तवायफ | Tawayaf | Horror Story | Bhutiya Kahani | Dayan Ki Kahani | Haunted Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – तवायफ। यह एक Haunted Horror Story है। तो अगर आपको भी Darawani Kahaniya, Bhutiya Kahani या Horror Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


कहानी उत्तर प्रदेश के एटा की है, एटा के चमकरी गाँव की। इस हवेली से अचानक एक चीख गूंजती है। आवाज किसी लड़की की थी।

आवाज़ कहती है, “मुझे हवेली से मत निकालो, ये मेरा घर है वरना मैं तुम सबको बर्बाद कर दूंगी।”

कई खौफनाक हवेली या भूतिया हवेली के किस्से अब तक आपने सुने होंगे। मगर ऐसी कोई हवेली नहीं थी जहाँ कोई रहता हो। 

इसीलिए दास्तां कितनी सच है और कितनी झूठ, ये शक हमेशा बना रहता है? मगर जिस हवेली का जिक्र मैंने अपनी किताब में किया है, वहाँ एक परिवार रहता था, मेरा परिवार। 

और साथ में रहती थी रमियां… रमियां बाई, जिसे मरे 200 साल का वक्त गुजर चुका था। अगर वक्त के पन्नों के हिसाब से लिया जाए तो ये हवेली करीब 200 साल पुरानी है। 

ये हवेली बाकी हवेलियों की तरह वीरान नहीं, बाकायदा आबाद थी मेरे परिवार के लोगों से, मगर दबा है एक रूह से। जी हाँ, इस हवेली में जिंदगी और मौत साथ-साथ रहते हैं।

जब मेरा परिवार इस हवेली में रहने आया तो आसपास के सब लोगों ने हमें यहाँ रहने से मना किया था। मुझे आज भी ये बात अच्छे से याद है। 

जब हम हवेली में गृह प्रवेश कर रहे थे तो गाँव के लोगों का काफिला हमें अंदर जाने से रोकने आया था। 

आदमी, “चौधरी साहब, ये अनर्थ मत करिए। आपका पूरा परिवार है। दो बेटे हैं, एक बेटी है, पत्नी है, फिर आप सारी दुनिया छोड़कर इस हवेली में रहने आए हो?”

पापा, “अरे भाई ! प्रॉब्लम क्या है? मैंने हवेली को रहने के लिए ही खरीदा है। इतनी आलीशान हवेली है और आप लोग हमें यहाँ रहने से ही मना कर रहे हैं। क्या कोई भूत रहता है इस हवेली में?”

आदमी, “रहता है नहीं साहब, रहती है… तवायफ रमियां बाई रहती है इस हवेली में। कितने लोगों ने इस हवेली को खरीदा और अपना परिवार तबाह करके चले गए? 

इतने बुरे हालात हुए कि उनकी लाशों को चिता देने के लिए कोई उनका अपना जिंदा नहीं बचता।”

गाँव वालों और पापा के बीच में ये बहस घंटों तक चली। पर मेरा सारा ध्यान अभी भी हवेली पर ही था। वैसे पापा ने सही कहा था, हवेली दिखने में तो आलीशान थी। 

मैं बाहर खड़ा हवेली को ही निहार रहा था कि तभी मैंने देखा एक औरत हवेली की छत पर पैर लटकाए हमें ही देख रही है। दिखने में डरावनी थी, बाल भी इस तरह बिखरे कि कोई देख कर ही पागल हो जाए। 

पर इससे पहले मैं इस औरत का जिक्र किसी से कर पाता, वो मुझे अपना सपना ही लगा। मैंने इसे अपने लड़कपन का वहम समझ भुला दिया।

इधर पापा और गाँव की बहस का कोई नतीजा नहीं निकला। पापा अपनी जिद पर अड़े रहे और गाँव वाले थक हारकर चले गए। 

पापा हम सबको साथ लिए गुस्से में हवेली के अंदर चल दिए। पर हवेली के अंदर जाने से पहले मुझे गाँव वालों का कहा आज भी अच्छे से याद है। 

आदमी, “चौधरी साहब, हवेली के बाहर ही खाली अर्थी छोड़ के जा रहे हैं। आपको जल्दी इसकी जरूरत पड़ेगी।”

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पापा ने गाँव वालों की इस बात को हवा में उड़ा दिया। हम पापा के साथ हवेली के अंदर जा ही रहे थे कि तभी मैंने देखा वही औरत अब हवेली की खिड़की से हमें ही अंदर आते देख रही है। 

इस बार मैंने जानबूझकर किसी से कुछ नहीं कहा। मैंने पहले ही सोच लिया था कि मैं अपने भाई बहन के साथ मिलकर इस औरत को ढूंढ निकालूंगा। 

मैंने ये बात अपने छोटे भाई अनुज और बड़ी बहन पल्लवी को बताई तो वो लोग भी मेरे साथ खेलने को तैयार हो गए। रात होते ही सबसे पहले तो छत पर गए जहाँ सबसे पहले मैंने उस औरत को देखा था। 

फिर उसके कमरे में जिस खिड़की से वो हमें अंदर आते देख रही थी। पर तीनों भाई बहन में से किसी को कुछ नहीं मिला। बस पायलों की छन-छन सुनाई देती थी, पर कोई दिखाई नहीं देता था।

अभी तीन-चार दिन ही गुजरे थे कि मैंने माँ को पापा से कहते सुना कि उन्हें भी रात में किसी की पायल की आवाज़ सुनाई देती है। और कई बार तो उन्हें औरत भी दिखाई देती है, जो अक्सर बात करती रहती है।

छोटा भाई दो बार सीढ़ियों से गिर चुका था। बड़ी बहन का शरीर हमेशा ही दर्द करता रहता और पापा ने तो हवेली में आते ही बिस्तर पकड़ लिया था। 

उन्हें अक्सर बुखार रहता और माँ का कभी हाथ कट जाता तो कभी साड़ी जल जाती। कितनी बार तो मरते-मरते ही बची थी? 

अब हमें सबको ये हवेली अजीब लगने लगी थी। घर का हर सदस्य उस औरत की झलक को हवेली में घूमते हुए देख चुका था। 

पापा भी बोलते थे कि वो दूसरे घर के लिए बात कर रहे हैं। लेकिन पैसों की बहुत कमी है। जितने पैसे थे, उन्होंने इस हवेली को खरीदने में लगा दिए।

पर फिर एक रात कुछ ऐसा हुआ जिसे याद कर आज भी मेरी रातों की नींद उड़ जाती है। दरअसल डर के मारे अब हम सभी एक ही कमरे में सोने लगे थे। रात के 3 बज रहे थे कि अचानक ही कोई हमारे कमरे का दरवाजा पीटने लगा। 

सबकी नींद एक पल में खुल गई। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाता, मेरा छोटा भाई अनुज हवा में ऊपर उठ गया था। उसकी हड्डियाँ अकड़ने को हो गई थीं।

वो दर्द के मारे रो रहा था, चीख रहा था। पर वो इतना ऊपर था कि कोई उसे छू भी नहीं पा रहा था। हम सबने उसे नीचे लाने की बहुत कोशिश की पर सब नाकामयाब रहे।

अनुज, “माँ, ये आंटी मुझे मार रही हैं। मुझे दर्द हो रहा है। पापा, मुझे बचा लो, ये आंटी मुझे मार डालेगी।”

छोटे भाई की बात सुनकर हम सबकी आँखों में आंसू आ गए थे‌। पर कोई कुछ भी नहीं कर पा रहा था। तभी अचानक हम सबको तवायफ रमियां बाई हवा में नजर आने लगी थी। 

पहली बार हमने रमियां बाई को देखा था, बेहद डरावनी और खूंखार। उसने पैरों में पायल पहनी हुई थी। उसका सिंगार भी तवायफों वाला था।

उसने अनुज की गर्दन को तब तक दबाए रखा जब तक वो छटपटाता रहा। जैसे ही अनुज की मौत हुई, रमियां ने अनुज की लाश को हम सबके सामने गिरा दिया।

माँ-पापा की चीख निकल गई। पर ये तबाही की सिर्फ शुरुआत थी। अनुज को मारने के बाद रमिया ने माँ के शरीर पर कब्ज़ा कर लिया और गर्दन से पकड़ उन्हें कमरे के एक कोने में फेंक दिया। 

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फिर तुरंत ही पापा पर हावी होकर उनके जिस्म से उनके दोनों हाथों को खींचकर फेंक दिया। पापा लहूलुहान हो चुके थे।

पापा, “मालती, ये तुम क्या कर रही हो? होश में आओ मालती।”

मगर माँ ने पापा की एक ना सुनी। और पापा को बालों से पकड़कर रमियां उनका सर उनके धड़ से अलग करने पर उतारू हो चुकी थी। पापा जानते थे कि अब कुछ पल ही वो जिंदा रहेंगे। 

इसीलिए मरते वक्त उन्होंने मुझे और मेरी बड़ी बहन को देखते हुए कहा, “तुम दोनों हवेली से भाग जाओ, जाओ। तुम्हे भी जिन्दा नहीं छोड़ेगी। बस हर हाल में तुम दोनों को एक-दूसरे का ख्याल रखना।”

इससे पहले पापा अपनी बात पूरी करते, माँ के जिस्म में समाई हुई रमियां ने पापा का सिर उनके धड़ से अलग कर हमारे पैरों के पास फेंक दिया। 

पापा को मरते देख हम दोनों भाई-बहन डर के मारे कांपने लगे थे। पर तभी मेरी बड़ी बहन पल्लवी ने मेरा हाथ पकड़ा और हवेली से बाहर जाने को दौड़ पड़ी।

मैं, “दीदी, पर माँ तो अभी भी जिंदा हैं। हम उन्हें अकेला छोड़ कर कैसे जा सकते हैं? दीदी, आप कुछ बोलती क्यों नहीं?”

पल्लवी, “सत्येंद्र, इस रमियां को मैं संभालती हूँ। तुम बस किसी भी तरह इस हवेली से दूर चले जाओ और फिर कभी यहाँ लौटकर मत आना।”

मैं दीदी का हाथ छोड़ने को तैयार नहीं था, इसलिए खुद ही दीदी ने अपना हाथ छुड़ाते हुए मुझे हवेली के दरवाजे की ओर जाने के लिए धकेल दिया और खुद रमियां की और तेजी से दौड़ पड़ी। 

रमिया ने भी तुरंत माँ का जिस्म छोड़ दिया और दीदी के शरीर को अपने कब्जे में कर लिया। अभी एक पल पहले पल्लवी दीदी मेरी जान की सलामती के लिए अपनी जान कुर्बान करने को तैयार थी, अब वही दीदी मेरे खून की प्यासी बन मुझे मारने के लिए मेरे पीछे आ रही थी।

दीदी को अपने पीछे आते देख मैं डर गया। दरवाजा तो एक कदम आगे था, और मौत एक कदम पीछे। जब मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने पास ही से एक लोहे की रॉड उठाकर उसे अपनी हिफाजत के लिए दीदी के आगे कर दिया, जो तेजी से मेरी तरफ़ आ रही थी। 

पर इससे पहले मैं कुछ समझ पाता, एक झटके से दीदी का जिस्म उस लोहे की रॉड में फंस गया। दीदी मेरे हाथों मारी गई थी, पर खुदा की रहमत थी कि दीदी ने मरते-मरते भी मुझे जिंदगी दे दी थी। दीदी के शरीर से मुझे तेज झटका लगा कि मैं खुद बहुत हवेली से बाहर आ गया।

जब मैंने अपना होश संभाला तो देखा कि अनुज की बॉडी मेरे बगल में बेजान सी पड़ी थी। मेरा सारा परिवार एक रात में खत्म हो चुका था। 

मैं वहाँ बैठा था। उस हवेली को देखता रहा और रोता रहा। मुझे कभी खिड़की से तो कभी हवेली की छत पर से रोती हुई औरत दिखती रहती।

अगली सुबह गाँव के पास जब ये सब खबर पहुंची तो सब लोग मेरी मदद के लिए आ गए। इस बीच मेरी नजर उस अर्थी पर पड़ी जो गाँव वालों ने हवेली के बाहर ये कह कर रख दी थी कि जल्दी हमें इसकी जरूरत पड़ेगी। उनका कहना सच हो गया। अब अर्थी एक थी और लाशें चार।

अपने परिवार का अंतिम संस्कार करने के बाद मैंने फिर कभी उस हवेली में कदम नहीं रखा।

तो बस इतनी सी थी ये कहानी जिसे मैंने अपनी इस किताब में बयान किया है, जिसे आप लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये था कि कौन थी वो लड़की और इसका इस हवेली से क्या रिश्ता था? 

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रमिया बाई की पायल जब छनकती थी तो लोग दीवाने हो जाया करते थे। हर हवेली का मालिक ये सपना पाला करता था कि एक दिन ये घुंगरू उनके लिए, सिर्फ उनके लिए छनकेंगे। 

बात करीब 200 साल पुरानी है जब रमिया इस हवेली में मुजरा किया करती थी, जिस पर वहाँ से सात कोस दूर तक वाले भी खींचे चले आते थे। 

लेकिन आज उसकी खूबसूरती पर दो भाई ऐसे टूटे कि आपस में ही भिड़ गए और खंजर रमियां के सीने में घुस गया। 

वो खंजर बहुत गहरा जख्म छोड़ गया था। जिंदगी की साँसें उसकी टूटी हुई पायल की घुंघरू की तरफ बिखरती जा रही थी। मौत दस्तक दे चुकी थी।

रमिया की मौत के साथ ही नाच-गाना, मस्ती, ठिठोली सब कुछ खत्म हो गया। ये मौत इस हवेली पर बहुत भारी पड़ी। वक्त बीतता गया मगर उसकी यादें कभी धुंधली नहीं पड़ी। 

पड़ती भी कैसे? क्योंकि रमिया ने तो इस हवेली को छोड़ा ही नहीं था। वो आज भी लोगों को नज़र आती है मगर गाती-गुनगुनाती नहीं, बदहवास घूमती हुई।

याद करती है उन सुनहरे दिनों को, जब एक महफिल उठती नहीं थी कि दूसरी सजाने को बेताब लोग वहाँ पहुँच जाते। 

फर्क सिर्फ इतना है कि 200 साल पहले इस हवेली से हर शख्स मस्ती से झूमता हुआ निकलता था, मगर आज यहाँ से सिर्फ लाशें निकलती हैं। शायद किसी ने सच ही कहा है, तवायफ सचमुच सब कुछ तबाह कर देती है।


ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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