंकू गायब हो गया है।

इसी बात का वो फायदा उठाने की सोचता है और रतन के घर पर पहुंचता है।

चूरनदास, “अलखनिरंजन… कोई घर पर है बच्चा?”

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सुनीता, “बच्चा तो नहीं रहा। लीजिए महाराज, ये एक किलो चावल स्वीकार कीजिए।”

चूरनदास, “नहीं माता, मैं भिक्षा माँगने नहीं आया। मुझे मालूम है कि तुम्हारा बच्चा पिछले दिनों गायब हो गया है। कोई बात नहीं, हम उसे वापस लाएंगे।”

सुनीता, “महाराज की जय हो! कोई भी उपाय करें महाराज। कैसे भी मेरा बच्चा मुझसे मिलवा दें।”

चूरनदास, “नारायण… नारायण! तुम्हारा बच्चा तुम्हें जरूर मिलेगा माता। बस थोड़ा सा दान-पुण्य करना होगा। घर में जितना भी सोना है, उसका त्याग करना होगा।”

सुनीता, “महाराज, सोने जैसे बेटे के सामने ये नकली सोना किस काम का? मैं अभी आपको घर में रखा सारा सोना, जेवर लाकर देती हूँ।”

सुनीता घर में रखा सारा सोने का गहना लाकर बाबा चूरनदास को दे देती है।

सुनीता, “ये लो बाबा, मेरे यहाँ जितने भी सोने के गहने थे, वो सब मैं ले आई। रुको, ये कान में मेरी बाली भी ले लो, मुझे मेरे बेटे से मिलवा दो बाबा।”

चूरनदास, “अलखनिरंजन! अब चलो। हमें पुरानी मंदिर चलना होगा, वहीं तुम्हारा बेटा तुमसे मिलेगा।”

बाबा चूरनदास सुनीता के परिवार को पुराने मंदिर की ओर ले चल पड़ते हैं। जल्दी ये बात पूरे गाँव में फैल जाती है, बाबा चूरन दास बंकू को वापस लाएंगे।

जिनके बच्चे या परिवार का कोई सदस्य अभी तक गायब हुए थे, सब अपने-अपने घर के गहने लाकर बाबा चूरन दास के पास पहुँच जाते हैं।

आदमी, “बाबा, ये लो मेरे घर के सारे गहने, हमारे बच्चे को वापस ले आओ।”

भुवन, “बाबा, मेरा भी चाचा को वापस ला दो।”

दूसरा आदमी, “ये लो गहने, हमारे पिताजी को वापस ले आओ।”

जल्द ही बाबा के पास सोने के आभूषणों का अंबार लग जाता है।

चूरनदास, “आप लोग शांति बनाए रखें। सभी को उसके परिजन मिल जाएंगे। अभी हम एक हवन करेंगे।”

चूरनदास मास्क पहनकर हवन में कुछ भस्म फेंकता है जिससे पूरे मंदिर परिसर में धुआं फैल जाता है और धुएं में सारे लोग बेहोश हो जाते हैं।

चूरनदास फौरन सारे जेवर समेटकर एक बोरे में भरकर भागने लगता है।

तभी मंदिर में टंगे घंटे से एकाएक किरणें निकलती हैं और चूरनदास वही पर अपाहिज हो जाता है।

थोड़ी देर बाद सभी को होश आता है।

चूरन दास, “मुझे बचा लो, कोई मुझे बचाओ। मैं पूरी तरह पाई हो चुका हूँ। मैंने तुम लोगों के साथ धोखा किया है।

हे भगवान! अब किसी के साथ धोखा नहीं करूँगा।”

पंडित जी, “दुष्ट पंडित, तुम्हारी यही सजा है। तुमने कई लोगों की भावनाओं को धोखा दिया है। अब पड़े रहो यहीं।”

उधर सुनीता ने रात में कहा था कि उसके बेटे की आखिरी इच्छा खेत में कुआँ खुदवाने की थी।

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इसलिए रतन बंकू को याद कर खेत में कुआँ खोद रहा होता है। तभी उसे जमीन के अंदर से कुछ मूर्तियाँ और आभूषण मिलते हैं। वो इसकी खबर सरपंच और पंडित ज्ञानचंद को देता है।

पंडित जी, “ज़रूर यह मूर्तियाँ वही पुराने मंदिर की हैं, जो सैकड़ों साल पहले गायब हुए थे। शायद चोरों ने इसे यहाँ पर छुपा रखा था।”

सरपंच, “अगर ऐसी बात है तो पंडित जी, इन मूर्तियों को गंगा जल से धोकर फिर से वही स्थापित किया जाए।”

पंडित ज्ञानचंद उन मूर्तियों को फिर से पुराने मंदिर में प्रतिस्थापित करवा देता है। तभी ज़ोर से घंटे बजने लगते हैं।

सभी लोगों में हाहाकार मच जाता है क्योंकि सभी आज घर के बाहर मंदिर के पास खड़े थे।

तभी अचानक सुमति चिल्लाती है, “अरे मां! देखो, घंटे में से बंकू भैया निकल कर आ रहे हैं।”

पंडित जी, “अरे ओ गिरधारी मेरे भाई! बरसों पहले तुम बिछड़ गए थे। जय हो देवी माँ! तेरी लीला अपरंपार है। अरे! रामधन भी… सभी लोग निकल रहे हैं।”

कनुआ की पत्नी, “आप आ गए? मुझे यकीन था आप आओगे।”

घंटे में से गायब हुए लोगों को निकलता हुआ सब देख रहे थे। किसी का बेटा, किसी की बहन, किसी के चाचा, किसी के दादा… सब लोग अपने परिजनों से मिलकर बहुत खुश थे।

चूरनदास, “अरे! मैं ठीक हो गया! जय हो बाबा, जय भगवान! तेरी महिमा तू ही जाने।”

पंडित जी, “चूरन दास, भगवान ने तुझे नया जन्म दिया है, इसीलिए इस जन्म में तुम अच्छे कर्म करो। तुम इस मंदिर का देखभाल करो, यही भगवान का आदेश है।”

चूरनदास, “मैं जीवन भर इसी चौखट पर पड़ा रहूंगा। मुझे मोक्ष यही मिलेगा।”

पंडित जी, “शायद आज इस मंदिर के पुजारी की आत्मा को शांति मिला होगा। मंदिर में भगवान फिर से स्थापित हो चुके हैं।”

इस घटना को आज कई साल बीत गए, लेकिन फिर कभी मंदिर का घंटा नहीं बजा।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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